संजय गांधी की बेटी होने का दावा… कोई न्यूज चैनल बात नहीं कर रहा… ‘छत्तीसगढ़’ नामक अखबार से लंबी बातचीत में प्रिया पॉल अपने दावे के लिए डीएनए जांच को तैयार
दिल्ली में रहने वाली, भारत सरकार के एक बड़े ओहदे पर काम चुकीं प्रिया सिंह पॉल का दावा है कि वे संजय गांधी की बेटी हैं, और वे यह संबंध साबित करने के लिए डीएनए जांच के लिए तैयार हैं। वे किसी राजनीति में नहीं हैं, और कई चैनलों में वे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा चुकी हैं। अभी चार दिन पहले उन्होंने फेसबुक पर यह बात लिखी, और तब से लगातार इस अखबार, ‘छत्तीसगढ़’, ने लगातार उनसे बात करने की कोशिश की। वे आज सुबह इस बातचीत के लिए तैयार हुईं, और उनसे लंबे साक्षात्कार के कुछ हिस्से यहां प्रस्तुत हैं।
सवाल- आपको पहली बार यह कब पता लगा कि आप संजय गांधी की बेटी हैं?
जवाब- मैं आपके सारे सवालों के जवाब देना चाहती हूं, बात बस इतनी सी है कि मुझे कुछ बातें अदालत के लिए बचाकर रखनी हैं। मैं अभी यह तारीख बताना नहीं चाहती, क्योंकि अदालत में इसका उपयोग होगा।
सवाल- आपको पता होने के बाद क्या आपने संजय गांधी के परिवार से संपर्क करने की कोशिश की?
जवाब- नहीं, कभी नहीं की, बिल्कुल नहीं की।
सवाल- उन लोगों के आपके अस्तित्व के बारे में पता लगा हो, और उन लोगों ने आपसे संपर्क करने की कोशिश की हो?
जवाब- किसी ने भी मुझसे संपर्क करने की कोशिश नहीं की है। लेकिन उन्हें पता जरूर होगा क्योंकि जब मैं पैदा हुई थी 1968 में, तब सोनिया गांधी की शादी इस परिवार में हो चुकी थी। मुझे यह मालूम है कि मेनका (गांधी) के पिता कर्नल आनंद को यह मालूम था कि मैं संजय गांधी की बेटी हूं, यह मुझे मालूम है। मेनका को यह बात मालूम थी या नहीं, यह मुझे नहीं मालूम।
सवाल- मेनका के पिता को यह पता था, यह आपको कैसे पता लगा?
जवाब- मेरी ऑंटी विमला गुजराल, जिन्होंने मुझे सारा सच बताया, उन्होंने मुझसे कहा था कि कर्नल (आनंद) को यह पता था। और अगर आप उस वक्त के पुराने जर्नलिस्टों से बात करेंगे, तो यह बात सबको पता थी। मैंने तो सुना था कि एक आर्टिकल भी निकला था और नेशनल हेरल्ड (कांग्रेस का अखबार) में उसका खंडन भी छपा था। काफी लोगों को यह तो पता था कि संजय गांधी की बेटी हुई है, लेकिन वह बेटी कौन है इसके बारे में लोगों को पता नहीं था। उनको लगा कि बेटी अमृता सिंह है लेकिन सच तो यह है कि अमृता सिंह 1958 में पैदा हुई, और उस समय संजय गांधी कुल 12-13 बरस के थे। बेटी हुई है यह तो सबको पता था, लेकिन वह कौन है, किस हाल में है, जिंदा है भी कि नहीं, किसको दे दी गई है, यह किसी को नहीं पता था।
सवाल- आप जिन विमला गुजराल की चर्चा कर रही हैं, वे कौन हैं? क्या वे इन्द्रकुमार गुजराल से संबंधित हैं?
जवाब- वे इन्द्रकुमार गुजराल के कजन विजय गुजराल की पत्नी हैं। जब इन्द्रकुमार गुजराल ने राजनीतिक जीवन शुरू किया था, तब इनके घर रहकर ही उन्होंने काम शुरू किया था।
सवाल- मेरी एक उत्सुकता है कि आपने इतने बरसों के बाद जाकर यह खुलासा क्यों किया है, या इतने बरसों तक क्यों नहीं किया था?
जवाब- देखिए एक अंदर शक्ति होती है जब आपके अंदर की आवाज आपको कुछ बोलती है करने के लिए तब आपके अंदर एक हिम्मत आ जाती है, इसका कोई समय तो होता नहीं है। इसके पीछे कोई वजह नहीं है, क्योंकि न तो मैं कोई चुनाव लड़ रही हूं, न मैं राजनीति में हूं, न ही किसी राजनीतिक दल से जुड़ी हुई हूं। अब समय देखकर खुलासा करना रहता, तो मैं कौन सा समय छांटती? जब कांग्रेस सत्ता पर होती, और मैं यह खुलासा करती तो लोग कहते कि अरे तुम तो कुछ लेना चाहती हो, तुम उनको (संजय के परिवार को) ब्लैकमेल करना चाहती हो। अगर वो सत्ता में नहीं है, तो कहने वाले कुछ और कह सकते हैं, लेकिन मुझे तो कुछ नहीं चाहिए।
सवाल- यह एक ऐसी अजीब स्थिति है जब संजय गांधी खुद तो कांग्रेस के एक प्रतीक रहे, लेकिन आज उनका बचा हुआ परिवार भाजपा में हैं, और कांग्रेस में लोग उनको भुला चुके हैं, ऐसे में इस मुद्दे को उठाने से किसी पार्टी का भला या बुरा हो ऐसा नहीं लगता। ऐसा करके आप किसी पार्टी का बुरा तो कर नहीं रही हैं। अगर मेनका प्रधानमंत्री बनने के मोड़ पर होतीं, तो भी यह माना जाता कि आपका यह रहस्योद्घाटन उनकी संभावनाओं को रोकने के लिए है।
जवाब- यह एक अच्छी बात है कि जैसा आप कह रहे हैं, उससे मेरी इंसाफ की यह लड़ाई गैरराजनीतिक हो जाएगी। इस समय तो मंै उनको (मेनका को) कोई डैमेज भी नहीं कर सकती। वरूण गांधी के बारे में जितना लिखा गया है, वह उनकी तकदीर का हिस्सा है, जो राहुल और प्रियंका के बारे में लिखा जा रहा है, वह उनकी तकदीर का हिस्सा है। यह तो मैंने इतने बरस बाद खुलकर यह बात कही है कि मैं संजय गांधी की बेटी हूं, वरना इतने बरस तो किसी ने उनका नाम भी नहीं लिया, उनके परिवार ने भी उनका नाम नहीं लिया, मैं तो नाम ले रही हूं। मैं तो उनकी बेटी होने का जिम्मा उठा रही हूं और इस बात को कह रही हूं।
मैं जिस खानदान से आती हूं, और जिस तरह का काम मैंने पिछले 25 बरसों में किया है, मैं अगर इतनी हिम्मत जुटाकर यह बोल सकती हूं, तो मैंने संजय गांधी को भुलाया नहीं हूं, बाकी लोगों की तरह। मैं इस बात पर भरोसा नहीं करती कि आप नामों का राजनीतिक उपयोग ही करो, जब आपको जरूरत रहे तब आप नाम ले लो और जब राजनीतिक जरूरत न रहे तो कभी उनका जिक्र न करो, मैं ऐसे रूख पर भरोसा नहीं करती।
सवाल- आपकी मां किस उम्र में और किस तरह संजय गांधी के संपर्क में आई थीं?
जवाब- मुझे मेरी मां का नाम किसी ने नहीं बताया है, लेकिन उनकी जो कहानी है, वह मुझे हमेशा पता थी कि वो दोनों कम उम्र के थे, संजय गांधी 22-23 बरस के थे, मेरी मां 16-17 बरस की थी, दोनों एक-दूसरे से प्यार करते थे, उन्होंने एक मंदिर में, पुराने जमाने में जो शादी का एक रिवाज चलता था…
सवाल- गंधर्व विवाह?
जवाब- हां गंधर्व विवाह किया, और उन्हें लगा कि चलो सब ठीक है। और फिर अचानक मैं पैदा हो गई। उस वक्त इस बात को उजागर नहीं किया गया क्योंकि इस खबर का इंदिरा गांधी पर बुरा असर पड़ता। इसलिए संजय गांधी ने अपनी निजी जिंदगी की कुर्बानी देकर मां की राजनीति और पार्टी का ख्याल रखा। फिर मुझे तुरंत किसी को गोद नहीं दिया, लेकिन छुपाकर रखा। उन्होंने मुझे सिर्फ एक जगह रखने के लिए दिया। इसके बाद संजय गांधी ने अपनी शादी के ठीक पहले मुझे एक परिवार को गोद दिलवाया।
सवाल- क्या यह संजय गांधी का परिचित परिवार था?
जवाब- मेरी मां, जिन्होंने मुझे गोद लिया, वे एक जानी-मानी शिशु चिकित्सक थीं, वे हिन्दुस्तान की पहली शिशु रोग विशेषज्ञ थीं, और उन्होंने एशिया का सबसे बड़ा शिशु अस्पताल कायम किया था। उनके बारे में विकीपीडिया पर पूरी जानकारी है, डॉ. शीला सिंह पॉल। उनका कोई रिश्ता नहीं था गांधी परिवार से। लेकिन डॉ. विमला गुजराल जो मुझे लाईं इनके यहां, वे मेरी मां (डॉ. शीला सिंह पॉल) के साथ काम करती थीं।
सवाल- तो आपको अपनी जन्म की मां के बारे में पता लगा या नहीं?
जवाब- ना, मुझे बिना नाम के उन्होंने (डॉ. विमला गुजराल ने) यह पूरी कहानी सुनाई। अब जब मैंने यह खुलासा कर दिया है, तो अब मैं उम्मीद करती हूं कि मेरी मां के मन में अगर कुछ जागेगा, उनके अंदर यह हौसला जागेगा कि देश के लोग उनके खिलाफ कुछ नहीं कहेंगे, तो शायद वे आगे आएं, और मुझसे मिलें।
सवाल- क्या आपने अपनी जन्म की मां को तलाशने की कोशिश की?
जवाब- बहुत कोशिश की, लेकिन कहीं नहीं मिलीं।
सवाल- आपने अपनी फेसबुक पोस्ट पर किसी मिशनरी का जिक्र किया है जिनके बीच आप बड़ी हुई हैं, वो कौन सी मिशनरी थीं?
जवाब- दरअसल क्या है कि मुझे गोद लेने वाली मां बाद में सब काम छोड़कर, दिल्ली छोड़कर जाकर लुधियाना में बस गईं। वहां एक जगह है क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज। वे वहीं रहीं, और वह एक मिशनरी हॉस्पिटल है। वहां मुझे रखा गया 1984 तक, जब संजय गांधी की मौत हो गई, और तब मेरी मां ने मुझे इजाजत दी कि मैं दिल्ली आ सकती हूं क्योंकि उनको इस समय लगा कि अब कोई मेरी बच्ची के खिलाफ नहीं जा सकता और इसे खत्म करने की सोच नहीं रखेगा। क्योंकि अगर संजय गांधी उस वक्त होते, तो वे एक बड़े महत्वपूर्ण नेता होते, तो मुझे बदनामी की एक वजह मानकर कोई ऐसा कर सकते थे कि मुझे खत्म करते, जैसी कि महलों की राजनीति होती है। मेरे पिता ऐसा नहीं करते, लेकिन उन्हें बदनामी से बचाने के लिए कोई और ऐसा कर सकते थे। इसलिए मुझे उस वक्त तक छुपाकर हिफाजत से रखा गया था। फिर लोगों को लगा कि संजय की सारी राजनीतिक विरासत तो राजीव को चली गई तो अब प्रिया सिंह पॉल का दिल्ली में रहना या न रहना किसी के नफे-नुकसान का नहीं है। क्योंकि सब कुछ तो चला गया है।
सवाल- अभी आपने फेसबुक पर अपने को संजय गांधी की बेटी होने का जो पोस्ट किया, क्या उसके बाद किसी ने आपसे संपर्क करने की कोशिश की, संजय के परिवार ने, सोनिया के परिवार ने, कांग्रेस ने?
जवाब- किसी ने भी कोई कोशिश नहीं की है, चारों तरफ एकदम चुप्पी है, जो साझा दोस्त परिवार हैं (म्युचुअल फ्रैंड) उन्होंने भी कोई कोशिश नहीं की। सबने यह जरूर कहा कि आपकी हिम्मत की दाद देते हैं।
लेकिन मेरा ऐसे राजनीतिक दायरे में उठना-बैठना है भी नहीं। मैं मुम्बई से अधिक जुड़ी हुई हूं, और पंजाब-हिमाचल में जमीन से ज्यादा जुड़ी हुई हूं।
सवाल- लेकिन आपने दिल्ली के बहुत से मीडिया कारोबार में काम किया हुआ है। मीडिया में काम करने की वजह से तो बहुत लोग आपको जानते होंगे…
जवाब- बहुत से लोग मुझे जानते हैं, लेकिन मैंने कभी समाचार-मीडिया में काम नहीं किया। मैंने मीडिया के कार्पोरेट सेक्टर में मुम्बई में काम किया है। मैंने किसी समाचार चैनल में काम नहीं किया है, मैं मनोरंजन-सेक्टर में काम करती रही, इसलिए वह कुछ अलग दायरा था, लेकिन इस दायरे में भी लोग मुझे जानते हैं, अधिकतर लोग मुझे जानते हैं, लेकिन किसी एक इंसान ने भी मेरे खुलासे के बाद मुझसे इस बारे में बात नहीं की है। आप ही मुझे बताइए कि ऐसा क्यों होना चाहिए?
सवाल- मुझे लगता है कि एक वजह यह हो सकती है कि कुछ लोग इसे भरोसेमंद खुलासा नहीं मान रहे होंगे, दूसरा कुछ लोगों को यह लग रहा होगा कि आपकी बात के आधार पर समाचार बनाने से उन्हें भी साजिश में भागीदार मान लिया जाएगा, इस परिवार (मेनका), या उस परिवार (सोनिया) को बदनाम करने के लिए।
जवाब- ऐसा नहीं है कि मेरी बात लोगों को भरोसेमंद नहीं लग रही होगी, क्योंकि मैंने इतने बरसों में अपनी विश्वसनीयता कायम की है। यही लगता है कि सारे मीडिया हाउस किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के करीब हैं, या तो कांग्रेस के, या बीजेपी के। वहां आजादी कहां है? कौन सा चैनल है जो आजाद है? एक भी नहीं।
अगर यह किसी एक परिवार का मामला रहता, तो दूसरी पार्टी से जुड़े हुए चैनल अब तक सामने आ जाते लेकिन यहां पर हर कोई इंतजार कर रहे हैं कि मधुमक्खी के छत्ते में पहले कोई दूसरा हाथ दे।
सवाल- और मैं लगातार आपसे बात करने की कोशिश कर रहा हूं। मैंने मेरे और आपके जो आपसी फेसबुक दोस्त हैं, उनसे आपकी विश्वसनीयता के बारे में पूछा, तो उनका कहना था कि आप भरोसेमंद हैं और आपकी यह कहानी सच है। ऐसे कई दोस्तों का कहना है कि उनको आपकी सच्चाई की बहुत समय से जानकारी थी।
क्या आज आपका कोई परिवार आपके आसपास है?
जवाब- मेरे माता-पिता, जिन्होंने मुझे गोद लिया, वे उस वक्त ही बहुत बुजुर्ग थे, और अब गुजर चुके हैं। अभी मेरी एक संतान है, और मेरे पति हैं।
सवाल- आपके इस खुलासे पर उनकी क्या प्रतिक्रिया है?
जवाब- वे इसमें बीच में कुछ नहीं कहते, और उनका कहना है कि यह तुम्हारी जिंदगी है और ये तुम जानो, हम इसमें दखल देना नहीं चाहते।
सवाल- तो उन्होंने न आपको ऐसा खुलासा करने कहा, और न इससे रोका? क्या वे इससे विचलित हैं?
जवाब- नहीं।
सवाल- अगर आपके दावे को संजय गांधी के परिवार से कोई चुनौती देते हैं, तो क्या आप अदालत में जाने के लिए तैयार हैं?
जवाब- हां बिल्कुल, मैं डीएनए जांच के लिए भी तैयार हूं जिससे कि सब साफ हो जाएगा।
सवाल- क्या आप संजय गांधी की विरासत पर भी कोई दावा करने वाली हैं?
जवाब- नहीं, बिल्कुल नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं जिंदगी में अपने बलबूते पर खड़ी हुई हूं, और किसी से कुछ लेकर मैं उस बुनियाद को नुकसान पहुंचाना नहीं चाहती। मेरे जमीर को यह ठीक नहीं लगता। मैं किसी तरह की विरासत पर कोई दावा नहीं करूंगी।
सवाल- आप कितने समय से यह सोच रही थीं, कि आपको अपनी इस हकीकत को उजागर करना चाहिए?
जवाब- ऐसा कुछ नहीं है कि मैं इस बारे में सोच रही थी, लेकिन मेरे अंदर यह हसरत थी कि मुझे ऐसा करना चाहिए, मैंने जो किया वह एक जुनून में किया, कोई बहुत सोच-समझकर नहीं किया। और मैं अपनी जिंदगी में एक ऐसे मोड़ पर पहुंच चुकी हूं कि मेरे लिए इंसान बहुत मायने नहीं रखते, अब मेरे लिए ईश्वर अधिक मायने रखता है।
‘छत्तीसगढ़’ नामक अखबार के लिए सुनील कुमार की रिपोर्ट.