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सुख-दुख

वर्तमान समय पत्रकारों के लिए अघोषित आपातकाल के समान है

वर्तमान समय पत्रकारों के लिए अघोषित आपातकाल के समान है। अब समाचार वहीं मिलेगे जो एजेंसी या पीआरओ देगा। बाकी खबर लीक करने वाले विभीषणों की खैर नहीं। कुछ दिनों पहले मेरी खूफिया विभाग के वरिष्ठ अधिकारी से चर्चा हो रही थी। बातों-बातों में उन्होंने पूछा अब आप लोगों को कैसा लग रहा है। मैं बेरूखी भरे शब्दों में कहा कि यार कोई खबर नहीं मिलती। अब तो मोदी के पीआरओ मोदी रेखा ना लांघने की सलाह देते है। फिर क्या था अधिकरी ने सख्त लहजे से कहा कि मोदी सिर्फ राजनेता नहीं है उसे राजनेता समझने की भूल मत करना। नहीं तो मोदी किसी को कहीं का नहीं छोड़ता। वाकही में खैर चाहते हो तो मोदी रेखा मत लांघना, रूटीन में जो चल रहा है मिल रहा है वहीं करते रहो। चूंकि उक्त अधिकारी हमारे अच्छे मित्र भी है इसलिए बाद में आवाज हलकी कर लिए और मित्रत्रा की दुहाई देकर दिल पर ना लेने की बात कहीं। पर सच्चाई तो यही है।

वर्तमान समय पत्रकारों के लिए अघोषित आपातकाल के समान है। अब समाचार वहीं मिलेगे जो एजेंसी या पीआरओ देगा। बाकी खबर लीक करने वाले विभीषणों की खैर नहीं। कुछ दिनों पहले मेरी खूफिया विभाग के वरिष्ठ अधिकारी से चर्चा हो रही थी। बातों-बातों में उन्होंने पूछा अब आप लोगों को कैसा लग रहा है। मैं बेरूखी भरे शब्दों में कहा कि यार कोई खबर नहीं मिलती। अब तो मोदी के पीआरओ मोदी रेखा ना लांघने की सलाह देते है। फिर क्या था अधिकरी ने सख्त लहजे से कहा कि मोदी सिर्फ राजनेता नहीं है उसे राजनेता समझने की भूल मत करना। नहीं तो मोदी किसी को कहीं का नहीं छोड़ता। वाकही में खैर चाहते हो तो मोदी रेखा मत लांघना, रूटीन में जो चल रहा है मिल रहा है वहीं करते रहो। चूंकि उक्त अधिकारी हमारे अच्छे मित्र भी है इसलिए बाद में आवाज हलकी कर लिए और मित्रत्रा की दुहाई देकर दिल पर ना लेने की बात कहीं। पर सच्चाई तो यही है।

किसी राह में पत्रकारिता

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सरकार ने जर्नलिस्ट एक्ट तो बना दिया लेकिन कभी इसके वेतन भत्तों व कार्यअवधि, छुट्टी लागू कराने की जहमत नहीं उठाई। मजबूरन कुछ पत्रकार परिवार का खर्च चलाने के लिए अवैध उगाही और भ्रष्टाचार का रास्ता अपना लिया। मालिकों ने इसे रोकने के लिए पेड न्यूज नामक नया धंधा शुरू कर दिया। फिर क्या था मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले मालिकों व पत्रकारों की जमकर खातिरदारी की। अब खातिरदारी सिर्फ मालिकों की हो रही है और कुछ दिनों बाद यह भी बंद हो जाएंगी। चूंकि पहले जयंती या किसी नाम पर ही करोड़ों के विज्ञापन जारी हो जाते थे, अब नहीं। पेपर या चैनल कितने भी विज्ञापन लगा ले लेकिन उन्हें फायदा तब तक नहीं होगा जब तक सरकारी विज्ञापन नहीं मिलेगे। नतीजन दो साल बाद गिने-चुने पेपर व चैनल ही दिखेगे। 

पत्रकारों की मांग और आपूर्ति

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दरअसल हर साल 60 से 70 हजार छात्र पत्रकारिता करके निकलते है लेकिन मांग सिर्फ 10 हजार की है। बाकी 20 हजार सहयोगी पेशे में चले जाते है। लेकिन संस्थानों में 10 हजार की जगह 15 हजार छात्र पत्रकारिता के रूप में कैरियर शुरू करते है जिसका असर मीडिया संस्थानों में वेतन भत्तों से लेकर 40 साल से ऊपर आयु वर्ग मीडिया कर्मियों के कैरियर पर पड़ता है। भविष्य में यह मांग 10 हजार से घटकर 5 हजार हो जाएगी। और मीडिया उद्योग में स्थिरता आ जाएगी तो सरकारी राह पर मीडिया संस्थान भी चल पड़ेगे क्योंकि कर्मचारियों से छेड़छाड करने पर संस्थान के भविष्य पर संकट आ सकता है। मोदी सरकार जर्नलिस्ट एक्ट में संशोधन कर मीजीठिया वेतन मांग इलेक्टानिक व वेब मीडिया के पत्रकारों के लिए भी लागू कर सकती जिससे वे नियंत्रण में आ जाए।

युद्ध की राह पर सरकार

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मोदी सरकार जिस राह पर आगे कदम बढ़ा रही है वह युद्ध की तरफ जाता है। चूंकि भारतीय सेना पहले से ही सहमी है कि 2017 में भारत और चीन का युद्ध होगा। लेकिन जम्मू-काश्मीर में जो हो रहा है उससे देखकर यही लगता है कि इस साल के अंत तक यहां बहुत कुछ हो सकता है। यदि भारत-पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष युद्ध भी हुआ तो देश को 50 हजार करोड़ का नुकसान होगा। और यदि भारत-चीन का युद्ध हुआ तो देश को 2 लाख करोड़ से अधिक का नुकसान होगा। जिसकी भरपाई करने में वर्षों लगेगे। चूंकि हथियार तभी खपेगे जब कहीं ना कहीं लड़ाई हो। अमेरिका और यूरोपी देश पूर्णतः व्यापारिक सोच के देश है। जो निवेश और फायदे के अनुसार कदम उठाते है। यदि भारत और चीन एक साथ अपने विदेशी बांड कैश करा ले तो अमेरिका की अर्थव्यस्था चरमार जाएगी। भारत यदि अपनी मुद्रा परिवर्तित कर दे और ई बैंकिंग (खरीदी, भुगतान सब डेबिट कार्ड या इंटरनेट बैंकिंग से हो) को बढ़ावा दे तो आसनी से काला धन वापस आ जाएगा और भ्रष्टाचार में अत्यधिक कमी आएगी।  इससे यूरोपी देशों की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। खैर विकास की बात करें तो जिस रफ्तार से कछुए को दौड़ाया जा रहा है वह 2017 तक नदियों को जोड़ने, साफ-सफाई, सड़क निर्माण, शहरों के आधुनिकीकरण व पूर्वोत्तर राज्यों के विकास में सिर्फ आधा काम होगा। सरकार भाषणों में जो जुनून दिखा रही थी वह दिन रात एक करने पर 2015 के अंत तक पूरा होगा। देश की एक बिडवना है कि इसे व्यापारी, उद्योगपति या दलाल चलाते है। मांग आपूर्ति की कोई परिभाषा ही नहीं। जैसे यदि प्याज या आलू का समर्थन मूल्य घोषित हो जाए तो इनकी इतनी पैदावार हो कि विदेशों की मांग खत्म कर दे। इसके दाम व्यापारी अपने अनुसार तय करते है जब किसानों की फसल आती है तो उसके दाम इतने घटा देते है कि किसानों को भारी घाटा होता है। खैर राम भरोसे हिन्दुस्तान और यहां की कानून व्यवस्था जहां वादी और परिवादी मर जाते है लेकिन कोर्ट का फैसला नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी पत्रकारों को आज तक मजीठिया वेतनमान नहीं मिल रहा है।

महेश्वरी प्रसाद मिश्र

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पत्रकार

[email protected]

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0 Comments

  1. arvind bhutani

    July 24, 2014 at 2:41 am

    aap ki baat bilkul sahi hai ,

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