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राजस्थान

जब पुलिस वालों के संरक्षण में पैदा हो जाता है एक पत्रकार!

कैसे कैसे लोग बन रहे हैं पत्रकार!

आपातकाल की बात है। मैं कोटा से सवाई माधोपुर ‘अधिकार’ दैनिक के काम से आया था। जिला कलेक्टर से मिलने के बाद जन सम्पर्क अधिकारी से मिलने गया तो एक शख्स ने अपना परिचय साप्ताहिक पत्र के सम्पादक के रूप में दिया। उसके पास उसके साप्ताहिक अखबार की प्रतियां भी थी।

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चर्चा के दौरान उसने कहा कि वह दैनिक अखबार का संवाददाता बनने का इच्छुक है।

मैंने कहा कि वह अपना संक्षिप्त परिचय लिख कर दे तो किसी मित्र से कहूँगा।

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तब पता चला कि वह तो मामूली साक्षर है, लिख नहीं सकता है।

तब मैंने पूछा कि फिर साप्ताहिक अखबार कैसे तैयार करते हो?

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उसने जो बताया वह सुनकर मेरा सिर घूम गया। उसने कहा कि रेलवे स्टेशन पुलिस हर माह उसे अखबार का खर्चा इसलिए देती है क्योंकि उन्हें स्टेशन पर अपराधियों को पकड़ने के लिए एक प्रतिष्ठित गवाह की जरूरत होती है. चूंकि मैं पत्रकार हूं और कभी भी समाचार संकलन के लिए वहां सहजता से उपलब्ध हो सकता हूँ जहाँ पुलिस को गवाह की आवश्यकता होती है, इसलिए मेरा काम चलता रहता है। अखबार तो कंपोजीटर छाप देते हैं खबर लिखकर।

ज्ञात हो कि एकाध कम्पोजिटर जो महज़ इण्टरमीडिएट रहें हैं, आज ख्यातिप्राप्त दैनिक में संवाददाता हैं।

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तो ऐसे ऐसे लोग बन जाते हैं पत्रकार।

डा मदन यादव

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पूर्व संपादक

अधिकार दैनिक

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जयपुर


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कौन बना रहा है इन्हें पत्रकार?

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