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सुख-दुख

मजीठिया वेज बोर्ड के नाम पर मीडिया मालिकानों के मुनाफे की हंसी और घाटे के घड़ियाली आंसू

मजीठिया वेज अर्थात कम से कम 40 हजार वेतन, इतनी बड़ी राशि सुनने के बाद अधिकांश लोगों की जुबान से यही बात निकलती है कि इतना वेतन कोई नहीं दे पाएगा, प्रेस बंद हो जाएंगे। जो पूरी तरह मिथ्या है। मुनाफे की हंसी के साथ घाटे के घड़ियाली आंसू दिखाना मीडिया मालिकों का घातक स्वांग है।

मजीठिया वेज अर्थात कम से कम 40 हजार वेतन, इतनी बड़ी राशि सुनने के बाद अधिकांश लोगों की जुबान से यही बात निकलती है कि इतना वेतन कोई नहीं दे पाएगा, प्रेस बंद हो जाएंगे। जो पूरी तरह मिथ्या है। मुनाफे की हंसी के साथ घाटे के घड़ियाली आंसू दिखाना मीडिया मालिकों का घातक स्वांग है।

हाल में पेश समाचार पत्रों की सरकुलेशन रिपोर्ट को सभी समाचार पत्रों ने बढ़-चढ़कर छापा। मैं राजस्थान पत्रिका का सरकुलेशन देख रहा था, जिसमें कहा गया था कि 2 करोड़ 40 लाख का प्रसार है अर्थात् इतना पेपर प्रति दिन छपता है, वो भी रंगीन। 12 पेज के एक अखबार की कीमत कम से कम 10 से 12 रूपए पड़ती है और दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका जिस क्वालिटी के रंग और पेपर का उपयोग करते हैं, उसकी कीमत 20 से 25 रूपए पड़ती है। सोचो, जो प्रतिदिन 2 करोड़ 40 लाख कापी छापता है तो उसकी लागत क्या होगी। 

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जी हां, यदि 10 रूपए के हिसाब से जोड़ें तो 24 करोड़ रूपए प्रतिदिन का खर्च आता है। और एक माह में यह आंकड़ा 7 अरब 20 करोड़ पहुंचता है और साल में 8640 करोड़ रुपए। अब साधारण सी बात है, जो मालिक एक दिन में 24 करोड़ खर्च कर सकता है वो कर्मचारियों को एक माह में 24 करोड़ का अतिरिक्त वेतन नहीं दे सकता क्या। दे सकता है लेकिन वर्षों की मानसिकता की जिद के आगे कोई झुकने को तैयार नहीं।  

कोई घाटे में नहीं

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मजीठिया वेतन के नाम पर हर प्रेस मालिक घाटे का रोना रोता है। प्रेस बंद होने की दुहाई देता है लेकिन सच्चाई ये है कि किसी को घाटा नहीं हो रहा है। यदि होता तो पाठकों को हर माह गिफ्ट नहीं बांटे जाते। नए एडीशनों की लांचिंग नहीं होती। दैनिक भास्कर और जागरण शेयर मार्केट में पंजीबद्ध हैं, जो एक हजार करोड़ से अधिक का कारोबार दर्शाते हैं। माना मजीठिया वेतनमान देने पर वास्तव में घाटा होता है तो गुमास्ता एक्ट का पालन करो। रविवार का समाचार पत्र संस्थान बंद रखो लेकिन अखबार तो रविवार को भी छापना है, इसके लिए रविवार पेज के नाम से अलग से पंजीयन होता है और उस दिन विज्ञापनों का बारिश का मौसम रहता है। तब घाटा कैसे होता होता है ? दरअसल मजीठिया वेतनमान को लेकर पत्रकारों के मन में यह भ्रम बनाने की कोशिश की जा रही है कि इतने वेतनमान से प्रेस बंद हो जाएगा। इसी चालाकी से प्रेस मालिक फायदा उठा रहे हैं। पत्रकारों को पहले जागरूक होना जरूरी है। 

इतनी जिद क्यों?

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सच यह है कि 1955 से आज तक किसी ने वेजबोर्ड की मांग ही नहीं की। इंडियन एक्सप्रेस और नवभारत के कर्मचारी यूनियन ने सफल आंदोलन कर वेज प्राप्त किया, जिससे सबक लेते हुए प्रेस संस्थान नौकरी ज्वाइन करते ही हर व्यक्ति को मौखिक फरमान सुनाने लगे कि आप किसी संगठन से नहीं जुड़ोगे, जो सरासर अन्याय है। अभी पत्रकार साथी मजीठिया वेतनमान को लेकर संशय में हैं और अपने हक के लिए ज्यादा तत्परता नहीं दिखा रहे हैं लेकिन जनवरी 2016 में मजीठिया वेतनमान अप्रासंगिक हो जाएगा, क्योंकि जर्नलिस्ट एक्ट के अनुसार पत्रकारों का वेतन किसी भी हालत में केन्द्रीय कर्मचारियों के सेकेंड क्लास अधिकारी से कम नहीं होना चाहिए। और तब तक राजपत्रित अधिकारियों का वेतन 1,50,000 रूपए हो जाएगा। तब क्या होगा पत्रकारों का! ये सवाल गंभीर है।

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0 Comments

  1. Kashinath Matale

    April 7, 2015 at 2:12 pm

    Employer’s ka CA malik ke hisab se Balance Sheet banata hai.
    CA ko unke hiosab se paise mil jate hai.
    CA ko govt. certificate deti hai. Isiliye CA ko challenge karna muskil hai.
    Malikonko govt ne advertisement par commission ki jyada hi chhut di hai. Malik iska pura fayada uthate hai. Employees ko wages barabar ya Jyada dene ki mentality nahi hai.
    Ispar Govt ne stern action lena chahiye aur employees ne justice ke liye ladhana chahiye.
    Bhadas4media.com ko hardik badhaiya, jyo harjoz majithia ya news papaer se sambdhi news publish karta hai.

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