Ravish Kumar : पुण्य प्रसून वाजपेयी को फिर से निकाल दिया गया है। आख़िर कौन है जो पुण्य के पीछे इस हद तक पड़ा है। एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ कौन है जो इतनी ताकत से लगा हुआ है। आए दिन हम सुनते रहते हैं कि फलां संपादक को दरबार में बुलाकर धमका दिया गया। फलां मालिक को चेतावनी दे दी गई। अब ऐसे हालात में कोई पत्रकार क्या करेगा। आपकी चुप्पी उन लोगों को हतोत्साहित करेगी जो बोल रहे हैं। अंत में आपका ही नुकसान है। आपने चुप रहना सीख लिया है। आपने मरना सीख लिया है।
याद रखिएगा, जब आपको किसी पत्रकार की ज़रूरत पड़ेगी तो उसके नहीं होने की वजह आपकी ही चुप्पी ही होगी। अलग अलग मिज़ाज के पत्रकार होते हैं तो समस्याएं आवाज़ पाती रहती हैं। सरकार और समाज तक पहुंचती रहती हैं। एक पत्रकार का निकाल दिया जाना, इस मायने में बेहद शर्मनाक और ख़तरनाक है। प्रसून को निकालने वालों ने आपको संदेश भेजा है। अब आप पर निर्भर करता है कि आप चुप हो जाएं। भारत को बुज़दिल इंडिया बन जाने दें या आवाज़ उठाएं। क्या वाकई बोलना इतना मुश्किल हो गया है कि बोलने पर सब कुछ ही दांव पर लग जाए।
अब वही बचेगा जो गोदी मीडिया होगा। गोदी मीडिया ही फलेगा फूलेगा। उसका फलना-फूलना आपका खत्म होना है। तभी कहा था कि न्यूज़ चैनलों को अपने घरों से निकाल दीजिए। उन पर सत्ता का कब्ज़ा हो गया है। आप अपनी मेहनत की कमाई उस माध्यम को कैसे दे सकते हैं जो ग़ुलाम हो चुका है। इतना तो आप कर सकते थे।
आप जिन चैनलों को देखते हैं वो आपके ऊपर भी टिप्पणी हैं। आपका चुप रहना साबित करता है कि आप भी हार गए हैं। जब जनता हार जाएगी तो कुछ नहीं बचेगा। जनता सत्ता से नहीं लड़ सकती तो टीवी के इन डिब्बों से तो लड़ सकती है। भले न जीते मगर लड़ने का अभ्यास तो बना रहेगा। यही गुज़ारिश है कि एक बार सोचिए। यह क्यों हो रहा है। इसकी कीमत क्या है, कौन चुका रहा है और इसका लाभ क्या है, किसे मिल रहा है। जय हिन्द।
एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की एफबी वॉल से.
इन्हें भी पढ़ें…
प्रवेश कुमार वर्मा
March 21, 2019 at 10:58 pm
आप एक बहुत अच्छे पत्रकार मैं आपकी सोच की तारीफ करता हूं आई लाइक यू
Anil Kumar
March 24, 2019 at 8:51 am
मैं बहुत समय से आपका प्रोग्राम देखता हूँ । और हमेशा यह कोशिश करता हूँ कि कुछ अच्छे तर्कों से दूसरे पहलू समझ सकूँ । इसमें मुझे वीसी मुस्तफा जी के आंकलन बहुत तार्किक लगते हैं । दूसरा पक्ष तो आ नहीं पाता । लेकिन जब कहीं और से दूसरा पक्ष आता है तो वह भी कम तार्किक नहीं लगता ।
एक बात यह, कि पत्रकार स्वयं को हर बात का एक्सपर्ट समझने लगे है । किसी विषय की सूचना और उस विषय की समझ अलग अलग बात है । पत्रकार को अपनी सोच अपने आप नहीं थोपनी चाहिये । यदि अपनी सोच बतानी है तो एक्सपर्ट के रूप में दूसरे चैनल के पैनल पर बहस करनी चाहिए । तभी तो न्यूट्रल समझा जाएगा । सभी पत्रकार अपने प्रोग्राम में अपनी राय देकर उसे थोपने का कार्य कर रहे हैं ।
आपके शब्दों में यह एक बहुत बारीक लाइन है जिसका फर्क हम आसानी से नहीं कर पाते । पत्रकार का कार्य यह है कि दोनों पक्षों पर प्रकाश डाले ।
इस देश में लाखों काम लंबित हैं । 100 काम हो भी गए तब भी लाखों ही करने बाकी हैं । यह आप पर है कि आप कौन सा देखते हैं ।