रिपोर्टर का काम होता है खबरें भेजना. लेकिन नए दौर का नियम हो गया है कि रिपोर्टर से विज्ञापन मैनेज कराओ और विज्ञापन न दिला सके तो रिपोर्टर की नौकरी खा जाओ. ऐसा ही कुछ पब्लिक एप में हुआ है.
इस पब्लिक ऐप में देशभर से हजारों युवा जुड़े हुए हैं. ये युवा पत्रकार चाहें जिस सपने को लेकर मीडिया में आए हों लेकिन पब्लिक एप वालों को तो एक ही मतलब है. इनसे विज्ञापन लेना. विज्ञापन जो न दे उसे निकाल दो.
लिखने पढ़ने वाले इन युवा पत्रकार बेहद कम पैसे में खबरें भेजते हैं. ये किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं. मगर अब इन युवाओं के लिए पब्लिक एप में भी नौकरी करना मुश्किल हो रहा है.
कुछ समय पहले तक पब्लिक एप की टीआरपी अधिक नहीं थी लेकिन जैसे ही टीआरपी बढ़ती गई तो पब्लिक एप की कुछ सीटों पर बैठे प्रबंधकीय टीम की इच्छाएं आसमान छूने लगीं.
एप ने अपने साथ काम करने वाले लोगों के लिए हर माह विज्ञापन देना अनिवार्य कर दिया है. विज्ञापन भी कोई 1000- 5000 का नहीं बल्कि 15 हजार से 30000 रुपए महीने तक का.
जो लोग इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाते, वह नौकरी से बाहर कर दिए जाते हैं.
ऐसा ही कुछ हुआ है मुरादाबाद के युवा पत्रकार मनोज कश्यप के साथ जो लगातार 2 साल से पब्लिक एप के साथ जुड़े हुए थे. लेकिन विज्ञापन का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाने के कारण उन्हें हटा दिया गया.
खास बात यह है कि मनोज को संस्थान मात्र 6 हजार से 7000 रुपये ही प्रति महीना अदा करता था. इतने कम पैसे में काम करने वाले रिपोर्टर से ये लोग महीने के तीस हजार रुपये विज्ञापन के लिए दबाव डाल रहे थे.
ऐसा लगता है कि जल्द ही पब्लिक एप को बहुत सारे युवा रिपोर्टर गुडबॉय बोल देंगे क्योंकि यहां अब पत्रकारिता नहीं बल्कि उगाही शुरू हो चुकी है.
आडियो सुनने के लिए क्लिक करें- public app manoj audio
अवनीश
January 15, 2022 at 10:04 pm
बहुत खराब दौर चल रहा है
PANKAJ
January 16, 2022 at 10:54 am
पब्लिक ऐप की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। लखनऊ के साथी पंकज जी और निम्मी जी को प्रचार न देने के कारण निकाल दिया गया। डेस्क से अल्का नाम की महिला फोन कर रिपोर्टर को प्रताड़ित करने का काम कर रही है। उन पर प्रचार के लिए पूरी तरह से दबाव बनाया जा रहा है।
खबर पर भुगतान 25 और 35 रुपए का विज्ञापन चाहिए 5000 का। ऐप की इस दादागिरी के खिलाफ हमें एकजुट होकर इसका बहिष्कार करना चाहिए।
Sudhir Awasthi
August 10, 2023 at 9:20 am
इनकी कारगुजारियों को लेकर रहस्योद्घाटन जारी रहेंगे सभी जनपदों से
Suman murmu
January 16, 2022 at 6:32 pm
झारखंड डेस्क में भी एक दोगला दुबे है, जिसका नाम कृष्णकांत दुबे है। अपने बहनोई को बनाये रखने के लिए उस हरामजादे ने जातिवाद का ऐसा खेल खेला की, अब पूरे राज्य में इसका बंटाधार तय है। कृष्णकांत दुबे नाम के दोगले ने सिर्फ दुबे मतलब जो उसकी जातिवाले होगा उसी को काम करने बोला है। और नही तो, कहता है उसे पैसे देने पड़ेगा, विज्ञापन अलग से दो, उस हरामखोर को रिश्वत अलग से दो। पता नहीं उसके ऊपर जो लोग बैठा है वह भी हिस्सा खाता है क्या , कुत्ता का पै…..है कर्षनकण्टवा दोगला।
Sudhir Awasthi
August 10, 2023 at 9:13 am
पत्रकारिता की जगह दलाली मक्कारी करवाने की राह तैयार कर रहा public ऐप कुछ समय बाद इन लोगों को रिपोर्टर तक खोजे नहीं मिलेंगे न ही इन्हें दूसरी जगह खुद के लिए काम