Anurag Anveship-
यह तस्वीर Pawan Jakhar की है। यह नवभारत टाइम्स के फरीदाबाद ब्यूरो के इंचार्ज हुआ करते थे। फरीदाबाद एनबीटी को जमाने में इनकी भूमिका बड़ी रही है। आज फरीदाबाद में एनबीटी के रिपोर्टरों की जो टीम काम कर रही है, उनमें कई रिपोर्टर ऐसे हैं जिन्हें पवन ने लिखना सिखाया था। पर पवन के हिस्से नियति कुछ अलग ही लिख रही थी।
नवभारत टाइम्स की नौकरी छूटने के बाद पवन में अजब सी छटपटाहट थी। वह तिलमिलाया हुआ था यह देखकर कि जितनी ऊर्जा वह झोंक रहा है अपने काम में, कुछ लोगों को वह दिख ही नहीं रही। बल्कि ऐसे लोग यह साबित कर पाने में कामयाब हो गए कि पवन नाकामयाब है। पवन बेचैन था ऐसे लोगों से बदला लेने के लिए। अक्सर फोन करता, अपनी नई योजनाएं सुनाता, अपनी कोशिशें बताता, अपनी हताशा और क्षोभ साझा करता।
अफसोस है कि उसकी बेचैनी को समझा-बुझाकर शांत करता रहा। उसकी आग पर पानी डालता रहा। उसे समझाता रहा कि जो दूसरों ने किया तुम्हारे साथ, वही अगर तुम भी करोगे तो क्या फर्क रह जाएगा तुममें और उनमें। बहरहाल, उस फर्क को बचाए रख आज पवन विदा हो गया। मन की तपिश ने उसके शरीर को ठंडा कर दिया। सारा गुबार शांत हो गया। पत्रकारिता की घिनौनी राजनीति और अवसरवादी दुनिया को कोसता हुआ पवन अब हमेशा के लिए शांत हो गया। पवन की यह चुप्पी अगर जरा भी सालती हो आपको, तो अपनी चुप्पी तोड़ें। फिर किसी पवन को इस मुकाम तक न पहुंचने दें कि वह मौन हो जाए। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी। विदा भाई।
अभी सबसे ज्यादा चिंता सुमन और बच्चों की हो रही। उन्हें कैसे सांत्वना दी जाए? क्या सांत्वना दी भी जा सकती है? उनका यह दुख ऐसा है, जिसे हम चाहकर भी उनसे ले नहईं सकते, साझा नहीं कर सकते। कितना बेबस होता है इनसान। ओह।