Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

रजनीश ने खुद ही खुद को आचार्य, फिर भगवान फिर ओशो घोषित कर लिया!

रंगनाथ सिंह-

अब वरिष्ठ हो चुके एक पत्रकार ने नामवर सिंह पर अपने संस्मरण में एक रोचक प्रसंग का जिक्र किया है। पत्रकार के पिता जी बनारस के नामी साहित्यकार थे। पत्रकार महोदय का शायद जेएनयू में एडमिशन हुआ या एंट्रेंस देना था। जो भी वजह उन्होंने लिखी हो अभी याद नहीं। उनके पिताजी ने उन्हें ताकीद की कि जेएनयू में जाकर नामवर सिंह से मिल लेना। वो जेएनय पहुँचे। नामवर से मिले। नामवर ने उनसे पूछा कि आपने क्या पढ़ा है। उन्होंने कबीर का भी नाम लिया। नामवर ने पूछा कबीर पर आपने क्या पढ़ा है? भावी पत्रकार ने कहा कि आचार्य रजनीश को। नामवर ने कहा, ‘आप तो बड़े विद्वान हैं!’

वरिष्ठ पत्रकार ने उसी संस्मरण में एक अन्य प्रंसग का जिक्र किया है जिसमें नामवर ने उन्हें विद्वान कहा था। संस्मरण का सार यह था कि नामवर को जिसे बेवकूफ कहना होता था उसे वो कहते थे- आप तो बड़े विद्वान हैं। मुझे हैरानी यह हुई थी कि बनारस होकर भी उन सज्जन को तंज के इस बनारसी ढंग को समझने में कई दशक लग गये।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब आप सोचिए नामवर को उनका जवाब क्यों पसन्द नहीं आया! क्योंकि कबीर के दोहों पर कथावाचन करना एक चीज है और उनका अध्ययन करना दूसरी चीज है। रजनीश को मैं जीनियस मानता हूँ लेकिन रजनीश मूलतः एक कथावाचक थे। सामाजिक चिंतक के मामले में वो अपने समय से बहुत आगे थे लेकिन उनकी असल प्रसिद्धि उनके कथावाचन की बेजोड़ प्रतिभा पर टिकी थी। भारतीय कथावाचकों की एक गौरवशाली परम्परा रही है। ज्यादातर कथावाचक किन्हीं चुनिंदा ग्रंथों का प्रयोग करते हैं। मानस के कथावाचक मानस को आधार बनाकर कथावाचन करते हैं। रजनीश मूलतः प्रोफेसर थे। अकादमिक दुनिया से संन्यास और कथावाचन की दुनिया में गये थे।

रजनीश की सबसे बड़ी खूबी थी कि वो बेहद पढ़ाकू थे। जैसा कि उस जमाने में और बहुत से लोग थे। मसलन कबीर के सबसे बड़े जानकार समझे जाने वाले हजारीप्रसाद द्विवेदी को ही ले लें। जब हमारे पत्रकार नामवर के पास गये होंगे तब तक द्विवेदी की संगेमील किताब कबीर छप चुकी होगी। तब से अब तक कबीर के अध्ययन के लिए वह आधार पुस्तक मानी जाती है। कबीर की जितनी समझ द्विवेदी को थी मुझे नहीं लगता कि उतनी रजनीश को थी। चलिए फिलहाल मान लेते हैं बराबर ही थी। लेकिन दोनों में अन्तर क्या हुआ?

Advertisement. Scroll to continue reading.

पहला अन्तर तो यह है कि द्विवेदी को दूसरों ने आचार्य का खिताब दिया और रजनीश ने खुद ही खुद को आचार्य, फिर भगवान फिर ओशो घोषित किया।द्विवेदी ने कबीर साहित्य का अकादमिक अध्ययन और विश्लेषण किया। क्षितिमोहन सेन को कबीर को अंतरराष्ट्रीय पटल पर लाने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने सबसे पहले कबीर की 100 कविताएँ अनुवादित करके छपवायीं। उसके बाद कबीर का महत्व बढ़ा। दूसरी तरफ हिन्दी में कबीर के आधिकारिक पाठ तैयार किए गये। कबीर का अध्ययन शुरू हुआ। जिसकी एक निर्णायक परिणति द्विवेदी की किताब के रूप में सामने आयी। द्विवेदी की किताब छपने के कई दशक बाद डॉ धर्मवीर के रूप में कबीर विशेषज्ञ सामने आया जिसने कबीर पर किए गये पिछले सभी अध्ययनों को चुनौती दी। यानी आप देख सकते हैं कि कबीर का अध्ययन करीब 100 साल से जारी है। जिसमें कई प्रबुद्ध पढ़ाकू विद्वानों ने अपना योगदान दिया है।

क्या आप कबीर के विशेषज्ञों की तुलना उनसे कर सकते हैं जो कबीर के पद गाते हैं या उनक पदों का उपयोग कथावाचन में करते हैं? सुनने में तो कबीर के पद और कथाएँ भावनात्मक रूप से अच्छी लगती हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कथावाचक और अध्येता होने में एक बुनियादी अन्तर होता है। कथावाचन भावनाओं का आलम्बन करता है। अध्ययन का आधार तथ्यान्वेषण, चिंतन-मनन होता है। कथावाचक या कवि आपके इमोशनल साइड को टारगेट करता है। अध्येता या दार्शनिक या विचारक आपके रेशनल साइड को टारगेट करता है।

कथावाचक जो बोल रहा है उसका रस मूलतः कहानीपन से आता है। किस्सागोई से आता है। आपने भी वह किस्सा सुना होगा कि एक उस्ताद किस्सागो को छुट्टी चाहिए थी तो उसने अपने चेले को बुलाकर कहा कि मैं कुछ दिन की छुट्टी पर हूँ। जब तक मैं आता हूँ बादशाह को तू किस्से सुनाते रहना क्योंंकि वो रोज रात को किस्सा सुनते हैं। उस्ताद ने किस्से का खुलासा हाल शागिर्द को बता दिया। किस्से में बारात जनवासे के बाहर खड़ी थी और उसे अन्दर आना था, वहीं से चेले को किस्सा आगे बढ़ाना था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कई दिनों बाद जब उस्ताद लौटा तो उसने शागिर्द से पूछा कि भाई किस्सा कहाँ तक पहुँचा तो उसने कहा उस्ताद, बारात अन्दर जाने ही वाली है बस आप का ही इंतजार था। उस्ताद ने कहा, क्या बात करते हो! दरवाजे तक बारात तो मैं ही छोड़कर गया था! अब तक वहीं खड़ी है। चेले ने कहा उस्ताद मेरी क्या मजाल जो आपके बगैर बारात अन्दर ले जाता। मैं तो बाहर खड़ी बारात की मंजकशी करता रहा। उस्ताद ने मान लिया कि चेला उससे आगे जाएगा।

किस्सागोई या कथावाचन की जान कथ्य के प्रमाणिक, तथ्यात्मक या तार्किक होने पर नहीं टिकी होती बल्कि कहन या कहानीपन की रोचकता पर टिकी होती है। कथा या कहानी या किस्सा सामान्य बुद्धि के सर्वसामान्य धारणाओं और भावनाओं का आलम्बन करती है। परिष्कृत ज्ञान से उसका कोई सीधा सम्बन्ध नहीं। कथावाचक अपने विचारों या सन्देश को कहानी की सात तहों में लपेटकर पेश करता है ताकि वह सामान्य से सामान्य व्यक्ति को सुस्वादु लगे। आप गौर करिएगा, कथा साहित्य आपको कितना पसन्द आता है और अकथा साहित्य आपको कितना जल्दी उबाने लगता है क्योंकि अकथा को ग्रहण करने के लिए आपको दिमाग पर ज्यादा जोर देना पड़ता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

साधारण कथावाचकों और रजनीश में बड़ा अन्तर पृष्ठभूमि का था। रजनीश बहुपठित थे। उनमें जानने की गहरी भूख थी। वह अपने रुचि से जुड़ी लगभग हर किताब पढ़ना चाहते थे। पढ़ते थे। उन्होंने दुनिया भर के विचारकों के विचार इकट्ठा करके अपनी कथाएँ तैयार कीं। धर्म-दर्शन, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र इत्यादि के अद्यतन सूचनाओं के आधार पर उन्होंने अपनी कथाएँ तैयार कीं। श्रोताओं की मानसिक संरचना और मनोभावों को ध्यान रखते हुए कथाएँ तैयार कीं।

कल ही रजनीश का एक प्रवचन सुन रहा था जिसमें वो अपनी कथा में मुल्ला नसरूद्दीन को ले आते हैं और उसमें अचानक ही एक सरदार का प्रवेश करा देते हैं। श्रोता हँस पड़ते हैं। जरूरी नहीं कि वह किस्सा मुल्ला नसरूद्दीन का हो। मुल्ला नसरूद्दीन नाम का कोई व्यक्ति था या नहीं, या वह एक काल्पनिक कथाचरित्र भर है यह विवादित विषय है लेकिन इससे रजनीश को क्या। रजनीश को पता है कि उनके प्रस्तुत विषय की स्थापना के लिए कौन सा किस्सा चाहिए, वह किस्सा किसके नाम से कहने पर स्वीकार्य होगा और किस्से में किस तरह के पूर्वाग्रह को इस्तेमाल करने से श्रोता हँस पड़ेंगे। रजनीश ने पहले कहा, एक साढ़े छह फीट का आदमी था। श्रोता चुपचाप सुनते रहे। रजनीश ने कहा, आदमी क्या सरदार था। सब लोग हँस पड़े।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रजनीश जिन लोगों को सबसे ज्यादा उद्धृत करते हैं मसलन बुद्ध, लाओत्से एवं कबीर उनके वचन को आजीवन अध्ययन मनन करने वाले ओशो को अपने बहुत काम का नहीं पाते। रजनीश ने ज्यादातर मौकों पर इनकी तारीफ की है तो इनके जानकारों को भी रजनीश की उनसे जुड़ी तारीफभरी कथाएँ अच्छी लगती हैं। इतने से रजनीश का काम चल जाता है। बाकी रजनीश को पता है कि भारतीय युवा क्या सुनना चाहता है, महिलाएँ क्या सुनना चाहती हैं। अगर आप बुद्ध, लाओत्से या कबीर में से किसी को गम्भीरता से लेने लगेंगे और उनका अध्ययन-मनन करने लगेंगे तो देखेंगे कि रजनीश आपके जीवन में पीछे छूट जाएँगे। फिर आप कभी कभार उनकी वही कथाएँ याद करेंगे जो आपके मनोभावों को सहलाते होंगे।

न जाने ऐसा क्यों होता है कि ज्यादातर लोग सोचना नहीं चाहता। वह चाहते हैं कि उनके लिए कोई दूसरा सोचे। वो चाहते हैं कि उन्हें जीवन में किस रास्ते पर चलना है यह कोई दूसरा बता दे। विडम्बना यह है कि ज्यादातर लोग किसी दूसरे की सोच को पूरी तरह अपनाने में भी अक्षम होते हैं। ज्यादातर लोग किसी दूसरे के बताए रास्ते पर पूरी तरह चल भी नहीं पाते। यहाँ से विषयांतर हो रहा है तो इस बिन्दु को यहीं छोड़ते हैं। रजनीश के एक प्रसंग से बात समाप्त करते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कल ही देखा कि रजनीश के किसी चेले ने उनका कोई पुराना वीडियो शेयर किया है जिसमें रजनीश कहते नजर आ रहे हैं कि सदी के अन्त तक हर आदमी को मास्क लगाकर चलना पड़ेगा और रूस में ऐसे प्रयोग शुरू हो गये हैं। बुजुर्ग हो चुके उस रजनीश भक्त ने वीडियो के संग टीजर लिखा था कि देखो ओशो की भविष्यवाणी सही साबित हुई!

जाहिर है कि वह भक्त दुनिया के बाकी मामलों में काफी चतुर होगा लेकिन कुछ मामलों में उसने अपनी बुद्धि रजनीश के हवाले कर रखी है। रजनीश का वीडियो पिछली सदी का था और उनके कहे के अनुसार आम लोगों को मास्क लगाकर चलने की स्थिति दुनिया में नहीं आयी है। ऑक्सीजन सिलेंडर की मौजूदा कमी को भक्त ने अपने कुतर्क से वातावरण में आक्सीजन की कमी से जोड़ लिया। वातावरण में ऑक्सीजन की कमी या प्रदूषण की बढ़ोतरी अलग विषय है। किसी संक्रमण की वजह से किसी व्यक्ति के अन्दर ऑक्सीजन की कमी हो जाना बिल्कुल अलग विषय है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इतनी सामान्य सी बात न समझ पाने की वजह से रामदेव जैसे बाबा बयान देते हैं कि ऑक्सीजन तो चारों तरफ है उसकी कोई कमी नहीं। इतनी सामान्य सी बात न समझ पाने के कारण एक भक्त को लग रहा है कि ओशो ने ऑक्सीजन की कमी को लेकर जो भविष्यवाणी की थी वह कोरोना महामारी को लेकर ही थी।

अतः कथा-कहानी सुनिए। उनका आनन्द लीजिए। किन्तु उन्हें ज्ञान-विज्ञान का स्थानापन्न समझने की नादानी कतई न कीजिए। दोनों दो चीजें हैं। दोनों का काम अलग है।

Advertisement. Scroll to continue reading.
1 Comment

1 Comment

  1. प्रवीण चंद्र राय

    May 21, 2021 at 3:46 pm

    श्री रंंगनाथ जी,
    आपने आईने से धूल साफ कर दिया।
    आभार भाईसाहब।

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement