डॉ राकेश पाठक
प्रधान संपादक, कर्मवीर
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बीती रात महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ केंडिल मार्च पर क्या निकले बेचारे गोदी मीडिया की छाती पर कालिया नाग लोटने लगे..! स्टूडियो में बैठे दिव्य दृष्टि एंकर से लेकर राजपथ पर डटे रिपोर्टर इस मिडनाइट मार्च से इतने व्यथित हो गए कि “तुरंता न्याय” पर उतारू हो गए। हर एंगिल से राहुल गांधी और कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की लेकिन जनता के जवाब ने उनके मुंह पर तमाचे से जड़ दिए।
वैसे न्यूज़ चैनल बहुत कम देखता हूँ। कल अचानक राहुल के केंडिल मार्च की ख़बर चली तो जिज्ञासावश चैनलों पर टप्पे खाये।
सिर्फ चंद घन्टे के कॉल पर रात 11 बजे से ही भीड़ जुटना शुरू हुई। चैनल भी “मरता क्या न करता” के अंदाज़ में कवर करने पहुंचे। जैसे जैसे भीड़ बढ़ी चैनलों का दुख बढ़ने लगा। एंकर की आवाज़ में साफ झलकने लगा कि अरे ये राहुल गांधी के आह्वान पर इतने लोग कैसे आ रहे हैं..? कुछ देर तक संख्या को “हज़ार” पर अटकाए रहे फिर बड़ी मुश्किल से ‘हज़ारों’ कहने की हिम्मत जुताई।
फिर शुरू हुआ कांग्रेस के नेताओं का ‘ट्रायल’…’रिपोर्टर देवदूत’ और ‘एंकर देवता’ पिल पड़े..’निर्भया’ के समय आप क्यों नहीं निकले थे.. कांग्रेस अब राजनीति कर रही है ..आदि आदि।
इसका मुंहतोड़ जवाब नेताओं से ज्यादा आम लोगों ने दिया। लोगों ने कहा आपकी यादाश्त ठीक नहीं है। ‘निर्भया आंदोलन’ के समय सोनिया गांधी आधी रात को आंदोलनकारियों से मिलने घर के बाहर आईं थीं। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भारी आक्रोश के बीच भी जन्तर मंतर आईं और खूब खरी खोटी सुनी थी।
नेताओं ने याद दिलाया कि यूपीए सरकार ने ही कड़ा कानून बनाया था आज की तरह सरकार मौन नहीं थी। बेचारे एंकर सारे हाथ पैर मारकर भी अपने मंसूबे पूरे करने में विफल रहे। एक एंकर ने तो दिमाग का “सारा दाना” लगा दिया कि किसी भी तरह इस केंडिल मार्च को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाए।
भारी भीड़ में धक्का मुक्की से नाराज़ प्रियंका की कार्यकर्ताओं को डांट ने मौका दिया लेकिन वह चार पांच सेकेंड का विसुअल भी ज्यादा देर ठहर नहीं पाया। केंडिल मार्च खत्म होने पर जैसा हमेशा होता है लोग विसर्जित होने लगे। रिपोर्टर जी पूरी दम से बताने लगे कि देखिये इंडिया गेट खाली हो गया है। (भइये …तो क्या केंडिल मार्च रात भर का डेरा था..?)
आम लोग इस मार्च में शामिल हुए ये बताने तक में चैनलों के प्राण सूख रहे थे…बड़ी मुश्किल से बताया गया कि हां आम जनता भी इसमें शामिल हुई। दो छात्राओं ने जब सीधे नरेंद्र मोदी पर खुल कर बोलना शुरू किया तो कैमरा जल्द हटाने के अलावा बेचारों पर रास्ता ही क्या था..!
सारे चैनल्स का यही हाल था..रोये से पड़ रहे थे कि हाय राहुल गांधी ने ये क्या किया…उस पर भी जब राहुल ने ये कह दिया कि ये राजनैतिक नहीं देश का मामला है तब तो बेचारों को काठ मार गया। पूरे आयोजन में लगभग हर रिपोर्टर और एंकर इस बात से दुखी लग रहा था कि ऐसा कुछ क्यों नहीं हो रहा जिससे रायता फैलाया जा सके..! बेचारे।
(याद रखिये कि ये वही गोदी मीडिया है जो हमेशा राहुल गांधी के कुछ न करने का राग अलापता रहता है और कल जब राहुल सड़कों पर उतर आए तो उन्हीं को निशाने पर लिए था)
एक सच्चा भारतीय होने के नाते मैं महिलाओं पर अत्याचार के विरोध में उठने वाली हर आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाता हूँ।
इति।
लेखक डॉ राकेश पाठक वरिष्ठ पत्रकार और कर्मवीर के प्रधान संपादक हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.