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पुलवामा का ‘साजिशकर्ता’ कश्मीर में मारा गया – मतलब साजिश स्थानीय थी!

अन्य अखबारों से अलग, टेलीग्राफ का शीर्षक। टेलीग्राफ ने इसे लीड नहीं बनाया है।

आज ज्यादातर अखबारों में पहली खबर कश्मीर में जैश के एक आतंकवादी को मारे जाने की है। इसके मुताबिक, सुरक्षा बलों ने सोमवार को दावा किया कि 14 फरवरी के पुलवामा हमले के मुख्य साजिशकर्ता को इतवार रात के एक ऑपरेशन में मार डाला गया। इससे इस आत्मघाती हमले में स्थानीय हाथ होने का संकेत मिलता है जबकि इस हमले में पाकिस्तान का हाथ होने की ‘सूचना’ पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बन गई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद का सफाया करने के लिए घर में घुस कर मारने और पाताल से भी निकाल लाने जैसी बात कही है जबकि मैं लिख चुका हूं कि जरूरत अपना घर ठीक करने की है।

हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर, “सेना ने कहा, पुलवामा का मुख्य साजिशकर्ता मुठभेड़ में मारा गया” – शीर्षक के साथ छपी है। अखबार ने लेफ्टिनेंट जनरल कंवलजीत सिंह ढिल्लन के हवाले से लिखा है, गुजरे 21 दिनों से हम जैश के पीछे पड़े हुए हैं। अभी तक हमलोगों ने 18 आतंकवादी मार डाले हैं। इनमें से 14 जैश के हैं। इनमें से छह मुख्य कमांडर थे। लोगों समेत 18 मारे गए हैं। अखबार में यही उपशीर्षक है। अखबार ने खबर के साथ एक बॉक्स में द कश्मीर ऑफेंसिव के तहत तीन बिन्दु छापे हैं। इनमें दो उपरोक्त सूचनाएं हैं। तीसरे बिन्दु के मुताबिक मारा गया मुदसिर खान एक साल से ज्यादा सक्रिय था। उसके बारे में यह भी बताया गया कि वह 2017 में लेथपोरा में एक हमले में शामिल था।

अगर यह सही है और सही नहीं होने का कोई कारण नहीं है तो सवाल उठता है कि हम 2017 से सक्रिय और एक हमले के अपराधी आतंकवादी को तब क्यों नहीं पकड़ पाए या तब क्यों नहीं मारा? और तब नहीं पकड़ा गया था इसीलिए पुलवामा हमले की साजिश को अंजाम दिया जा सका। साफ है कि दोषी हम और हमारे सुरक्षाबल हैं। न कि पाकिस्तान? इसमें कोई शक नहीं है कि जैश का मुख्यालय और उसके बड़े आतंकवादी पाकिस्तान में बैठे हैं पर पुलवामा हमला तो भारत में बैठे (या रह रहे) जैश के आतंकवादियों ने किया (जो अब मारे गए)। ऐसा दावा किया जा रहा है इसीलिए यह खबर आज कई अखबारों में लीड है। वरना किसी अभियान में दो अपराधियों को मारने की खबर इतनी प्रमुखता नहीं पाती है। मरने वाला कथित साजिशकर्ता नहीं होता तब भी इस खबर को इतनी प्रमुखता नहीं मिलती।

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दूसरी ओर, हमला तो पाकिस्तान ने कराया था। साजिशकर्ता तो अजहर मसूद है जो पाकिस्तान में बैठा है। मैं नहीं कहता कि ये दोनों दावे गलत हैं या इनपर कोई शक है पर सवाल उठता है कि घर के दुश्मन को निपटाने से पहले पाकिस्तान से भिड़ने की क्या जरूरत थी। वह भी कार्यकाल खत्म होने पर या चुनाव के समय? ठीक है हमले की तारीख पाकिस्तान ने तय की होगी। इस हिसाब से अभी तक की कार्रवाई, हवाई हमला आदि को सही और जायज मान लिया जाए पर ये कमांडर यहां कैसे था? जबाव कौन देगा? और मीडिया नहीं पूछेगा तो पांच साल में एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने वाले और कई मामलों में चुप रहने वाले देंगे?

पाकिस्तान को दोषी ठहराए जाने के बाद साजिशकर्ता के यहीं पाए जाने का संबंध क्या पुलवामा हमले के बाद सेना को ‘छूट’ दिए जाने से नहीं है? क्या अखबारों को इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ़ना चाहिए। क्या जो खबरें दी जाएं उन्हें संवाददाता का नाम लगाकर छाप देना या एंकर से पढ़वा देना ही मीडिया का काम है। वह भी तब जब रोज यह आरोप लग रहा है कि देश का एक प्रमुख राजनीतिक दल और उसके नेता जो प्रधानमंत्री भी हैं जान बूझकर ऐसा काम कर रहे हैं। चुनाव घोषित हो चुके हैं और एक राजनीतिक दल चाहता है कि वह और उसके नेता ‘देश के दुश्मन’ जो हमारा पड़ोसी भी है के खिलाफ कार्रवाई कर सकने वाले अकले वीर राजनेता लगें। क्या पड़ोसी देश से लड़ने वाला नेता अच्छा होगा या मिल-जुलकर रहने वाला? देश हित में क्या है? वैसे भी पड़ोसी लड़े तो हम लड़ें, उसके हमले का जवाब दें। अपनी नाकामी को पड़ोसी के सिर थोपने वाले को वीर क्यों बनाएं?

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अंग्रेजी अखबार, द टेलीग्राफ में यह खबर लीड नहीं है। अखबार की आज की लीड का शीर्षक है, “हवाई हमला मोदी को वापस लाएगा : योगी”। इसके तहत चुनाव के लिए भाजपा की रणनीति की चर्चा उदाहरणों से की गई है। प्रधानमंत्री की एक फोटो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाकार अजीत डोवाल के साथ छपी है। इसके कैप्शन में कहा गया है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को याद दिलाया कि 1999 में डोवाल मसूद अजहर को लेकर कंधार गए थे जहां आतंकवादी को आजाद कर दिया गया था। अखबार ने ऊपर बताए गए अपने मुख्य शीर्षक के साथ एक और खबर छापी है जिसका शीर्षक है, “चीन के मुकाबले (मोदी) इतने बहादुर नहीं हैं : राहुल”। अगर चुनाव के लिए भाजपा की रणनीति के अनुसार मोदी को पाकिस्तान से मुकाबला करने योग्य वीर बताया जा रहा है तो राहुल गांधी उन्हें चीन के मुकाबले कम बहादुर बता रहे हैं।

चुनाव के मौसम में अखबार का काम सभी पक्षों की खबरों को रख देना होता है ताकि पाठक अपने विवेक से निर्णय कर सकें। पर इसमें अखबारों को अपने विवेक का इस्तेमाल भी करना चाहिए। पुलवामा हमले में अगर पाकिस्तान का हाथ था और साजिशकर्ता कश्मीर में मारा गया तो जाहिर है पहले के आरोप (और खबरें) गलत थे या आज की खबर गलत है। इसीलिए टेलीग्राफ ने इस खबर को पहले पन्ने पर नहीं रखा है। अंदर राष्ट्रीय खबरों के पन्ने पर सात कॉलम में खबर है। शीर्षक है – “प्लॉटर” किलिंग फ्लैग्स पुलवामा लोकल स्टैम्प। इसका अनुवाद कुछ इस तरह होगा, “साजिशकर्ता” के मारे जाने से पुलवामा (हमला) स्थानीय साजिश होने की बात प्रमुखता से सामने आई। असल में आज की खबर यही है और शीर्षक यही होना चाहिए था।

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इस खबर के मुताबिक, सुरक्षा बलों ने सोमवार को दावा किया कि 14 फरवरी के पुलवामा हमले के मुख्य साजिशकर्ता को इतवार रात के एक ऑपरेशन में मार डाला गया। इससे इस आत्मघाती हमले में स्थानीय हाथ होने का संकेत मिलता है जबकि इससे दो परमाणु सक्षम देश (भारत और पाकिस्तान) के बीच युद्ध की स्थिति बन गई थी। इतवार के ऑपरेशन में जैश-ए-मोहम्मद के मदसिर अहमद के मारे जाने की खबर है। अखबार ने लिखा है कि केजेएस ढिल्लन घाटी में सेना के 15 कॉर्प्स के प्रमुख हैं। उन्होंने शुरू में कहा कि 23 साल का मुदसिर अकले मुख्य साजिशकर्ता था। पर बाद में कहा कि गए महीने मारा गया पाकिस्तानी आतंकवादी कामरान व मुदसिर मुख्य साजिशकर्ता थे।

(कामरान पुलवामा हमले के तुरंत बाद बाद कश्मीर में एक मुठभेड़ में मारा गया था। इसमें सेना के चार जांबाज के साथ एकनागरिक की भी मौत हो गई थी। इसे तब पाकिस्तानी नागरिक बताया गया था और यह एक स्थानीय आतंकवादी हिलालके साथ मारा गया था।)

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यही नहीं, अखबार ने यह भी लिखा है कि सुरक्षा बलों ने कामरान को पहली बार जैश का घाटी प्रमुख और मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक कहा है। 19 फरवरी को 15 कॉर्प्स कमांडर ने कहा था यह जांच का विषय है कि पुलवामा हमले में कामरान की कोई भूमिका थी या नहीं। सुरक्षा बलों ने जो चार संदिग्ध बताए हैं उनमें कामरान अकेला है जो स्थानीय नहीं है। अन्य के नाम हैं – मुदसिर, आदिल अहमद डार (आत्मघाती हमलावर जो मर गया) और बिजबेहरा निवासी सज्जाद भट्ट। नेशनल इनवेस्टीगेशन एजेंसी के सूत्रों ने दावा किया है कि पुलवामा हमले में सज्जाद की कार का उपयोग किया गया था और जब उसके घर छापा मारा गया तो पता चला कि वह जैश में शामिल होकर भूमिगत हो गया है।

अखबार ने और भी विवरण देते हुए लिखा है कि इन सब चीजों से पता चलता है कि आत्मघाती हमलों में कश्मीरी युवाओं की भूमिका बढ़ रही है। अभी हाल तक यह पाकिस्तानी आतंकवादियों का विशिष्ट क्षेत्र होता था। अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि (मारा गया) मुदसिर जैश कमांडर नूर मोहम्मद तंनतरी उर्फ नूर त्राली द्वारा नियुक्त किया गया था जो त्राल का रहने वाला था और दिसंबर 2017 में मारा गया था। 47 साल का त्राली घाटी का अकेला आतंकवादी था जो सिर्फ साढ़े चार फीट का था और घाटी में जैश को पुनर्जीवित करने में उसकी भूमिका थी।

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वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट।

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