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एक जून यानि आज से प्रिंट मीडिया पर शिकंजा!

एक जून यानि आज से मोदी सरकार प्रिंट मीडिया पर शिकंजा कसना शुरू कर चुकी है। दरअसल इस वर्ष डीएवीपी की विज्ञापन नीति में बदलाव हुआ है। नियमानुसार चलने वाले प्रेस के लिए अंक निर्धारित किए गए हैं। इस नीति से शुद्ध तौर पर उन्हें फायदा होगा जो ए ग्रेड के प्रेस हैं। जिनका प्रसार प्रतिदिन 75 हजार से ऊपर है। शत-प्रतिशत कर्मचारियों का पीएफ कट रहा है। मौजूदा सर्वे में कई प्रेस इस दायरे में नहीं आए। इसलिए इनका एक जून से डीएवीपी विज्ञापन बंद कर दिया गया। चूंकि यह सर्वे दो सालों के लिए हुआ है। इसलिए 2019 तक अब कितना भी हाथ पैर मार ले कोई,  फायदा नहीं। हां ये हो सकता है कि कुछ प्रेस मालिक फिर से मेहनत कर सरकार से नए तरीके से सर्वे करने की गुजारिश करें। या नए प्रेस खोले जाएं जिनका प्रसार 75 हजार से ऊपर रखा जाए।

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एक जून यानि आज से मोदी सरकार प्रिंट मीडिया पर शिकंजा कसना शुरू कर चुकी है। दरअसल इस वर्ष डीएवीपी की विज्ञापन नीति में बदलाव हुआ है। नियमानुसार चलने वाले प्रेस के लिए अंक निर्धारित किए गए हैं। इस नीति से शुद्ध तौर पर उन्हें फायदा होगा जो ए ग्रेड के प्रेस हैं। जिनका प्रसार प्रतिदिन 75 हजार से ऊपर है। शत-प्रतिशत कर्मचारियों का पीएफ कट रहा है। मौजूदा सर्वे में कई प्रेस इस दायरे में नहीं आए। इसलिए इनका एक जून से डीएवीपी विज्ञापन बंद कर दिया गया। चूंकि यह सर्वे दो सालों के लिए हुआ है। इसलिए 2019 तक अब कितना भी हाथ पैर मार ले कोई,  फायदा नहीं। हां ये हो सकता है कि कुछ प्रेस मालिक फिर से मेहनत कर सरकार से नए तरीके से सर्वे करने की गुजारिश करें। या नए प्रेस खोले जाएं जिनका प्रसार 75 हजार से ऊपर रखा जाए।

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प्रेस में भूत करते हैं काम!
मोदी सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने का भ्रम बनाए हुए है। डिजिटल इंडिया के तहत लेन-देन पूरा डिजिटल करने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन प्रेस में कर्मचारियों का शोषण करने, साप्ताहिक अवकाश ना देने, अपने कर्मचारी ना दिखाने, पीएफ ना काटने की तमाम बुराइयां हैं। कोई जांच करने जाता है तो पता चलता है कि इस प्रेस में एक भी कर्मचारी नहीं है, फिर भी इसका सर्कुलेशन नंबर वन या अग्रणी बताया जा रहा है। जिस देश में प्रेस में भूत काम करते हों तो वहां ऐसे चमत्कार होंगे ही। कुछ प्रेसों के कर्मचारी इतने उन्नत हैं कि एक साथ कई शहरों में रिपोर्टिंग, एडिटिंग कर लेते हैं। इन सब पर 2018 तक लगाम लग सकती है लेकिन बात वही उठती है कि कई प्रेस बंद हो जाएंगे। जो भी छोटे कर्मचारियों की रोजी-रोटी चल रही थी, वह बंद हो जाएगी।

विकल्प भी तैयार करो
मोदी सरकार पेट में लात मारना तो जानती है लेकिन भोजन देने के लिए विकल्प तैयार करना नहीं जानती। मोदी सरकार की नीतियों के कारण ब्लैकमनी में थोड़ी बहुत रोक लगी लेकिन जो बेरोजगार हुए भला उनका क्या दोष था। सरकार ऐसे लोगों के लिए ना तो सामने आई ना बेरोजगारी भत्ता दिया। जिसको मरना -जीना है अपने किस्मत पर मरे-जिए। जबकि सरकार को करना ये चहिए कि हर निजी संस्थान को टेकओवर कर कर्मचारियों के हितों के रक्षा करती। उन्हें नियमानुसार वैध करती और श्रम कानून का पालन करती। फिर यदि कोई कंपनी बंद करना चाहता है तो कंपनी के शेयर आम जनता या कर्मचारियों के लिए खोल देती। या ट्रस्ट बनाकर इसका संचालन कर सकती थी। लेकिन ऐसा लगता है कि आज भी ब्रिटिश राज चल रहा हो। सरकार को जनता से कोई मतलब नहीं उसे राजस्व और पैसे से मतलब है। आप सरकार को टैक्स दो वह पैसा लेकर पूंजीपतियों को बांट देगी और आप सवाल पूछे तो लाठी पड़ेगी या जेल होगी।

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साथियों से अपील
मीडिया के साथियों से यही अपील है कि सरकार मुद्दों से लोगों का ध्यान भटका रही है। उन्हें धर्म या मार्मिक मुद्दों में उलझाकर मुख्य मुद्दों से भटकाए रखना चाहती है। जबकि देश में सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की है। और सरकार पर जब तक बेरोजगारी भत्ता और रोजगार देने का दबाब नहीं बनेगा वह कुछ नहीं करने वाली। हां कर्ज देने को तैयार है। लेकिन वह भी नाकों चना चबाने के बाद देगी। मीडिया में चल रहे बुरे दिन आज नहीं तो कल सभी को प्रभावित करेंगे। इसलिए हम जनता को बेरोजगारी के प्रति जागरुक करें। चूंकि 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 को व्यापक कर इसमें आजीविका का अधिकार भी जोड़ दिया था इसके तहत हर राज्य सरकार को हर नागरिक को रोजगार उपलब्ध कराना जिम्मेदारी है और रोजगार ना मिलने तक बेरोजगारी भत्ता दिया जाना चहिए। बेरोजगार, बेरोजगार होता है गरीब-अमीर क्या होता। बाप की कमाई पर कानूनन पुत्र का अधिकार नाबालिग तक ही रहता है। इसलिए बीपीएल एपीएल आधार नहीं हो सकता। सबके लिए बेरोजगारी भत्ता देने की मांग तेज हो।

एक पत्रकार की मेल पर आधारित.

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0 Comments

  1. शिवानंद मिश्र जनर्लिस्ट

    June 4, 2017 at 7:39 am

    सरकार का प्रयास होना चाहिए कि जो जहां कार्यरत हैं. उन्हे समुचित तरीके से लाभ उपलब्ध कराना चाहिए.

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