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सुख-दुख

कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ जो मुझे खरीद सके : प्रदीप सिंह

Pradeep Singh : दैनिक जागरण में छपे मेरे लेख पर संजय सिंह की गालीनुमा प्रतिक्रिया आई है। उनके मुताबिक यह पेड न्यूज या भाजपा प्रायोजित है। संजय को मैं करीब तीस दशक से जानता हूं। पारिवारिक संबंध रहे हैं। यह अलग बात है कि पिछले कई सालों से ज्यादा मेल मुलाकात नहीं होती। उनके टिप्पणी पर आश्चर्य तो नहीं हुआ पर दुख जरूर हुआ। किसी और ने ऐसी टिप्पणी की होती को शायद ध्यान नहीं देता।

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Pradeep Singh : दैनिक जागरण में छपे मेरे लेख पर संजय सिंह की गालीनुमा प्रतिक्रिया आई है। उनके मुताबिक यह पेड न्यूज या भाजपा प्रायोजित है। संजय को मैं करीब तीस दशक से जानता हूं। पारिवारिक संबंध रहे हैं। यह अलग बात है कि पिछले कई सालों से ज्यादा मेल मुलाकात नहीं होती। उनके टिप्पणी पर आश्चर्य तो नहीं हुआ पर दुख जरूर हुआ। किसी और ने ऐसी टिप्पणी की होती को शायद ध्यान नहीं देता।

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उनके मुताबिक मैं पिछले कुछ दिनों से जागरण में लिख रहा हूं। यह भी कि मैं फेसबुक पर बहुत नियमित नहीं हूं। आखिर में उन्होंने लिखा कि जागरण ने लेख के अंत में मेरा ई मेल पता नहीं दिया है। उनके मुताबिक यह सब प्रायोजित होने का प्रमाण है।

मैं आजकल नहीं, पिछले सत्रह साल से जागरण, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, बीबीसी डॉटकॉम और दूसरी जगहों पर लिख रहा हूं। पिछले पांच से साल से तो जागरण में नियमित रूप से लिख रहा हूं। फेसबुक पर नियमित न होने के बावजूद यह लेख मैंने पोस्ट किया तो जरूर कुछ प्रायोजित मामला है।

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मैं संजय से पूछूं कि सत्रह साल में पहली बार मुझ पर यह इनायत क्यों? जिसने सत्रह साल में एक भी टिप्पणी नहीं की, वह अचानक इतना सक्रिय हो गया। वह भी लेख पढ़े बिना। यह स्वत:स्फूर्त तो नहीं लगता। बहरहाल कारण संजय को पता होगा। निष्कर्ष निकालने के लिए संजय लिखते हैं- मेरे लेख के अंत में मेरा ईमेल पता नहीं बल्कि जागरण का ईमेल पता है।

अरे भइया अपनी अज्ञानता का ठीकरा मेरे सिर क्यों फोड़ रहे हो। जागरण सम्पादकीय पेज पर छपने वाले किसी लेख में लेखक का ईमेल नहीं छापता।

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मुझे पता नहीं था कि संजय आजकल सर्टीफिकेट बांटने का भी काम करने लगे हैं। इतना तो पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कि कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ जो मुझे खरीद सके। इसलिए मुझे किसी संजय सिंह के सर्टीफिकेट की जरूरत नहीं है। आखिर में इतना ही कहूंगा कि मेरा लेख उतना ही भाजपा प्रायोजित है जितना संजय की टिप्पणी कांग्रेस प्रायोजित।

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह की एफबी वॉल से.

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प्रदीप के उपरोक्त एफबी स्टेटस पर संजय कुमार सिंह की अलग-अलग जगहों पर तीन टिप्पणियां इस प्रकार हैं :

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Sanjaya Kumar Singh इस पोस्ट से लग रहा है कि आप बुरा मान गए। मैंने आपके लिखे पर टिप्पणी नहीं की थी। मेरी टिप्पणी पूरे माहौल पर थी और मैंने उसे बतौर उदाहरण लिया था। चूंकि आपको जानता हूं इसीलिए आपके लिखे और आपकी सक्रियता को बतौर उदाहरण लिया था। आपकी नाराजगी सिर माथे। इसका मुझे खेद है। चूंकि मैं एक पत्रकार की तरह कमेंट कर रहा था इसलिए मैं आपके आरोपों, शंकाओं का कोई जवाब नहीं दूंगा।

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प्रदीप जी मेरी जिस पोस्ट से नाराज है उसे मैंने आज-कल की पत्रकारिता और भिन्न हिस्सों में बंटे पत्रकारों पर टिप्पणी के रूप में लिखा था। मैं उन्हें जितना जानता था उससे उम्मीद थी के वे इस पर बात करेंगे। बहस चलाएंगे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस पोस्ट से लग रहा है कि वे बुरी तरह नाराज है। मैंने उनके लिखे को पूरे माहौल पर उदाहरण के रूप में लिया था। मेरा मकसद प्रदीप जी को नाराज करना नहीं था मैं चाहता था कि इसपर एक अच्छी चर्चा होती पर ऐसा कुछ हो नहीं हो पाया। प्रदीप जी से उम्मीद थी पर ऐसा नहीं हुआ। मैंने जो लिखा है एक पत्रकार की तरह लिखा है इसलिए उनके आरोपों, शंकाओं का कोई जवाब नहीं दूंगा। हां, ये मान लिया कि अब कोई उम्मीद नहीं है। आपको लेकर मेरा आकलन गलत रहा, गलती इतनी ही है। क्षमा कर दीजिए।

xxx

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भक्तों में कोई नहीं मिला जिससे बात की जा सके। एक भाजपा समर्थक को तीस साल से जानता हूं। कभी गुस्से में नहीं देखा। वो भी खिलाफ लिखने पर ऐसे भड़के कि मेरा लिखा उन्हें गाली लग गया। फिर भी, जवाब तर्कसंगत, शालीन होता तो आगे बात करता पर बात करने की गुंजाइश इनसे भी नहीं है।


पूरे मामले को समझने के लिए इसे जरूर पढ़ें…

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0 Comments

  1. ramsingh

    March 3, 2017 at 2:30 pm

    माई का लाल अपना समय एक संस्थान को बेच रहा है क्या यह खरीदना नहीं है। प्रदीप जी को गर्व से कहना चहिए कि मैं एक लेखक हूं और हर वह लेख लिखूंगा जिसे लिखने की अनुमति भारतीय संस्कृति देती है।

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