आगरा की रहने वाली प्रतिमा भार्गव ने मीडिया के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई जीत ली है. लेकिन दुख इस बात का है कि बेशर्म मीडिया वाले इस खबर को कतई नहीं छापेंगे. अगर इनमें थोड़ी भी नैतिकता होती तो प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के इस फैसले को न सिर्फ प्रकाशित करते बल्कि खुद के पतने पर चिंता जताते, विमर्श करते. प्रतिमा भार्गव के खिलाफ एक फर्जी खबर दैनिक जागरण आगरा और आई-नेक्स्ट आगरा ने प्रमुखता से प्रकाशित किया. अनाप-शनाप आरोप लगाए.
प्रतिमा से कोई पक्ष नहीं लिया गया. खबर छपने के बाद जब प्रतिमा ने अपना पक्ष छपवाना चाहा तो दैनिक जागरण और आई-नेक्स्ट के संपादकों ने इनकार कर दिया. प्रतिमा ने लीगल नोटिस भेजा अखबार को तो इसकी भी परवाह नहीं की. अंत में थक हारकर प्रतिमा ने प्रेस काउंसिल आफ इंडिया में केस किया और वकीलों के साथ प्रजेंट हुई. अपनी पूरी बात बताई. प्रेस काउंसिल ने कई बार दैनिक जागरण और आई-नेक्स्ट के संपादकों को बुलाया लेकिन ये लोग नहीं आए.
अब जाकर प्रेस काउंसिल ने आदेश किया है कि दैनिक जागरण और आई-नेक्स्ट ने प्रतिमा भार्गव के मामले में पत्रकारिता के मानकों का उल्लंघन किया है. इस बाबत उचित कार्रवाई के लिए RNI एवं DAVP को आर्डर की पूरी कापी प्रेषित की है. साथ ही आदेश की कापी दैनिक जागरण और आई-नेक्स्ट के संपादकों-मालिकों को भी रवाना कर दिया है. क्या दैनिक जागरण का संपादक संजय गुप्ता और आई-नेक्स्ट का संपादक आलोक सांवल इस फैसले को अपने अखबार में छाप सकेंगे? क्या इनमें तनिक भी पत्रकारीय नैतिकता और सरोकार शेष है? क्या ये एक पीड़ित महिला ने सिस्टम के नियम-कानून को मानते हुए जो न्याय की लड़ाई लड़ी है और उसमें जीत हासिल की है, उसका सम्मान करते हुए माफीनामा प्रकाशित करेंगे व उसकी खराब हुई छवि को दुरुस्त करने के लिए प्रयास करेंगे?
शायद नहीं. इसलिए क्योंकि इसी को कहते हैं कारपोरेट जर्नलिज्म, जहां सरोकार से ज्यादा बड़ा होता है पैसा. जहां पत्रकारिता के मूल्यों से ज्यादा बड़ा होता है धन का अहंकार. जहां आम जन की पीड़ा से ज्यादा बड़ी चीज होती है अपनी खोखली इज्जत. प्रतिमा ने जो लड़ाई लड़ी है और उसमें जीत हासिल की है, उसके लिए वह न सिर्फ सराहना की पात्र हैं बल्कि हम सबका उन्हें एक सैल्यूट भी देना बनता है. अब आप सब सजेस्ट करें कि आगे प्रतिमा को क्या करना चाहिए.
क्या उन्हें दिल्ली आकर पूरे मामले पर प्रेस कांफ्रेंस करना चाहिए? क्या उन्हें सुप्रीम कोर्ट में इस बात के लिए केस करना चाहिए कि अगर ये दोषी अखबार माफीनामा नहीं छापते हैं तो कोई पीड़ित क्या करे? आप सभी अपनी राय दें, सुझाव दें क्योंकि ये कोई एक प्रतिमा का मामला नहीं है. ऐसे केस हजारों की संख्या में हैं लेकिन लोग लड़ते नहीं, देर तक अड़े नहीं रह पाते, लड़ाई को हर स्टेज तक नहीं ले जा पाते. प्रतिमा ने ऐसा किया और इसमें उनका काफी समय व धन लगा, लेकिन उन्होंने अपने पक्ष में न्याय हासिल किया. अब उन्हें आगे भी लड़ाई इस मसले पर लड़नी चाहिए तो कैसे लड़ें, कहां लड़ें या अब घर बैठ जाएं?
कहने वाले ये भी कहते हैं कि संजय गुप्ता और आलोक सांवल दरअसल संपादक हैं ही नहीं, इसलिए इनकी चमड़ी पर कोई असर नहीं पड़ता. संजय गुप्ता चूंकि नरेंद्र मोहन के बेटे हैं इसलिए जन्मना मालिक होने के कारण उन्हें संपादक पद दे दिया गया, पारिवारिक गिफ्ट के रूप में. आलोक सांवल मार्केटिंग और ब्रांडिंग का आदमी रहा है, साथ ही गुप्ताज का प्रियपात्र भी, इसलिए उसे थमा दिया गया आई-नेक्स्ट का संपादक पद.
यही कारण है कि इनमें संपादकों वाली संवेदनशीलता और सरोकार कतई नहीं हैं. ये सिर्फ अपनी कंपनी का बिजनेस इंट्रेस्ट देखते हैं और अखबार का प्रसार अधिकतम बना रहे, इसकी चिंता करते हैं. इनके पहाड़ जैसे अवैध साम्राज्य के नीचे हजार दो हजार आम जन दम तोड़ दें तो इनको क्या फरक पड़ने वाला है. खैर, न्याय सबका होता है, सिस्टम नहीं करेगा तो प्रकृित करेगी. वक्त जरूर लग सकता है लेकिन प्राकृतिक न्याय का सामना तो करना ही पड़ेगा. जिस कदर ये महिला प्रतिमा भार्गव पेरशान हुई है, उससे कम परेशानियां ये दोनों शख्स न झेलेंगे, ये तय है, मसला चाहे जो रहे. जै जै.
-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया
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vishal
September 11, 2015 at 4:37 pm
Press council ka bot hi accha nirnay aaya hai, PRATIMA ji aapko bot bot badhaiya, aapne ye siddh kar diya ki yadi koi galat nhi hai to uske sath hamesha nyay hi hota hai, meri aapko ek aur advice hai ki aap I-Next / dainik jagran per MAAN-HANI ka bhi dava kijiye. aapko aur aapke pure parivar ko phir se bot bot shubhkamnai
vijay
September 10, 2015 at 6:34 pm
अलोक सवाल ने एक नहीं ई नेक्स्ट मे कई चुतिया संपादक भर रखे है. सभी यूनिट के संपादको की लिस्ट बना लो. जो सब एडिटर हुआ करते थे, वो आज संपादक बना दिए गए, शर्मिष्ठा शर्मा संपादक बनाई गई है लेकिन अलोक उन्हें चलने नहीं देता. गुप्ताज़ के तलवे चाटता रहता है. कुछ संपादक तो पिछले १० साल से यहाँ जमे है. कोई चाह कर भी नहीं निकल पता. कारन शर्मिष्ठा शर्मा से सेटिंग.
mishu
September 11, 2015 at 11:40 am
it is really disappointing to see how some people of the media seem to have totally lost their sense of responsibility and also lost all respect for the women in today’s society.i salute Mrs.Pratima Bhargava for teaching these heedless and and ruthless people (sachin vaswani) a lesson and also reminding everyone else who ought to rely on such people for any sort of work ever again in the future!
Thank you Mr. Yashwant for bringing this into everyone’s notice!
lovely Ramesh
September 11, 2015 at 5:11 am
यशवंत भाईसाहब जी ,यह एक बहुत ही संवदेनशील मुद्दा है आपने जो लिखा बिलकुल ठीक लिखा है सरहनिये है, आपने मैडम का अपने सतर पर रहते हुए बहुत साथ दिया काबलिये तारीफ है ,आप भविष्य मे भी अपने आप को इसी तरह से सच्चाई के साथ खड़ा कर परसस्तुत करते रहेंगे हमारी शुभकामनाये आपके साथ हैं ईश्वेर आपको दीर्घ आयु व पर्बल बनाये।
Swati bhargava
September 11, 2015 at 9:00 am
कितने विश्वास के साथ लोग खबरे पढ़ते है।शर्म आनी चाहिए दैनिक जागरण व आई नेक्स्ट के संपादको को , ये आम जनता के विश्वास से खेल रहे है।इन्हें प्रतिमा जी की पीड़ा को समझ कर अपनी गल्ती का एहसास होना चाहिए।और माफ़ी जरूर माँगनी चाहिए।यशवन्त जी ने सराहनीय कदम उठाया है।धन्यवाद
gaurav
September 13, 2015 at 1:31 pm
Congrats to Pratimaji and shame on Sachin Vasvani editor of inext Agra . Vasvani ko dainik jagran vaale jaldi se jaldi get out kare aur Vasvani ko koi bhi media vala apne yaha job nahi de…tabhi isse sharam aayegi…agar abhi bhi inext vaalo mein thodi si sharam bachi hai to is fraud news ka khandan nikaal de….
Faizan Musanna
September 16, 2015 at 8:16 am
Dainik Jagran ab poori trah se BJP ka PARVAKTA ban chuka hai . Isko sharm to ati nahi isko padhne valon ke mansik astar bhi gira hua ha