Chandra Mohan : प्रस्तुत चित्र मित्र डा. विजय मलिक की वॉल से लिया हूँ। यह दृश्य ब्राज़ील के नेशनल एसेम्बली में बहस में हिस्सा लेते हुए एक महिला सांसद का है। सैल्यूट है मातृत्व भाव की पराकाष्ठा और नारी के इस कुंठामुक्त अस्तित्व को। सच है नारी को ख़ुद उस ज़ंजीर को तोड़ना होगा जिससे हज़ारों साल से पुरूष ने मर्यादा और संस्कार के नाम से उसे जकड़ रखा है। गंदगी उसके निगाह में है और वर्जना नारी के अस्तित्व पर।
पुरूष समाज के मनीषी अपनी दमित काम-वासना की कुंठा से सम्पूर्ण नारी जाति को ही कुठिंत दमित बना दिया है जबकि वास्तविकता यह है कि मुक्त और स्वतंत्र नारी अस्तित्व ही पुरूष समाज के इस कुंठा का इलाज है। उन्मुक्त नारी अस्तित्व ही विश्व में सौन्दर्यबोध और प्यार उत्पन्न कर उसे नफ़रत और हिंसा से मुक्त कर सकता है। नहीं तो तब तक बुद्ध, गांधी सब बेमानी रहेंगे।
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वाराणसी निवासी चंद्र मोहन की एफबी वॉल से.
उपरोक्त स्टेटस पर आए कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं….
Devendra Arya : भाई वाह। आपने इस पोस्ट को लगा कर तमाचा मारा है यत्र नार्यस्त पूज्यंते वाली पाखंड़ी संस्कृति और उनके कीर्तनियों को। हमें अपनी कमज़र्फी पर शर्म आती है।
Chandra Mohan : काश मेरी पोस्ट और आपकी प्रतिक्रिया कम से कम हमारे सभी मित्रों तक पहुँचती, उनका ध्यान आकर्षित करती।
शशि शर्मा : बच्चे को आँचल से ढँककर दूध पिलाना आपको कमजर्फ़ी लगता है? आपको कमजर्फ़ी पर शर्म नहीं आती आपको यह खुलापन आनंद देता है।
Chandra Mohan : शशि शर्मा जी शायद आप मेरी बात को अन्यथा ले रहीं है।सवाल नारी के बदन को ढकने या प्रदर्शित करने का नहीं है सवाल नारी-शरीर के प्रति पुरुष दृष्टि का है ।आपने तो सारे विमर्श को ही उल्टा कर दिया। फिर भी यदि आप भारतीय समाज में नारी की स्थिति से संतुष्ट है तो मुझे आगे कुछ नहीं कहना है।
शशि शर्मा : नारी का कुंठामुक्त अस्तित्व और मातृत्व भाव की पराकाष्ठा? इतने महान शब्द एक माँ के सार्वजनिक रूप से दूध पिलाने के लिए? किस बात पर सलामी दे दे कर दुहरे हुए जा रहे हैं पुरुष? हमारे यहाँ तो दिहाड़ी मज़दूरिन सड़क किनारे बैठकर अपने बच्चे को दूध पिलाती है किसी का ध्यान नहीं जाता। किसी को अकुण्ठ मातृत्व नज़र नहीं आता। शायद इसलिए कि हमारे यहाँ ऐसे सीना खोला नहीं जाता आँचल से ढँक लिया जाता है। तो वह कुण्ठित मातृत्व हो गया। कौन सी ज़ंजीर? कोई पुरुष कब रोकता है किसी स्त्री को अपने बच्चे को दूध पिलाने से? वाह! क्या बात है! ‘मुक्त और स्वतंत्र नारी अस्तित्व ही पुरुष समाज की इस कुंठा का इलाज है।’ पुरुषों की कुंठा का इलाज?
Arun Rai : नेता जी हमारे और आप जैसे लोग तो इसमें भी गुंजाइश ढूँढ लेंगे… बहुत समय लगेगा हमें राम रहीम होने में…
Ashwini Vashishth
July 23, 2016 at 11:29 am
तस्वीर वायरल हुई है। अर्थात् इसके पीछे निहित एक दृष्टि है। ब्राजील जैसे देश के रम्बा-सम्बा वार्षिकोत्सव राष्ट्रीय डांस परेड में क्या होता है? कहीं भी जाइए। किसी भी मुल्क में। चाहे इस युग में रहें, रामायण या महाभारत के युग में। इनके कहीं न कहीं केंद्र में स्त्री को चरित्रार्थ किया गया है। समझना होगा, सृष्टि को तो तभी दृष्टि बदलेगी।