नई दिल्ली। एनएनएस मीडिया के मालिक राजेश गुप्ता के अहंकार एवं कर्मचारी दमन चक्र के कारनामों का नया शिकार बन गया डिलीवरी मैन दलित कर्मचारी दयाराम। दयाराम जो कि संस्थान में 24 जून 2011 से कार्य कर रहा था, जून 2018 के अंतिम सप्ताह में किसी आवश्यक कार्य से तकरीबन पांच दिन के लिए भदोही, यूपी अपने गांव गया तो राजेश गुप्ता ने उसके जाते ही नया डिलीवरी मैन रख लिया।
वापस आने पर एक जुलाई को उसने काम किया और अगले दिन आफिस आने पर उससे राजेश गुप्ता एवं भुवन चन्द जोशी ने कहा कि दो चार दिन नए आदमी को काम सिखाओ उसके बाद देखते हैं।
काम सिखाने और वापस जाने के बाद न तो उसे रखा गया और न ही उसको किसी प्रकार का भुगतान किया गया। आज दयाराम और उसका परिवार दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। राजेश गुप्ता के द्वारा न तो उसका बकाया दिया जा रहा है और न ही उसे नौकरी पर रखा जा रहा है। इसके अलावा राजेश गुप्ता अपने आसपास कुछ आत्मगुग्ध पत्रकार भी रखता है जो उसके लिए दूसरे विभागों में लॉबिंग करते हैं, मीडिया का डर एवं रौब दिखा कर कार्रवाई न करने का दबाव बनाते हैं। वे आत्ममुग्ध पत्रकार यह भूल चुके हैं कि कल उनके साथ भी वही बर्ताव करेगा राजेश गुप्ता।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि राजेश गुप्ता ने तकरीबन सात वर्ष तक दलित कर्मचारी का शोषण किया और उसको न तो पक्का किया और न ही ईएसआईसी, पीएफ की सुविधा दी, और न ही विधि के अनुसार उसका भुगतान किया। मजीठिया की तो सुविधा भूल ही गया दयाराम। किसी भी श्रम कानून का डर ही नहीं है इनको।
उससे भी आश्चर्यजनक तथ्य है कि इसके यहां कार्यरत तकरीबन 99.9 प्रतिशत कर्मचारी तो इसके आतंक से कूछ बोलते ही नहीं है, क्योंकि लगातार शिकायत करने के बाद श्रम विभाग के कानों पर जू ही नहीं रेंगती। इनके द्वारा एक कर्मचारी ए.डी. जोश को निकाल दिया गया 2015 में और उसने हिम्मत की। करमपूरा में अपील कर दी। बाद में फंसने के डर से उसके साथ कोर्ट के बाहर शायद समझौता कर लिया गया। इनके यहां न्यूज कोआर्डीनेटर के पद पर कार्यरत चन्द्र प्रकाश पाण्डेय का केस भी तकरीबन दो वर्ष से चल रहा है।
दयाराम ने श्रम उपायुक्त, करमपूरा, अनुसचित जाति आयोग, भारत सरकार,एस ओबीसी आयोग दिल्ली सरकार एवं श्रम मंत्री दिल्ली सरकार के पास न्याय पाने के लिए अपनी कातर अपील की है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि सड़ांध मारती नौकरशाही, भाई भतीजावाद एवं जातिवाद में आकंठ डूबी दलीय राजनीति तथा अत्याधिक मुकदमों के बोझ तले दबी न्याय व्यवस्था और राजेश गुप्ता और उसके चरण चंपुओं के आगे दलित दयाराम को न्याय मिल पाएगा?
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