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हेमंत तिवारी का भंडाफोड़ करने पर सतीत्व का पाठ पढ़ा रही पत्रकारिता की वेश्याएं : अनूप गुप्ता

”लखनऊ की पत्रकारिता के बड़े पत्रकार हेमंत तिवारी का खुलासा करने के बाद कुछ वेश्याएं सतीत्व का पाठ पढ़ा रही हैं…”, ये कहना है कि ‘दृष्टांत’ पत्रिका के जुझारू संपादक अनूप गुप्ता का। गौरतलब है कि ‘दृष्टांत’ के ताजा अंक की कवर स्टोरी हेमंत तिवारी पर ही फोकस है। ‘दृष्टांत’ से यहां साभार प्रस्तुत है लखनऊ के पत्रकारों के भ्रष्टाचार पर केंद्रित संपादक अनूप गुप्ता की स्टोरी – 

”लखनऊ की पत्रकारिता के बड़े पत्रकार हेमंत तिवारी का खुलासा करने के बाद कुछ वेश्याएं सतीत्व का पाठ पढ़ा रही हैं…”, ये कहना है कि ‘दृष्टांत’ पत्रिका के जुझारू संपादक अनूप गुप्ता का। गौरतलब है कि ‘दृष्टांत’ के ताजा अंक की कवर स्टोरी हेमंत तिवारी पर ही फोकस है। ‘दृष्टांत’ से यहां साभार प्रस्तुत है लखनऊ के पत्रकारों के भ्रष्टाचार पर केंद्रित संपादक अनूप गुप्ता की स्टोरी – 

” लोकतंत्र का स्वयंभू ‘चतुर्थ स्तम्भ’ भ्रष्टाचार की आगोश में पूरी तरह से समाता जा रहा है। यदि कुछ प्रतिशत पत्रकारों को अपवाद मान लिया जाए तो देश के लगभग सभी पत्रकार महज सरकारी सुविधा और दलाली के लिए ही मीडिया का सहारा लेते आए हैं। यहां तक कि कुछ मशहूर औद्योगिक घराने भी मीडिया की गरिमा को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। 

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” इधर, यूपी में ज्यादातर पत्रकार अपना हित साधने के लिए उन तमाम अनैतिक साधनों का इस्तेमाल करते आ रहे हैं, जो मीडिया की सेहत के लिए कतई ठीक नहीं कहा जा सकता। यदि बात सिर्फ और सिर्फ उत्तर-प्रदेश के मीडिया की हो तो, यहां की दशा बेहद दयनीय है। उंगलियों पर गिने जाने वाले चंद पत्रकारों को यदि छोड़ दिया जाए तो यूपी की पूरी मीडिया मंडी और उससे जुडे़ पत्रकार महज दलाली के सहारे अपना हित साधते चले आ रहे हैं। एवज में उन्हें सरकार की ओर से वे तमाम सुख-सुविधाएं मुहैया करायी जा रही हैं जिसके वे हकदार नहीं है। 

” यह बात वर्तमान सरकार के जिम्मेदार अधिकारियों से लेकर स्वयं मुख्यमंत्री भी अच्छी तरह से जानते हैं, इसके बावजूद उनकी चुप्पी कथित ईमानदार पत्रकारों के समक्ष चिंता का सबब बनी हुई है। इस अंक में ऐसे तथाकथित भ्रष्ट पत्रकारों के कारनामों का खुलासा किया जा रहा है, जो स्वयं को कहलाते तो वरिष्ठ हैं लेकिन उनके कारनामे किसी किसी जालसाज से कम नहीं हैं। सरकारी आवास हथियाने के लिए फर्जी हलफनामे से लेकर वे तमाम तरह की प्रक्रियाएं अपनायी जाती हैं, जिनका यदि खुलासा हो जाए तो हजारों की संख्या में सरकारी आवास खाली हो सकते हैं। ऐसे पत्रकारों की संख्या भी कम नहीं है, जो जिन्होंने वर्षों से सरकारी आवास का किराया जमा नहीं किया है। उसके बावजूद वे सरकारी आवासों पर डटे हुए हैं। राज्य सम्पत्ति निदेशालय ऐसे पत्रकारों को दर्जनों बार नोटिसें भेज चुका है, इसके बावजूद न तो मकान खाली हुए और न ही लाखों के किराए जमा हो सके। 

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”सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भले ही भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के दावे करते आ रहे हों लेकिन सच्चाई उनके दावों से कोसों दूर है। जहां तक भ्रष्टाचार को संरक्षण देने की बात है तो उनका स्वयं का विभाग (सूचना विभाग) ही भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है। विभाग के ही कुछ अधिकारियों की मानें तो ऐसा नहीं है कि इस विभाग में तेजी से पांव पसार रहे भ्रष्टाचार की जानकारी उन्हें नहीं है। तमाम माध्यमों से समय-समय पर उनके विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की जानकारी उन्हें दी जाती रही है। यहां तक कि सूचना विभाग की यूनियन ने भी उन्हें कई बार पुख्ता प्रमाण के साथ भ्रष्टाचार की जानकारी उन्हें मुहैया करायी गयी, लेकिन ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री ने भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए अपनी आंखे ही बंद कर ली हैं। भ्रष्टाचार से जुड़ा यह मामला उन तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों से जुड़ा हुआ है जो कलम के बजाए कथित दलाली के सहारे अब तक अपना हित साधते आए हैं। कुछ तो ऐसे हैं जिनका न तो पहले कभी समाचार लेखन से सम्बन्ध था और न ही वर्तमान में। 

”इसके बावजूद वे मान्यता प्राप्त पत्रकार बनकर सरकारी आवासों का लुत्फ उठा रहे हैं। गौरतलब है कि राज्य मुख्यालय से मान्यता प्राप्त पत्रकारों की संख्या लगभग 700 तक पहुंच चुकी है। जिला और मण्डल स्तर पर मान्यता की सूची हजारों का आंकड़ा पार कर चुकी है। अचम्भे की बात यह है कि मुख्यमंत्री की प्रेस वार्ता हो या फिर किसी अन्य मंत्री की। समाचारों से सरोकार रखने वाले पत्रकारों की संख्या उंगली पर गिनी जा सकती है। गिने-चुने प्रतिष्ठित अखबारों में ही प्रेस विज्ञप्तियां भी प्रकाशित होती हैं। फिर हजारों की संख्या में पत्रकारों का मान्यता देना गले नहीं उतरता। 

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”मान्यता के पीछे का खेल कुछ और ही कहानी कह रहा है। मान्यता के सहारे न्यूनतम दर पर सरकारी आवास का आवंटन ऐसे पत्रकारों का मुख्य ध्येय है। उसके बाद उसे किराए पर उठाकर प्रत्येक माह मोटी कमाई की जा रही है। इस बात की जानकारी सूचना विभाग काफी पहले शासन को दे चुका है। आश्चर्य तब होता है जब प्रति माह किराए के रूप में मोटी रकम कमाने वाले पत्रकार सरकार का मामूली किराया तक चुकाने में आना-कानी करने लगते हैं। कुछ तो ऐसे तथाकथित पत्रकार हैं जिन्होंने लाखों का किराया नहीं दिया। दबाव पड़ा तो दूसरा सरकारी आवास आवंटन करवा लिया, जबकि राज्य सम्पत्ति निदेशालय की आवास आवंटन नियमावली में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि यदि कोई पत्रकार किराये का बकायदार हो, तो उसका आवंटन तत्काल प्रभाव से निरस्त करने के साथ ही नियमों के तहत कानूनी कार्यवाही कर उससे किराया वसूला जायेगा। गौरतलब है कि प्रथम बार आवंटन एक वर्ष के लिए किया जाता है। उसके पश्चात एक-एक वर्ष के लिए नवीनीकरण करते हुए दो वर्ष तक आवंटन किया जायेगा। 

”नियमानुसार नवीनीकरण पर तभी विचार किया जायेगा जब पूर्व आवंटन अवधि में आवंटी ने आवंटन शर्तों का किसी प्रकार से उल्लंघन न किया हो। किन्ही विशेष परिस्थितियों में राज्य सरकार द्वारा नवीनीकरण अवधि तीन वर्ष के पश्चात भी बढ़ायी जा सकती है, जो तीन वर्ष के पश्चात दो वर्ष से अधिक नहीं होगी। अत्यंत विशिष्ट परिस्थितियों में 5 वर्ष के बाद मुख्यमंत्री के अनुमोदन से ही आवंटन अवधि बढ़ायी जा सकती है। यह सुविधा पाने के लिए सर्वाधिक जरूरी है कि आवंटी समय से किराए का भुगतान करता रहे। इतनी सख्त नियमावली के बावजूद पिछले दो दशकों से जो तस्वीर उभरकर सामने आ रही है वह बेहद चैंकाने वाली है। कुछ पत्रकार ऐसे हैं जिनका कई वर्षों से किराया जमा नहीं किया गया है, इसके बावजूद न तो उनका आवंटन रद्द किया गया और न ही बकाया किराया वसूल करने में विभाग दिलचस्पी दिखा रहा है। 

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”कुछ तो ऐसे हैं जिन्होंने किराए की भारी-भरकम राशि जमा करने के बजाए अपने सियासी और नौकरशाहों से सम्पर्कों का फायदा उठाते हुए न सिर्फ लाखों का किराया माफ करवा लिया बल्कि अपग्रेडेड मकान का आवंटन करवा कर सरकारी नियमावली को भी चुनौती देते चले आ रहे हैं। इस काम में सूचना विभाग की भूमिका प्रमुख है। इसी विभाग के सहारे उन कथित पत्रकारों की मान्यता के लिए संस्तुति की जाती है जिनका समाचारों से भले ही सम्बन्ध न रहा हो, लेकिन अधिकारियों के लिए दलाली ने उन्हें पत्रकार जरूर प्रमाणित कर रखा है। जहां तक राज्य सम्पत्ति निदेशालय की जिम्मेदारी की बात है तो वह अपने उच्चाधिकारियों के आदेशों के आगे विवश है। राज्य सम्पत्ति निदेशालय के अधिकारियों की मानें तो किराया जमा न करने वाले तथाकथित पत्रकारों की जानकारी वह कई बार शासन को दे चुका है लेकिन शासन में बैठे अधिकारी कथित पत्रकारों की इसी कमी का फायदा उठाते हुए अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं। विडम्बना यह है कि सब कुछ जानते हुए भी जिम्मेदार अधिकारियों से लेकर स्वयं मुख्यमंत्री की खामोशी बेहद चैंकाने वाली है। 

”अभी हाल ही में सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के माध्यम से राज्य सम्पत्ति निदेशालय से किराए के रूप में 20 हजार रूपयों से अधिक बकायेदार पत्रकारों की सूची मांगी गयी। राज्य सम्पत्ति विभाग के जन सूचनाधिकारी/संयुक्त निदेशक पवन कुमार गंगवार ने जो सूचना उपलब्ध करवायी है वह बेहद चैंकाने वाली है। तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों की श्रेणी में शुमार तीन दर्जन से भी ज्यादा पत्रकार ऐसे हैं जिनका किराया 25 हजार से लेकर सवा लाख तक बकाया है। कुछ तो ऐसे हैं जो पूर्व में आवंटित मकानों का लाखों का किराया न जमा करने के बाद भी नए मकान में तो अध्यासित हैं, साथ ही वर्तमान में भी किराया जमा नहीं कर रहे हैं। इसके बावजूद राज्य सम्पत्ति निदेशालय नियमावली के तहत उनसे मकान खाली करवाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। 

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”बताया जाता है कि जब-जब ऐसे बकायदारों को नोटिस भेजी जाती है तब-तब एक ऐसे आई.ए.एस. अधिकारी का फोन राज्य सम्पत्ति निदेशालय में घनघनाने लगता है जो वर्तमान में मीडिया की गरिमा को तार-तार करने वाले तथाकथित पत्रकारों का मसीहा बना हुआ है। इस अधिकारी के केबिन में हर वक्त ऐसे ही पत्रकारों का जमावड़ा लगा रहता है जो दिन-भर उसकी स्तुति करते रहते हैं। एवज में कथित पत्रकारों को मिलता है शाही संरक्षण। कुछ वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि इस अधिकारी के चमचों की फौज में शीर्ष पर हेमंत तिवारी नाम का एक ऐसा तथाकथित पत्रकार शामिल है जिसका लाखों का किराया पूर्व के मकान का माफ किया जा चुका है और वर्तमान में भी इस पत्रकार पर 66 हजार 880 रूपया किराये रूप में बकाया है। हेमंत तिवारी को वी.आई.पी. कालोनी कहे जाने वाले बटलर पैलेस में भवन संख्या बी-7 आवंटित है। वर्तमान बकाए का खुलासा आर.टी.आई. एक्ट के सहारे राज्य सम्पत्ति निदेशालय ने हाल ही में 4 अगस्त 2015 को उपलब्ध करवाया है। निदेशालय के जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि इस सम्बन्ध में हेमंत तिवारी को तो नोटिस भेजी ही गयी थी साथ ही शासन को भी अवगत कराया जा चुका है। 

”निदेशालय के एक कर्मचारी ने नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर बताया कि हेमंत तिवारी से किराए की रिकवरी न करने के लिए उच्च स्तर से रोक लगायी गयी है। जाहिर है हेमंत तिवारी एक बार फिर से राज्य सम्पत्ति निदेशालय को किराए न जमा करके लाखों का चूना लगाने की फिराक में हैं। गौरतलब है कि हेमंत तिवारी को बी-7, बटलर पैलेस आवंटित होने से पूर्व इसी काॅलोनी के भवन संख्या में सी-76 आवंटित किया गया था। राज्य सम्पत्ति निदेशालय ने इस भवन को काफी समय तक अपने रिकाॅर्ड में अनाधिकृत रूप से कब्जे के तौर पर घोषित कर रखा है। अवैध कब्जा करने वाले का नाम भी हेमंत तिवारी के रूप में रजिस्टर में अंकित था। इस सम्बन्ध में विभाग का कहना था कि चूंकि हेमंत तिवारी 1 नवम्बर 2001 से राजधानी लखनऊ से बाहर थे लिहाजा उनका आवंटन रद्द कर दिया गया था। चूंकि उन्होंने मकान का कब्जा निदेशालय को नहीं दिया था लिहाजा निदेशालय ने हेमंत तिवारी को उक्त मकान का अवैध कब्जेदार घोषित कर रखा था। 

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”कहा जाता है कि इस बीच विभाग की ओर से हेमंत तिवारी को कई नोटिसें भेजी गयीं लेकिन किसी का भी जवाब उन्होंने नहीं दिया और न ही उन्होंने कब्जा ही छोड़ा। ज्ञात हो मान्यता प्राप्त पत्रकारों को सरकारी आवास तभी आवंटित हो सकता है जब वे राजधानी लखनऊ में कार्यरत होने के साथ ही उनके अखबार का ब्यूरो कार्यालय भी लखनऊ में हो। हेमंत तिवारी इन नियमों में से किसी नियमों पर खरे नहीं उतरते थे इसके बावजूद सी-76, बटलर पैलेस उनके कब्जे में रहा। इधर हेमंत तिवारी की दबंगई से क्षुब्ध होकर राज्य सम्पत्ति निदेशालय के अधिकारियों के निर्देश पर विहित प्राधिकारी ने उक्त अवधि का बकाया किराया चार लाख, पांच हजार, आठ सौ, बाइस रूपए (04,05,822.00) के लिए वर्ष 2003 में उनके विरूद्ध बेदखली का आदेश भी पारित किया था। निदेशालय ने यह भी जानकारी दी कि इससे पूर्व वे पूर्ण पत्रकार के रूप में किसी अखबार में कार्यरत भी नहीं थे। 16 अगस्त 2004 को सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशालय ने इन्हें पूर्णकालिक पत्रकार के रूप में मान्यता दी थी। अब प्रश्न यह उठता है कि जब हेमंत तिवारी मान्यता प्राप्त पत्रकार थे ही नहीं तो इन्हें सरकारी आवास आवंटन नियमावली के खिलाफ मकान का आवंटन कैसे कर दिया गया ? क्या सम्बन्धित विभाग के जिम्मेदार अधिकारी किसी के दबाव में तथाकथित भ्रष्ट पत्रकार को संरक्षण देते रहे ? 

”ज्ञात हो जिस वक्त निदेशालय ने हेमंत तिवारी के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी उस वक्त भी सूबे में सपा की सरकार थी। चैंकाने वाला पहलू यह है कि लगभग पांच लाख रूपए किराये के रूप में जमा न करने के बाद भी हेमंत तिवारी को पहले से अच्छा मकान बी-7, बटलर पैलेस आवंटित कर दिया गया। गौरतलब है कि सम्बन्धित विभाग ऐसे पत्रकारों को दूसरा मकान आवंटित नहीं करता है जिन्होंने नियमावली का उल्लंघन किया हो। इधर हेमंत तिवारी ने अपने राजनैतिक और नौकरशाही सम्पर्कों का फायदा उठाते हुए बिना बकाया जमा किए दूसरा मकान आवंटित करवा कर यह दिखा दिया कि नियम-कानून उसके लिए कोई मायने नहीं रखते। वर्तमान में 66 हजार से ज्यादा बकाये के बारे में भी राज्य सम्पत्ति निदेशालय के अधिकारी और कर्मचारी चुप्पी साधे हुए हैं। एक कर्मचारी का कहना है कि उच्च स्तर से हेमंत तिवारी को किराए के लिए परेशान न किए जाने का मौखिक निर्देश निदेशालय को दिया जा चुका है। हालांकि इस कर्मचारी ने उच्च स्तर से मौखिक आदेश देने वाले अधिकारी का नाम नहीं बताया है लेकिन कहा जाता है कि यह आदेश देने वाले कोई और नहीं बल्कि प्रमुख सचिव सूचना नवनीत सहगल हैं। यह आरोप कहां तक सत्य है ? यह तो जांच का विषय हो सकता है लेकिन तथाकथित पत्रकार हेमंत तिवारी से किराया वसूलने की हिम्मत न तो निदेशालय के अधिकारियों में नजर आ रही है और न ही किसी उच्च अधिकारी में। 

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”गौरतलब है कि राजधानी लखनऊ के एक वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर भी हेमंत तिवारी के कथित भ्रष्टाचार का खुलासा सोशल साइट (फेसबुक) में काफी समय से करते आ रहे हैं। कुमार सौवीर ने सोशल साइट पर अपनी पोस्ट में हेमंत तिवारी को दलाल, ठग और कुकर्मी तक लिखा है। कुमार सौवीर अपनी पोस्ट में लिखते हैं कि हेमंत तिवारी का ताजा किस्सा देहरादून की एक महिला के साथ दुराचार और ठगी से भी जुड़ा हुआ है। कुमार सौवीर लिखते हैं कि हेमंत तिवारी का असली धंधा गिरोहबाजों और अपराधियों को शरण देना ही है। हेमंत और उसके शातिर अपराधी और उसके गिरोह के लोग यूपी समेत पूरे देश और भूटान, नेपाल तक पसरे हुए हैं। कुमार सौवीर के अनुसार हेमंत तिवारी ऐसी गिरोहबाजो को संगठित करने के लिए पहले बाकायदा चुन-चुन कर शातिर अपराधियों को चिंहित करते हैं। इसके बाद ऐसे अपराधियों को सुरक्षित शरण देने की साजिश के तहत उसे पत्रकार अथवा वरिष्ठ पत्रकार की मान्यता दिलवा दे देते हैं। यूपी प्रेस मान्यताप्राप्त पत्रकार समिति के अध्यक्ष होने के प्रभाव के चलते यह कर पाना हेमंत तिवारी के दाहिने हाथ का काम होता है। 

”कुमार सौवीर का कहना है कि रतनलाल शर्मा नाम के एक ठग को भी हेमंत तिवारी ने मान्यता दिलवायी है। हेमंत तिवारी की कृपा से मान्यताप्राप्त कथित वरिष्ठ पत्रकार रतनलाल शर्मा ने देहरादून के स्कूल की संचालिका से लखनऊ स्थित योजना भवन के पास एक अपार्टमेंट में दुष्कर्म किया और वीडियो बना कर लाखो की वसूली भी की। दुष्कर्म के दौरान कुछ असलहाधारी लोग भी मौजूद थे। हालांकि कथित ठगी, धोखाधड़ी और बलात्कार की शिकार महिला ने हेमंत तिवारी का नाम नहीं लिया है लेकिन चर्चा यही है कि श्री तिवारी अपने मित्र रतनलाल शर्मा के साथ ही थे। हालांकि यह आरोप जांच का विषय हो सकते हैं लेकिन ठगी और बलात्कार के आरोपी रतनलाल शर्मा से उनकी नजदीकियां उन्हें संदेह के दायरे में लाने के लिए काफी हैं। 

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”एक अन्य कथित पत्रकार हैं सुरेश कृष्ण यादव। ये अपने आपको उद्यमी राजधानी टाइम्स का पत्रकार कहलाते हैं। यह दीगर बात है कि इस नाम का अखबार किसी ने न देखा हो लेकिन सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशालय ने इन्हें मान्यता दे रखी है। इसी आधार पर इन्हें सरकार की वी.आई.पी. कालोनी कहे जाने वाले बटलर पैलेस में सी-22 नम्बर का मकान आवंटित किया गया है। इन पर 77 हजार 490 रूपया किराए के रूप में राज्य सम्पत्ति निदेशालय का बकाया है। निदेशालय इन्हें भी किराया जमा करने के लिए तमाम नोटिसें भेज चुका है लेकिन न तो किराया जमा किया गया और न ही इनसे मकान ही खाली करवाया गया। इन पर आरोप है कि इन्होंने गलत हलफनामा देकर आवास आवंटन करवाया है। यह बात राज्य सम्पत्ति निदेशालय भी भलीभांति जानता है लेकिन अधिकारियों की चापलूसी करने वालों के खिलाफ निदेशालय कार्यवाही करने से हिचक रहा है। इसी तरह से पी.टी.आई. की वरिष्ठ पत्रकार संगीता के सरकारी आवास का 24 हजार 866 रूपया किराया बकाया है। निदेशालय अनेकों बार नोटिस दे चुका है लेकिन किराया जमा नहीं किया गया। बताया जाता है कि निदेशालय की ओर से दबाव पड़ने की दशा में इन्होंने भी आला अधिकारियों के सहारे अपना स्वार्थ सिद्ध किया है। उद्यमी राजधानी टाइम्स से ही एक अन्य कथित पत्रकार प्रतिभा सिंह को भी सी-30, बटलर पैलेस का मकान पत्रकार की हैसियत से आवंटित है। इन्हें भी पत्रकार साबित करने के लिए सूचना विभाग के अधिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। राज्य सम्पत्ति निदेशालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रतिभा सिंह पर 1 लाख 10 हजार 614 रूपए किराए के रूप में बकाया हैं। विभाग आज तक किराए की रकम वसूल नहीं कर पाया है। 

”राज्य सम्पत्ति निदेशालय को चूना लगाने वालों में कई वरिष्ठ पत्रकार ऐसे भी हैं जिनका कद तो ऊंचा है लेकिन उनकी नीयत उनके कद से कहीं ज्यादा खराब है। खबरिया चैनल के कई पत्रकार ऐसे हैं जिन्होंने नियम-विरूद्ध तरीके से मकान आवंटित करवाने के लिए फर्जी हलफनामों का सहारा लिया। हालांकि निदेशालय की ओर से ऐसे पत्रकारों को अनेकों बार नोटिस भेजी जा चुकी हैं इसके बावजूद तथाकथित पत्रकारों ने न तो किराया जमा किया और न ही मकान खाली किया। कुछ वरिष्ठ पत्रकार ऐसे हैं जिनकी विभाग में ही बल्कि नौकरशाहों के बीच तूती बोलती है। अलबत्ता निदेशालय की ओर से ऐसे पत्रकारों केा महज मौखिक तौर पर किराया जमा करने का आग्रह किया जाता है। 

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”उर्दू दैनिक ‘जायजा’ के नावेद शिकोह को डालीबाग कालोनी में मकान संख्या 1/11 आवंटित है। इन पर 24 हजार 542 रूपए किराए के रूप में बकाया है। इसी तरह से स्वतंत्र भारत समाचार-पत्र के पत्रकार हेमेन्द्र तोमर को डालीबाग में मकान संख्या 1/16 आवंटित है। इन्होंने भी 23 हजार 992 रूपए किराए के रूप में जमा नहीं किए हैं। कहा जाता है कि ये न तो निदेशालय से जारी की गयी नोटिसों का जवाब देते हैं और न ही निदेशालय इनसे मकान ही खाली करवा पा रहा है। देशबंधु समाचार पत्र के अनिल त्रिपाठी पर 33 हजार 603 रूपया किराए के रूप में बकाया है। इन्हें डालीबाग में मकान संख्या 2/7 आवंटित किया गया है। जनसत्ता एक्सपे्रस की एक संवाददाता को भी डालीबाग कालोनी में मकान आवंटित है। इन्होंने कई वर्षों से मकान का किराया जमा नहीं किया है इसके बावजूद ये सरकारी मकान में अध्यासित हैं। इन पर हजारों रूपया किराए के रूप में बकाया है। 

”प्रमुख सूचना के पद पर विराजमान आई.ए.एस. अधिकारी नवनीत सहगल के बेहद करीबी समझे जाने वाले कथित पत्रकार जोरैर अहमद आजमी सूचना विभाग में मान्यता प्राप्त पत्रकारों की सूची में शामिल हैं। इसी आधार पर इन्हें भी डालीबाग कालोनी में मकान संख्या 4/3 आवंटित हैं। पिछले कई वर्षों से इन्होंने भी राज्य सम्पत्ति निदेशालय में किराया जमा नहीं किया है। वर्तमान में किराए के रूप में इनकी बकाया राशि 64 हजार 373 हो चुकी है। जानकारों का कहना है कि आई.ए.एस. अधिकारी के बेहद करीबी इस पत्रकार के खिलाफ राज्य सम्पत्ति निदेशालय कार्यवाही करने में हिचकिचा रहा है। सूत्रों को आधार मानें तो श्री सहगल के मौखिक आदेश पर ही राज्य सम्पत्ति निदेशालय अब तक चुप्पी साधकर बैठा है। श्री सहगल से जोरैर अहमद आजमी की निकटता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि आजमी कई बार सोशल साइट पर श्री सहगल तो पृथ्वी पर अपना दूसरा खुदा लिखते रहे हैं। इनके करीबी पत्रकार मित्रों का तो यहां तक कहना है कि श्री सहगल ने अंधभक्ति के एवज में आजमी के लिए प्रिंटिंग मशीन तक मुहैया करायी है। श्री सहगल से इनकी निकटता ने इन्हें टूटी स्कूटर से लग्जरी कार तक पहुंचा दिया है। इनका स्पष्टवक्ता नाम से एक अखबार प्रकाशित होता है। आम जनता के बीच भले ही यह अखबार नजर न आता हो लेकिन सरकार की स्तुति करने वाला यह अखबार अधिकारियों और मंत्रियों की मेज तक जरूर पहुंच जाता है। 

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” ‘विश्व भारत’ समाचार-पत्र के संवाददाता दिनेश शर्मा को डालीबाग में मकान संख्या 6/8 आवंटित है। इन पर भी 22 हजार से ज्यादा का किराया बकाया है। पिछले लगभग एक वर्ष से न तो इन्होंने किराया जमा किया है और न ही राज्य सम्पत्ति निदेशालय इनसे मकान ही खाली करवा पा रहा है। यूनाईटेड भारत के संवाददाता एस.पी. सिंह भी बकायेदारों की सूची में शामिल हैं। इन पर भी 22 हजार से ज्यादा का किराया बकाया है। इन्हें डालीबाग की सरकारी कालोनी में मकान संख्या 7/2 आवंटित है। हिन्दुस्तान टाइम्स के प्रमुख संवाददाता मनीष चन्द्र पाण्डेय को भी अपने बकायेदार पत्रकार साथियों का रोग लग गया। इन्हें डालीबाग में मकान संख्या 8/15 आवंटित है। इन्होंने भी पिछले लगभग दो वर्षों से किराया जमा नहीं किया है। इन पर 28 हजार 473 रूपया किराए के रूप में बकाया है। राज्य सम्पत्ति विभाग इनसे भी किराए की वसूली नहीं कर पा रहा है। फोटो न्यूज एजेंसी के तथाकथित पत्रकार के.सी. बिश्नोई को डालीबाग कालोनी में मकान संख्या 9/5 आवंटित है। इन पर 25 हजार से भी ज्यादा का किराया बकाया है। फिलवक्त ये किस मीडिया से जुडे़ हुए हैं ? इसकी जानकारी किसी को नहीं है। विभाग ने न तो जांच करवायी और न ही नियमावली का उल्लंघन करने के एवज में इनसे मकान ही खाली करवाया। एशिया डिफेंस न्यूज की संवाददाता नायला किदवई को पत्रकार की हैसियत से पार्क रोड स्थित सरकारी कालोनी में मकान संख्या ए-3 आवंटित है। 

”इनका समाचार-पत्र महज फाइलों तक सीमित है। इसके बावजूद इन्होंने फर्जी हलफनामा देकर सरकारी मकान आवंटित करवाने में सफलता हासिल कर ली। इन पर भी राज्य सम्पत्ति का 27 हजार से भी ज्यादा का किराया बकाया है। ये उत्तर-प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति की सदस्य भी हैं। यू.एन.आई. के वरिष्ठ संवाददाता जय प्रकाश त्यागी को पार्क रोड स्थित सरकारी आवास संख्या ए-12 आवंटित है। आवास आवंटन की नियमावली तो यही कहती है कि यदि आवंटी समय से किराया जमा नहीं करता है तो उसका आवास निरस्त कर दिया जायेगा लेकिन जय प्रकाश त्यागी के मामले में भी राज्य सम्पत्ति निदेशालय चुप्पी साधकर बैठा है। या यूं कह लीजिए निदेशालय अपने आला अधिकारियों को नाराज कर अपने स्तर से फैसला नहीं ले सकता। क्योंकि कहा यही जा रहा है कि श्री त्यागी के मामले में भी उच्च स्तर से हस्तक्षेप करने की इजाजत विभाग को नहीं दी गयी है। श्री त्यागी पर 34 हजार 466 रूपया किराया के रूप में बकाया है। विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि श्री त्यागी ने पिछले लगभग दो वर्षों से किराया जमा नहीं किया है। इस दौरान कई बार नोटिस भी जारी की जा चुकी है। पंजाब केसरी के प्रमुख संवाददाता अविनाश चन्द्र मिश्रा को सरकारी आवास संख्या सी-6,पार्क रोड़ आवंटित है। इन्होंने भी पिछले दो वर्षों से मकान का किराया जमा नहीं किया है। इन पर किराए के रूप में 32 हजार से भी ज्यादा का बकाया है। यही हाल अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित समाचार-पत्र अमर उजाला के प्रमुख संवाददाता अजीत कुमार खरे का भी है। उन्हें सी-15, पार्क रोड का आवास आवंटित है। इन पर 35 हजार 280 रूपया किराए के रूप में बाकी है। 

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”राष्ट्रीय सहारा के वरिष्ठ पत्रकार देवकी नन्दन मिश्रा पर भी 22 हजार से ज्यादा किराए के रूप में बकाया है। इन्हें अलीगंज का सरकारी आवास संख्या एम.आई.जी. 49 आवंटित है। कथित पत्रकार मिथिलेश कुमारी को गोमती नगर में बने सरकारी आवास संख्या बी-106 आवंटित है। इनका कौन सा अखबार प्रकाशित होता है? इसकी जानकारी सूचना विभाग के पास मौजूद नहीं है इसके बावजूद इन्हें सरकारी आवास आवंटित किया गया है और वह भी मान्यता प्रदान करने के साथ ही। जाहिर है कि मिथिलेश कुमारी को मान्यता देने के मामले में भी नियमों की अनदेखी की गयी है। मिथिलेश कुमारी पर 21 हजार 825 रूपया किराए के रूप में बकाया है।  दैनिक समाचार-पत्र ‘आज’ के वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश सिंह के नाम से भी सरकारी आवास संाख्या 405, लाप्लास आवंटित है। इन्होंने पिछले कई वर्षों से मकान का किराया जमा नहीं किया है। इसके बावजूद सरकारी आवास पर इनका कब्जा बना हुआ है। श्री सिंह पर राज्य सम्पत्ति निदेशालय का 54 हजार 487 रूपया किराए के रूप में बकाया है। सम्बन्धित विभाग पिछले कई वर्षों से किराए की मांग करता आ रहा है। यहां तक कि जिम्मेदार आला अधिकारियों को भी विभाग सूचित कर चुका है इसके बावजूद न तो किराया जमा हुआ और न ही मकान खाली किया गया। वरिष्ठ पत्रकार के रूप में पहचान रखने वाले किशोर निगम पर सरकारी आवास का 35 हजार 787 रूपया किराए के रूप में बकाया है। इन्हें लाप्लास कॉलोनी में मकान संख्या 504 आवंटित है। 

”सहारा समय के आलोक पाण्डेय पर किराए के रूप में 85 हजार से भी ज्यादा का बकाया है। राज्य सम्पत्ति निदेशालय अपने स्तर से इन्हें दर्जनों नोटिसें भेज चुका है। इसके बावजूद न तो कब्जा हटा और न ही किराए की वसूली ही हो सकी। लाप्लास कालोनी का आवास संख्या 803, सहारा समय के संवाददाता आलोक पाण्डेय के नाम पर आवंटित है। मोहसिन हैदर रिजवी को सूचना विभाग ने वरिष्ठ पत्रकार का तमगा दे रखा है। इसी आधार पर इन्हें लाप्लास कालोनी में मकान संख्या 901 आवंटित है। इन पर 46 हजार से भी ज्यादा का बकाया है। इसके बावजूद ये सरकारी कालोनी में वर्षों से अध्यासित हैं। सूचना विभाग की सूची में विशेष संवाददाता के रूप में अंकित राजबहादुर सिंह को लाप्लास कालोनी का बंगला संख्या 1202 आवंटित है। इन पर राज्य सम्पत्ति निदेशालय का किराए के रूप में 31 हजार से भी ज्यादा का बकाया है। वरिष्ठ पत्रकारों की श्रेणी में गिने जाने वाले राजबहादुर सिंह के मकान का किराया वसूलने की हिम्मत कोई भी नहीं जुटा पा रहा। हिन्दुस्तान टाइम्म्स के वरिष्ठ फोटोग्राफर अशोक दत्ता भी बकायेदारों की सूची में शामिल हैं। समाचार-पत्र से मोटा वेतन पाने के बावजूद इन्होंने पिछले डेढ़ वर्षों से किराया जमा नहीं किया हैं। इन पर 21 हजार से भी ज्यादा का किराया बाकी है। पायनियर के पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस पर भी 21 हजार से ज्यादा का बकाया है। इन्हें राज्य सम्पत्ति विभाग की ओर से तालकटोरा में सरकारी आवास संख्या ई.डी.-30 आवंटित है। सिद्धार्थ कलहंस उत्तर-प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति में सचिव भी हैं। श्री कलहंस के उच्च स्तरीय सम्बन्धों के चलते राज्य सम्पत्ति निदेशालय खाना-पूर्ति के लिए नोटिस तो भेज देता है लेकिन किराए की वसूली नहीं कर पा रहा है। 

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”सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशालय ने अशोक राजपूत को स्वतंत्र पत्रकार की हैसियत से प्रेस मान्यता दे रखी है। इसी आधार पर इन्हें डायमण्ड डेरी की सरकारी कालोनी में मकान संख्या ई.डी. 31 आवंटित है। इन पर 52 हजार से भी ज्यादा का बकाया है। रेखा तनवीर ने प्रेस मान्यता हासिल कर मकान आवंटित करवाने के लिए अपना पद ‘उप सम्पादक’ बताया है। वर्तमान में वे किस अखबार में उप सम्पादक के पद पर कार्यरत हैं ? विभाग के पास इसकी जानकारी नहीं है। यही वजह है कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी हासिल करने के दौरान विभाग ने जो दस्तावेज उपलब्ध करवाए हैं उसमें अखबार का नाम अंकित नहीं किया गया है। फिलहाल रेखा तनवीर को गुलिस्तां कालोनी का मकान संख्या 12 आवंटित है। इन पर किराए के रूप में 25 हजार से भी ज्यादा का बकाया है। गुलिस्तां कालोनी के मकान संख्या 25 में राष्ट्रीय सहारा के विशेष संवाददाता मनमोहन का सरकारी आवास है। इस आवास में वे पिछले कई वर्षों से जमे हुए हैं। इन पर 29 हजार से भी ज्यादा की देनदारी किराए के रूप में है। 

”कई नोटिसें इन्हें दी जा चुकी हैं इसके बावजूद मनमोहन के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जा सकी। मकान आवंटन निरस्त करना तो दूर किराए की वसूली के लिए दबाव तक नहीं बनाया गया। वर्तमान में दैनिक जागरण के पत्रकार बसन्त श्रीवास्तव ने समस्त बकायेदारों को पीछे छोड़ दिया है। इन पर 1 लाख 43 हजार से भी ज्यादा का किराया बाकी है। हालांकि विभाग इन्हें दर्जनों नोटिसें मुहैया करा चुका है इसके बावजूद न तो मकान खाली कराया जा सका और न ही किराए की वसूली ही की जा सकी। इनके बारे में कहा जाता है कि ये सुरा के बेहद शौकीन हैं। दिन हो या फिर रात। इन्हें पीने का बहाना चाहिए। विभाग का कहना है कि बसंत श्रीवास्तव के पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। इनकी आर्थिक हालत खराब होने के कारण विभाग नर्मी बरत रहा है। विभाग के दावों में कितना दम है ? यह तो जांच का विषय हो सकता है लेकिन लाखों का किराया जमा न करने के बावजूद सरकारी मकान में जमे रहना, साफ बताता है कि इन्हें भी आला अधिकारियों का वरदहस्त प्राप्त है। बसंत श्रीवास्तव को ओ.सी.आर. बिल्डिंग के ए भवन में मकान संख्या 905 आवंटित है। निकट के लोगों का कहना है कि शाम होते ही यहां पर पीने वालों की महफिल जम जाती है। 

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”सुश्री कामना हजेला पर 22 हजार से भी ज्यादा का किराया बकाया है। सूचना विभाग की सूची में कामना हजेला का नाम संवाददाता के रूप में अंकित है। प्रेस मान्यता के आधार पर इन्हें ओ.सी.आर. बिल्डिंग में भवन संख्या ए-1006 आवंटित है। राज्य सम्पत्ति निदेशालय कहता है कि, इन्हें किराया जमा करने के लिए अनेकों बार नोटिसें जारी की जा चुकी हैं लेकिन इन्होंने न तो किराया जमा किया और न ही मकान खाली किया। सह राजनैतिक सम्पादक के रूप में अंकित ताविसी श्रीवास्तव को ओ.सी.आर. बिल्डिंग में आवास संख्या बी-206 आवंटित है। इन पर भी 33 हजार से भी ज्यादा का किराया बकाया है। 

”ये तो उन तथाकथित पत्रकारों की सूची है जिन पर 20 हजार से भी ज्यादा का किराया बकाया है जबकि राज्य स्तर और जिला स्तर पर 20 हजार तक के बकाया किरायेदारों की संख्या हजारों में है। राज्य सम्पत्ति निदेशालय ऐसे पत्रकारों को सैकड़ों बार नोटिसें भेज चुका है। कुछ के घरों में विभाग के अधिकारियों ने स्वयं छापेमारी की कार्यवाही की और मकान आवंटन निरस्त करने के साथ ही जल्द से जल्द मकान खाली करने का आदेश भी दिया लेकिन जब तक कार्यवाही अंतिम चरण पर पहुंचती इससे पहले ही अधिकारियों का फोन निदेशालय के जोश को ठण्डा करने के लिए पहुंच जाता है। विभाग चाहकर भी न तो किराए की वसूली कर पा रहा है और न ही वर्षों से अवैध रूप में जमे पत्रकारों से मकान ही खाली करवा पा रहा है। खास बात यह है कि इस बात की जानकारी राज्य सम्पत्ति विभाग अपने प्रमुख सचिव के माध्यम से मुख्यमंत्री तक भी पहुंचा चुका है। इसके बावजूद सपा सरकार का यूं मुंह चुराना कुछ अजीब नजर आता है और वह भी उस मुख्यमंत्री से जिसने सत्ता में आते ही भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान किया था। यह विडम्बना नहीं तो और क्या है ? मुख्यमंत्री अपने अधीनस्थ विभाग सूचना विभाग के माध्यम से जारी भ्रष्टाचार को समाप्त करने के बजाए पत्रकारों को खुश रखने की गरज से कार्रवाई करने से हिचक रहे हैं। सिर्फ उन्हीं पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है जो सरकार की स्तुति करने से इंकार करते चले आए हैं। 

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”फिलहाल इस मामले को तमाम दस्तावेजों के साथ जल्द ही जनहित याचिका के सहारे चुनौती दिए जाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है। जानकार लोगों का कहना है कि यदि न्यायालय ने इस मामले को गंभीरता से संज्ञान में लिया तो निश्चित तौर पर हजारों की संख्या में न सिर्फ मान्यता की आड़ में दलाली का धंधा करने वालों को चुनौती मिलेगी बल्कि हजारों की संख्या में सरकारी आवास भी खाली हो जायेंगे।

”मुख्यमंत्री कार्यालय भी असुरक्षित : लोकतंत्र के स्वयंभू ‘चतुर्थ स्तम्भ’ मीडिया को संविधान में भले ही कोई स्थान न मिला हो, लेकिन मीडिया जगत के तथाकथित मठाधीश खुलकर नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। ज्ञात हो किसी भी सरकारी भवन में सुरक्षा की दृष्टि से किसी भी निजी संस्थान अथवा समिति का कार्यालय नहीं खोला जा सकता। यदि बात सूबे के मुख्यमंत्री कार्यालय की सुरक्षा से जुड़ी हो तो मामला और अधिक संवेदनशील हो जाता है। यहां बात हो रही है ‘‘उत्तर-प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति’’ के कार्यालय की। इस समिति का सरकार से भले ही कोई सम्बन्ध न हो, लेकिन इसका कार्यालय लाल बहादुर शास्त्री भवन में खुला है। ज्ञात हो भवन में सूबे के मुख्यमंत्री का कार्यालय है। यहीं पर महत्वपूर्ण शीर्ष अधिकारियों के भी कार्यालय हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इस भवन में चैबीसों घण्टे विशिष्ट सुरक्षा कर्मी तैनात रहते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री की चाक-चैबन्द सुरक्षा में सेंध लगाने वाली समिति के कार्यालय पर शायद किसी की नजर नहीं पड़ी, अन्यथा मुख्यमंत्री की सुरक्षा में इतनी बड़ी लापरवाही को नजरअंदाज न किया जाता। मुख्यमंत्री की सुरक्षा में सबसे बड़ी सेंध लगाने का कार्य समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी ने किया है। हेमंत तिवारी ने अपने कथित मित्र रतनलाल शर्मा को पहले प्रेस मान्यता दिलवायी, उसके बाद उसका मुख्यमंत्री कार्यालय स्थित एनेक्सी मीडिया सेंटर में आना-जाना शुरू करवा दिया। गौरतलब है कि ये वही रतनलाल शर्मा हैं जिनके खिलाफ देहरादून की एक महिला ने बलात्कार और 20 लाख रूपए ठगे जाने का आरोप लगाया था। हेमंत तिवारी संग रतनलाल शर्मा की नजदीकी को लेकर पत्रकार खेमे में यह चर्चा आम है कि हेमंत तिवारी अपनी इसी दागी साथी के सहारे ठगी के धंधे को अंजाम देते आ रहे है। ये आरोप कहां तक सत्य हैं ? यह जांच का विषय हो सकता है लेकिन एक कथित बलात्कारी और ठग का मुख्यमंत्री कार्यालय में आना-जाना मुख्यमंत्री की सुरक्षा में सेंध लगा सकता है। समिति के वर्तमान अध्यक्ष ‘हेमंत तिवारी’ अपने विजिटिंग कार्ड और लेटरहेड पर समिति के कार्यालय का पता ‘मुख्यमंत्री कार्यालय’ का छपवाकर अधिकारियों से लेकर नेताओं तक रौब गांठते हैं। कुछ वरिष्ठ पत्रकारों की मानें तो सरकार की यह चूक किसी भी समय किसी बड़े हादसे को अंजाम दे सकती है।

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”जब मुख्यमंत्री कार्यालय को निजी संस्थाएं अपना कार्यालय बताने लगें तो निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो सकते हैं। जब तथाकथित पत्रकारों का संगठन गैर पत्रकारों को भी मुख्यमंत्री कार्यालय में बुलाकर चाय-नाश्ता करवाने लगे और वह भी सुरक्षा प्रहरियों पर दबाव बनाकर, तो यह मान लेना चाहिए कि मुख्यमंत्री की सुरक्षा में किसी भी वक्त सेंध लग सकती है। जब उत्तर-प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष की संस्तुति पर एक कथित बलात्कारी और ठग को प्रेस मान्यता मिल जाए और वह भी मुख्यमंत्री कार्यालय के एनेक्सी मीडिया सेंटर में बैठकी करने लगे तो निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री की सुरक्षा बरकरार नहीं रह सकती। मामला उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय लाल बहादुर शास्त्री भवन (सचिवालय, एनेक्सी भवन), लखनऊ की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है, और संदेह के दायरे में हैं उत्तर-प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी। यह जानकार आश्चर्य होगा इस पत्रकार समिति ने अपने कार्यालय का पता मुख्यमंत्री कार्यालय का दे रखा है। बकायदा लेटरहेड और समिति के अध्यक्ष से लेकर सदस्यों तक ने अपने विजिटिंग कार्ड में कार्यालय का पता सचिवालय एनेक्सी भवन का दे रखा है। 

”जहां तक समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी पर अविश्वास की बात है तो इन पर पत्रकारों का समूह भी उंगली उठाता आया है। हाल ही में घटित एक घटना ने इनकी विश्वसनीयता को और अधिक संदेह के दायरे में ला खड़ा किया है। ज्ञात हो रतनलाल शर्मा नाम का एक व्यक्ति देहरादून की एक महिला के साथ बलात्कार और लाखों रूपए ऐंठने के मामले में चर्चा में आया था। बकायदा हुसैनगंज थाने में नामजद प्राथमिकी भी दर्ज की जा चुकी है। पुलिस जांच कर रही है। जांच का परिणाम क्या होगा ? यह तो भविष्य के गर्त में है लेकिन जहां तक आरोपी रतनलाल शर्मा की बात है तो ये पत्रकार समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी के बेहद करीबी लोगों में शुमार है। बताया जाता है कि हेमंत तिवारी की कृपादृष्टि से ही इन्हें पत्रकार मान्यता प्राप्त हुई थी। रतनलाल शर्मा भी स्वयं यह बात कहते हैं कि वे एक मीडिया ग्रुप से जुड़े हुए हैं। ये ग्रुप हेमंत तिवारी का ही है। 

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”एक ठग और तथाकथित बलात्कारी से हेमंत के सम्बन्धों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। एक वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर सोशल साइट पर इस बात का उल्लेख कर चुके हैं कि ठग और बलात्कारी रतनलाल शर्मा के संग हेमंत तिवारी के गहरे सम्बन्ध हैं। कई पोस्टरों में रतनलाल शर्मा के साथ हेमंत तिवारी को भी देखा जा सकता है। अब प्रश्न यह उठता है कि एक तथाकथित अपराधी से सम्बन्ध रखने वाले हेमंत तिवारी को संदेह के दायरे में लाते हुए जांच क्यों नहीं की गयी? इन सबसे विरत महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उत्तर-प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति का कार्यालय मुख्यमंत्री कार्यालय में खोलने की अनुमति किसने दी? क्या नियमानुसार और सुरक्षा की दृष्टि से एक निजी समिति का कार्यालय मुख्यमंत्री कार्यालय में खोला जा सकता है? इसके पीछे दोष किसका है? समिति के अध्यक्षों का या फिर मुख्यमंत्री कार्यालय में पत्रकारों की समिति का कार्यालय खोले जाने की अनुमति देने वाले अधिकारियों का? वह अधिकारी कौन है जिसने यह अनुमति प्रदान की? खास बात यह है कि सूचना डायरी में भी पत्रकारों की इस समिति का कार्यालय मुख्यमंत्री कार्यालय दर्शाया गया है। 

”पत्रकारों के एक वर्ग का साफ कहना है कि मुख्यमंत्री कार्यालय की सुरक्षा का दायित्व संभालने वालों ने मुख्यमंत्री की सुरक्षा को नजरअंदाज करते हुए पत्रकार समिति के कार्यालय की अनुमति देकर मुख्यमंत्री की सुरक्षा में सेंध लगायी है। यदि मुख्यमंत्री की सुरक्षा में कभी सेंधमारी होती है तो निश्चित तौर पर इस पत्रकार समिति के कार्यालय के माध्यम से ही होगी।”

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