प्रेस काउंसिल बना सरकारी भोंपू, हस्तक्षेप याचिका दाखिल… प्रेस की आज़ादी और उत्पीड़न के मामले देखने वाली स्वायत्त संस्था भारतीय प्रेस परिषद यानी प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने के क्रम में किये जा रहे मीडिया के दमन को ‘राष्ट्रहित’ में बताया है। यह विडंबना है कि प्रेस की आज़ादी के लिए बनायी गयी संस्था प्रेस के दमन को सही ठहरा रही है।
जम्मू-कश्मीर में कम्यूनिकेशन पर पाबंदी लगाए जाने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका के बाद प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की हस्तक्षेप याचिका पर जहां संगठन के भीतर ही विरोध की आवाज उठने लगी है वहीं विधिक क्षेत्रो में भी सवाल उठ रहा है कि क्या प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया सरकार का सीबीआई की तर्ज़ पर तोता बन गया है? प्रेस काउंसिल के सदस्यों के एक ग्रुप ने इस कदम पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि उनसे इस मामले में कोई सलाह नहीं ली गई और न ही कोई जानकारी दी गई।
जम्मू-कश्मीर में प्रेस और कम्यूनिकेशन के दूसरे माध्यमों पर पाबंदी के खिलाफ कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है जिसकी सुनवाई अभी नहीं हुई है। इस बीच प्रेस काउंसिल ने इसमें हस्तक्षेप याचिका दायर करते हुए कहा है कि इस केस की सुनवाई एक तरफ स्वतंत्र और निष्पक्ष रिपोर्टिंग के पत्रकारों के अधिकारों की मांग और दूसरी ओर एकता और अखंडता के राष्ट्रीय हितों के संदर्भ में होनी चाहिए। प्रेस काउंसिल की इस याचिका पर काउंसिल में शामिल प्रेस एसोसिएशन के दो सदस्यों जयशंकर गुप्त और महासचिव सीके नायक ने आश्चर्य जताया है और कहा है इतने गंभीर मामले में कोई कदम उठाने से पहले काउंसिल को विश्वास में नहीं लिया गया। प्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष और महासचिव प्रेस काउंसिल के सदस्य होते हैं।
जयशंकर गुप्त और नायक के बयान में कहा गया है कि 22 अगस्त को पूरे दिन काउंसिल की मीटिंग चली थी और उस दौरान इस याचिका का कोई जिक्र नहीं हुआ था।जयशंकर गुप्त ने कहा है कि प्रेस काउंसिल का यह फैसला पूरी तरह मनमाना है। कोई एक व्यक्ति प्रेस काउंसिल नहीं है। यह एक संस्थान है और यह सरकार के हाथ का खिलौना नहीं हो सकता। सीके नायक ने कहा कि दिल्ली के सदस्य प्रेस काउंसिल की याचिका के खिलाफ हैं। वह इस फैसले में अध्यक्ष के साथ नहीं हैं।
उच्चतम न्यायालय के रिटायर्ड जज और प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष जस्टिस चंद्रमौलि प्रसाद ने कहा कि संगठन ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित याचिका में हस्तक्षेप इसलिए किया कि इस पर देश में पत्रकारिता के हितों की रक्षा की जिम्मेदारी है। कहा जा रहा है कि इसे लेकर सदस्यों से सलाह-मशविरा नहीं किया गया। लेकिन हमारा आवेदन 15 दिन पहले दाखिल कर दिया गया था। चूंकि मामला उच्चतम न्यायालय में कुछ दिन बाद ही आना था इसलिए हमने वक्त रहते आवेदन दाखिल किया था। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष के पास यह अधिकार होता है तो वह बेहद जरूरी मामलों में खुद पहल करे। जरूरी नहीं है कि हर बार काउंसिल की बैठक बुलाई जाए।
गौरतलब है कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल कर कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की याचिका में हस्तक्षेप करने की मांग की है। दायर याचिका कश्मीर में संचार प्रतिबंधों में ढील देने की मांग करती है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का काम प्रेस की स्वतंत्रता को सरंक्षित करना है। पीसीआई ने अपने आवेदन में यह भी कहा कि संचार पर प्रतिबंध लगना राष्ट्र की एकता और संप्रभुता के हित में है।
इससे पहले अपनी याचिका में भसीन ने मीडिया प्रतिबंध को चुनौती देते हुए कहा कि ये कदम बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और उनकी याचिका में इस रोक को हटाने के निर्देश देने की मांग की गई है। जम्मू और श्रीनगर से एक साथ प्रकाशित कश्मीर टाइम्स को 3.5 लाख प्रतियों के दैनिक प्रकाशन के साथ राज्य में सबसे बड़ा परिचालित अंग्रेजी अखबार कहा जाता है। भसीन ने कहा है कि घाटी में कर्फ्यू लगाने के बाद 4 अगस्त से श्रीनगर संस्करण प्रकाशित नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब जम्मू और कश्मीर की स्थिति को लेकर दिल्ली में महत्वपूर्ण राजनीतिक और संवैधानिक परिवर्तन किए जा रहे हैं, इंटरनेट और दूरसंचार बंद कर कश्मीर घाटी में सूचना साझा करने पर गतिशीलता और व्यापक स्तर पर प्रतिबंधों के चलते कश्मीर के निवासियों में घबराहट, असुरक्षा और भय और चिंता बढ़ गई है।