Dayanand Pandey : दि वायर में पुण्य प्रसून वाजपेयी का विधवा विलाप पढ़ कर पता लगा कि वह मोदी-मोदी भले बोल रहे हैं, फर्जी शहादत पाने के लिए लेकिन उन नौकरी के असली दुश्मन रामदेव ही हैं। आज तक और ए बी पी दोनों जगह से रामदेव और पतंजलि का विज्ञापन ही उन की विदाई का मुख्य कारण बना है। कम से कम उन के लेख की ध्वनि यही है। रामदेव आज की तारीख़ में सब से बड़े विज्ञापनदाता हैं। विज्ञापनदाता मीडिया का माई-बाप है। किसी मीडिया की हैसियत विज्ञापनदाता से पंगा लेने की नहीं है।
वैसे भी पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसे व्यक्ति को यह तो मालूम है ही कि वह बाज़ार में हैं और बाज़ार नैतिकता से, नफ़रत से और एजेंडे से नहीं मुनाफ़े से चलता है। सिर्फ़ और सिर्फ़ मुनाफ़े से। आप की उस बढ़ती रेटिंग से चैनल को क्या फ़ायदा जब चैनल का विज्ञापन और उस का मुनाफ़ा डूब रहा हो।
आप की राजनीतिक नफ़रत की क़ीमत कोई चैनल अपना मुनाफ़ा गंवा कर नहीं चुका सकता। पुण्य प्रसून का यह लेख यह भी बता देता है कि नरेंद्र मोदी से नफ़रत का एजेंडा ए बी पी न्यूज़ चैनल का नहीं, प्रसून जी का ख़ुद का है। फिर जो चैनल पर मास्टर स्ट्रोक का एयर से जाने का ड्रामा था, वह मालिकों का था, किसी नरेंद्र मोदी, किसी रामदेव का नहीं। ट्रांसपोंडर का सारा खेल है। जो मालिकों के हाथ में होता है। ट्रांसपोंडर में स्पेस देने वाले के हाथ में होता है। किसी नरेंद्र मोदी और उस की मशीनरी के हाथ में नहीं। प्रसून जी लेकिन मास्टर स्ट्रोक के चक्कर में यह सब भूल गए हैं। यह आंख में धूल झोंकने, झांसा देने का कौन सा स्ट्रोक है पार्टनर ?
मुझे याद है रामनाथ गोयनका का सत्ता से टकराना। बारंबार टकराना।रामनाथ गोयनका इमरजेंसी से टकराए थे, तभी कुलदीप नैय्यर भी टकराए थे। सत्ता से विरोध में जीने-मरने की ज़िद गोयनका की अपनी थी। क्यों कि तब पत्रकारिता गोयनका के लिए मुनाफ़े का धंधा नहीं थी। वह तो छाती ठोंक कर कहते थे, न दे कोई इंडियन एक्सप्रेस को विज्ञापन, मैं तो एक्सप्रेस बिल्डिंग के किराए से भी अखबार निकाल लूंगा। निकालते ही थे।
यह गोयनका की ही मर्दानगी थी कि कुलदीप नैय्यर, प्रभाष जोशी जैसे तमाम धाकड़ संपादक निकले। सत्ता से, सिस्टम से सर्वदा टकराते हुए। एम वी देसाई और बी जी वर्गीज जैसे शानदार संपादक। अरुण शौरी जैसे संपादक। लेकिन यह सब लोग बाज़ार में नहीं पत्रकारिता में थे। लेकिन आप तो बाज़ार में तन-मन-धन से न्यौछावर थे। खुल्लमखुल्ला। बाज़ार के मुनाफ़े में साझीदार भी। बतौर मोहरा ही सही।
तो आप का करोड़ो का पैकेज और राजनीतिक नफ़रत का एजेंडा इस मुनाफ़े की भेंट चढ़ा है। नरेंद्र मोदी या रामदेव अगर आप से ज़्यादा मुनाफ़ा देते हैं तो चैनल मालिक आप को दूध की मक्खी बना कर फेंक देगा यह बाज़ार के दूधमुंहे भी जानते हैं। लेकिन मास्टर स्ट्रोक और दस्तक देने के बावजूद पुण्य प्रसून वाजपेयी नहीं जान पाते। तो उन की इस अबोधता पर मुझे कुछ नहीं कहना। किसी भी अभिनेता, किसी भी खिलाड़ी की क़ीमत मुनाफ़े पर ही मुन:सर होती है। बहुत बड़े अभिनेता थे संजीव कुमार लेकिन फारुख शेख से भी कम पैसा पाते थे। लेकिन प्राण जैसे अभिनेता राज कपूर, दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता से भी ज़्यादा पैसा लेते थे। सोचिए कि डान फिल्म में अमिताभ बच्चन को पचत्तर हज़ार रुपए मिले थे लेकिन प्राण को पांच लाख रुपए। यही प्राण राज कपूर की बाबी में एक रुपए लिए थे। सिर्फ़ शगुन के। भारत भूषण जैसे स्टार हीरो बाद में पांच सौ रुपए दिहाड़ी पर काम करने लगे थे। ऐसे ही इन्हीं न्यूज़ चैनलों के तमाम स्टार रहे लोग इन दिनों गुमनामी भुगत रहे हैं। कुछ तो घर, गाड़ी बेच कर बरबाद हो चुके हैं। किन-किन का नाम लूं।
संजय लीला भंसाली जैसी बाजीगरी सब को नहीं आती कि पिट कर भी पैसा पीट ले जाए। अपनी पिटाई भी बेच ले। पुण्य प्रसून वाजपेयी आप ने कभी अपने उन साथियों के लिए आवाज़ क्यों नहीं उठाई जो इन्हीं चैनलों में दस, बीस, पांच हज़ार की नौकरी कर रहे हैं और आप करोड़ों का पैकेज। आप तो नफ़रत और एजेंडे की लड़ाई लड़ रहे हैं, रोटी-दाल की नहीं। पत्रकारिता की नहीं। पत्रकारिता नहीं एजेंडा चला रहे हैं। नरेंद्र मोदी से नफ़रत का एजेंडा। पत्रकारिता पक्षकार बन कर नहीं होती। इसे एक किस्म की दलाली कहते हैं। दलाली सिर्फ़ सत्ता की ही नहीं होती, प्रतिपक्ष की भी होती है। यह बाज़ार है। कल तक सोनिया गांधी का बाज़ार था, आज नरेंद्र मोदी का बाज़ार है। बाज़ार किसी भी का हो, बाज़ार के मुनाफ़े में जब तक आप फिट हैं, आप बाज़ार के हैं। नहीं कौन किस का है। भोजपुरी के गायक बालेश्वर एक गाना गाते थे, बनले क सार बहनोइया, दुनिया में कोई नहीं अपना। फ़िराक ने भी लिखा है :
किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी।
फिर यह तो बाज़ार है। बाज़ार में कोई किसी का कभी नहीं होता। पुण्य प्रसून जी, आप बाज़ार के एक मोहरा भर हैं, मालिक नहीं। नियंता नहीं। इस बेरहम और दोगले बाज़ार को गढ़ने में लेकिन आप भी भागीदार हैं। फिर कौन सा दोगला और हिप्पोक्रेट मीडिया बनाया है, इस की पड़ताल भी तो कीजिए कभी। कारपोरेट की आवारा पूंजी से बना यह हरामखोर मीडिया जनता की बात भी करता है कभी? दि वायर जहां आप ने यह विधवा विलाप परोसा है, उस का तो एकमात्र मकसद ही है नरेंद्र मोदी से नफ़रत का एकमात्र जहरीला एजेंडा। और कुछ भी नहीं। यह दलाली ही नहीं, गैंगबाजी भी है। पत्रकारिता तो हरगिज नहीं। आप लोग पत्रकारिता के मुथुवेल करूणानिधि हैं।
लेखक दयानंद पांडेय लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं.
Comments on “पुण्य प्रसून जी, आप बाज़ार के एक मोहरा भर हैं, मालिक या नियंता नहीं!”
तुम झूठे और नकारे हो जो मोदी को बचाना चाहता है और बाबा की तरफ रुख करना जानते हैं जनता सब जानती है
Sahi kaha yai dayanand pandey aik idiot patrrkar hai purai media mai abhi keesee kee himat nai hai kee wo sarkar kai against kuch bolai
Dayanand Pandey ji tum khud Modi ke dlal ho aur vidhva prlap kr rhe ho kyouki Modi Jane wala h..
Waise to pandey ji aap ne bada achha likha kintu…Aapki mansa kya hai wo mahila ke training deke ..Modi ji ke samne laane ki wo na jaan sake..
Aur ye vidhwa vilaap …Akhir vidhwa to aise hi ta umar vilaap karti hai aise me ye majaak udane jaisa hai….Baaki sab thik hai
जिसे आप नफरत जिसे आप नफरत की पत्रकारिता करना है और पुण्य प्रसून बाजपेई पर सवाल उठा रहे हैं जरा संभाल आप सरकार पर बैठा है और उनके सहयोगी शख्स पर उठाइए जाहिर है की बाजार नैतिकता तय नहीं कर सकती है लेकिन नैतिकता बाजार की तैयारी कर सकती है कभी कभी नैतिकता बाजार पर हावी हो जाती है और कभी-कभी बाजार नैतिकता पर हावी हो जाए यहां तो राजनीतिकरण हुआ है इसी खबर को प्रसारित ना होने दिया जाए उसके खबरों से सरकारी महकमा परेशान दिखा क्या यही काफी नहीं है क्या यह जनता के लिए एक ऐसा सच है जो हर चैनल वाले छुपा जाते हैं जाहिर है इस सच को दिखाने वाले पुण्य प्रसून बाजपेई थे आंकड़े उनके बोल रहे थे सरकार की पोल खोल रहे कार्यक्रम की रेटिंग तेजी से बढ़ रही थी यानी जनता जुमले सुनते-सुनते परेशान हो चुकी थी इसलिए सरकार के खिलाफ या खबर सुर्खियां बटोर रही थी मास्टर स्ट्रोक वास्तव में मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ लेकिन बाजार की जकड़न में पैदा हुए और राजनीतिक दल की चटूकारिता पैदा हुए पूंजीपतियों ने राजनीतिक दल के लिए काम करना शुरु कर दिया विज्ञापन देना बंद कर दिया यानी जो मीडिया बाजार पर टिका था उसके हाथ पांव बांध दिए गए लेकिन सच किसी मीडिया का मोहताज नहीं होता है असल में आज कुछ ऐसे कथित गोदी पत्रकार हैं जो कि सच्चाई से रूबरू होने से दूर भागते हैं आज उन्हीं का बोलबाला है ऐसे में प्रसून बाजपेई रवीश अभिसार शर्मा आदि ऐसे पत्रकार हैं जो सही मुद्दे भी उठाते हैं और वह मुद्दा वर्तमान सरकार के खिलाफ है तो जनता उन मुद्दे को अपने फायदे के लिए सुनती है और समझती है इस तरह से लोकतंत्र मजबूत होता है अगर कोई पत्रकार गलत बात करता है तो उसके लिए सैकड़ों कानून है उसे कानून के दांवपेच में रगड़ा जा सकता है लेकिन यहां पर रगड़ने का तरीका आपका लेख एक तरफ़ा है और इस से मैं सहमत नहीं हूं
Bahut acha or bilkul sacha
Sahi analyse kiya aapne sir.
Ekdam perfect
For this what are you expecting sir? Some cash or post?
सही कह रहे हैं आप क्योंकि धन से ही सारा सिस्टम चलता है चाहे वह सेवा का क्षेत्र हो राजनीत व मीडिया जगत धन वाले चाहे वह सत्तापक्ष हो चाहे वह विपक्ष हो धन से ही प्रभावित करते है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जगत भी पैसे का प्रभाव दिखता है यहां तक संत समाज में भी पैसे की होड़ मची हुई है पैसा सिर्फ ना लेने वाला समाज का पागल व्यक्ति है
Very sad to know this kind of comments – It’s TRUE everything is Business now – BUT – what is wrong is wrong. Modi government could have improved upon their wrong deeds instead of nullifying such a good quality of Journalism ! Of course we will have not have that quality – people do not have character – those who have are shot down like this ! Shame for our country !
Are Pandey ji Modi ke Talve chaat kar apni zib bhi Modi si manali wah re tera Vidvapan.
Mr.pandey ji lagta hai aap kaan se bahre aankh se andhey aur dimak se kamzor malum hote hai q ki agar master strok zabardast tarike se uchhal par ja raha tha to achanak usi time par yani 9baje he signal me problem q kiya ja raha tha fir amit shah ji ne media me khullam khulla elan q karte hai ki hamari purna bahumat ki sarkar hai hum abp news ko sabak sikhayenge fir unhe q modi ji ka naam lene se mana kiya ja raha tha sir kuch jawab denge kya aap ya fir aap bhi sirf ek andh bhakta he ho
अजीब बेवकूफ़ शख्सियत हैं आप दयानन्द जी.. जो मोदी का पक्ष मजबूत करने के लिए वाजपेयी पर अनर्गल आरोप लगाते जा रहे हैं l क्या आपने कभी भी अपने पत्रकार जीवन में देश के प्रति सही जिम्मेदारी निभायी है? कमाना हर व्यक्ति का उद्देश्य होता है.. पर सच्चाई प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए अपनी कमाई का त्याग कर दे ऐसा.. बिरला व्यक्तित्व अनुसरण का पात्र होता है ना कि निंदा का l आप यदि रामदेव के पैसे के इतने बड़े पुजारी हैं तो शर्म आती है आपकी सोच और समझ पर l
पाण्डेय जी,आप देरी से आते है प्रसून जी जो पुन्य इस देश के लिए करना चाहते हैं वो कर चुके हैं,अब भी यदि ये देश की जनता गड्डे में गिरना चाहती है तो गिरे । रही बात चमचागिरी वो मिडिया घराने ओर आप जैसे पत्रकारों का धंधा बन गया है
दयानंद पांडे मोदी और रामदेवका दलाल मालुम होता है ।
दयानंद पांडे जी ने पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी प्रकरण का बहुत ही सटीक विश्लेषण किया है । गोयनका जैसे सैद्धांतिक पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की पीढ़ी अब विदा लेने को है, इस जमाने के कई पत्रकारिता सत्ता पक्ष या प्रतिपक्ष से पोषित होकर बेशर्मी से अपना राजनैतिक झुकाव कार्यक्रमों में खुल्लमखुल्ला दिखाते हैं, यही हाल चैनलों का का है, कई चैनलों के राजनैतिक रूझान समाचार देखने की ईच्छा ही खत्म कर रहे हैं ।
पत्रकार की पत्रकारिता करने की नैतिक आजादी भी की कोई बात ही नंही है, पत्रकार और चैनल अपने को कानून से उपर मानने लगे हैं, भाषाई लंपटता में समाचार की विश्वसनीयता कहीं खोती जा रही है। पुण्य प्रसून का बाबा रामदेव से इंटरव्यू करते समय बिना साक्ष्य के कहना कि आपने टैक्स चोरी के लिये ट्रस्ट बना लिया, जिस पर बाबा रामदेव के भड़क कर यह कहने पर कि पुण्य प्रसून वाजपेयी जी आप इसे सिद्ध करें नहीं तो मैं मैं आप पर मानहानि का केस कर सकता हूं। बाबा के भड़के तेवर पर तुरत खींसे निपोरते हुये इन्होने टापिक बदल दिया जिससे अंधा भी बता सकता है कि उस समय पुण्य बिना साक्ष्य के आरोप लगा रहे थे।.
आजतक ने इन्हे निकालने में देरी नहीं की, इसी प्रकार इनकी उच्छंख्रलता एबीपी पर भारी पड़ती उसके पहले ही इन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
दुख इस बात का है कि सिर्फ दैहिक वैश्यावृत्ति ही क्यूं बदनाम है ?
Punya pasun or barkha dutt naya channel kholne waale jiski funding kapil sibbal karega ye sab hype create karne ki tricks hain or kuch nhi
जो भी ये पोस्ट किया है वो बिल्कुल भी तथ्यात्मक नहीं है। प्रसून जैसे देशभक्त पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है जो सच दिखाने का साहस करता है। लेकिन इस पोस्ट के लेखक को यक़ीनी तौर पर मैं ये कह सकता हूँ कि ये बंदा कोई साहित्यकार या पत्रकार नहीं बल्कि झूठ को सच का लिबास पहनाकर पेश करने वाला मोदी ग्रुप का साईबर एजेन्ट है जो अपने इस काम के लिए अपॉइंट है जिसे वो बखूबी निभा रहा है पर वो ये भूल गया कि उसके इस कार्य से देश का सिर्फ नुकसान ही हो रहा है। संभल जाओ देशवासियों ये देश हमारा है और इसकी आन बान और शान हमारी एकता सच्चाई प्रेम और ईमानदारी पर है। जय हिंद । जय हिंद
आलोचना करना .. वो भी तथ्यों के साथ व विश्लेषण के साथ …. यह काम चाटुकार नहीं कर सकते। साथ ही आलोचनाओं को मनन कर उसका विश्लेषण करना …. यह आत्ममुग्ध व्यक्ति नहीं करता क्योंकि उसका विवेक केवल उतना ही क्रियाशील है जितने से उसका हित सधता है।
बिल्कुल सही तरीके से पांडेय जी आपने अपनी बात कही है ।ये बाजार है जो सब कुछ कही हद तक मीडिया को मैनेज करता है।मोदी को गाली देने से कुछ नही होगा ये सब पहले से होता ।और ये भी सही है कि कुछ पत्रकार और वेबसाइट एक एजेंडा के तहत सव कुछ के3 लिए मोदी को जिम्मेदार ठहराते है जो गलत है।ट्विटर पर सेलेक्टिव मुद्दे उठाते है ये नकली पत्रकार।
प्रसून जी को सब मालूम है। अब ये अगली सरकार में राज्यसभा जाना चाहते हैं। एजेंडा तो चलना ही पड़ेगा। स्वामिभक्ति तो जतानी पड़ेगी। अगर यू कहे कि प्रसून जी घुटे मुरहे हैं। तो कोई बड़ी बात नही होगी।
आजकल एक प्रथा चल रही है कि कोई ‘बिचारा’ सामने आ जाए, तो बुद्धिजीवी वर्ग उनके अधिकारों का हिमायती बन जाता है । संजय दत्त, सलमान खान, प्रुन्य प्रसून आदि इसके उदाहरण है । फिर इनका अतीत नहीं देखते ।
बाजपाई जी केजरीवाल से सांठ गाँठ करते स्टिंग में कैद हुए थे …. भूल गए ? भाइयों, ये सब करोड़पति हैं और करोड़ो के लिए कुछ भी कर सकते है आप को बेबकूफ भी बना सकते है ।
यदि सरकार या मोदी के खिलाफ बोलना इतना भयाभय है तो यशवंत सिन्हा, शत्रु धन, शौरी के साथ, रवीश कुमार आदि भी निपट जाते अभी तक …. इतनी खिलाफत तो शायद किसी सरकार के खिलाफ नहीं उगली गई, जितनी मोदी सरकार ने झेली है । इंदिरा सरकार ने भी झेली थी तो इमरजेंसी थोप दी गई थी । परंतु आज उनके कामों को याद किया जाता है । ऐसे ही मोदी सरकार के काम याद किए जाएंगे बिना इमरजेंसी के ।
बुद्धिजीवी वर्ग दिमाग के साथ अपनी इंद्रियों का भी इस्तेमाल करे, तो देश का भला होगा । क्योंकि बुद्धि वहीं तक सीमित है जो अब तक दिखाया या पढ़ाया गया है किताबों में । असलियत से रूबरू होने के लिए लालची विरोधी छवि कुछ समय के लिए छोड़कर देखो, अच्छे नहीं तो बेहतर दिन तो चल ही रहे है ।
दयानन्द पाण्डेय जी कभी छी न्यूज़ और सुधीर तिहाड़ी की पत्रकारिता का भी विश्लेषण कीजिये।