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राजस्थान

एक और खैरलांजी : दलितों की कब्रगाह बनता जा रहा राजस्थान का नागौर जिला

राजस्थान की राजधानी जयपुर से तक़रीबन ढाई सौ किलोमीटर दूर स्थित अन्य पिछड़े वर्ग की एक दबंग जाट जाति की बहुलता वाला नागौर  जिला इन दिनों दलित उत्पीडन की निरंतर घट रही शर्मनाक घटनाओं की वजह से कुख्यात हो रहा है. विगत एक साल के भीतर यहाँ पर दलितों के साथ जिस तरह का जुल्म हुआ है और आज भी जारी है ,उसे देखा जाये तो दिल दहल जाता है ,यकीन ही नहीं आता है कि हम आजाद भारत के किसी एक हिस्से की बात कर रहे है .ऐसी ऐसी निर्मम और क्रूर वारदातें कि जिनके सामने तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों द्वारा की जाने वाली घटनाएँ भी छोटी पड़ने लगती है .क्या किसी लोकतान्त्रिक राष्ट्र में ऐसी घटनाएँ संभव है ? वैसे तो असम्भव है ,लेकिन यह संभव हो रही है ,यहाँ के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचें की नाकामी की वजह से …

<p>राजस्थान की राजधानी जयपुर से तक़रीबन ढाई सौ किलोमीटर दूर स्थित अन्य पिछड़े वर्ग की एक दबंग जाट जाति की बहुलता वाला नागौर  जिला इन दिनों दलित उत्पीडन की निरंतर घट रही शर्मनाक घटनाओं की वजह से कुख्यात हो रहा है. विगत एक साल के भीतर यहाँ पर दलितों के साथ जिस तरह का जुल्म हुआ है और आज भी जारी है ,उसे देखा जाये तो दिल दहल जाता है ,यकीन ही नहीं आता है कि हम आजाद भारत के किसी एक हिस्से की बात कर रहे है .ऐसी ऐसी निर्मम और क्रूर वारदातें कि जिनके सामने तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों द्वारा की जाने वाली घटनाएँ भी छोटी पड़ने लगती है .क्या किसी लोकतान्त्रिक राष्ट्र में ऐसी घटनाएँ संभव है ? वैसे तो असम्भव है ,लेकिन यह संभव हो रही है ,यहाँ के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचें की नाकामी की वजह से ...</p>

राजस्थान की राजधानी जयपुर से तक़रीबन ढाई सौ किलोमीटर दूर स्थित अन्य पिछड़े वर्ग की एक दबंग जाट जाति की बहुलता वाला नागौर  जिला इन दिनों दलित उत्पीडन की निरंतर घट रही शर्मनाक घटनाओं की वजह से कुख्यात हो रहा है. विगत एक साल के भीतर यहाँ पर दलितों के साथ जिस तरह का जुल्म हुआ है और आज भी जारी है ,उसे देखा जाये तो दिल दहल जाता है ,यकीन ही नहीं आता है कि हम आजाद भारत के किसी एक हिस्से की बात कर रहे है .ऐसी ऐसी निर्मम और क्रूर वारदातें कि जिनके सामने तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों द्वारा की जाने वाली घटनाएँ भी छोटी पड़ने लगती है .क्या किसी लोकतान्त्रिक राष्ट्र में ऐसी घटनाएँ संभव है ? वैसे तो असम्भव है ,लेकिन यह संभव हो रही है ,यहाँ के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचें की नाकामी की वजह से …

नागौर जिले के बसवानी गाँव में पिछले महीने ही एक दलित परिवार के झौपड़े में दबंग जाटों ने आग लगा दी ,जिससे एक बुजुर्ग दलित महिला वहीँ जल कर राख हो गयी और दो अन्य लोग बुरी तरह से जल गए ,जिन्हें जोधपुर के सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए भेजा गया ,इसी जिले के लंगोड़ गाँव में एक दलित को जिंदा दफनाने का मामला सामने आया है.मुंडासर में एक दलित औरत को घसीट कर ट्रेक्टर के गर्म सायलेंसर से दागा गया और हिरडोदा गाँव में एक दलित दुल्हे को घोड़ी पर से नीचे पटक कर जान से मरने की कोशिश की गयी .राजस्थान का यह जाटलेंड जिस तरह की अमानवीय घटनाओं को अंजाम दे रहा है ,उसके समक्ष तो खाप पंचायतों के तुगलकी फ़रमान भी कहीं नहीं टिकते है ,ऐसा लगता है कि इस इलाके में कानून का राज नहीं ,बल्कि जाट नामक किसी कबीले का कबीलाई कानून चलता है,जिसमे भीड़ का हुकुम ही न्याय है और आवारा भीड़ द्वारा किये गए कृत्य ही विधान है .

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नागौर जिले की तहसील मेड़ता सिटी का निकटवर्ती गाँव है डांगावास ,जहाँ पर 150 दलित परिवार निवास करते है और यहाँ 1600 परिवार जाट समुदाय के है ,तहसील मुख्यालय से मात्र 2 किलोमीटर दुरी पर स्थित है डांगावास ,..जी हाँ ,यह वही डांगावास गाँव है ,जहाँ पिछले एक साल में  चार दलित हत्याकांड हो चुके है ,जिसमे सबसे भयानक हाल ही में हुआ है. एक साल पहले यहाँ के दबंग जाटों ने मोहन लाल मेघवाल के निर्दोष बेटे की जान ले ली थी ,मामला गाँव में ही ख़त्म कर दिया गया ,उसके बाद 6 माह पहले मदन पुत्र गबरू मेघवाल के पाँव तोड़ दिये गए ,4 माह पहले सम्पत मेघवाल को जान से ख़त्म कर दिया गया ,इन सभी घटनाओं को आपसी समझाईश अथवा डरा धमका कर रफा दफा कर दिया गया .पुलिस ने भी कोई कार्यवाही नहीं की .

स्थानीय दलितों का कहना है कि बसवानी में दलित महिला को जिंदा जलाने के आरोपी पकडे नहीं गए और शेष जगहों की गंभीर घटनाओं में भी कोई कार्यवाही इसलिए नहीं हुयी क्योंकि सभी घटनाओं के मुख्य आरोपी प्रभावशाली जाट समुदाय के लोग है .यहाँ पर थानेदार भी उनके है ,तहसीलदार भी उनके ही और राजनेता भी उन्हीं की कौम के है ,फिर किसकी बिसात जो वे जाटों पर हाथ डालने की हिम्मत दिखाये ? इस तरह मिलीभगत से बर्षों से दमन का यह चक्र जारी है ,कोई आवाज़ नहीं उठा सकता है ,अगर भूले भटके प्रतिरोध की आवाज़ उठ भी जाती है तो उसे खामोश कर दिया जाता है .

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एक और ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि राजस्थान काश्तकारी कानून की धारा 42 (बी ) के होते हुए भी जिले में दलितों की हजारों बीघा जमीन पर दबंग जाट समुदाय के भूमाफियाओं ने जबरन कब्ज़ा कर रखा है.यह कब्जे फर्जी गिरवी करारों,झूठे बेचाननामों और धौंस पट्टी के चलते किये गए है ,जब भी कोई दलित अपने भूमि अधिकार की मांग करता है ,तो दबंगों की दबंगई पूरी नंगई के साथ शुरू हो जाती है.ऐसा ही एक जमीन का मसला दलित अत्याचारों के लिए बदनाम डांगावास गाँव में विगत 30 वर्षों से कोर्ट में जेरे ट्रायल था ,हुआ यह कि बस्ता राम नामक मेघवाल दलित की 23 बीघा 5 बिस्वा जमीन कभी मात्र 1500 रूपये में इस शर्त पर गिरवी रखी गयी कि चिमना राम जाट उसमे से फसल लेगा और मूल रकम का ब्याज़ नहीं लिया जायेगा ,बाद में जब भी दलित बस्ता राम सक्षम होगा तो वह अपनी जमीन गिरवी से छुडवा लेगा .बस्ताराम जब इस स्थिति में आया कि वह मूल रकम दे कर अपनी जमीन छुडवा सकें ,तब तक चिमना राम जाट तथा उसके पुत्रों ओमाराम और काना राम के मन में लालच आ गया,जमीन कीमती हो गयी ,उन्होंने जमीन हड़पने की सोच ली और दलितों को जमीन लौटने से मना कर दिया .पहले दलितों ने याचना की ,फिर प्रेम से गाँव के सामने अपना दुखड़ा रखा ,मगर जिद्दी जाट परिवार नहीं माना ,मजबूरन दलित बस्ता राम को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी .करीब तीस साल पहले मामला मेड़ता कोर्ट में पंहुचा ,बस्ताराम तो न्याय मिलने से पहले ही गुजर गया ,बाद में उसके दत्तक पुत्र रतनाराम ने जमीन की यह जंग जारी रखी और अपने पक्ष में फैसला प्राप्त कर लिया .वर्ष 2006 में उक्त भूमि का नामान्तरकरण रतना राम के नाम पर दर्ज हो गया तथा हाल ही में में कोर्ट का फैसला भी दलित खातेदार रतना राम के पक्ष में आ गया .इसके बाद रतना राम अपनी जमीन पर एक पक्का मकान और एक कच्चा झौपडा बना कर परिवार सहित रहने लग गया ,लेकिन इसी बीच 21 अप्रैल 2015 को चिमनाराम जाट के पुत्र कानाराम तथा ओमाराम ने इस जमीन पर जबरदस्ती तालाब खोदना शुरू कर दिया और खेजड़ी के वृक्ष काट लिये.रत्ना राम ने इस पर आपत्ति दर्ज करवाई तो जाट परिवार के लोगों ने ना केवल उसे जातिगत रूप से अपमानित किया बल्कि उसे तथा उसके परिवार को जान से मार देने कि धमकी भी दी गयी .मजबूरन दलित रतना राम मेड़ता थाने पंहुचा और जाटों के खिलाफ रिपोर्ट दे कर कार्यवाही की मांग की.मगर थानेदार जी चूँकि जाट समुदाय से ताल्लुक रखते है सो उन्होंने रतनाराम की शिकयत पर कोई कार्यवाही नहीं की ,दोनों पक्षों के मध्य कुछ ना कुछ चलता रहा .

12 मई को जाटों ने एक पंचायत डांगावास में बुलाने का निश्चय किया ,मगर रतना राम और उसके भाई पांचाराम के गाँव में नहीं होने के कारण यह स्थगित कर दी गयी ,बाद में 14 मई को फिर से जाट पंचायत बैठी ,इस बार आर पार का फैसला करना ही पंचायत का उद्देश्य था ,अंततः एकतरफा फ़रमान जारी हुआ  कि दलितों को किसी भी कीमत पर उस जमीन से खदेड़ना है  ,चाहे जान देनी पड़े या लेनी पड़े ,दूसरी तरफ पंचायत होने की सुचना पा कर दलित अपने को बुलाये जाने का इंतजार करते हुये अपने खेत पर स्थित मकान पर ही मौजूद रहे ,अचानक उन्होंने देखा कि सैंकड़ों की तादाद में जाट लोग हाथों में लाठियां ,लौहे के सरिये और बंदूके लिये वहां आ धमके है और मुट्ठी भर दलितों को चारों तरफ से घेर कर मारने लगे ,उन्होंने साथ लाये ट्रेक्टरों से मकान तोडना भी चालू कर दिया .

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लाठियों और सरियों से जब दलितों को मारा जा रहा था ,इसी दौरान किसी ने रतनाराम मेघवाल के बेटे मुन्नाराम को निशाना बना कर  फ़ायर कर दिया ,लेकिन उसी वक्त किसी और ने मुन्ना राम के सिर के पीछे की और लोहे के सरिये से भी वार कर दिया ,जिससे मुन्नाराम  गिर पड़ा और गोली रामपाल गोस्वामी को जा कर लग गयी ,जो कि जाटों की भीड़ के साथ ही आया हुआ था .गोस्वामी की बेवजह हत्या के बाद जाट और भी उग्र हो गये ,उन्होंने मानवता की सारी हदें पार करते हए वहां मौजूद दलितों का निर्मम नरसंहार करना शुरू कर दिया.

ट्रेक्टर जो कि खेतों में चलते है और फसलों को बोने के काम आते है ,वे निरीह ,निहत्थे दलितों पर चलने लगे ,पूरी बेरहमी से जाट समुदाय की यह भीड़ दलितों को कुचल रही थी ,तीन दलितों को ट्रेक्टरों से कुचल कुचल कर वहीँ मार डाला गया .इन बेमौत मारे गए दलितों में श्रमिक नेता पोकर राम भी था ,जो उस दिन अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए अपने भाई गणपत मेघवाल के साथ वहां आया हुआ था .जालिमों ने पोकरराम के साथ बहुत बुरा सलूक किया ,उस पर ट्रेक्टर चढाने के बाद उसका लिंग नोंच लिया गया तथा आँखों में जलती लकड़ियाँ डाल कर ऑंखें फोड़ दी गयी .महिलाओं के साथ ज्यादती की गयी और उनके गुप्तांगों में लकड़ियाँ घुसेड़ दी गयी .तीन लोग मारे गए ,14 लोगों के हाथ पांव तोड़ दिये गए ,एक ट्रेक्टर ट्रोली तथा चार मोटर साईकलें जला कर राख कर दी गयी ,एक पक्का मकान जमींदोज कर दिया गया और कच्चे झौपड़े को आग के हवाले कर दिया गया .जो भी समान वहां था ,जालिम उसे लूट ले गए .इस तरह तकरीबन एक घंटा मौत के तांडव चलता रहा ,लेकिन मात्र 4 किलोमीटर दूरी पर मौजूद पुलिस सब कुछ घटित हो जाने के बाद पंहुची और घायलों को अस्पताल पंहुचाने के लिए एम्बुलेंस बुलवाई  ,जिसे भी रोकने की कोशिश जाटों की उग्र भीड़ ने की ,इतना ही नहीं बल्कि जब गंभीर घायलों को मेड़ता के अस्पताल में भर्ती करवाया गया तो वहां भी पुलिस तथा प्रशासन की मौजूदगी में ही धावा बोलकर बचे हुए दलितों को भी खत्म करने की कोशिश की गयी .

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ऐसी दरिंदगी जो कि वास्तव में एक पूर्वनियोजित नरसंहार ही था ,इसे नागौर की पुलिस और प्रशासन जमीन के विवाद में दो पक्षों की ख़ूनी जंग करार दे कर दलित अत्याचार की इतनी गंभीर और लौमहर्षक  वारदात को कमतर करने की कोशिश कर रही है .पुलिस ने दलितों की और से अर्जुन राम के बयान के आधार पर एक कमजोर सी एफआईआर दर्ज की है ,जिसमे पोकरराम के साथ की गयी इतनी अमानवीय क्रूरता का कोई ज़िक्र तक नहीं है और ना ही महिलाओं के साथ हुयी भयावह यौन हिंसा के बारे में एक भी शब्द लिखा गया है. सब कुछ पूर्वनियोजित था ,भीड़ को इकट्टा करने से लेकर रामपाल गोस्वामी को गोली मारने तक की पूरी पटकथा पहले से ही तैयार थी ,ताकि उसकी आड़ में दलितों का समूल नाश किया जा सके . कुछ हद तक वो यह करने में कामयाब भी रहे ,उन्होंने बोलने वाले और संघर्ष कर सकने वाले समझदार घर के मुखिया दलितों को मौके पर ही मार डाला . बाकी बचे हुए तमाम दलित स्त्री पुरुषों के हाथ और पांव तोड़ दिये जो ज़िन्दगी भर अपाहिज़ की भांति जीने को अभिशप्त रहेंगे ,दलित महिलाओं ने जो सहा वह तो बर्दाश्त के बाहर है तथा उसकी बात करना ही पीड़ाजनक है ,इनमे से कुछ अपने शेष जीवन में सामान्य दाम्पत्य जीवन जीने के काबिल भी नहीं रही ,इससे भी भयानक साज़िश यह है कि अगर ये लोग किसी तरह जिंदा बच कर हिम्मत करके वापस डांगावास लौट भी गये तो रामपाल गोस्वामी की हत्या का मुकदमा उनकी प्रतीक्षा कर रहा है ,यानि कि बाकी बचा जीवन जेल की सलाखों के पीछे गुजरेगा ,अब आप ही सोचिये ये दलित कभी वापस उस जमीन पर जा पाएंगे .क्या इनको जीते जी कभी न्याय हासिल हो पायेगा ? आज के हालात में तो यह असंभव नज़र आता है .

कुछ दलित एवं मानव अधिकार जन संगठन इस नरसंहार के खिलाफ आवाज़ उठा रहे है ,मगर उनकी आवाज़ कितनी सुनी जाएगी यह एक प्रश्न है .सूबे की भाजपा सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है ,कोई  भी ज़िम्मेदार सरकार का नुमाइंदा घटना के चौथे दिन तक ना तो डांगावास पंहुचा था और ना ही घायलों की कुशलक्षेम जानने आया .अब जबकि मामले ने तूल पकड़ लिया है तब सरकार की नींद खुली है ,फिर भी मात्र पांच किलोमीटर दूर रहने वाला स्थानीय भाजपा विधायक सुखराम आज तक अपने ही समुदाय के लोगों के दुःख को जानने नहीं पंहुचा .नागौर जिले में एक जाति का जातीय आतंकवाद इस कदर हावी है कि कोई भी उनकी मर्जी के खिलाफ नहीं जा सकता है .दूसरी और जाट समुदाय के छात्र नेता ,कथित समाजसेवक और छुटभैये नेता इस हत्याकाण्ड के लिए एक दुसरे को सोशल मीडिया पर बधाईयाँ दे रहे है तथा कह रहे है कि आरक्षण तथा अजा जजा कानून की वजह से सिर पर चढ़ गए इन दलितों को औकात बतानी जरुरी थी ,वीर तेज़पुत्रों ने दलित पुरुषों को कुचल कुचल कर मारा तथा उनके आँखों में जलती लकड़ियाँ घुसेडी और उनकी नीच औरतों को रगड़ रगड़ कर मारा तथा ऐसी हालत की कि वे भविष्य में कोई और दलित पैदा ही नहीं कर सकें .इन अपमानजनक टिप्पणियों के बारे में मेड़ता थाने में दलित समुदाय की तरफ से एफ आई आर भी दर्ज करवाई गयी है ,जिस पर कार्यवाही का इंतजार है.

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अगर डांगावास नरसंहार की निष्पक्ष जाँच करवानी है तो इस पूरे मामले को सी बी आई को सौपना होगा ,क्योंकि अभी तक तो जाँच अधिकारी भी जाट लगा कर राज्य सरकार ने साबित कर दिया है कि वह कितनी संवेदनहीन है ,आखिर जिन  अधिकारियों के सामने जाटों ने यह तांडव किया और उसकी इसमें मूक सहमति रही ,जिसने दलितों की कमजोर एफ आई आर दर्ज की और दलितों को फ़साने के लिए जवाबी मामला दर्ज किया तथा पोस्टमार्टम से लेकर मेडिकल रिपोर्ट्स तक सब मैनेज किया  ,उन्हीं लोगों के हाथ में जाँच दे कर राज्य सरकार ने साबित कर दिया कि उनकी नज़र में भी दलितों की औकात कितनी है .

इतना सब कुछ होने के बाद भी दलित ख़ामोश है ,यह आश्चर्यजनक बात है .कहीं कोई भी हलचल नहीं है ,मेघसेनाएं ,दलित पैंथर्स ,दलित सेनाएं ,मेघवाल महासभाएं सब कौनसे दड़बे में छुपी हुयी है ? अगर इस नरसंहार पर भी दलित संगठन नहीं बोले तब तो कल हर बस्ती में डांगावास होगा ,हर घर आग के हवाले होगा ,हर दलित कुचला जायेगा और हर दलित स्त्री यौन हिंसा की शिकार होगी ,हर गाँव बथानी टोला होगा ,कुम्हेर होगा ,लक्ष्मणपुर बाथे और भगाना होगा .इस कांड की भयावहता और वहशीपन देख कर पूंछने का मन करता है कि क्या यह एक और खैरलांजी नहीं है ? अगर हाँ तो हमारी मरी हुयी चेतना कब पुनर्जीवित होगी या हम मुर्दा कौमों की भांति रहेंगे अथवा जिंदा लाशें बन कर धरती का बोझ बने रहेंगे .अगर हम दर्द से भरी इस दुनिया को बदल देना चाहते है तो हमें सडकों पर उतरना होगा और तब तक चिल्लाना होगा जब तक कि डांगावास के अपराधियों को सजा नहीं मिल जाये और एक एक पीड़ित को न्याय नहीं मिल जाये ,उस दिन के इंतजार में हमें रोज़ रोज़ लड़ना है ,कदम कदम पर लड़ना है और हर दिन मरना है ,ताकि हमारी भावी पीढियां आराम से ,सम्मान और स्वाभिमान से जी सके .

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राजस्थान में दलित-आदिवासी और घुमन्तु समुदाय के प्रश्नों पर संघर्षरत लेखक भंवर मेघवंशी से संपर्क : 9460325948, ईमेल : [email protected]

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