विश्व दीपक-
आज संसद में अभूतपूर्व वाकया हुआ. हुआ यह कि प्रधानमंत्री का काफिला, चूंकि गुजरने वाला था, इसलिए कांग्रेस के कई सांसदों को संसद के अंदर जाने से ही रोक दिया गया.
गुजरात के सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने जब बताया तब सहसा यकीन नहीं हुआ. उन्होंने स्पीकर के सामने लिखित रूप से अपनी आपत्ति दर्ज़ करवाई.
इस वजह से कई सांसद सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई मीटिंग में करीब 20 मिनट देर से पहुंचे. सवाल ना सोनिया गांधी का है, ना कांग्रेस का, ना मीटिंग का. सवाल यह है कि क्या अपने इससे पहले ऐसा कभी सुना था कि पीएम के चलते, उनके समकक्ष माने जाने वाले सांसदों को ही संसद में जाने से रोक दिया जाए?
हो सकता है मैं चूक गया होऊं या मुझे मालूम ही ना हो लेकिन ऐसा पिछले 70 सालों में पहली बार हुआ.
संसद क्या है? भारत की जनता की मंशा, उसकी इच्छाओं और पसंद को अपरोक्ष रूप से अभिव्यक्त करने वाली एक संस्था.
निजी तौर पर मैं मानता हूं कि संसद इस देश के एलीट लोगों का एक क्लब है जिसका भारत की जनता से न्यूनतम सम्बन्ध है लेकिन फिर भी जितना भी है, उतना बनाए रखा जाना चाहिए.
लेकिन अब उतना “न्यूनतम” भी असंभव दिखने लगा है. जिस तरह से पीएम की सुरक्षा के बहाने से सांसदों को अंदर जाने से रोका गया, वह चौंकाने वाला कम, चौकन्ना करने वाला ज्यादा है.
अगर यही हाल रहा और इस देश कि जनता खामोश बैठी रही तो याद रखिए एक दिन ऐसा आएगा जब पीएम कि सुरक्षा के नाम पर संसद को बन्द कर दिया जाएगा. या सेना के हवाले कर दिया जाएगा. कोई कुछ नहीं कर पाएगा. चाटुकार मीडिया इसके समर्थन में तर्क देगी. सभ्य और समझदार लोग चुप रहेंगे. बाकी हरिवंश अमिताभ बच्चन बन जाएंगे.
और वो दिन बहुत दूर नहीं. हम तेज़ी से तुर्की, रूस और चीन की राह पर फिसल रहे हैं जहां एक “सुप्रीम लीडर” होगा जो भगवान का अवतार होगा. बाकी सब या तो भक्त होंगे या दलाल या देश द्रोही.