Connect with us

Hi, what are you looking for?

वेब-सिनेमा

दिल्ली की ‘सेटल्ड’ लाइफ़ और ‘प्रॉमिसिंग करियर’ छोड़कर पहाड़ से एकतरफ़ा मोहब्बत में शुरू किया गया जुनूनी काम है ‘बारामासा’!

राहुल कोटियाल-

पत्रकारिता करते हुए मुझे एक दशक पूरा होने को है. नौ साल और कुछ महीने पहले ये सफर तहलका से शुरू हुआ था. मैं खुश क़िस्मत रहा कि इस सफर में लगभग वो सब कुछ मुझे मिला, जिसकी इच्छा इस पेशे में आने वाले किसी भी नए पत्रकार को होती है. लेकिन इस दौरान ख़ुशी के कुछ पल ऐसे भी आए जिन्हें शब्दों में कभी बांध नहीं पाया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐसा पहला पल वो था जब तहलका के दफ़्तर में मेरे नाम पहला पोस्ट-कॉर्ड आया था.

बिहार में छातापुर नाम की कोई जगह है. इस जगह का नाम पहली बार मैंने इस पोस्ट-कॉर्ड में ही देखा था. वहां से किसी ने मुझे पत्र लिखकर खूब तारीफ़ की थी. वो पोस्ट-कॉर्ड आज भी मेरे पास कहीं सुरक्षित रखा है. अब जब लेखक को प्रतिक्रिया देना सिर्फ़ एक क्लिक की दूरी भर रह गया है, तब उस पोस्ट-कॉर्ड की अहमियत और भी बढ़ गई है जो किसी ने मुझे प्रतिक्रिया भेजने के लिए विशेष रूप से पोस्ट-ऑफ़िस जाकर ख़रीदा होगा, अपनी हैंड-राइटिंग में लिखा होगा और फिर पोस्ट के ज़रिए बिहार से दिल्ली भेजा होगा…

Advertisement. Scroll to continue reading.

आगे चलकर जब पहली बार रामनाथ गोयनका अवार्ड मिला तो यक़ीन मानिए उसकी ख़ुशी छातापुर से आए पोस्ट-कॉर्ड की ख़ुशी से कमतर ही रही.

ख़ुशी का ऐसा दूसरा मौक़ा तब आया जब रविश कुमार ने मेरी एक स्टोरी की तारीफ़ करते हुए अपने ब्लॉग पर लिखा. जिस व्यक्ति के काम को देखते हुए हम पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे थे, उसने जब तारीफ़ की तो पैर जमीन पर नहीं टिके…

Advertisement. Scroll to continue reading.

फिर एक मौक़ा ऐसा भी आया जब मौर्या शेरेटन के कमल हॉल में गोयनका अवार्ड लेने के लिए मैं रविश सर के बग़ल में बैठा था. दूसरी बार ये अवार्ड मिलना और वो भी रविश सर के साथ मिलना, मेरे लिए बहुत बड़ा तीर था, लेकिन इसकी ख़ुशी भी उस तुलना में कमतर ही थी जो ख़ुशी तब मिली थी जब उन्होंने तारीफ़ करते हुए अपने ब्लॉग में जिक्र किया था…

बीते नौ सालों के सफर में मैंने देश के कोने-कोने से रिपोर्ट की. बस्तर के जंगलों से लेकर कश्मीर की घाटी तक खूब रिपोर्ट्स की, उनकी खूब सराहना भी हुई और उनके चलते गोयनका से लेकर रेड इंक तक अवार्ड भी मिले. लेकिन मैं आज इनका जिक्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि आज फिर से वैसी ही ख़ुशी हो रही है जैसी छातापुर से आए पोस्ट-कॉर्ड पर हुई थी और और जैसी रविश सर के ब्लॉग लिखने पर…

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस ख़ुशी का पहला कारण Ashok Pande सर से मिली तारीफ़ है. जिनकी जादुई लेखनी पढ़ने के बाद मैं कई दिनों तक उनके ‘हैंगोवर’ से नहीं निकल पाता. उन्होंने जब आज फ़ोन करके काम की तारीफ़ की तो लगा ये नया सफर शुरुआत में ही अपना मुक़ाम पा गया हो जैसे…

ख़ुशी का दूसरा कारण Jey Sushil भैया से मिली तारीफ़ है. सीधे-सपाट-बेधड़क और बिना लाग-लपेट अपनी बात कहने वाले जे भैया ने काम को सराहा तो दिल बल्लियों उछलने को हो गया….

Advertisement. Scroll to continue reading.

इन ख़ुशियों पर चार चांद इसलिए भी लगे हैं क्योंकि ये ‘बारामासा’ (Baramasa.in) के उस काम की तारीफ़ है जो मेरे दिल के बेहद क़रीब तो है, लेकिन मेरे लिए बहुत नया भी है. दिल्ली की ‘सेटल्ड’ लाइफ़ और ‘प्रॉमिसिंग करियर’ छोड़कर पहाड़ से एकतरफ़ा मोहब्बत में शुरू किया गया जुनूनी काम है.

इस मोहब्बत को दाद मिली तो भरोसा बढ़ गया है कि:

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘तलब-ए-आशिक़-ए-सादिक़ में असर होता है
गो ज़रा देर में होता है मगर होता है.’

चुनिंदा टिप्पणियाँ-

Advertisement. Scroll to continue reading.

Jey Sushil- सुंदर इंटरव्यू हुआ है शेखर जी का. मैं और वीडियोज़ भी देखूंगा. मैं नए लोगों से सीखता हूं और कहता हूं कि जब राहुल हिंदी में अच्छा काम कर सकता है तो बाकी लोग भी कुछ अच्छा कर सकते हैं. हिंदी पत्रकारिता में शिकायत करने वाले बहुत हैं लेकिन इसी हिंदी के कथित गंध में राहुल ने काम कर के अपनी एक पहचान बनाई है. ये नई परियोजना भी अच्छी लग रही है. पहाड़ के बारे में लोग बहुत कुछ नहीं जानते हैं. मैं फिलहाल इस बात से खुश हूं कि मुझे जो अच्छा लगा वो अशोक जी को अच्छा लगा. अशोक जी बहुत प्यारे हैं. उनसे मिलना है. मैं फोन करना चाहता था लेकिन तुम्हारा नंबर नहीं है मेरे पास शायद. फिर मन भी भरा हुआ था तो फोन नहीं किया मैंने. पहाड़ का भी एक भंवरजाल बुना गया है जहां कुछ लोगों के नाम बताए जाते हैं जबकि पहाड़ अपने आप में एक समुदाय है. मैं पहाड़ को उसके दिल्ली वाले कवियों-साहित्यकारों से इतर देखना-समझना चाहता हूं. मैं पहाड़ को विचारों और वादों के परे देखना-समझना चाहता हूं. मेरे परिचितों में सब लोग कवियों-साहित्यकारों का नाम लिया करते थे. किसी ने कबाड़खाना के बारे में नहीं बताया. किसी ने शेखर पाठक के बारे में नहीं बताया. कभी कभी कोफ्त होती है कितना कुछ जानना समझना रह गया है. मैं तुम्हारे यूट्यूब के चैनल को खुद के लिए और दुनिया के लिए पहाड़ की खिड़की की तरह देखता हूं. यात्राओं से मेरा अपना एक रिश्ता है शायद ये कारण हो कि मुझे शेखर जी का इंटरव्यू अतिरिक्त अच्छा लगा है. किसी दिन फोन करता हूं.

Mahesh Punetha- अब तक आये तीनों वीडियो शानदार हैं । बेहतर की संभावना तो हमेशा बनी रहती है। आप लोगों की युवा,रचनात्मक और ऊर्जावान टीम है,जिससे बहुत अधिक अपेक्षा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

YouTube पर बारामासा चैनल देखने-सब्स्क्राइब करने के लिए क्लिक करें- https://youtube.com/c/baramasa


ये Interview देखें- हिमालय का घुमक्कड़

Advertisement. Scroll to continue reading.

Baramasa.in की ख़ास सीरीज़ #GaaneKeBahane में कहानी उत्तराखंड के सबसे मशहूर लोक गीत के बनने और फिर छा जाने की.. To watch the complete program please click the link- https://youtu.be/v-jL8YpT-PA


1 Comment

1 Comment

  1. डॉ अशोक कुमार ओझा

    March 22, 2023 at 6:26 pm

    बड़ा ही रोचक प्रसंग वर्णित किया है। और भी ऐसे blogs आयेंगे तो आनंद आयेगा। पत्रकारिता अपने आप में ही आम जनता से जुड़ने के लिये एक अद्भुत जरिया है अगर सही मायने में सत्यता से एवम तर्क संगत से लिखी गई हो या फिर प्रसारित की गई हो। आशा अच्छे लेखों को पढ़ने का अनुभव एवं आनंद मिलेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement