वरिष्ठ पत्रकार क़मर वहीद नक़वी ने पैग़ंबर मोहम्मद साहब के अपमान के मुद्दे पर मुसलमानों की हिंसक प्रतिक्रिया को लेकर कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। मुसलमानों को इन पर पूरी शिद्दत के साथ ग़ौर करना चाहिए।
Qamar Waheed Naqvi–
भारतीय मुसलमानों से एक संवाद। नीचे मेरे 16 ट्वीट का एक थ्रेड है। यह ट्वीट कल यानी 11 जून 2022 को किये गये थे। मुझे लगा कि यह संवाद फ़ेसबुक पर भी जाना चाहिए, इसलिए यहाँ दे रहा हूँ।
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नूपुर शर्मा की टिप्पणी से उपजे विवाद पर भारतीय मुसलमानों का एक वर्ग दो हफ़्ते बाद जो ग़ुस्सा जता रहा है, वह बिलकुल बेतुका है और राजनीतिक नासमझी का सबूत है। उनका ग़ुस्सा इतने दिनों बाद क्यों भड़का? क्या उनके पास इस सवाल का कोई तार्किक जवाब है?
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ज़ाहिर है कि व्यापक अरब प्रतिक्रिया के बाद भारतीय मुसलमानों के इस वर्ग को लगा कि उन्हें भी कुछ करना चाहिए । मैंने अपने पिछले ट्वीट में कहा था कि अरब प्रतिक्रिया पर हड़बड़ी में क़दम उठा कर बीजेपी भारतीय मुसलमानों को ग़लत संकेत दे रही है। और वही हुआ भी।
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हालाँकि अरब प्रतिक्रिया के बाद मोदी सरकार के पास ऐसा क़दम उठाने के सिवा और कोई चारा भी नहीं था। सरकार ने यही क़दम पहले उठा लिया होता तो मामला बढ़ता ही नहीं। सरकार की तरफ़ से यह बड़ी ग़लती हुई। अब इस मामले में विलम्बित प्रदर्शन कर भारतीय मुसलमान जवाबी ग़लती कर रहे हैं।
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वे कौन लोग हैं जिन्होंने नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिन्दल को धमकियाँ दीं और क्यों? जुमे की नमाज़ के बाद देश के कई हिस्सों में क्यों हिंसा की गयी? ऐसा करके इन लोगों ने उस व्यापक भारतीय जनमत की अवहेलना की है, जो इस मामले में पूरी एकजुटता से उनके साथ खड़ा था।
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भारतीय मुसलमानों का एक वर्ग यदि यह सोचता है कि अरब समर्थन से उसका सीना चौड़ा हो गया है तो यह निरी मूर्खता है। भारतीय मुसलमानों का हित केवल और केवल इस बात में ही है और रहेगा कि व्यापक भारतीय जनमत का समर्थन उसके साथ रहे। यह बात समझनी ही पड़ेगी।
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मैं इस बात का सख़्त विरोधी हूँ कि भारतीय मुसलमानों का नेतृत्व उलेमा या पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे किसी धार्मिक संगठन के हाथ में हो। दो कारण हैं। पहला यह कि धार्मिक नेतृत्व किसी समाज को प्रगति के रास्ते पर ले ही नहीं जा सकता क्योंकि ऐसा नेतृत्व अनिवार्य रूप से रूढ़िवादी होता है।
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दूसरा कारण यह कि आज़ादी के बाद से अब तक मुसलमानों के इस धार्मिक नेतृत्व ने लगातार साबित किया है कि उनमें रत्ती भर भी राजनीतिक समझ और दूरदर्शिता नहीं है। शाहबानो विवाद, यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड, बाबरी मसजिद समेत तमाम मुद्दों पर यह राजनीतिक नासमझी खुल कर सामने आ चुकी है। (टिप्पणी: शाहबानो विवाद पर मेरा रुख़ क्या था, यह कोलकाता से प्रकाशित साप्ताहिक ‘रविवार’ में आज से 37 साल पहले, 1985 के किसी अंक में छपा था। हालाँकि वह अंक अब मेरे पास नहीं है। यह सूचना मेरे ट्वीट में शामिल नहीं थी)
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इस नेतृत्व ने भारतीय मुसलमानों को धार्मिक आवेश के हवाई गुब्बारे में फुला कर ज़मीनी सच्चाई से उनका मुँह मोड़ दिया, वे प्रगति के मोर्चे पर तो पिछड़े ही, उनकी सोच और छवि पर भी बुरा असर पड़ा। दूसरे, इस नेतृत्व की लफ़्फ़ाज़ियों से संघ का समर्थन लगातार बढ़ा, उसे नये तर्क मिले।
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ओवैसी समेत कुछ कोशिशें मुसलमानों की अपनी राजनीतिक ताक़त खड़ी करने की भी हुई, लेकिन सभी नाकाम हुईं और आगे भी होंगी। तीन कारण हैं। पहला, उन्होंने हमेशा मुसलमानों के धार्मिक नेतृत्व के एजेंडे को ही आगे बढ़ाया, उसे बदलने की कोई कोशिश कभी की ही नहीं।
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दूसरा, केवल मुसलमानों के नाम पर बनी पार्टी को व्यापक भारतीय जनमत का समर्थन कभी मिल ही नहीं सकता, तो वोट की राजनीति में ऐसी पार्टी कुछ कर ही नहीं सकती। ज़्यादा से ज़्यादा ऐसे नेता जोशीले नारे और भड़काऊ भाषण देकर सभाओं में तालियाँ बजवा सकते हैं, बस।
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फिर ऐसी कोई भी पार्टी अन्ततः ‘जिन्ना सिंड्रोम’ को जन्म देकर हिन्दुत्ववादी ताक़तों को हिन्दुओं में असुरक्षा की भावना भड़काये रखने के लिए नये तर्क देती है। ज़ाहिर है इससे मुसलमानों का कभी कोई भला नहीं हो सकता। इसका राजनीतिक लाभ हमेशा हिन्दुत्ववादी ताक़तों को ही मिलता है।
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मुसलमानों का सबसे बड़ा संकट यही है कि उनके पास कोई ऐसा नेतृत्व नहीं है, जो उन्हें धार्मिक कटघरे से निकाल कर उनमें नयी सोच जगा कर लोकतंत्र में अपना जायज़ हिस्सा पाने के लिए उन्हें रास्ता दिखा सके।
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हिन्दुत्ववादी ताक़तें इस स्थिति से ख़ुश हैं क्योंकि इससे उनका जनाधार लगातार बढ़ता गया है। तथाकथित सेकुलर दलों ने भी मुसलमानों का हमेशा नुक़सान ही किया है क्योंकि वे मुसलिम नेतृत्व की नासमझियों की आलोचना कर उन्हें सही रास्ता दिखाने के बजाय चुप रहे।वोट बैंक की मजबूरियाँ!
(टिप्पणी: वैसे अब तो मुसलमानों को और सेकुलर दलों को भी अच्छी तरह समझ में आ जाना चाहिए कि शार्ट टर्म के फ़ायदे के लिए उन्होंने जिस राजनीति को पाला-पोसा, उससे मुसलमानों और सेकुलर दलों दोनों को ही दीर्घकालिक बहुत बड़ा या कहें कि आत्मघाती नुक़सान हुआ है। सेकुलर दल अब यह समझ नहीं पा रहे हैं कि हिन्दुत्व की राजनीति की काट वे कैसे करें, वहीं वोट की राजनीति में मुसलमानों की भूमिका अब शून्य हो चुकी है। यह बात मेरे मूल ट्वीट में नहीं थी, इसे यहाँ जोड़ा है)
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सेकुलर चिन्तकों ने हिन्दू साम्प्रदायिकवाद की तो खुल कर आलोचना की, लेकिन मुसलमानों के ऐसे क़दमों पर बोलने से बचते रहे, जब उन्हें बोलना चाहिए था। क्योंकि इससे उनके उदारवादी लेबल को नुक़सान पहुँचता। इन सब कारणों से मुसलमान ज़मीनी सच्चाइयों से दूर एक अलग लोक में जीते रहे।
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पढ़े-लिखे मुसलमानों और मुसलिम युवाओं को नये सिरे से सोचना होगा, नया विमर्श चलाना होगा और नयी सोच का एक नया मुसलिम समाज गढ़ना होगा। उन्हें यह समझना होगा कि भावनाओं के ज्वार में बह जाने के बजाय अपनी जायज़ बातें रखने और उन्हें मनवा लेने के और रास्ते क्या हैं?
(16)
यह बात मुसलमानों को समझनी ही होगी कि एक सेकुलर समाज में ही उनका भविष्य बेहतर है और रहेगा। इसलिए उन्हें अपना नेतृत्व भी सेकुलर राजनीतिक ढाँचे में ही देखना होगा। और धार्मिक मुद्दों के बजाय अपने आर्थिक मुद्दों और सामाजिक सुधारों पर ही पूरा ध्यान लगाना होगा।
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पढ़ने के लिए धन्यवाद।
JITENDER SINGH BISHT
June 12, 2022 at 6:37 pm
बहुत सही बात
srinivas
June 12, 2022 at 9:33 pm
बहुत जरूरी हस्तक्षेप. हर विवेकवान मुसलिम और हिंदू को भी इसे सही स्पिरिट में लेना चाहिए. मुसलिमों के कथित हितैषी उनको उकसा कर दरअसल अपना हित साध रहे हैं; उधर संकीर्ण हिंदूवादी प्रसन्न हो रहे हैं. वे मुसलिम समाज को जैसा बताने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे नाहक और हंगामाखेज विरोध से उनका मकसद ही सफल हो रहा है. उम्मीद करें कि नकवी साहब के सुझाओं को गंभीरता से लिए जायेगा.
श्रीनिवास , रांची.
महेन्द्र 'मनुज'
June 13, 2022 at 9:07 am
अच्छा लगा नकवी जी! किसी बुद्धिजीवी ने पहल तो की!! तहा सिद्दीकी पाकिस्तानी फ्त्रकार हैं, उन्होंने भी क्रान्ति का बिगुल फूँका है।
जाहिलों की जकड़ से इन्सानियत/ मोहब्बत आजाद होनी ही चाहिये।
16 बिन्दुओं के लिये 16 बार शुक्रिया…
Ramchandra Prasad
June 13, 2022 at 3:33 pm
सवाल है कि आपकी यह सोच कितने मुसलमानों तक पहुँचेगी और फिर कितने मुसलमान इससे सहमत होंगे ।
Anurag Anuragi
June 13, 2022 at 10:42 pm
बहुत ही सटीक और यथार्थ विश्लेषण, सर!
शतप्रतिशत सहमत