अभिषेक श्रीवास्तव-
आज की अप्रिय-अलोकप्रिय बात… अब हम लिखेंगे तो फिर कोई विघ्नसंतोषी बोल देगा। सुबह से बुकर बुकर पढ़ के दिमाग कुकर हो गया है। सेफ़्टी वाल्व फेल हो चुका है। इसलिए लिख दे रहे हैं ताकि सनद रहे अगली बार के लिए; इस बार हिंदी के नाम पर जितनी गंध मचानी है मचा लीजिए, हिंदू राष्ट्र में हिंदी chauvinism की पूरी छूट है। पूरा पढ़िए, आराम से!
बुकर पुरस्कार साम्राज्यवादी लुटेरी कंपनी बुकर समूह के नाम पर दिया जाता है जिसने इसे बंधुआ मजदूरी और बेगारी के लूटे हुए पैसे से बनाया था। इसके मालिकान का ब्रिटिश गुयाना में दास प्रथा खत्म होने के बाद चीनी उत्पादन में बेगारी और गुलामी करवाने का खूनी और कुख्यात इतिहास है। अपने शिखर पर यह कारोबारी साम्राज्य ब्रिटिश गुयाना के 75 फीसद चीनी उद्योग पर कब्जा किए हुए था, उस वक्त लोग गुयाना को ‘बुकर्स गुयाना’ बुलाते थे (देखें Legacies of British Slave-ownership)। 1952 में इस कंपनी का एक फैबियन समाजवादी मालिक बना, जिसने चीनी मजदूरों को थोड़ी राहत दी। यहाँ भारत में टाटा कंपनी बुकर का काम देखती है। अरुंधती को 1997 में इसी चीन के कारोबार वाला पैसा मिला था। हम लोग जिस Westside से कपड़े खरीदते हैं, वो टाटा के माध्यम से मूलतः बुकर की चेन है।
बुकर के पुरस्कार को मैन (MAN) नाम के एक कारोबारी समूह ने 2002 से 2019 तक यानि 18 साल तक प्रायोजित किया। इसलिए इसे मैन बुकर कहा जाने लगा। यह कंपनी आज दुनिया की सबसे बड़ी पब्लिक ट्रेडेड हेज फंड है। मोटे तौर पर हेज फंड मने बिकवाली और लिवाली दोनों में दलाली कर के पैसा बनाने वाली कंपनी। यह कंपनी जेम्स मैन ने 1783 में बनायी थी और ये भी चीनी का धंधा करती थी। 1970 तक मने दो सौ साल तक इस कंपनी के पास ब्रिटेन की रॉयल नेवी को रम सप्लाइ करने का ठेका मिला रहा। चीनी के अलावा काफी, कोको में भी इसका साम्राज्य रहा। बर्नार्ड मैकडॉफ द्वारा किए गए आज तक के दुनिया के सबसे बड़े चिटफंड (ponzi) घोटाले में मैन समूह एक निवेशक था। 2009 में जब यह घोटाला सामने आया, तब वाल स्ट्रीट, न्यू यॉर्क टाइम्स और ब्लूमबर्ग ने इसमें पैसा डालने वालों की सूची छापी थी, जिसमें बुकर पुरस्कार के प्रायोजक मैन ग्रुप का भी नाम था।
2020 से प्रायोजक बदल गया। एक पूर्व पत्रकार और फिलहाल उद्यमी पूंजीपति माइकल मोरिज ने अगले पाँच साल के लिए बुकर पुरस्कार में पैसा लगाया। गीतांजलिश्री को इन्हीं की धर्मार्थ संस्था Crankstart का पैसा मिला है। ये पैसा कहाँ से आया है? पूर्व-पत्रकार मोरिज भाई Sequoia Capital नाम के अमेरिकी वेन्चर कैपिटल फंड के लिए काम करते हैं। यह कंपनी टेक्नोलॉजी उद्यमों में पैसा लगाती है। सिलिकॉन घाटी की यह बहुत बड़ी कंपनी है। कई विवाद झेल चुकी है। आज से अठारह साल पहले मार्क जुकरबर्ग ने फ़ेसबुक के लिए इस कंपनी से पैसा लेने से तकनीकी कारणों से इनकार कर दिया था। 2014 में फ़ेसबुक ने वाट्सअप्प को खरीदने की घोषणा की। इस डील में पता है किसका इकलौता निवेश हुआ था? Sequoia का! और एक दो पैसा नहीं, वाट्सअप्प के पूरे 40 फीसदी का मालिकाना Sequoia का हुआ, जिसके केवल 60 फीसद के मालिक भाई जुकरबर्ग हैं। 2014 के बाद वाट्सअप्प ने इस देश-दुनिया का क्या किया है, बताने की जरूरत नहीं है। इस तबाही में 40 पर्सेन्ट योगदान बुकर के फंडर Sequoia का है।
कहने का आशय ये है कि सौ दो सौ साल पहले किसान मजदूरों के चूसे खून से लेकर आज नागरिकों की जासूसी करने से बनाया हुआ पैसा ही साहित्यिक चैरिटी में लग रहा है। इधर हम हैं कि सब कुछ भूल भुला के ताली बजाए जाते हैं। ऐसे लड़ेंगे फासीवाद से, साथी? ऐसा भी क्या भाषाई गौरव है, यार?
सत्य पारीक
May 28, 2022 at 10:55 am
बधाई हो बुकर की पोल खोलने की, ये पुरुस्कार सम्मान का ना होकर गुलामी की मुर्गी का अंडा है