राजेंद्र बोरा-
राजस्थान पत्रिका का स्थापना दिवस… राजस्थान पत्रिका ने आज अपने प्रकाशन के 65 वर्ष पूरे कर लिये। यह कोई छोटा वक़्त नहीं है राजस्थान में किसी दैनिक अखबार के लिये। वैसे ‘पत्रिका’ से भी पुराने अखबार इस प्रदेश में अब भी अपनी पूरी हैसियत और रुतबे के साथ प्रकाशित हो रहे हैं और पाठकों में अपनी पहचान भी बनाए हुए हैं, परंतु राजस्थान पत्रिका की 65 वर्ष की यात्रा इसलिये विशेष है कि उसने इस प्रदेश के लोगों में रोज सुबह उठते ही अखबार हाथ में लेने की आदत डाली। ऐसी आदत डाली जिससे “पाठकों का अपना अखबार” और “अवाम की आवाज़” जैसे मुहावरे सच होने का प्रमाण देते नज़र आए।
कवि कर्म को पीछे छोड़ कर अखबारी जीवन की जोखिम भरी राह पकड़ने वाले कर्पूरचंद कुलिश ने यह साबित किया कि पत्रकारिता के साथ उद्यमी होना तथा अखबार के कारोबार को साधना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना अखबार के कलेवर को संजोना।
कुलिश भाग्यशाली रहे कि अखबार के कलेवर को बुलंदियां देने के लिये वैसे लोग उन्हें मिलते रहे जिनकी कलम से ‘पत्रिका’ की हैसियत बढ़ती चली गई। पिछली सदी के सातवें दशक में ‘पत्रिका’ ने वह वैभव पाया जिसे पाने की और वैसा अखबार बनाने का गुर जानने की लालसा दूसरे करते थे। आज की भाषा में कहें तो ‘पत्रिका’ लंबे समय तक ‘मार्केट लीडर’ रहा। प्रबंधन विशेषज्ञ बताते हैं कि ‘मार्केट लीडर’ को सभी फॉलो करते हैं। यह हैसियत बनाने वाले कुलिश की छाप अपने अखबार पर इतनी गहरी रही कि आज भी ‘पत्रिका’ का नाम आता है तो उसके पाठक उन लोगों के नाम मुश्किल से ही गिना पाते हैं जो उनके संपादक पद से स्वैच्छिक निवृत्त होने के बाद ‘पत्रिका’ के संपादक रहे। कुलिश ने बड़ी मेहनत से राज्य में ‘राजस्थान पत्रिका’ के अन्य संस्करण निकालने की भी व्यवस्था की और परंपरा डाली।
आज ‘राजस्थान पत्रिका’, जो अब देश के अन्य राज्यों में भी अपने संस्करणों के जरिये फैल चुका है, ने अपनी स्थापना के 66 वें स्थापना दिवस पर विशेषांक निकाला है जो बाजार की चुनौतियों के दौर में ‘प्रिंट मीडिया’ के बचे रहने का आश्वासन देता है।
(6 दिन पुरानी fb पोस्ट)
आनंद कुशवाहा
March 13, 2021 at 7:19 pm
राजस्थान पत्रिका ने पत्रकारिता के मानदंडों पर खरा उतरकर पाठको में भारी लोकप्रियता हासिल की है| पत्रिका के सफलता पूर्वक 65 वर्ष पूर्ण करने पर कुलिश जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं.
Ravi Bhandari
March 13, 2021 at 8:56 pm
यह इकतरफ़ा/ख़ामोश है !
कुलिशजी की आपात काल में उदासीनता और अब गुलाब कोठरी के मुख-पत्रिय रूप/सर्वोच्च सत्ता के समक्ष संपूर्ण समर्पण/ख़ुशामद पर निष्पक्ष टिप्पणी की अपेक्षा/प्रतीक्षा है, इस पटल की साफ़गोई के मद्दे नज़र ।
मैंने ५० साल पत्रिका/परिवार को पढ़ा/जाना है और आज इसकी गत से आप स्वतंत्र पत्रकार वाक़िफ़ ना हो यक़ीन नहीं होता ।