सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी, पूरी सैलरी के हिसाब से पेंशन देने के आदेश की पुष्टि
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को निजी कंपनियों में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के लिए पहले से ज्यादा पेंशन का रास्ता साफ कर दिया है। इससे पेंशन में कई गुना की बढ़ोतरी हो जाएगी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कर्मचारी भविष्य निधि संस्था (ईपीएफओ) द्वारा केरल उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष याचिका को खारिज कर दिया है। इससे देश भर के निजी क्षेत्रों के करोड़ों कर्मचारियों को इस मंहगाई के दौर में राहत मिलेगी। इससे श्रमजीवी पत्रकार भी लाभान्वित होंगे।
केरल उच्च न्यायालय ने ईपीएफओ से कहा था कि वह सभी सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उनकी पूरी तनख्वाह के आधार पर पेंशन दे ना कि अंशदान के आधार पर तय किया जाए जोकि प्रतिमाह अधिकतम 15 हजार रूपये निर्धारित है। अपने आदेश में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हमें विशेष याचिका में कोई योग्यता नहीं मिली। इसी वजह से इसे खारिज किया जाता है।
उच्चतम न्यायालय ने प्राइवेट सेक्टर के सभी कर्मचारियों के पेंशन में भारी बढ़त का रास्ता साफ कर दिया है। इससे निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के पेंशन में कई गुना बढ़त हो जाएगी।कोर्ट ने इस मामले में ईपीएफओ की याचिका को खारिज करते हुए केरल हाई कोर्ट फैसले को बरकरार रखा है। केरल हाईकोर्ट ने कर्मचारियों को उनकी पूरी सैलरी के हिसाब से पेंशन देने का आदेश दिया गया था। फिलहाल ईपीएफओ द्वारा 15,000 रुपये के बेसिक वेतन की सीमा के आधार पर पेंशन की गणना की जाती है।
गौरतलब है कि कर्मचारियों के बेसिक वेतन का 12 फीसदी हिस्सा पीएफ में जाता है और 12 फीसदी उसके नाम से नियोक्ता जमा करता है।कंपनी की 12 फीसदी हिस्सेदारी में 8.33 फीसदा हिस्सा पेंशन फंड में जाता है और बाकी 3.66 पीएफ में। उच्चतम न्यायालय ने अब यह रास्ता साफ कर दिया है कि निजी कर्मचारियों के पेंशन की गणना पूरे वेतन के आधार पर हो। इससे कर्मचारियों की पेंशन कई गुना बढ़ जाएगी।
ईपीएफ या ईपीएस एक पेंशन स्कीम है़, जिसके तहत प्राइवेट सेक्टर के संगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की नौकरी के दौरान बेसिक सेलरी के 8.33 फीसदी (1250 रुपए मासिक से ज्यादा नहीं) के बराबर पैसा इस स्कीम में जमा होता है। इसके एवज में, यह कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद निश्चित मासिक पेंशन प्रदान करती है।
भारत सरकार का कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ही सभी कर्मचारियों के ईपीएफ और पेंशन खाते को मैनेज करता है। हर ऐसा संस्थान जहां पर 20 या इससे ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं, उसे ईपीएफ में हिस्सा लेना होता है। ईपीएस इस योजना के साथ जुड़कर चलती है इसलिए ईपीएफ स्कीम का मेंबर बनने वाला हर शख्स पेंशन स्कीम का मेंबर अपने आप बन जाता है।
ईपीएफ या ईपीएस में, ऐसे कर्मचारियों का अंशदान जमा होना अनिवार्य है, जिनका बेसिक वेतन + डीए 15000 रुपये या इससे अधिक होता है। जो कर्मचारी इससे अधिक बेसिक सैलरी पाते हैं, उनके पास ईपीएफ और EPS को अपनाने या छोड़ने का विकल्प होता है।आपके पीएफ खाते में नियोक्ता जो पैसा डालता है उसका एक हिस्सा पेंशन स्कीम के लिए ही इस्तेमाल होता है, जबकि आपकी सैलरी से जो पैसा कटता है वो पूरा का पूरा ईपीएफ स्कीम में चला जाता है।
तो अगर पूरी सैलरी के हिसाब से पेंशन बनी तो कर्मचारियों का पेंशन कई गुना बढ़ जाएगा। इसमें नुकसान बस इतना है कि पेंशन तो बढ़ेगा, लेकिन पेंशन फंड की निधि कम हो जाएगी, क्योंकि अतिरिक्त योगदान ईपीएफ में जाने की जगह ईपीएस में जाएगा। केंद्र सरकार ने ईपीएस की शुरुआत 1995 में की थी। इसके तहत नियोक्ता कर्मचारी के 6,500 तक के मूल वेतन का 8.33 फीसदी हिस्सा (अधिकतम 541 रुपये प्रति महीना) पेंशन स्कीम में डालने का नियम था।लेकिन 1 सितंबर, 2014 को ईपीएफओ ने इसमें बदलाव करते हुए 15,000 तक के मूल वेतन का 8.33 फीसदी (अधिकतम 1,250 रुपये प्रति महीना) कर दिया. सरकारी नौकरी वाले कर्मचारियों के लिए पेंशन और पीएफ की व्यवस्था जीपीएफ के तहत होती है।
मार्च 1996 में सरकार ने इस कानून में संशोधन किया। जिसके अनुसार यदि कर्मचारी अपनी पूरी तनख्वाह के हिसाब से योजना में योगदान देना चाहे और नियोक्ता भी इसके लिए राजी हो तो उसे पेंशन भी उसी हिसाब से मिलनी चाहिए। सितंबर 2014 में ईपीएफओ ने एक बार फिर से नियम में बदलाव किया। जिसके बाद अधिकतम 15 हजार रुपये के 8.33 फीसदी के योगदान को मंजूरी मिल गई।हालांकि इसके साथ यह नियम भी लाया गया है कि यदि कोई कर्मचारी अपनी पूरी तनख्वाह पर पेंशन लेना चाहता है तो उसकी पेंशन वाली तनख्वाह पांच साल के हिसाब से तय की जाएगी। इससे पहले यह पिछले साल की औसत तनख्वाह पर तय होता था। जिसके कारण कई कर्मचारियों की तनख्वाह कम हो गई थी। फिर मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। जिसके बाद केरल उच्च न्यायालय ने 1 सितंबर 2014 को हुए बदलाव को रद्द करके पुरानी प्रणाली को बहाल कर दिया था।
अक्टूबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में सुनाया था फैसला
अक्टूबर, 2016 में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि कर्मचारी को पेंशन कंट्रीब्यूशन बढ़ाने का अधिकार है और इसके लिए कोई कट ऑफ डेट तय नहीं की जा सकती है। इसके आधार पर 12 रिटायर्ड कर्मचारियों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर ईपीएफओ से ज्यादा पेंशन की मांग की थी। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने ईपीएफओ को इन कर्मचारियों को हायर कंट्रीब्यूशन जमा कराने पर ज्यादा पेंशन देने का आदेश दिया था। लेकिन कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के अधिकारी हायर पेंशन को लेकर उच्चतम न्यायालय के आदेश को र लागू करने में हीलाहवाली कर रहे थे।
लेखक जेपी सिंह इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार हैं और विधिक मामलों के जानकार हैं.
Madan Tiwary
April 3, 2019 at 10:49 am
This one is a good decision, awaited since long, in pvt sector, employers with connivance of govt dept, rarely comply any of the clauses and act related to labourers, though designated labour courts are constituted but there too proceeding takes decades that is the reason , employees in financial crunch leave the cases .
Balkishor dwivedi
April 4, 2019 at 12:04 pm
Shandar fsisala