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चुनाव से पहले सरकार ने पत्रिका के ब्यूरो चीफ राजकुमार सोनी का तबादला कोयम्बटूर कराया

Ambrish Kumar : छतीसगढ़ से मुझे वर्ष 2003 में अपने एक्सप्रेस प्रबंधन ने जनसत्ता और इंडियन एक्सप्रेस की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिल्ली भेजने का आदेश दिया था. तब अपने पर कांग्रेस विरोध का आरोप था. भाजपाई सब साथ थे. कांग्रेस की सरकार थी. खबरों को लेकर अजीत जोगी से ठनी हुई थी. किसने दबाव डाला यह सब जानते थे.

पर प्रबंधन को यह कहा कि चुनाव निपट जाए फिर नई जिम्मेदारी दें. चुनाव निपटा और वे भी निपट गए. ऐसे कि आज तक न लौटे. आज उसी जनसत्ता के अपने तबके सहयोगी और राजस्थान पत्रिका के रायपुर में ब्यूरो चीफ राजकुमार सोनी का तबादला कोयम्बटूर करने की जानकारी मिली है.

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यह तो होना ही था. इसका अंदेशा भले ही पत्रकार राजकुमार सोनी को नहीं रहा होगा, लेकिन उनकी लेखनी को जानने-समझने और उन्हें पढ़ने-लिखने वालों को इस बात का अंदेशा अवश्य था कि चुनाव से ठीक पहले उन्हें हटाने के लिए ऐन-केन-प्रकारेण हथकंडों का इस्तेमाल अवश्य होगा.

चुनाव से ठीक पहले ऐसा हथकंडा कौन लोग इस्तेमाल कर सकते हैं, यह समझना ज्यादा कठिन भी नहीं है. सोनी के साथ ऐसा वर्ष 2013 के चुनाव से पहले भी हो चुका है जब वे तहलका के लिए खबरें लिखते थे.

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Manish Kumar Soni : पत्रिका रायपुर से राजकुमार सोनी जी का कोयम्बटूर ट्रांसफर। क्योंकि सरकार को इनकी ख़बरें पचती नहीं थी। मतलब अब बाक़ी पत्रकार सरकार के अपने हैं।

Dr Lakhan Singh : अपने प्रकाशन के दिनों से पत्रिका छत्तीसगढ़ सरकार के लिए कोई मित्र की भूमिका में नहीं था. अपनी तेज और धारदार पत्रकारिता के लिए पत्रिका ने बड़ी तेजी से अपनी जगह छत्तीसगढ़ में बना ली थी। विधानसभा सत्र के दौरान उसकी उपस्थिति को लेकर उपजे विवाद से हर कोई वाकिफ है. पत्रिका के बेहतर सफर में राजकुमार सोनी की भूमिका को भी हम कम नहीं आंक सकते.

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तहलका से भी लगभग इन्हीं परिस्थितियों में बाहर कर दिए गए राजकुमार सोनी ने अभी इसी महीने चार सितम्बर को अपने पांच साल पत्रिका में पूरे किए थे। वे लगातार तथ्यात्मक पत्रकारिता करते रहे। जमीनी रिपोर्ट में उनका विशेष स्थान था। बस्तर में आदिवासियों के साथ हो रहे उत्पीड़न की रिपोर्ट हो या जशपुर में मानव तस्करी या लड़कियों के साथ यौन हिंसा की बात हो उनकी खबरें सरकार और भाजपा को असहज करने वाली रही है.

अभी हाल के दिनों दिनों में उन्होंने विधानसभा को बांधने आए एक तांत्रिक को वीडियो में कैद किया था। जिन दिनों पत्रिका के राज्य संपादक गिरिराज शर्मा थे उन दिनों लोगों ने उनके काम का उफान देखा है। बाद के दिनों में भी वे अपनी खबरों से एक बड़े वर्ग को प्रभावित करते रहे.

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कुछ समय पहले पत्रिका के स्थानीय प्रबंधन ने राजनीतिक पत्रकारिता की जगह कला,संगीत ,साहित्य और संस्कृति पर लिखने की जिम्मेदारी सौंप दी थीं। चूंकि उनका बेक ग्राउंड साहित्य से रहा है सो वे उसमें भी लगातार कमाल का काम करते रहे.

भाजपा सरकार पूरे देश में असहमति को कोरस में बदलने की कवायद में लगी हैं। अधिकतर मीडिया संस्थानों पर कब्जा करने और उसे गोदी मीडिया में तब्दील करने के साथ चुन-चुन कर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा प्रिंट के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। अभी हाल ही में पुण्य प्रसून बाजपेयी को जिस तरह दबाव के चलते हटाया गया घटना बन गई है.

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फिर भी पत्रिका से उम्मीद थी कि वह इस सबका दबाव सह सकेगा। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। ऐसा कहा जा रहा हैं कि जयपुर से पत्रिका के वरिष्ठ लोग एक सितंबर को सरकार के मुखिया से मिले। इस व्यापारिक बातचीत के ठीक एक घंटे बाद ही शहर में यह बात आग की तरह फैल गई थीं कि राजकुमार सोनी हटाएं जाएंगे.

चार सितम्बर को हम लोग फेसबुक देख रहे थे. फेसबुक में सोनी ने पत्रिका में पांच साल पूरे होने पर एक पोस्ट लिखा था.इस पोस्ट के चंद मिनटों बाद ही उन्हें यह बता दिया गया कि उनका तबादला कोयम्बटूर कर दिया गया है. जो अखबार लाइन से जुड़े है वे अखबार की भाषा में इसे हटाना ही कहते हैं। अब यह सोनी पर निर्भर है कि वे इस पर क्या निर्णय लेते है। वे कोयम्बटूर जाते हैं या पत्रिका छोडते है.

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बहरहाल विधानसभा या लोकसभा चुनाव की तैयारी में यह हमला लोकतंत्र और निरपेक्ष पत्रकारिता के लिए घातक होने के साथ- साथ शर्मनाक ही माना जाएगा.

वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मनीष कुमार सोनी और मानवाधिकर कार्यकर्ता डा. लाखन सिंह की एफबी वॉल से.

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https://www.youtube.com/watch?v=02BGy21-874

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2 Comments

2 Comments

  1. राजेश अग्रवाल

    September 6, 2018 at 12:24 pm

    पत्रिका सरकार विरोधी तभी दिखती है जब उसे दैनिक भास्कर के बराबर बिजनेस नहीं मिलता। छत्तीसगढ़ के रायपुर और बिलासपुर संस्करणों को स्थापित करने में अपना खून-पसीना एक करने वाले पत्रकारों को इस अख़बार ने दूध से मक्खी की तरह बाहर निकाल फेंका। राजकुमार सोनी को इस्तेमाल किया गया, जैसे छत्तीसगढ़ के दोनों संस्करणों से निकाले गए दर्जन भर लोगों का किया गया। मुझे बिलासपुर से कोलकाता भेजा गया था। दो माह बाद लौटना पड़ा। परिवार अव्यवस्थित हो रहा था। एक लड़ाई शुरू की थी इनके ख़िलाफ पर बाद में तय किया कि इसमें समय ख़राब हो रहा है। नए काम में जुट गया।

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