विक्रम बृजेंद्र सिंह-
इतिहास का भूला हुआ सच.. जिसे अधिकांश सुल्तानपुरवासी नहीं जानते ! ११वीं-१२ वीं सदी में जब भारत लगातार अरब देशों के मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण झेल रहा था, आम जनता उनकी दरिंदगी और जुल्म का शिकार हो रही थी, उस वक़्त मध्यप्रदेश के सागर से लेकर नेपाल की सरहद गोरखपुर तक, भदोही से लेकर बहराइच तक निडर, लड़ाकू, पराक्रमी शिवभक्त भरों का आधिपत्य था।
भगवान शिव के अनन्य भक्त, शैव मतावलंबी, युद्ध विद्या में निपुण,परम प्रतापी भरों को इसी वजह से ‘भारशिव’ व ‘राजभर’ भी कहा जाता है। सैकड़ों गढ़, दुर्ग व किले इन्हीं राजभरों के आधिपत्य में थे। सुल्तानपुर भी उन्हीं में से एक था। अलबत्ता..तब वो सुल्तानपुर नहीं बल्कि ‘कुशपुर’ या ‘कुशभवनपुर’ कहा जाता था।’गजेटियर ऑफ अवध’, सुल्तानपुर गजेटियर व इम्पीरियल गजट आदि अनेकों आधिकारिक किताबों में इसका जिक्र है। नेपाल की सरहद से सटे श्रावस्ती-बहराइच में महाप्रतापी भर राजा सुहेलदेव व कुशपुर (मौजूदा सुल्तानपुर) में नंद कुंवर की सत्ता थी।
उससमय कुशपुर का किला मौजूदा शहर के उत्तर गोमती तट पर स्थित था। यह किला सामरिक दृष्टि से भर राजा नंदकुंवर का अभेद्य दुर्ग था। …धीरे-धीरे वक़्त ने रफ्तार पकड़ी। लुटेरे महमूद गजनवी का भांजा सैय्यद सालार मसऊद गाजी भी अपने मामा से प्रेरित होकर अवध की समृद्धि और संपन्नता से ललचाया यवनों की विकराल सेना के साथ हाहाकार मचाता, लूटमार करता, गांव-नगर उजाड़ता आ पहुंचा। अयोध्या स्थित श्रीरामजन्मभूमि पर भी उसने कुदृष्टि डाली ! खैर…बहराइच-श्रावस्ती में उससे मोर्चा लिया महापराक्रमी राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में तत्समय के देशी रजवाड़ों की सेनाओं ने ! लोमहर्षक युद्ध में अनूठे रणकौशल से सुहेलदेव की सेना ने गाजी को मार गिराया। इधर , चूंकि श्रावस्ती के साथ कुशपुर भी गाज़ी के टारगेट पर था।
इसलिए उसने अपने खास पांच खास सिपहसालारों को राजा नंदकुंवर का भेद जानने व किले की व्यूहरचना की टोह लेने घोड़ों के व्यापारी के रूप में कुशपुर भेज दिया था। बदकिस्मती थी गाजी की..राजा नंदकुंवर के गुप्तचरों ने गाजी के सिपहसालारों सैय्यद महमूद व सैय्यद अलाउद्दीन आदि को पहचान लिया ! नतीजा,भरों ने उन्हें मार गिराया। इसतरह गाजी सुहेलदेव के हाथों श्रावस्ती में मारा गया और कुशपुर में नंदकुंवर के हाथों उसके सिपहसालार।…समय बीता , दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी को जब गाजी के सिपहसालारों की कुशपुर में की गई हत्या की जानकारी मिली तो वो गुस्से से उबल उठा।
उसने बड़ी विशाल सेना नंदकुंवर से मोर्चा लेने को भेज दी।जो करौंदिया के जंगलों में दूसरे तट पर साल भर डेरा डाले पड़ी रही। क्योंकि बरसात का मौसम था। इसके बाद कुशपुर किले पर खिलजी की फौज ने हमला बोला।..नंदकुंवर धोखे से मारे गए। इसी शिकस्त के साथ शिवभक्त भरों का साम्राज्य सदैव के लिये समाप्त हो गया। खिलजी ने कुशपुर(कुशभवनपुर) का नाम बदलकर ‘सुल्तानपुर’ रख दिया। बावजूद इसके सुहेलदेव को तो सभी जानते हैं लेकिन कुशपुर के प्रतापी राजा नंद कुंवर अभी भी गुमनामी के अंधेरे में हैं। हालांकि कुशपुर के टीले के रूप में मौजूद राजा नंदकुंवर के दुर्ग के खंडहर आज भी उस गुमनाम इतिहास की गवाही देने के लिये मौजूद हैं।
विक्रम बृजेंद्र सिंह
सुल्तानपुर (यूपी)
मो.९४१५०७७३७५
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Awadhesh Rajbhar
January 26, 2022 at 11:32 pm
Jay bhar Raja nand kuwar Rajbhar ji
Aman Singh Rajbhar
March 15, 2022 at 9:24 am
Jai Bhar Raja Nandkuwar Rajbhar Har Har महादेव
Rameshwar Rajbhar
March 30, 2023 at 4:41 pm
Jai bhar raja
Dhananjay Mishra
October 13, 2023 at 2:45 pm
हर हर महादेव जय हो राजा नंद कुवर की