Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

प्रकृति ने हर जीव को चैलेंज दिया है… जाओ, जीकर दिखाओ, कब तक जीते हो!

नाज़िया ख़ान-

बीमारियां- प्रकृति की चैलेंज लिस्ट

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंटरनेट पर चैलेंजेज़ देखते सुनते ही रहते होंगे आप लोग। आइस बकेट चैलेंज, साल्ट एंड आइस चैलेंज, मेनिकन चैलेंज, वैसे ही प्रकृति मनुष्यों को चैलेंज देती रहती है, ये करके दिखाओ, ये-ये करके दिखाओ टाइप। इन चुनौतियों को हम कहते हैं बीमारियां।

हमारा दिमाग़ एक प्राचीन संग्रहालय है, करोड़ों वर्षों की यादें संग्रहीत किये हुए। बल्कि पूरा शरीर ही, हमारा डीएनए पूरा विकास क्रम सम्भाले है। जो हम आज हैं यह मानवता के आरंभ से आज तक हुआ क्रमिक विकास है, न कि उस पल से शुरू कहानी, जब हमारा जन्म हुआ या हम कोख में आए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रकृति ने जो गोल सेट किये हैं, वह हमारे लाइफ गोल्स से बिल्कुल जुदा हैं। हमें पैदा होने के बाद कैरियर बनाकर लाइफ सेट करने के हिसाब से पाला जाता है। सारा जीवन संघर्ष इसी से जुड़ा है कि पढ़ो-लिखो, क़ाबिल बनो, शादी-बच्चे करो, घर-गाड़ी-बैंक बैलेंस, इज़्ज़त, नाम बनाओ और मर जाओ।

प्रकृति हमें कुछ नहीं बनाना चाहती। बस सर्वाइव करो, अपने जीन्स दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर करो, जब तक ज़िन्दा रह सकते हो, रहने की कोशिश करो। पूरी ज़िंदगी इसी जद्दो-जहद और बैलेंस में निकल जाती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रकृति में कोई जाति-धर्म, सोशल-स्टेटस, पद-पैसा मायने नहीं रखता। बॉडी शेमिंग भर भरके है क्योंकि वोक होने में मानबे नहीं करती क़ुदरत। संतानोत्पत्ति के लिये एकदम फिट बॉडी चाहिए, आइडियल। मादा की भरी-पूरी देहयष्टि, जो बच्चा पैदा करने और पालने में समर्थ हो। नर का सुडौल, मांसल, शक्तिशाली, फुर्तीला शरीर, जो दूसरे नर और संकटों से रक्षा करने में समर्थ हो, सुरक्षा और भोजन की आपूर्ति सुनिश्चित करे।

अधेड़ या बुढाते वेल सेटल्ड पुरुष में सिक्योर भविष्य दिख सकता लेकिन कल्पना और सपनों में हॉट सा हीरो ही दिखेगा, यह प्राकृतिक है, मुझे रूप नहीं गुणों से प्यार है, इनका नेचर बहुत अच्छा है, न उम्र की सीमा हो, न जन्मों का हो बंधन वाले पुरुष भी नवयौवना हीरोइन्स पर आसक्त रहेंगे, इट्स नैचुरल। प्रकृति इसीलिये मादाओं को चुनाव का अधिकार देती है ताकि बेस्ट जीन्स ही आगे बढ़ें। और नरों से यह अपेक्षा रहती है, अपने बीज ज़्यादा से ज़्यादा मादाओं में रोपित करें इसलिये ही पोलिगेमी प्राकृतिक है, मोनोगेमी दुर्लभ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब गर्भ आ गया अस्तित्व में, फिर? बस तभी से ज़िन्दा रहने की चैलेंज लिस्ट पर टिक करते जाना होता है। जर्म सेल्स एक पूरा प्राणी रचने में समर्थ होती हैं। तीन महीने के गर्भ का आकार चाहे कान बराबर हो लेकिन शरीर बनने की क्रिया इतनी तेज़ गति से चल रही होती है, ऑर्गन सिस्टम डेवलप हो रहे होते हैं।

प्रकृति ने हर जीव को चैलेंज दिया है। डायनासॉर से लेकर इंसानों तक। जाओ, जीकर दिखाओ, कब तक जीते हो। इंसानों को पशुओं ने मारा, ख़राब मौसम ने मारा, प्राकृतिक आपदाओं ने मारा, उसने हथियार बनाए, शेल्टर बनाए, फिर घर बनाए, आग से सुरक्षा की, खेती की, जानवरों को पालतू बनाया या शिकार किया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उसी तरह से अजब-ग़ज़ब चीज़ें खाईं, पी। कुछ ज़हरीली थीं, मर गए, कुछ ने बस नुक़सान किया, सम्भल गये। याद रखा, क्या खाने-पीने लायक़ है, क्या नहीं।

इसीलिये आज भी महिलाओं का वही आत्म रक्षात्मक हाइपर सेंसिटिव मोड ऑन हो जाता है प्रेग्नेंसी में फर्स्ट ट्राइमेस्टर में होने वाली उल्टियां हों या किसी स्वाद या गन्ध से विरक्ति, जो शरीर को लगे कि गर्भ को नुक़सान पहुँचाएगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उसी तरह सबसे ख़तरनाक प्रजाति से वास्ता पड़ा, सूक्ष्म जीव, माइक्रो ऑर्गेनिज़्म। इनको ख़त्म करना लगभग असंभव है इसलिये सतत जंग जारी है। जब भी लड़ाई हुई, हमने हमारे सैनिक ट्रेंड किये, तैनात किए। लड़े, मरे, बचे, इम्यून हुए, आगे बढ़े।

तो बेसिकली ज़्यादातर जो हम बीमारी मानते हैं, वे केवल लक्षण होते हैं या इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दर्द हमारा हमदर्द है। आपमें से कुछ ने मर्द को दर्द नहीं होता देखी होगी। दर्द का एहसास न होना भी जानलेवा होता है। सोचिये गर्म चीज़ छूते ही हाथ हटाने को रिफ्लेक्स ही न आए, गर्म प्रेस या जलती मोमबत्ती पर हाथ रखा हो और नींद में हो या आँखें बंद हों…

उल्टी, दस्त, खाँसी, बुख़ार, छींकें ये सब हमारे इम्यून रिस्पॉन्स ही हैं, जो कभी-कभी बढ़कर ख़ुद बीमारी बन जाते हैं।। विभिन्न प्रकार की एलर्जी भी बॉडी के हाइपर रिस्पॉन्स या फाल्स अलार्म के कारण हैं।। इन में शरीर ही ख़ुद का दुश्मन बन जाता है। इनसे लड़ा नहीं जा सकता क्योंकि शरीर ही ख़ुद के ख़िलाफ़ होस्टाइल हो गया है, इनके साथ शांति और साहचर्य से रहना सीखा जा सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

संक्रमणों से लड़ने के लिये प्रतिरोधक तंत्र को मज़बूत होना होता है। वह इम्यूनिटी, जो पैदाइशी मिली है, वह इम्यूनिटी जो हमने लड़-भिड़कर हासिल की है प्लस बाहर से टीके वग़ैरह से मिली और एंटीबायोटिक आदि दवाओं की मदद से।

फिर आती हैं लाइफस्टाइल या सीडेंटरी लाइफ स्टाइल या आराम-तलब जीवनशैली जन्य रोग। समाज कहता है कि पढ़-लिखकर व्हाइट कॉलर जॉब करो। मेहनत-मज़दूरी ग़रीब-ग़ुरबा के काम हैं। प्रकृति कहती है, तुम्हारा शरीर लगातार बैठने को बना ही नहीं। दौड़-भाग करो। आराम हमें पूरा चाहिये, खाने को तर माल। ऊपर से नशे आ गए इतने, सत्यानाश करने। फिर कमर दर्द, सर्वाइकल, हार्ट डिसीज़, हाइपरटेंशन, ओबेसिटी, हॉरमोनल इमबेलेन्स, डायबिटीज़, कैंसर जैसे तमाम रोग होते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

तो कुल मिलाकर यह कि शीर्यते इति शरीरं, शरीर की परिभाषा ही यही है, जिसका प्रतिक्षण क्षरण हो। जन्म लेते ही मौत का काउंटडाउन शुरू हो जाता है। नेचर बिग बॉस बने टास्क पर टास्क देने लगता है।

मर ही जाना है, खाओ-पियो ऐश करो इज़ मिथ। स्वस्थ रहने की पूरी कोशिश की ही जाना चाहिये ताकि बीमारियों के होस्ट न बनें हम लोग। जब तक जिएं, हैल्दी जियें, हाथ-पैर चलते रहें, किसी पर डिपेंड न हों, तन ठीक तो मन भी ख़ुश एंड वाइस-वर्सा…

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement