हाय रे मजीठिया बहुते करे इंतजार, लेकिन तू फिर भी ना आया।
तेरे अंदर छुपे वैभव के सपने देख, हमने पत्रिकारिता के कितने रावणों से लिया पंगा।
अपने भी हुए पराए, रिश्ते भी हुए धूमिल, लेकिन तू फिर भी न आया।
तेरे आश में हमनें खाई दर दर की ठोकर, भूल पत्रकारिता, बन बैठा गवांर।
करता रहा इंतजार कि, तू आएगा एक दिन
दिन बीते, महीना बीता, बीत गया पूरे साल, लेकिन तू फिर भी ना आया।
तेरे इंतजार में मैं भी पहुंच गया पानीपत से गंगा पार (पटना)
सोचा था कि एक दिन तुझे सुप्रीम कोर्ट पहुंचाएगा हम तक
लेकिन पत्रिकारिता के रावणों ने तुझे एसा जकड़ा, कि तू चल ना पाया एक पग
ना तू आया ना तेरा पैसा, मैं भी तेरे सपने देखते हुए हो गया बेरोजगार
अब तो आ जा, आश जगा जा, पत्रकारों के दुःख दर्द दूर भगा जा।…….
मजीठिया आयोग की सिफारिशें मेरी तरह सभी मीडिया कर्मचारियों के लिए सिर्फ सपना बनकर रह गई हैं, जिसे हकीकत बनाने के लिए तमाम मीडिया मालिकान के खिलाफ मुट्ठी भर पत्रकार ही संघर्ष कर रहे हैं, न्यायपालिका के सख्त आदेशों के बावजूद मीडिया संस्थान पत्रकारों को ठेंगा दिखा रही हैं। सिफारिशें न लागू करने के हर तरह के हथकंडे संस्थान अपना रहे हैं। मसलन उनके खिलाफ कोर्ट में जाने वाले पत्रकारों का शोषण, कंपनी को छोटी यूनिटों में बांटनाए कम आय दिखानाए कर्मचारियों से कांट्रैक्ट साइन करवाना कि उन्हें आयोग की सिफारिशें नहीं चाहिए। इतने झंझावातों के बावजूद पत्रकार अपने हक के लिए लगातार लड़ रहे हैं। हालांकि इस लड़ाई में अभी भी पत्रकारों की एकजुटता काफी कम है। पत्रकारों के लिए दिवतिया आयोग, शिंदे आयोग, पालेकर आयोग, बछावत आयोग, मणिसाना आयोग और उसके बाद मजीठिया वेतन आयोग आया है, जिनका उद्देश्य पत्रकारों को एक समान वेतनमान दिलाना और उनके आर्थिक पहलू को मजबूत करना है।
सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी 2014 को अखबारों और समाचार एजेंसियों को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने का आदेश दिया और कहा कि वे अपने कर्मचारियों को संशोधित पे स्केल के हिसाब से भुगतान करें। न्यायालय के आदेश के अनुसार यह वेतन आयोग 11 नवंबर 2011 से लागू होगा जब इसे सरकार ने पेश किया था और 11 नवंबर 2011 से मार्च 2014 के बीच बकाया वेतन भी पत्रकारों को एक साल के अंदर चार बराबर किस्तों में दिया जाएगा। आयोग की सिफारिशों के अनुसार अप्रैल 2014 से नया वेतन लागू किया जाएगा। तत्कालीन चीफ जस्टिस पीण् सतशिवम और जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एसके सिंह की बेंच ने इस आयोग की सिफारिशों को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं। बेंच ने सिफारिशों को वैध ठहराया और कहा कि सिफारिशें उचित विचार.विमर्श पर आधारित हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इसमें हस्तक्षेप करने का कोई वैध आधार नहीं है।
लेकिन आयोग की सिफारिशें लागू न करने का ताजा प्रसंग अब ये संदेश देने लगा है कि अब तक सिर्फ राजनेताए अफसर और अपराधी ही ऐसा करते रहे हैंए अब मीडिया भी डंके की चोट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का मजाक बनाने लगा है। मजीठिया वेज बोर्ड से निर्धारित वेतनमान न देने पर अड़े मीडिया मालिकों को जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुपालन का फैसला दिया तो उसे अनसुना कर दिया गया। इस समय मीडियाकर्मी अपने हक के लिए दोबारा सुप्रीम कोर्ट की शरण में हैं। संस्थानों में पत्रकारों का शोषण आज की देन नहीं है। यह काफी समय से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है। मजीठिया आयोग की सिफारिशों के बाद ये शोषण और बढ़ा है। यह आयोग पत्रकारों के लिए एक उम्मीद लेकर आया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पत्रकारों को यकीन का था कि मीडिया घराने कम से कम देश की न्यायपालिका को तो ठेंगा नहीं दिखाएंगे। मीडिया मालिकों ने मई 2015 में सिफारिशों के अनुसार वेतन तो नहीं दिया बल्कि उनका शोषण और बढ़ा दिया। उनसे अधिक काम लिया जाने लगा ताकि वे मजीठिया के बारे में सोच भी न पाए और उन्हें हमेशा अपनी नौकरी बचाने की ही चिंता रहे।
पत्रकार विनीत पांडेय के ब्लाग से साभार. संपर्क: [email protected]
ईश्वरी प्रसाद
August 23, 2015 at 5:38 pm
हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक…..
Anjaan
August 26, 2015 at 3:04 am
मजीठिया से पहले पालेकर, बाछावत, मणिसाना वेतन बोर्ड की घोषणा हुई। आज तक जब सरकार इन्हें लागू नहीं करा पाई तो क्या मजीठिया लागू कर देगें मीडिया संस्थान। औरों के भ्रष्टाचार को सुर्ख़ियों में छापने वाले अपनी बारी आई तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दिया.
anuchauhan
August 26, 2015 at 10:49 am
majithia ke liye sangarsh tej karna hi hoga . beshak kuch chapluson ke chalte sabhi patrkar bhai ek manch par nhi aa pa rhe hon lekin sabhi kya chahte hain yeh kisi se chupa nhi hai. naman hai un bhaiyon ke liye jo sabke hit ki bat utha rhe hon