अगर नीचता और बेशर्मी की पराकाष्ठा देखनी है तो खुद को ब्रह्मांड का नंम्बर एक अखबार कहने वाले दैनिक जागरण का अटल जी की मौत के अगले दिन का अंक और “जोश सच का” यानी अमर उजाला का भी अटजी के मौत के अगले दिन का अंक उठा कर देखिये. हिंदी के दोनों प्रमुख अख़बारों ने नीचता की लकीर को छूते हुये “अटलजी की मौत” पर भी करोबार किया.
इन्होंने अटल जी की मौत पर “विज्ञापन सप्लीमेंट (किसी खास विषय पर एक पेज में प्रकाशित कईं सारे विज्ञापन) निकाल कर अपने कारोबारी टारगेट पूरा करने की कोशिश की.
जब युगपरुष अटल जी की मौत पर सारा विश्व दुःखी था तब इन दोनों अखबारों के विज्ञापन प्रतिनिधि लोगों से पांच से दस हजार का चंदा मांग रहे थे. विज्ञापन प्रतिनिधियों को तो वो करना ही पड़ेगा जो उनका मैनेजमैंट करवायेगा. बस इसमें गलत ये था कि ये खैरात अटल जी मौत पर श्रद्धांजलि के नाम पर मांगी जा रही थी. इनके लिए अटल जी मौत के करोबार का एक अवसर भर थी.
पर मेरा दैनिक जागरण और अमर उजाला दोनों के विज्ञापन प्रबंधकों से ये सवाल है कि आप में और लाश पर मंडराते गिद्धों में क्या फर्क है? शायद इंसान के इसी रूप को देख कर प्रकृति ने गिद्धों का अस्तित्व समाप्त कर दिया. आपकी ये मार्केटिंग श्मशान घाट पर मुर्दों के इंतजार में बैठे पंडों से भी बदतर है.
अमर उजाला
दैनिक जागरण
टारगेट, ग्रोथ और मार्केट शेयर में उलझे आपने अटल जी मौत को बेच कर कितना कमा लिया? शायद एक या दो लाख ..बस? इसका सैकड़ों गुना तो आपके संस्थान खबरों की दलाली करके वैसे भी कमाते हैं. तो फिर ऐसे सप्लीमेंट निकाल कर आप क्या हासिल करना चाहते हैं?
शर्म तो मुझे उन विज्ञापनदाताओं पर भी आती है जिन्होंने पांच से दस हजार में अटल जी की श्रद्धांजलि खरीद ली. छपास की ऐसी कौन हवस? आप में से अधिकतर को मैं बहुत करीब से जानता हूँ. ये जो चंद हजार में अपने “अटल भक्ति” का दिखावा खरीदा है न, हक़ीक़त में अगर आपने “अटल आदर्श” का एक भी अंश खुद में उतार लिया होता न तो “शहर और समाज” का ये हाल न होता. श्रद्धाजंलि के नाम पर आपके चमकते और मुस्कान भरे चेहरे कितने भद्दे लगते हैं, शायद आपको अंदाजा नहीं है.
हे अखबार प्रबंधकों! बस एक निवेदन है कि कलम और अखबार की गरिमा को समझो. स्वार्थ और करोबार में अंधे होकर उस महान आत्मा की मौत का तमाशा बनाना बंद करो. मैंने आज तक आप से कभी अपनी किसी पोस्ट को पसंद या शेयर कने की लिए नहीं कहा. पर आज कहता हूँ कि कृपया इस पोस्ट को शेयर करें ताकि इन अखबारों को अपनी सही औकात पता चल सके.
कानपुर में रहने वाले मृदुल पांडेय की एफबी वॉल से. मृदुल एल्डिको ग्रुप में असिस्टेंट मैनेजर हैं. इसके पहले वे हिंदुस्तान टाइम्स के मार्केटिंग विभाग में कार्यरत रहे हैं.
चंद्र कुमार तिवारी
August 19, 2018 at 3:21 pm
अखबारों के ऐसे कृत्य से समाज मे पत्रकारिता की छवि खराब होती है जागरण व अमर उजाला अपने सामाजिक दायित्वो का निवर्हन भी करना चाहिए, राष्ट पुरुष के मृत्यु पर इनका भी जिम्मेदारी बनती है आखिर इनके पाठक भी इसी समाज के लोग होते है।
sarfaraz
August 22, 2018 at 11:52 am
patrika evam naidunia indore bhi atal ji par aisa hi feature nikal chuke hai.