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सुख-दुख

मुंबई पुलिस बनाम दिल्ली पुलिस : नाच बसंती नाच!

संजय कुमार सिंह-

मामला पुलिस की क्षमता का नहीं, राजनीतिक इच्छाशक्ति का है… कुछ लोग कह रहे हैं कि मुंबई पुलिस ने बुल्ली बाई ऐप्प मामले में अच्छी कार्रवाई की है और तुरंत दो मुख्य आरोपियों को बैंगलोर व उत्तराखंड से गिरफ्तार कर लिया। ऐसे लोग यह भूल जा रहे हैं कि दिल्ली पुलिस ने भी बैंगलोर से 21 साल की जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को बहुत जल्दी गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि तब मामला दूसरा था और अदालत में टिका नहीं। पर पुलिस को जो कहा गया उसने किया ही….

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बात राजनीतिक आकाओं की है। उनसे मंदिर बनवाओगे तो वो अपना भी भला करेंगे। और इसके लिए तमाम संवैधानिक पदों पर राकेश अस्थानाओं को बैठा दिया गया है और सरकार का समय (पैसा भी) उनकी नियुक्ति का बचाव करने में लग रहा है। हिन्दुस्तान टाइम्स में खबर है। बाकी समय में उनसे अपनी ‘राजनीतिक सुरक्षा’ करवाई जा रही है।

अदालत में जिस राकेश अस्थाना की नियुक्ति का बचाव किया जा रहा है उनपर लगे आरोपों को आप जानते ही होंगे और उनकी महानता का किस्सा यह भी है कि उन्हें सीबीआई की कार्रवाई से बचाने के लिए आधी रात की कार्रवाई की गई थी और तबके सीबीआई प्रमुख को हटा दिया गया था। बाद में उन्हें सीबीआई प्रमुख बनाने की भी कोशिश हुई पर वे बन पाये दिल्ली पुलिस के प्रमुख। अब सरकार कह रही है कि दिल्ली पुलिस प्रमुख के पद के लिए वही सबसे उपयुक्त हैं।

ऐसे में यह कहना-समझना गलत है कि दिल्ली पुलिस काम नहीं कर रही है। मेरा मानना है कि वह वही कर रही है जो उससे करवाया जा रहा है। करने के लिए कहा जा रहा है। टूल किट मामले में बैंगलोर से गिरफ्तारी और कोमल शर्मा को दो साल नहीं मिलना – पुलिस की योग्यता या क्षमता से नहीं जुड़ा है। मामला राजनीतिक इच्छाशक्ति का है।

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मुंबई पुलिस की बात चली तो याद दिला दूं कि आरोप लगे तो गृहमंत्री और पुलिस प्रमुख दोनों बदले। पर दिल्ली में एक बेहद दागी अफसर को पुलिस प्रमुख पद पर बैठा दिया गया और अब उनका बचाव किया जा रहा है। काम करने के लिए समय कहां है। और यह कोई नई बात नहीं है।

135 करोड़ की आबादी में गृहमंत्री अमित शाह को बनाया गया जबकि विदेश मंत्री की तरह किसी योग्य प्रशासनिक अधिकारी को भी बनाया जा सकता था जो राजनीतिज्ञ नहीं होता। पर अमित शाह की योग्यता अलग है। लक्ष्य और उद्देश्य साफ थे। अब उसका असर देखिए। रही सही कसर हत्या आरोपी पुत्र के पिता को मंत्री बनाए रखकर पूरी की जा रही है और यह तर्क है ही कि आरोप पुत्र पर है तो पिता पर कार्रवाई क्यों हो। लेकिन बाकी मामलों में ऐसा जवाब नहीं है। सच कहिए तो सवाल ही नहीं है।

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सवाल भी साधारण मामलों में ही उठते हैं। कोमल शर्माओं पर कौन बोले। आज कोमल शर्मा और दिल्ली पुलिस की वीरता प्रदर्शन के दो वर्ष पूरे हो गए। दोनों की वीरता और उसे मिले अखबारी समर्थन पर मैंने तब जो लिखा था वह औरों के साथ न्यूजलॉन्ड्री पर भी छपा था। पढ़ना चाहें तो लिंक कमेंट बॉक्स में। मंदिर चाहिए था, बन रहा है, खुश रहिए। अनुच्छेद 370 भी हट गया है।

Sanjay Sinha की पोस्ट से पता चला कि अब चिप्स जैसे उत्पादों की एमआरपी जम्मू और उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए अगर 115 रुपए है तो बाकी भारत (आरओआई) के लिए 100 रुपए है। यानी देश भर के विक्रेताओं को 15 रुपए लूटने का सुनहरा मौका। दूसरी ओर, एक देश एक चुनाव के साथ ये दो रेट क्यों? पर पूछे कौन। पूछने वालों के मुंह में तो विज्ञापन का पैसा भरा हुआ है।

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