दो बहुत पुरानी कहावतें हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती और आदमी में लगन हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है. समय की कसौटी पर यह दोनों कहावतें खरी उतरती रही हैं. अक्सर लोग इनको चरितार्थ करते रहे हैं. अब ऐसे लोगों की सूची में प्रभाकर मणि तिवारी का नाम भी जुड़ गया है. मुख्यधारा की पत्रकारिता के कथित केंद्र यानी दिल्ली में कभी काम नहीं करने की वजह से शायद ज्यादा लोग उनको नहीं पहचानते हों. लेकिन पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत जैसे गैर-हिंदीभाषी इलाकों में रहते हुए लगभग 35 वर्षों से अलग-अलग हिंदी अखबारों में अपनी रिपोर्टिंग के जरिए उन्होंने अपनी खास पहचान बनाई है. इनमें से 28 साल तो एक राष्ट्रीय दैनिक के साथ जुड़ कर पश्चिम बंगाल, नेपाल, सिक्किम, भूटान और असम समेत पूर्वोत्तर राज्यों से उग्रवाद के अलावा सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरण विषयों पर रिपोर्टिंग करते रहे.
प्रभाकर का सफर दार्जिलिंग जिले के सिलीगुड़ी से छपने वाले एकमात्र हिंदी अखबार जनपथ समाचार से शुरू हुआ था. तब दार्जिलिंग की पहाड़ियों में सुभाष घीसिंग ने गोरखालैंड राज्य की मागं में आंदोलन छेड़ रखा था. उस आंदोलन की रिपोर्टिंग के बाद वर्ष 1989 में गुवाहाटी से छपने जा रहे पहले हिंदी अखबार पूर्वांचल प्रहरी की लांचिंग टीम के सदस्य रहे और वहां डेस्क से लेकर रिपोर्टिंग तक की. उसके बाद वर्ष 1991 में राष्ट्रीय दैनिक के कोलकाता संस्करण की शुरुआत पर उनको उसके साथ जुड़ने का आफर मिला और सिलीगुड़ी में पोस्टिंग हुई. उस दौरान उन्होंने तीन बीघा आंदोलन के अलावा नेपाल और भऊटान मेंहोने वाले आंदोलनों समेत विभिन्न राजनीतिक मुद्दों औऱ चुनावों की व्यापक रिपोर्टिंग की.
सात साल बाद तीन साल के लिए गुवाहाटी ट्रांसफर हुआ. तब वहां उग्रवादी संगठन उल्फा और टाटा समूह के गठजोड़ का खुलासा हुआ था. इस मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थीं. उन्होंने इन मुद्दों पर व्यापक रिपोर्टिंग की.
तीन साल बाद प्रबंधन ने कोलकाता बुलाया तो वहां चले गए. करीब बीस साल बाद प्रबंधन ने अचानक एक दिन लखनऊ तबादले का फऱमान सुनाया तो उन्होंने जाने से साफ इंकार कर दिया और घर-परिवार में सलाह-मशविरा करने के बाद इस्तीफा दे दिया जबकि रिटायरमेंट में अभी दो साल से कुछ ज्यादा समय बाकी था.
वह कहते हैं कि मैंने सोचा कि जो काम रिटायर होने के बाद करूंगा वही अभी से क्यों नहीं शुरू कर दूं. उसके बाद वे लगातार कई अखबारों और आनलाइन पोर्टलों में लिख रहे हैं. कुछ महीने बाद कोरोना महामारी और लाकडाउन शुरू होने पर उनके मन में अपना यूट्यूब चैनल शुरू करने का ख्याल आया. लेकिन आजीवन प्रिंट मीडिया में काम करने की वजह से उनको इस विधा की ए बी सी डी की जानकारी नहीं थी.
लेखन के अलावा घुमक्कड़ी उनका नशा रहा है. उस दौरान बनाए गए तमाम वीडियो बरसों से पेन ड्राइव में बंद थे. यात्राएं पूरी होने के बाद कभी उनको देखा तक नहीं था. इसलिए प्रभाकर के मन में यात्राओं पर आधारित चैनल शुरू करने का ख्याल आया. काफी सोच-विचार और हिचक के बाद इस दौरान उन्होंने दोस्तों की सहायता से वीडियो एडिंटिंग सीखा और आखिर अक्तूबर, 2020 के आखिरी हफ्ते में ‘देस परदेस’ नाम से चैनल लांच कर दिया. उनके चैनल पर देश के कई हिस्सों की यात्राओं को देखा जा सकता है.
अब सवाल उठना लाजिमी है कि इसमें खास क्या है? यूट्यूब चैनल तो आज कर कोई भी शुरू कर सकता है. खास बात यह है कि मजीठिया वेतनमान वाली स्थायी नौकरी छोड़ने की हिम्मत सब लोग नहीं जुटा सकते. लेकिन खुद पर भरोसा रहने की वजह से ही उन्होंने अपनी जमी-जमी नौकरी छोड़ने में देरी नहीं लगाई. नौकरी क्यों और किन हालात में छोड़ी, यह अलग कहानी है. बतौर प्रभाकर जो बीत गई सो बात गई. इसलिए वे उस अखबार का नाम भी नहीं लेना चाहते.
‘सफर और संस्कृति की कहानियां’ टैग लाइन से शुरू उनका चैनल धीरे-धीरे पांव जमा रहा है.
इस बीच, उन्होंने हाल में ‘पालीटिक्स विद प्रभाकर’ शीर्षक से राजनीतिक टिप्पणियां भी शुरू की हैं. प्रभाकर बताते हैं, इस साल देश के पांच राज्यों में चुनाव होने हैं. लेकिन उनमें सबसे अहम पश्चिम बंगाल ही है.यह चुनावी रणक्षेत्र में बदलता जा रहा है. मैंने देखा कि लोग दिल्ली और दूसरे शहरों में बैठ कर बंगाल की स्थिति पर रिपोर्ट कर रहे हैं. मैंने सोचा मैं खुद ही यहां से शुरू क्यों नहीं कर सकता. दूर से अक्सर चीजें धुंधली नजर आती है. इसी सोच के साथ मैंने राजनीतिक टिप्पणी वाला कार्यक्रम भी शुरू कर दिया. इसमें बंगाल की जमीनी हालत के साथ ही असम पर भी टिप्पणी रहेगी और पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों पर भी. लेकिन फिलहाल मुख्य मुद्दा बंगाल ही होगा.
नीचे उनके चैनल के कार्यक्रमों के कुछ लिंक हैं. इसे सब्सक्राइब तो करें ही, पसंद आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर करें, लाइक करें और टिप्पणियों के जरिए उनका उत्साह बढ़ाएं. आपके समर्थन से एक गैर-हिंदी भाषी राज्य यानी पश्चिम बंगाल से होने वाली वैकल्पिक पत्रकारिता को बढ़ावा मिलेगा और जमीनी हकीकत की जानकारी मिलती रहेगी.
Tapas Mukherjee
January 30, 2021 at 7:25 pm
Prabhakar Tiwari: Let Heaven’s choicest blessings shower upon your new venture. Having been your colleague for years I am convinced you have the strength, experience, and ability to move forward to your desired direction.
God Bless