बलात्कार के एक आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता की आत्महत्या पर महीनों गैंगवार करने वाला फेसबुक एक पत्रकार की हत्या पर खामोश क्यों है? दरअसल इसे समझने के लिये रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है. दोनों मामलों को अलग से देखते ही स्थिति स्पष्ट हो जाती है. सामाजिक कार्यकर्ता एक बड़े बौद्धिक गिरोह के सदस्य थे, जिस गिरोह में बड़े संपादक, कई पत्रकार, कई मानवाधिकारी थे. गिरोह जानता था कि आरोप बलात्कार का है और इसका फैसला अदालत करेगी लेकिन इसके बाद भी फेसबुक उत्तेजित कर दिया गया. यह उत्तेजना अखबारी पन्नों से निकलकर प्रेस क्लब तक में बिखर गयी.
इसके उलट, पत्रकार ‘न काहू से दोस्ती, न काहू से वैर’ पर अमल करने वाला, किसी राजनीतिक खेमे से संबद्ध नहीं, बराबर चोट सभी पर करते रहना उसका शगल था. उसने किसी बौद्धिक गिरोह की सदस्यता भी नहीं ली थी. हाँ, यह जरूर किया था कि अपने शहर के उन पत्रकारों की, जो आर्थिक दिक्कतों में पड़ जाया करते थे, यथासंभव मदद की. यह उसकी गलती थी संभवतः. बाकी, सामाजिक कार्यकर्ता का नाम डालना जरूरी नहीं समझता हूँ, क्योंकि गैंगवार ने उस नाम को खासा चर्चित कर रखा है. हाँ बदकिस्मत पत्रकार थे राजीव चतुर्वेदी. हालाँकि यह भी अपने शहर लखनऊ के चर्चित और प्रभावी चेहरा रहे. तीन नवंबर को सरोजिनी नगर थाने में इनकी हत्या कर दी गयी. उत्तर प्रदेश पुलिस की हालत से सब अवगत हैं. यदि कोई गंगा में गले तक डूबकर भी उप्र पुलिस की निष्पक्षता का दावा करे तो सुनने वाले हँसकर मर लेंगे. तो इस पुलिस ने अपने चरित्र के हिसाब से मामले को बरगलाया.
इन सब के बीच हमारा क्या फर्ज बनता है? क्या हमारा चुप्प रह जाना बेईमानी या आपराधिक नहीं है? चुप रहकर हम अपने चरित्र को संदिग्ध नहीं कर रहे हैं? यह मामूली बात नहीं है कि सिर्फ इस साल उत्तर प्रदेश में अबतक आठ पत्रकारों को मार डाला गया है और 150 से अधिक जानलेवा हमले हुए हैं. हम एक कलमकार-पत्रकार के नाते राजीव चतुर्वेदी हत्याकांड में सीबीआई जाँच चाहते हैं. हम चाहते हैं ताकि कलम ढोने वालों की ज़िंदगियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. साथ ही दलाल हो चुके कलमों को नंगा किया जा सके. याद रहे ये दलाल कलमें सभ्यता के लिये शर्म का विषय है.
(जानता हूँ कि जबतक शेयर की हाथजोड़ अपील न करूँ तबतक दो-चार लोग ही समझ पाते हैं कि इसे शेयर किया जाना चाहिए. खैर, हम अनुरोध करते हैं कि इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें. या चाहें तो सीधा मैटर उठाकर अपने वॉल पर पोस्ट करें.)
सोशल मीडिया एक्टिविस्ट प्रकाश कुकरेती के फेसबुक वॉल से.
उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं>
Samar Anarya : बलात्कार का आरोप लगाकर फेसबुक ‘गैंगवार’ दलालों ने छेड़ा था- बिना किसी का सीधा नाम लिए वे लोग लिखते रहे थे. राजीव चतुर्वेदी पर जनता क्यों चुप है इसको समझने के लिए आपको थोड़ा लखनऊ समझना पड़ेगा थोड़ा राजीव चतुर्वेदी का अपना व्यक्तित्व. आप जरा जल्दबाजी में लग रहे हैं- उत्तर प्रदेश मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति का इस मामले में स्टैंड पता लगा लीजिये जरा- यह भी कि एक ‘पत्रकार’ की हत्या पर वे लोग क्यों चुप हैं. सपा से नजदीकी जैसे भोथरे तर्क न दीजियेगा- उन्हीं लोगों ने जोगेंद्र वाले मामले पर तीखी लड़ाई लड़ी थी. पूछियेगा कि अमिताभ ठाकुर जो तब शाहजहाँपुर तक गए थे इसबार क्यों नहीं बोल रहे हैं. और हाँ- तमाम चीजें जानते हुए भी मैंने अभिरक्षा में हत्या सिरे से मानवाधिकार का उल्लंघन है, उसके खिलाफ कार्यवाही की जाने चाहिए इससमझदारी के साथ लखनऊ के तमाम करीबी मित्रों से बात की थी- उदारवादी पर वामपंथी नहीं Rudra Pratap Dubey से लेकर कट्टर मोदी समर्थक Ranjay Tripathi जैसे दो छोर पर खड़े लोगों के साथ बीच के सभी वैचारिक स्थिति वाले मित्रों तक से. सारी बातें सुनने के बाद लगा कि इस मामले में जमीन से ही हस्तक्षेप किया जा सकता है- क्योंकि कोई कुछ कहने सुनने तक को बहुत तैयार नहीं है. आपके पास कोई ऐसे लोग हैं- इस मिश्रा को छोड़कर- इसका इतिहास वर्तमान सब संदिग्ध है- तो सूचना दें, मैं मुद्दा उठाऊंगा- हाँ, अभिरक्षा में हत्या भर वाला- पत्रकारिता को लेकर तमाम संशय हैं!
प्रकाश कुकरेती : भैया आपने ही सिखाया है कि हत्या किसी की भी हो हत्या है, किसी का वर्तमान या अतीत गलत हो तो क्या उसकी हत्या को जायज ठहरा दिया जाएगा, पुलिस कस्टडी मैं उनकी मौत हुई है, इसके पारिस्थिजन्यक सबूत हैं, तभी सी बी आई जांच की मांग की जा रही है, ताकि सच सामने आ सके,बाकी सच क्या है यह तो जांच के बाद ही सामने आ पायेगा न,और हम उसी की मांग कर रहे हैं Samar भैया.
प्रकाश कुकरेती : पत्रकार वही नहीं होता जिसके पास प्रेस का लाइसेंस हो, हम सब लोग पत्रकार ही हैं, जो हर मुद्दे पर लिखते रहते हैं, बाकी भड़ास वाले यशवंत भाई ने अपने पोर्टल पर इस बारे मैं बहुत कुछ लिखा है, और लखनऊ के पत्रकार भी इसे पुलिस कस्टडी मैं हुई हत्या ही मान रहे हैं, तमाम अखबारों ने इस खबर को पुलिस कस्टडी मैं हुई हत्या ही माना है, हिन्दू अखबार तक ने यही सब माना है भैया.
Samar Anarya : मैंने कब कहा कि हत्या नहीं है। इस मिश्रा गैंग की दलाली के उलट मैंने तो निजी दुःख के बीच भी लखनऊ के मित्रों से बात की- वाम से दक्षिण तक- ताकि मुद्दा उठा सकूँ। एक भी आदमी तैयार नहीं हुआ। करो किसी को तैयार, भेजो सूचना।
सुभाष सिंह ‘सुमन’ : वैसे ज्यादा तो नहीं लिखूँगा. अभी ऑफिस में हूँ. बाकी, कुछ खुद भी पता करके बोलना चाहिये. इससे भद्द पिटने की आशंका निर्मूल होती है. अमिताभ ठाकुर खूब बोले हैं. पर पता करें तब तो मालूम हो.
प्रकाश कुकरेती : यहाँ पर न कोई मिश्रा है, न कोई प्रकाश है, न कोई आशीष कुमार अंशु है और न ही कोई सुभाष सिंह सुमन है, बाकी मैं अपने बारे मैं जानता हूँ मैं तैयार हूँ , कहिए क्या करना है।
Samar Anarya : क्या किया जाता है पुलिस अभिरक्षा में हत्या के मामलों में? फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग की जाती है, ऑटॉप्सी रिपोर्ट की प्रति ली जाती है, यातना (टॉर्चर) के सबूत इकट्ठे किए जाते हैं- और इन सब के साथ मानवाधिकार संगठनों में सरकारी और ग़ैर सरकारी दोनों- मामला उठाया जाता है, दबाव डाला जाता है। दो सूचना, मैं उठाता हूँ मामला। बाक़ी यह न बताओ प्रकाश कि कौन यहाँ है कौन नहीं। बीते वक़्त में सबसे बेहतर बात यही सीखी है कि जो अपना नहीं है वो नहीं है। रही बोलने की बात, तो कहा तो- उत्तरप्रदेश मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति भी ‘ख़ूब’ बोली है- Yashwant भाई ने ही समिति अध्यक्ष भाई Pranshu का बयान भी छापा है। बताओगे क्या है बयान?
Yashwant Singh : यूपी में पत्रकार की हत्याओं मौतों पर सपा सरकार ने बोलने वालों का मुंह ले दे कर बंद करने की पालिसी अपनाई और यही राजीव हत्याकांड में भी हुआ.
Samar Anarya : और शायद राजीव हत्याकांड में थोड़ी आसानी से हो गया Yashwant भाई! जितने लोगों से बात की वाम दक्षिण कोई तैयार नहीं दिखा किसी लड़ाई को!
प्रकाश कुकरेती : अब बात बढेगी तो बहुत दूर तक जायेगी, जिसने आवाज उठानी थी उसको तो कोठी मिल गई है, फिर हम खाली क्यूँ गला फाड़ें, आइये राजीब भाई की मौत को भी एक हादसा बताकर दफ़न कर देते हैं
Samar Anarya : जिसको कोठी मिल गयी है उसके ख़िलाफ़ भी आवाज़ उठाइए। किसी ने रोका है? सब काम एक ही गिरोह करेगा तो आप क्या करेंगे? आपके पास कम सम्पादक, पत्रकार, मानवाधिकारी हैं? उनसे कहिए सत्ता की प्रशंसा करने के सिवा इस मुद्दे पर, ऐसे मुद्दों पर भी बोलें/लड़ें। ऐसे तो उस गिरोह वालों को पानी पी पीकर गरियाएँगे, फिर लड़ाई लड़ने को भी उसी से कहेंगे! ग़ज़ब लोग हैं भाई।
पूरे मामले को जानने-समझने के लिए इन्हें भी एक-एक कर पढ़ें>
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Deepak pandey
November 19, 2015 at 6:20 am
mai ise facebook par share kar rha hu…
xyz
November 20, 2015 at 5:00 pm
अमिताभ ठाकुर पर कारवाई न हुई होती तो यह घटनाक्रम भी अखिलेश की तगडी फजीहत कराता। पर जब अमिताभ ठाकुर पर सरकारी चाबुक चल सकता है तो बाकी बचे सब काजल की कोठरी मे ही रहने वाले है, बोलेगे तो सरकार उनके कालिख कहा लगी है सबको दिखवा भी देगी|