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पत्रिका अखबार के गरिष्ठ, वरिष्ठ और कनिष्ठ संपादकों को 22 दिसंबर की कोहिनूर कंडोम वाली लंबी रात के अनुभव पर लिखना चाहिए!

कंडोम का विज्ञापन तो ठीक है लेकिन क्या इसे अब ऐसे बेचा जाएगा? और, क्या इसे ऐसे बेचने के प्रयास को अखबार वाले यूं ही सफल हो जाने देंगे? माना कि गंदा है पर धंधा है, लेकिन कितना गंदा है, क्या बताएगा या तू पूरा अंधा है? पत्रिका अखबार में यह विज्ञापन छपा है कोहिनूर कंडोम का. देख लीजिए.

कंडोम का विज्ञापन तो ठीक है लेकिन क्या इसे अब ऐसे बेचा जाएगा? और, क्या इसे ऐसे बेचने के प्रयास को अखबार वाले यूं ही सफल हो जाने देंगे? माना कि गंदा है पर धंधा है, लेकिन कितना गंदा है, क्या बताएगा या तू पूरा अंधा है? पत्रिका अखबार में यह विज्ञापन छपा है कोहिनूर कंडोम का. देख लीजिए.

इसके संपादकों को इस एंगल स्टोरी कराना चाहिए और सबसे पहले खुद का 22 दिसंबर की वाली कोहिनूर कंडोम भरी लंबी रात का अनुभव फ्रंट पेज पर टाप बाक्स या बाटम में प्रकाशित करना चाहिए. तब न होगी दम वाली बात. वरना ये क्या कि पैसा लेने के लिए कुछ भी विज्ञापन छाप दिया और जब उस एंगल पर कंटेंट की बारी आई तो दांतें निपोरने लगे.

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सुना है कि पत्रिका अखबार के गरिष्ठ संपादक जी बड़े ज्ञानी हैं और गाहे बगाहे दर्शन पेलते रहते हैं. उम्मीद है उनने भी अपने खानदान में 23 तारीख की सुबह चाय के दौरान हर एक परिजन से 22 वाली रात का फीडबैक लिया होगा. जैजै.

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.

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