यशवंत सिंह-
आज प्रेस क्लब ओफ़ इंडिया में बलिया के जेल गए पत्रकारों के नाम दारू पी जाएगी।
टाइम भी सटीक रखा गया है। संध्या पाँच से छह।
मतलब सूर्य अस्त और लुटियन ज़ोन के पत्रकार मस्त।
दो पेग बाद इनकी अंग्रेज़ी और ज़्यादा शार्प हो जाती है। मानवाधिकार से लेकर प्रेस की आज़ादी पर बढ़ते हमलों
पर उनकी चिंता बढ़ जाती है।
सुबह हैंगओवर से मुक्ति के लिए डिसप्रीन खाकर फिर धंधे पर निकल जाते हैं।
देख लीजिए वक्ता लोगों को। सब सजावटी अंग्रेज़ी चेहरे।
हिंदी का कोई पत्रकार नहीं।
पर हिंदी वाले इनकी पालकी ढो रहे हैं। आह्वान कर रहे हैं आज शाम प्रेस क्लब पहुँचने का।
वक्ता लिस्ट में एक लखैरा भी है जो प्रेस क्लब ओफ़ इंडिया में हिटलरशाही के किए कुख्यात है। ये प्रेस क्लब ओफ़ इंडिया के घपलों घोटालों पर जो बोलेगा, उसे प्रेस क्लब से निकाल देगा। ताज़ा शिकार हुए हैं द हिंदू अख़बार के वरिष्ठ पत्रकार Nirnimesh Kumar.
इस मुद्दे पर कोई सजावटी चेहरा सामने नहीं आएगा। क्योंकि ये दारू पीने के अपने अड्डे में कोई डिस्टर्बेंस नहीं चाहते हैं।
ये सजावटी चेहरे हिंदी पत्रकारों के मुद्दे पर भी सामने नहीं आते हैं। जब इनका एक साथ दारू पीने का मन करता है, सामूहिक मदिरा पान करने को जी चाहता है, मदिरा महोत्सव के आयोजन की अवधि आ जाती है तो फिर ये दिल्ली से बलिया टाइप कोई प्रहार /हमला आदि का विषय रख लेते हैं और घंटे भर की हलो हाय चिंता कंडेम शेम शेम के बाद दारू पीने के लिए फैलकर बैठ जाते हैं।
फिर देर रात्रि तक विमर्श चलता है। कुछ इतना विमर्श कर लेते हैं कि उसे पचा नहीं पाते और उलटने लगते हैं। कुछ इतना ऊर्जा से लैस हो जाते हैं कि राकेट बन जाते हैं और प्रेस क्लब में खड़ी मिसाइल के लम्बे चौड़े मॉडल को धराशायी कर देते हैं।
सारी क्रांति रात्रि में हो चुकने के बाद सुबेरे सब अपने अपने लाला के यहाँ हाथ बांधे खड़े हो जाते हैं। फिर दिन भर लाला के बनाए सिस्टम को फ़ॉलो करते बिताते हुए शाम को फिर सरकारी सिस्टम को चोदने के लिए प्रेस क्लब ओफ़ इंडिया पहुँच जाते हैं।
इन सालों को कौन समझाए कि जितना ये आज दारू चिख्ना में खर्च करेंगे, उतना अगर जेल गए अमर उजाला के पत्रकार अजीत ओझा के गरीब परिजनों के अकाउंट में ट्रान्स्फ़र कर देते तो उनके लिए महीना काटना, कोर्ट कचहरी जेल के तामझाम से निपटना आसान हो जाता!
पहले हम भी दारूमय तमाशा देखने चखने के लिए ऐसे महा मदिरा मय महोत्सव में पहुँच जाया करते और फिर देर रात तक अल्लबल्लसल्ल सुन सुना कर देर रात घर लौट आते।
अब नहीं जाऊँगा। आज से नहीं जाऊँगा।
वैसे भी दारू बहुत कम कर दी है। कभी कभी हरिद्वार के गंगाजल में मिलाकर मार लेता हूँ। अपना अड्डा अब हरिद्वार के गंगा के घाट हैं!
इन फ़र्जियों के साथ रहने से ज़्यादा अच्छा है अकेले रहना या घूमते रहना।
राजेन्द्र मिश्र
April 6, 2022 at 5:10 pm
भद्द पीटने के लिए बस इतना ही काफी है,अँग्रेजों के औलाद कुछ तो शर्म करो.