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वेब-सिनेमा

पोर्टल वालों के मुश्किल दिन आ गए : सरकारी बाबू जिस कंटेंट पर उंगली रख देगा उसे 36 घंटे में हटाना होगा!

Soumitra Roy-

130 करोड़ से ज़्यादा के देश में बीजेपी का अराजक राज किस कदर है, इसकी एक बानगी कुछ देर पहले प्रकाश जावड़ेकर का अल्टीमेटम है। सूचना-प्रसारण मंत्री जावड़ेकर ने सभी सोशल मीडिया, डिजिटल न्यूज़ और OTT प्लेटफॉर्म से अगले 15 दिन के भीतर नए IT नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा है। मज़े की बात यह कि जावड़ेकर ने सरकार के इस कदम का मकसद फेक न्यूज़ को रोकने के लिए बताया है।

भारत का प्रधानमंत्री बीते 7 साल में सैकड़ों बार झूठ बोल चुका है। उसके उन्हीं झूठ को तमाम मंत्री, बाबू और भक्त लाखों बार डिजिटल और सोशल मीडिया में दोहराते हैं। प्रेस कौंसिल, केबल टेलीविज़न नेटवर्क रेगुलेशन एक्ट ऐसे तमाम झूठ, साम्प्रदायिक दुष्प्रचार को चुपचाप आंखें बंद कर देखते रहते हैं। चंद बोलने वाले, झूठ का पर्दाफाश करने वाले और सरकार को आईना दिखाने वाले सोशल मीडिया पर अपनी बात कहते हैं, तो बवाल मचता है। सरकार की नाकामी झलकती है। यानी फेक न्यूज़ वह है, जिसे तथ्य, आंकड़े, प्रमाण सही मानें, लेकिन सरकार नहीं। ग़ज़ब इमरजेंसी है।

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सरकार यह भी कह रही है कि नए नियम लेवल प्लेइंग, यानी जो गोदी मीडिया और भक्त बक रहे हैं, वही वह सोशल और डिजिटल मीडिया में भी बरकरार रखना चाहती है। इसके लिए सोशल और डिजिटल मीडिया को शिकायत निवारण तंत्र, अनुपालन अधिकारी और नोडल अफसर रखना होगा। फिर सरकारी बाबू जिस पोस्ट या कंटेंट पर उंगली रख देंगे, उसे 36 घंटे के भीतर हटाना होगा। नग्नता और मॉर्फ्ड फ़ोटो वाले कंटेंट को 24 घंटे में हटाना होगा।

राष्ट्र हित, राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यवस्था के नाम पर बीते 7 साल में किसे और किसने निशाना बनाया यह किसे नहीं मालूम। यह कौन, क्यों और किस मकसद से तय करता है, यह भी सबको मालूम है। यह भी सबको मालूम है कि बीजेपी का राष्ट्रीय प्रवक्ता रोज़ आकर टीवी चैनलों पर झूठ बोल जाता है और कोई ऐसे कंटेंट, बयानों पर उंगली नहीं उठाता। लेकिन अगर ऐसे किसी झूठ पर सोशल मीडिया manipulated का ठप्पा लगा दे तो सरकार की आंख लाल हो जाती है।

फिर भी जावड़ेकर कहते हैं कि नए नियम से “लोग” खुश हैं। कौन हैं ये लोग? बीजेपी के कथित 10 करोड़ सदस्य? या बहुसंख्यक भक्त हिन्दू? ज़रा सोचिए, कि अगर मेरी ही यह आलोचना सरकार को बुरी लगे और उसने इस पर उंगली रख दी तो मेरी पोस्ट उतार दी जाएगी। ऐसा बार-बार हुआ तो या मैं लिखना छोड़ दूंगा या फिर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मुझे संदिग्ध और आरोपी मानकर बैन कर देगा। “लोग” तब ज़्यादा खुश होंगे। लेकिन उससे सोशल और डिजिटल मीडिया में एक सुर से झूठ का बोलबाला हो जाएगा।

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फिर क्या होगा? फिर इस झूठ को समझने वाले सोशल और डिजिटल मीडिया से कट जाएंगे। वे अपनी बात दूसरे माध्यमों से कहने लगेंगे। क्या यह अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पाबंदी नहीं है? क्या यह सेंसरशिप नहीं है? क्या यह अपने “लोगों” को खुश करने के लिए दूसरे असहमत लोगों की आज़ादी छीनना नहीं है? क्या सरकार अपना चेहरा चमकाने के लिए इस तरह सेंसरशिप वाले नियम थोप सकती है? क्या उसे इसका अधिकार है?

यह बहस का विषय है। अब चुप रहे तो फिर कभी बोल नहीं पाएंगे। चीन, रूस, उत्तर कोरिया की तरह।

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Abhinandan Sharma-

बधाई हो, twitter भी लम्बा हो गया, चरणों में | आपकी आवाज, न अब मिडिया तक जाती है (क्योंकि मिडिया गोदी मिडिया है), न अख़बारों तक जाती है (क्योंकि अख़बार अब सरकारी विज्ञापन मात्र हैं) और अब जो थोड़ी बहुत जगह थी, फेसबुक और twitter.. उसका भी राम नाम सत्त्त हो ही गया है |

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बमुश्किल 3 महीने और…. फिर आप कुछ भी लिखने में डरेंगे….कहीं पुलिस तो नहीं उठा ले जायेगी! डर का राज है, डरो…डरते रहो क्योंकि डर ही इस देश की नयी पहचान है, जहाँ परिवार का सदस्य भले मर जाये, भाई-भाई में झगड़ा हो जाये पर कोई ऊँगली न उठाये, बाकी सब कण्ट्रोल में है | ठीक बा!

मूल खबर-

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प्रत्येक न्यूज वेबसाइट संचालक की कुंडली मोदी सरकार को चाहिए, आदेश जारी, भड़ास को भी आया मेल

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