Sunil Singh Baghel-
क्या आप जानते हैं घंटों के सफर में लोको पायलट, यानी रेल इंजन ड्राइवर के पास बिना कुछ किए चुपचाप बैठने के लिए अधिकतम समय 1 मिनट 16 सेकंड होता है.. यदि इतने समय में ड्राइवर ने कोई हरकत नहीं की तो, ट्रेन में ऑटोमेटिक ब्रेकिंग शुरू हो जाएगी ..
आपको लग सकता है कि पटरियों पर दौड़ते इंजन में ड्राइवर के पास करने के लिए क्या होता होगा.. रेड सिग्नल देख ब्रेक लगा गाड़ी रोक देना, ग्रीन पर एक्सीलेटर बड़ा चल देना.. लेकिन ऐसा नहीं है.. आइए मेरे साथ करते हैं एक सफर ,देश के सबसे ताकतवर 12 हजार एचपी के रेल इंजन ‘राफेल’ के साथ–
डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) यानी सिर्फ माल गाड़ियों के लिए 95 हजार करोड़ की लागत से बन रहा 33 किलोमीटर लंबा ट्रैक।
हम आज इसी DFC के 1500 किलोमीटर लंबे, पश्चिमी कॉरिडोर पर सफर करेंगे.. जयपुर के पास न्यू फुलेरा स्टेशन… हम दिल्ली की तरफ चले ही थे की थोड़ी देर में ही स्पीड 90 चुकी है। लोको पायलट कहते हैं ,देखिए कितना ताकतवर है हमारा ‘राफेल’.. दो डबल डेकर माल गाड़ियां, यानी रेलवे की 4 मालगाड़ी के बराबर लोड कर कैसा ‘मिल्खा सिंह’ बना हुआ है..।
वे बताते हैं ‘राफेल’ तो हम लोगों का दिया निकनेम है। यह हमारे देश में ही मधेपुरा बिहार में बना है। फ्रांस के सहयोग से बना 12 हजार हॉर्स-पावर का देश का सबसे सबसे ताकतवर इलेक्ट्रिक इंजन है। दो हिस्सों में बना यह इंजन, देश के दूसरे इंजन से 2 गुना लंबा है… स्पीड 95 पहुंच गई है.. नाश्ता की फोटो की कितनी जल्दी.. अरे अभी तो कुछ भी लोड नहीं है..यह तो एनाकोंडा, वासुकी को भी ऐसे ही मजे से खींच ले जाता है।
मैं चौंकता हूं एनाकोंडा..!! यह ‘वासुकी’ क्या है?
इसी बीच शायद ट्रैक पर ढलान के चलते, अचानक स्पीड 100 किमी. की स्वीकृत सीमा को पार करने लगती है। चिंतित लोको पायलट हमसे बात बंद कर स्पीड कंट्रोल करने में जुट जाते हैं।
ऑपरेशन इंचार्ज सतवीर सिंह बताते हैं दरअसल डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के स्टेशन यार्ड, इंडियन रेल के 700 मीटर के मुकाबले डेढ़ किलोमीटर के हैं। इसलिए हम कभी-कभी दो-तीन माल गाड़ियां एक साथ जोड़ कर भी चलाते हैं। इसे ही हम कभी वासुकी, कभी शेषनाग तो कभी एनाकोंडा कहते हैं।इसी बीच इंजन के कंट्रोल पैनल पर फ्लैश लाइट के साथ वार्निंग बीप बज उठती है।
पायलट बताते हैं ट्रेन आराम से चल रही हो तो भी हमें, हर 1 मिनट में इस बटन को दबाकर इंजन को संकेत देना पड़ता है कि हम सजग हैं। नहीं दबाया तो 8 सेकंड बाद में वार्निंग लाइट फिर वार्निंग साउंड आता है। फिर भी हमने कोई एक्शन कर सिग्नल नहीं दिया तो, गाड़ी हमें अनहोनी का शिकार मानकर, खुद बा खुद रुक जाती है।
इंजन केबिन पीछे तरफ फैली में कुछ मसाला और सब्जियां नजर आती है.. मैं पूछता हूं यह आटा दाल चावल नमक तेल सब्जी का ट्रेन में क्या काम है.. पायलट बताते हैं यह हमारी लाइफ लाइन है.. हमें 48 घंटे तक मुख्यालय से बाहर रहना पड़ता है.. इसलिए पूरा राशन लेकर चलते हैं… यह ट्रैक और स्टेशन तो सिर्फ माल गाड़ियों के लिए है..
यदि किसी स्टेशन पर रात को 2:00 बजे उतरे तो वहां पर कहां खाना मिलेगा..? तो अब आप लोग फिर ड्यूटी के बाद इतनी रात को खाना बनाएंगे ..? नहीं ऐसा नहीं है हर हाल्टिंग स्टेशन पर कुक की व्यवस्था होती है पर राशन हमें देना होता है.. 24 घंटे में कभी भी पहुंचे हमें कुछ मिलता है..।
ऐसे ही बातों बातों में करीब ढाई घंटे में हम न्यू अटेली स्टेशन पहुंच गए हैं..। मैं दोनों लोको पायलट से विदा लेता हूं.. आते जाते इंजन में हमने करीब साढे 450 किलोमीटर का सफर 5.30-6 घंटे में पूरा किया किया। सामान्य रेलवे ट्रैक पर यही सफर तय करने में 10 से15 घंटे लगना सामान्य बात है।
Manish Mishra
October 18, 2021 at 9:24 pm
बहुत सुंदर रिपोर्ट…. और जानने की उत्कंठा बढ़ गई….