Om Thanvi : सफ़ेद झूठ के दिन …. जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल के एक सत्र में मैंने मीडिया के दुर्दिनों की चर्चा की; पाँचजन्य और जागरण के साथियों ने, स्वाभाविक ही, इसका खंडन किया। और आज के जागरण में छपा है कि मैंने टीवी लाइसेंस न जारी करने का मामला उठाकर मीडिया का गला घोंटने का आरोप लगाया। हक़ीक़त यह है कि मैंने एक शब्द तक लाइसेंस या गला घोंटने को लेकर नहीं कहा। अफ़सोस की बात यह कि जागरण के एसोसिएट संपादक अनंत विजय बहस में मंच पर ठीक बग़ल में बैठे थे! …. हाथ कंगन को आरसी क्या?
जयपर लिटरेचर फ़ेस्टिवल के एक सत्र में मैंने मीडिया के दुर्दिनों की चर्चा की। सीएए, एनआरसी, जेएनयू आदि पर ग़ैर-ज़िम्मेदाराना आचरण की बात उठाई। पाँचजन्य के संपादक हितेश शंकर और जागरण एसोसिएट संपादक अनंत विजय ने, स्वाभाविक ही, इसका खंडन किया।
मैंने कहा, प्रधानमंत्री रामलीला मैदान से (एनआरसी पर) झूठ बोलते हैं, पर मीडिया की जगह उसे सोशल मीडिया उजागर करता है। नरेंद्र मोदी पर ‘परिवर्तन की ओर’ किताब (मिलकर) संपादित करने वाले अनंत विजय ने कहा कि मोदी ने जो कहा सच कहा, उन्हें ग़लत समझा गया। इसके बाद मीडिया में सच और झूठ पर जिरह छिड़ गई।
अब आज का दैनिक जागरण देखें: उसमें छपा है कि मैंने केंद्र सरकार पर टीवी लाइसेंस न जारी करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह मीडिया का गला घोंटने जैसा है। जेएलएफ़ का हर सत्र वीडियोग्राफ़ होता है। सचाई यह है कि मैंने एक भी शब्द लाइसेंस या गला घोंटने को लेकर नहीं कहा। झूठ गढ़ने और प्रचारित करने के मामले में हाथ-के-हाथ और प्रमाण क्या चाहिए?
अफ़सोस की बात यह कि जागरण के एसोसिएट संपादक के नाते अनंत विजय इस सत्र में मंच पर मेरे ठीक बग़ल में बैठे थे! उन्होंने पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों पर असत्य टिप्पणी की। पुरस्कार वापसी के एक नायक अशोक वाजपेयी आयोजन में सामने ही बैठे थे। उन्होंने तब धीरज रखा। पर कार्यक्रम ख़त्म होने पर तमतमाते हुए अनंत विजय को सबके सामने कहा – आपको मंच से झूठ बोलते हुए ज़रा शर्म नहीं आती?
अब मैं मित्रवर अनंत से उनके अख़बार के झूठ पर क्या कहूँ?
मैं छपी खबर के बाक़ी हिस्से पर कुछ नहीं कहना चाहता। इंट्रो (शुरुआत) पढ़कर कोई बताए कि इतने लम्बे पैरे में बग़ैर किसी हवाले के जो लिखा गया है, वह आख़िर किसका संभागी का बयान रहा होगा? क्या सबने यही बात कही?
बहरहाल, जेएलएफ़ के सत्र में मैंने मौजूदा दौर में मीडिया के बुरे हाल की बात छेड़ी थी। मैंने कहा कि मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा रहा है। वह गोदी मीडिया बन चला है। जवाब में वही थोथी दक्षिणपंथी दलील: इमरजेंसी में मीडिया के साथ क्या हुआ था। मैंने कहा कि इमरजेंसी में मीडिया के साथ जो हुआ उसका कोई भी समर्थन नहीं करता। लेकिन फ़िक्र की बात यह है कि आज इमरजेंसी घोषित न होते हुए भी मीडिया अपना काम क्यों नहीं कर पा रहा है?
दरअसल मैंने बरसों जेएलएफ़ के सत्रों में चर्चा की है। पहली बार लगा कि चर्चा का माहौल बेतरह सिकुड़ता जा रहा है। दक़ियानूसी मानस जगह-जगह मुखर और बड़बोला दिखाई देता है। पता नहीं मेले में पैसा लगाने वाले ज़ी-टीवी का असर है या कोई और बात।
वरना क्या वजह हो सकती है कि इस दफ़ा मकरंद परांजपे को आठ (8) सत्रों में मंच दिया गया? एक सत्र में तो सबा नक़वी एक तरफ़ और पाँचजन्य के संपादक हितेश शंकर, भाजपा सांसद-पत्रकार स्वपन दासगुप्ता और मकरंद परांजपे उस दबंग महिला के सामने दूसरी तरफ़?
हमारे सत्र में भी संजीदा पत्रकार – न्यूज़लॉंड्री के अतुल चौरसिया – के अलावा पाँचजन्य और जागरण के संपादकों की उपस्थिति कम हैरान नहीं करती थी। हालाँकि वे अपने सच और झूठ में उलझे रहे और बहस को भी उसी में अटका कर रखा। क्या यही उनका मक़सद था?
ख़ुदा जाने।
Atul Chaurasia : जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में चौथे खंभे की दशा-दुर्दशा पर आयोजित एक सत्र में जो बातें हुई उसको लेकर कुछ बातें वहां मंच से कही गई थी और आज के दैनिक जागरण में उसे लेकर एक रिपोर्ट छपी है. इन दोनो से जुड़ी कुछ बातें स्पष्ट करना जरूरी है. दैनिक जागरण के एसोसिएट संपादक Anant Vijay पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर और वरिष्ठ पत्रकार Om Thanvi जी सत्र का हिस्सा थे.
ये आरोप मेरा था कि मोदी सरकार नए न्यूज़ चैनलों को लाइसेंस नहीं दे रही है. एकाध दिया भी है तो अपने करीबियों को जैसे अर्नब गोस्वामी. यहां मैं अनंतजी के लिए कुछ दस्तावेज साझा कर रहा हूं ताकि मंच पर जिस धड़ल्ले से उन्होंने बोल दिया कि सरकार पर यह आरोप निराधार है, उसे सुधार सकें. एक तो मेरी बात हिंदी और राष्ट्रीय मीडिया के रूप में देखे जाने के चलते अंग्रेजी के चैनल के बारे में थी. अन्य भारतीय भाषाओं में भी कुछेक लाइसेंस दिए गए होंगे. अनंतजी ने अपनी बात को भारी करने के लिए मनोरंजन चैनलों की भी संख्या गिना दी, यानि हम लोग चौथे खंभे की दशा पर बात करते-करते मनोरंजन की दुनिया में सैर करने लगे. खैर आप सूचना प्रसारण मंत्रालय की ये लिस्ट देखें और साथ में 2019 का एक नोटिफिकेशन.
अब बात दैनिक जागरण में प्रकाशित रिपोर्ट की. इस अख़बार का संपादकीय फिल्टर इतना डावांडोल है कि जिस कार्यक्रम में उनका एसोसिएट संपादक मौजूद है, जिसकी पूरे समय वीडियो रिकॉर्डिंग मौजूद है उसमें एक साथ अनेक हेरफेर और मिथ्या छाप दिया गया है. चैनलों के लाइसेंस की जो बात मैंने कही थी उसे थानवीजी के मुंह में जबरन डाल दिया है.
जो उत्तर (हालांकि वह गलतबयानी है) अनंत विजय ने दिया उसे हितेश शंकर के नाम से प्रकाशित कर दिया गया बाकायदा ये डिस्क्लेमर लिखते हुए कि उन्होंने तर्कों के साथ उत्तर दिया. जागरण की बेइमानी इतनी भर नहीं है. उसने अखबार में जो फोटो छापी है उसमें से बाकी दो पैनलिस्ट, जिनमें मॉडरेटर अनु सिंह चौधरी भी थीं उन्हें काटकर हटा दिया. आधा-तीया फोटो और उसे जस्टिफाइ करने के लिए तोड़मरोड कर लिखी गई आधा-तीया ख़बर के साथ एक बार फिर से जागरण ने पत्रकारिता का परचम फहरा दिया.
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी और अतुल चौरसिया की एफबी वॉल से.