Ajit Tripathi : तो पुण्य प्रसून वाजपेयी को फिर से निकाल दिया गया… इससे पहले उन्हें एबीपी से निकाल दिया गया था… उसके पहले उन्हें आजतक से निकाल दिया गया था… उससे भी पहले ज़ी न्यूज से निकाल दिया गया था, और उसके भी पहले सहारा से निकाल दिया गया था…
मतलब पुण्य प्रसून वाजपेयी चाहे जितने बड़े पत्रकार हों, या उन्हें चाहे जितना काबिल पत्रकार माना जाए, मगर सच्चाई यही है कि पुण्य प्रसून वाजपेयी को हमेशा निकाला ही गया… अब सवाल ये है कि कोई भी संस्थान पुण्य प्रसून जैसे काबिल समझदार और सम्मानित पत्रकार को निकाल देने का फैसला कैसे ले सकता है? जवाब के तौर पर जो मैंने दो साल तक उन्हें करीब से देखा समझा और जाना, उसका मजमून ये है कि पुण्य प्रसून वाजपेयी दंभ के पाखंड पर सवार होकर अहंकार के अहाते में कैद एक पाखंडी पुरुष हैं…
उन्हें अपने अलावा न तो कोई काबिल दिखता है, और न ही वो किसी को काबिल समझते हैं… सामाजिक मर्यादा के संस्कारों का शून्य तक नहीं है उनमें… वो जिद्दी और ढीठ हैं… अपने एजेंडे को साधने के चक्कर में वो न सिर्फ संस्थानों की साख दांव पर लगाते हैं बल्कि फर्जी आंकड़े अपने शो में दिखाकर चैनल की लानत मलानत भी कराते हैं।
प्रसून जी भयानक नकारात्मक आदमी हैं, और कदम कदम पर विक्टिम कार्ड खेलने में माहिर हैं… वो आजतक से बाहर हुए तो उन्होंने अपने चंगू मंगूओं के जरिए भ्रम फैलवाया कि उन्हें रामदेव से कठिन सवाल पूछने की सज़ा मिली, जबकि ये सरासर झूठ था।
वो एबीपी से बाहर हुए तो बोले मोदी सरकार के कहने पर उन्हें बाहर होना पड़ा, बाद में खुद ही बोले कि उनके ऊपर कोई पाबंदी नहीं थी। मतलब झूठ के लिहाफ में लिपटे हुए पढ़े लिखे समझदार आदमी हैं प्रसून जी।
प्रसून जी को अब समझना होगा कि समय की सबसे खूबसूरत शक्ल होती है गुजरना, और समय का दुर्भाग्य भी यही है.,,और उनका समय गुज़र चुका है। मेरी व्यक्तिगत सलाह है कि अब उनके विश्राम का वक्त है। संन्यास की घोषणा करें और बुढ़ापा सुकून से घर में बिताएं।
Gangesh Gunjan : कुछ बड़े चैनल्स के पत्रकार सरकार का दबाव महसूस कर रहे हैं। कुछ का आरोप है कि सरकार के इशारे पर उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा है। हो सकता है। मगर आप तो पत्रकार हैं साहब। इतने बड़े कि रक्षा मंत्रालय से फ़ाइल निकलवा लें, वह भी सरकार के खिलाफ सबूत इकठ्ठा करने के इरादे से। आप इतने ताक़तवर हैं कि सड़क, चौराहे से लेकर स्क्रीन तक अपनी सरकार के बजाए पाकिस्तान के गीत गा सकें।
आपका नज़रिया इतना साफ है कि पुलवामा हमले के खिलाफ भारतीय कार्रवाई को युद्धोन्माद बता दें। आप अपनी मर्जी की रिपोर्ट लेन के लिए संवाददाताओं की फौज लगा देते हैं। फिर कोई एक कागज तो दिखाइए, जिसमें आपसे PMO ने कहा हो कि खबर नहीं हटाई तो कार्रवाई करेंगे। चलिए कागज़ न मिला हो तो कोई फ़ोन तो आया होगा उसकी रिकॉर्डिंग ही चला दीजिये। छोड़िए, वो समय और नंबर ही सार्वजनिक कर दीजिए जिससे आपको धमकाया गया हो। आप सब तो स्टिंग के माहिर हैं अगर किसी ने मिलकर धमकी दी है तो उसका स्टिंग ही दिखा दीजिये। आप तो निर्भीक हैं आपको ऐसा करने से रोकेगा कौन?
या सच स्वीकारिये की पत्रकारिता को ताक पर रखकर आप जो महत्वाकांक्षाओं की सौदेबाज़ी कर रहे हैं , वह उल्टा पड़ रहा है। आप हार रहे हैं साहब, इसे पत्रकारिता की हार मत कहिये। आप कहते हैं TV न देखिए। TRP देखिए समझ आ जायेगा कि लोगों ने आपको देखना न जाने कब से छोड़ दिया है। आप मुट्ठी भर बेचैन लोगों की रातों का चैन भर हैं।
यह दुखद है कि स्थापित पत्रकारों ने ये वहम पाल लिया कि वे ही इस लोकतंत्र के निर्णायक स्तंभ हैं। अब दौर ऐसी पत्रकारिता का है जो सत्ता का या तो अंध समर्थक है या अंध विरोधी। विरोधियों का वहम दूर हो चुका। समर्थकों का होना बाकी है। इस चुनाव के बाद उनका भी होगा क्योंकि सत्ता के लिए वे महज एक टूल हैं। उनसे बेहतर औज़ार आ गया तो उनकी उपयोगिता समाप्त।
Ved Ratna Shukla : मोदी जी के पास और कोई काम-धंधा नहीं है इक वाजपेयी को हटवाने के सिवाय। वह भी वहां से जिस बिस्कुटिया चैनल को कोई देखता भी नहीं है। खैर, वाजपेयी ने अब तक कौन सी क्रांति की है मैं नहीं जानता? आप जानते हों तो बताएंगे। टीवी में काम करके प्रिंट का रामनाथ गोयनका पुरस्कार लेने के सिवाय। कायदन उनको मना कर देना चाहिए था। दूसरे पूर्णकालिक व्यक्ति के हिस्से का पुरस्कार क्यों लेना भला। वह भी जब मोटा दाम और नाम पहले से हो। बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद वाजपेयी ने लिखा कि बच्चों (उनके लिए) ने कहा कि आइए जनाब! कुछ पानी-वानी पीजिए। तब तक धांय-धांय…। दरअसल वाजपेयी जी पुलिस के साथ गए थे। ऐसा न होता तो वह पुलिस के कहे पर विश्वास करते। या उन्होंने कुछ खोजी पत्रकारिता की होगी जिसकी तफ़सीलात उन्होंने नहीं दी थी। उनको देना भी नहीं है। उन्हें तो उनके साथ ही खड़ा होना है जहां वह खड़े होते आए हैं।
पत्रकार त्रयी अजित त्रिपाठी, गंगेश गुंजन और वेद रत्न शुक्ला की एफबी वॉल से.
मूल खबर…
Saurabh Agarwal
March 20, 2019 at 3:18 pm
अगर पुण्य प्रसून वाजपेई की दर्शक संख्या शून्य है तो वो खुद ही गुमनाम हो जाएगा। आपको जज बनने की जरूरत क्यों पड़ी। रामनाथ गोयनका पत्रकारिता के लिए मिलता है, आपको नहीं मिला क्या?
आपने पूछा बिस्कुटीया चैनल के मालिक से इतनी जल्दी छुट्टी क्यों कर दी पुण्य प्रसून वाजपेई की?
निकाला जाना कोई अपराध है या सब निकाले जाने वाले अपराधी होते हैं, ये कैसे मालूम होगा? देश छोड़ कर भागे तो शायद माना भी जा सकता है।
और अपराध हुआ क्या है? क्या बिना अपराध के कोई दोषी हो सकता है।
अजय कुमार अवस्थी
March 21, 2019 at 7:47 am
इसलिए क्योंकि सरकार द्वारा इन्हे हटवाया गया है ऐसा भ्रम इनके अनन्य सहयोगी कौन जात हो पूछने वाले पत्रकार रबिश महोदय लगा रहे हैं, यहाँ तक कि इसको लेकर लोगों को सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए भड़का रहे हैं ……. पर न कोई टी.वी. देखना छोड़ रहा है और न कोई उनके कहने पर विरोध ही कर रहा है।
डॉ. रमाकांत दानी
March 28, 2019 at 11:16 am
मुझे तो ये तीनों पत्रकार… अजीत त्रिपाठी, गंगेश गुंजन और वेद शुक्ला… भाजपा के प्रवक्ता या कोई छुटभैये पत्रकार ही हों तो भारत सरकार की ओर से नियुक्त… चारण और भाट… की भूमिका में दिखते हैं… इन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में व्यावसायिक वेश्या… कहना ही उचित होगा…
Shyam Singh Rawat
March 21, 2019 at 7:06 am
Gangesh Gunjan जी,
लोकतंत्र है भाई, अभिव्यक्ति की पूरी आजादी वाला। इसलिए आप भी अपनी भड़ास निकाल ले रहे हैं।
आपको पुण्य से सबूत नहीं चाहिए, आपको सिर्फ और सिर्फ दूसरे का चीरहरण करना है, बस। क्योंकि आप उनके मशहूर टीवी कार्यक्रम―मास्टर स्ट्रोक के दौरान सिग्नल कमजोर करने जैसी तमाम बाधाएं उत्पन्न करने को प्रमाण नहीं मानते।
आपको बड़े चैनल्स और अखबारों से लेकर गांव-देहात तक फैले मोदयापे ने इस देश को कितना नुकसान पहुंचा दिया है, यह भी नहीं दिखाई-सुनाई देता तो आपका पुण्य से प्रमाण मांगना सरासर बेइमानी है, मोदी की तरह दबंगई है, तुम लाख कहो मैं एक न मानूं है।
Akshat Saxena
March 21, 2019 at 9:48 am
पंडित जी को दरसल इस बात का घमंड हो गया था कि वो २०१९ में मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे उनके ख़िलाफ़ नकरात्मक ख़बरें बनाएँगे और टीवी के माध्यम से दिखाएँगे लेकिन इनका पासा उलटा पड़ गया और ये ख़ुद भेंट चढ़ गए अब इनकी मोदी की प्रति इतनी खुन्नस किस बात को लेकर हैं ये तो पंडित जी बेहतर समझ सकते हैं, और इस मुहिम में ये अकेले शामिल नहीं हैं इनके साथ उन सब कायरों की फ़ौज हैं जिन्होंने सिर्फ़ अपने फ़ायदे के लिए न जाने कितने स्ट्रिंगर का इस्तेमाल किया हैं, आज ये हालत हैं इन सब मक्कारों की इनको कोई नहीं पूछ रहा हैं, ये अपना एजंडा फ़ेसबुक के माध्यम से चला रहे हैं और सिवाय अपना रँडी रोने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं हैं।
फ़िलहाल मोदी सरकार ने इनको इनकी औक़ात दिखा दी हैं जो बहुत ज़रूरी था। ये हिंजड़ो की फ़ौज सिर्फ़ मुँह से बकचोदी कर सकती हैं इसके अलावा इनकी कोई औक़ात नहीं हैं।