महाराष्ट्र सरकार और उसके कामगार आयुक्त कार्यालय ने लगता है यह तय मान लिया है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पत्रकारों के भले के लिये दिये गये मजीठिया वेजबोर्ड मामले के फैसले को गंभीरता से नहीं लेना है और इसीलिये महाराष्ट्र सरकार का कामगार आयुक्त कार्यालय और खुद महाराष्ट्र सरकार ऐसी हरकत कर रही है कि किसी को भी हंसी आ जाये। मजीठिया वेज बोर्ड के मामले में भले ही सर्वोच्च न्यायालय ने एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का आदेश वर्ष २०१५ में दिया और स्पष्ट कहा कि यह अधिकारी रिपोर्ट तैयार करेंगे कि कहां कहां आदेश का पालन किया गया और कहां कहां नहीं। इन विशेष अधिकारियों को रिपोर्ट तैयार कर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में तीन महीने में रखना था। आप यह जानकर चौक जायेंगे कि भले ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष अधिकारी की नियुक्ति का आदेश वर्ष २०१५ में दिया मगर मुंबई के कामगार आयुक्त कार्यालय ने इन अधिकारियों की नियुक्ति माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश आने के लगभग १३ साल पहले ही कर लिया था।
यह खुलासा हुआ है पत्रकार शशिकांत सिंह द्वारा मुंबई के कामगार आयुक्त कार्यालय से मांगी गयी एक सूचना में। पत्रकार शशिकांत सिंह ने कामगार आयुक्त से मांगी गयी सूचना में पूछा था कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार मजीठिया वेज बोर्ड मामले में किन किन विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गयी है, उनका विवरण दीजिये तथा उनका नाम, कार्यालय का पता तथा नियुक्ति तिथि बतायी जाये। मुंबई के कामगार आयुक्त कार्यालय ने शशिकांत सिंह को जो सूचना उपलब्ध करायी है वह चौकाने वाली है। इस सूचना में इन अधिकारियों की नियुक्ति की तिथि २ जुलाई २००२ को दिखाई गयी है। जिन अधिकारियों को मजीठिया मामले को अमल में लाने की जिम्मेदारी दी गयी है उनके नाम तो नहीं दिये गये मगर पद जरूर बताये गये जिनमें कामगार आयुक्त मुंबई, अपर कामगार आयुक्त मुंबई के अलावा ठाणे, रायगढ़ कोंकण, पुणे औरंगाबाद तथा अन्य जगहों के कामगार अधिकारी या अपर कामगार आयुक्त के पद को दर्शाया गया है।
कामगार आयुक्त कार्यालय मुंबई द्वारा शशिकांत सिंह को जो सूचना मजीठिया मामले में उपलब्ध करायी गयी है उसमें साफ तौर पर लिखा है कि महाराष्ट्र शासन राजपत्र में २ जुलाई २००२ को श्रमिक पत्रकार और अन्य वृतपत्र कर्मचारी सेवा शर्तो के साथ संकीर्ण उपबंधक अधिनियम के तहत अधिसूचना जारी की जा रही है। इस सूचना पर बकायदे सूचना देने वाले सरकारी कामगार अधिकारी का हस्ताक्षर और मुहर भी लगी है। इस बावत जब शशिकांत सिंह ने कामगार आयुक्त कार्यालय से संपर्क कर उनकी गलती बतायी गयी तो उल्टे शशिकांत सिंह को कहा गया कि सभी अधिकारी अभी पुणे में मीटिंग में गये हैं और जब वे आएंगे तब आइएगा या वे आपको फोन करेंगे। अब समझ में नहीं आ रहा है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश आने के १३ साल पहले ही कैसे कामगार आयुक्त कार्यालय ने इन अधिकारियों की नियुक्ती कर ली और उसे बकायदे राजपत्र में भी दिखा दिया।