आगामी विधानसभा और पंचायत चुनावों से पहले हिंदुस्तान लखनऊ में बड़े फेरबदल की खबरें आ रही हैं। स्थानीय संपादक के के उपाध्याय ने लोकसभा की तरह पंचायत चुनावों और उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बेहतर टीम बनने की तैयारी कर ली है। सबसे ज्यादा बदलाव ब्यूरो लेवेल पर होने की चर्चा है।
तत्कालीन संपादक नवीन जोशी के समय में कई पेज बनाने वाले (आपरेटर) को सब एडिटर बनाकर ब्यूरो का प्रभार दे दिया था। इनमें रुद्राशिव मिश्रा को श्रावस्ती और राजीव शुक्ल को बलरामपुर भेजा गया था। उपाध्याय से काफी मिन्नतों के बाद रुद्राशिव बाद में सीतापुर आ गए। सीतापुर में तैनात आदर्श शुक्ल को सीतापुर फिर रायबरेली भेजा गया। बाद में राजीव शुक्ल ने सेटिंग कर लखनऊ में तैनाती पा ली।
इसी तरह 20 साल से अखबार में पन्ना लगाने वाले राकेश यादव को नीलमणि लाल चलते चलते बलरामपुर का प्रभारी बना गए॥ नवीन जोशी के समय हिंदुस्तान लखनऊ में नीलमणि लाल की हैसियत हमेशा नंबर दो की थी। बाद में नीलमणि लाल ने इस्तीफा दे दिया तो राकेश यादव रंजीव से सेट हो गए लेकिन चुनाव से पहले सीतापुर में रुद्र शिव और बलरामपुर में राकेश पर गज गिरना तय माना जा रहा है क्यों कि रुद्राशिव की छवि ढीले ढाले आदमी की बन चुकी है।
राकेश यादव और स्थानीय मार्केटिंग हेड अवनीश त्रिपाठी में छत्तीस का आंकड़ा शुरू से रहा है। लोक सभा चुनाव में दोनों के बीच काफी तनातनी भी देखने को मिली थी। इसके अलावा राकेश यादव प्रॉपर्टी डीलिंग का भी काम करते हैं और हफ्ते में तीन दिन लखनऊ में देखे जाते हैं। इसी वजह से नवीन जोशी ने अपने रहते कभी आपरेटर से सब एडिटर भी नहीं बनाया था लेकिन नवीन जोशी के जाते ही नीलमणि लाल को राकेश यादव में क्या ‘लाल’ नजर आया कि आपरेटर से सब एडिटर बनाकर बलरामपुर भेज दिया। चर्चा यह भी है कि जातीय समीकरण को भी देखा जा रहा है। ताकि स्थानीय कंडीडेट से ठीक ठाक डील कराई जा सके। लोक सभा चुनावों में भी सभी ब्यूरो को वसूली का ठेका दिया गया था।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित
rajeev
August 12, 2015 at 8:19 am
राकेश यादव जैसे लोगों ने ही मीडिया को बदनाम कर रखा है …ऐसे लोग पत्रकारिता का एबीसीडी भी नहीं जानते हैं…ऐसे लोगों को पत्रकार नही दलाल कहना चाहिए…वैसे इन महानुभाव के खिलाफ कम से कम 4-5 क्रिमिनल केस हैं …इसकी जांच हिंदुस्तान प्रबंधन को करनी चाहिए और बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए॥
mahesh pandey
August 12, 2015 at 1:56 pm
के के उपाध्याय बहुत ही मझे हुए संपादक हैं और राकेश यादव की असिलियत से वाकिफ हो गए हैं . नीलमणि लाल के कहने पर उनसे हो सकता है कोई गलती हो गयी हो।
anuj bajpai
August 12, 2015 at 1:59 pm
राजीव शुक्ल जी को बलरामपुर स्टाफ बहुत सम्मान देता था लेकिन राकेश यादव के आने पर सब हिंदुस्तान प्रबंधन से दुखी हैं…