आगरा के नाईं की मंडी गालिबपुरा इलाके के रहने वाले नजीर और तबस्सुम के बच्चे लाइलाज बीमारी से जूझ रहे हैं। बच्चों को तिल-तिल तड़पते देखकर नजीर ने राष्ट्रपति के लिए पत्र लिखा है जिसमें अपने छह बच्चों के लिए इच्छा मृत्यु की मांग की है।
इच्छा-मृत्यु के लिए राष्ट्रपति को प्रेषित नजीर के प्रार्थनापत्र की छाया प्रतियां
मोहम्मद नजीर की शादी साल 1995 में तबस्सुम के साथ हुई थी। शादी के बाद पहला बच्चा कुवैत होने के बाद घर में खुशियां आईं। दो साल बाद इनकी दूसरी औलाद सुलेम ने जन्म लिया। यहीं से परिवार के लिए संकट का समय शुरू हो गया। बच्चे जन्म के समय हृष्ट-पुष्ट थे लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी हड्डियां कमजोर होने लगीं। मेडिकल रिपोर्ट में भी कोई बीमारी नहीं निकलती थी। नजीर और तबस्सुम के 8 बच्चे हो गए, जिनमें से छह ऐसी बीमारी से पीड़ित हैं, जिसका इलाज समझ से परे है।
नजीर ने राष्ट्रपति से मांग की है कि या तो इनको इच्छा मृत्य दे मरा हुआ घोषित किया जाए या फिर मोदी सरकार इनके इलाज की जिम्मेदारी ले। तबुस्सम का कहना है कि ये हमारे बच्चे हुए थे तो सही थे, जितने जितने बड़े हुए बच्चे परेशान होते गए। इतनी आमदनी तो है नहीं कि सब कुछ करें इनके लिए। क्या मतलब इनका, हम ये चाहते हैं, सही हो जायें बच्चे।
हलवाई की दुकान पर मजदूरी करने वाले नजीर ने सुलेम को दिल्ली एम्स में भी दिखाया, लेकिन पैसों की तंगी की वजह से वह वापस आगरा लौट आए। पीड़ित बच्चों के न्यूरो टेस्ट में बस इतना पता चला कि बड़े बेटे सुलेम को डिस्मेटिनेटिंग डिसआर्डर की शिकायत है। उम्र बढ़ने के साथ उसकी हड्डियां मजबूत होने की बजाय कमजोर हो रही हैं। गरीबी के कारण नजीर सिर्फ सुलेम और शोएब का इलाज कराता रहा है। नजीर हर दिन बच्चों के लिए चार पैसे जुटाने निकल जाता है और रात बच्चों की चिंता में कटती है। नजीर हालात से हार गया है। उसने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और सीएम अखिलेश को अपने छह बच्चों के लिए इच्छा मृत्यु की मांग का पत्र भेजा है।
नजीर का कहना है कि जिसका नाम प्रकाश में आता है, सरकार उसकी ही मदद करती है, गुमनाम को कौन पूछता है। नजीर के तीन बच्चों की हालत तो यह हो गई है कि हड्डियां कमजोर होने के कारण वे बिस्तर से भी नहीं उठ पा रहे हैं। दिनभर लेटे रहते हैं। उनका मानसिक विकास भी नहीं हो पाया है। इसके अलावा तीन बच्चे आसिम, तैयबा और अबान अभी घुटनों पर चल रहे हैं।
बच्चों के चाचा बसीर का कहना है कि इच्छा मृत्यु न मिले तो इनका इलाज करवा दें। माँ-बाप के मरने के बाद कौन संभालेगा इनको। डॉ. एस के उपाध्याय का कहना है कि इसका सच मायने में देखा जाये तो एलोपैथी में कोई इलाज नहीं। चिकित्सकों के मुताबिक ये बीमारी जिनेटिक होती है। इसे ख़त्म नहीं किया जा सकता। अब बेबस पिता के सामने शायद कोई रास्ता नहीं बचा, इसलिए नजीर ने बच्चों के लिए मौत मांगने की बात सोच ली है। प्रशासनिक अधिकारियों ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए डॉक्टरों की टीम को बच्चों की बीमारी जांचने के लिए बोल दिया है और पीड़ित परिवार को सरकारी राहत दिलाने की बात कह रहे हैं।
एडीएम सिटी राजेश कुमार का कहना है कि हम लोगों को विगत कुछ दिनों से समाचार पत्रों के माध्यम से मालूम हुआ है कि उनको उनके परिवार के लोगों को कुछ ऐसी समस्यायें हैं जो लाईलाज हैं। प्रकरण का संज्ञान लेते हुए हम लोगों ने डॉक्टरों की टीम को बोला है। सीएमओ साहब को बोला है। वो परिवार से सम्पर्क करें। उसकी छानबीन करें। क्या इलाज सम्भव है, प्रदेश स्तर पर क्या हम लोग कर सकते हैं, भरसर प्रयास करेंगे।
पत्रकार सैयद शकील से संपर्क : [email protected]
Deepak Tiwari
June 2, 2015 at 7:52 am
जब नहीं था पिछवाड़े में दम तो काहे मुल्ला जी ६ बच्चे पैदा किये थे, तब तो कंडोम और परिवार नियोजन हराम था, अब भुगतो। असल में आप गधे के सिर पर सींघ खोज सकते हो लेकिन इस्लाम में विज्ञान नही खोज सकते।