Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

मालिक नहीं, असल गुनहगार संपादक : सुमंत भट्टाचार्य

हाल ही अपने मित्र की मीडिया संबंधित बेवसाइट पर जारी घमासान देख रहा था। मसला जयपुर से निकलने वाले “राजस्थान पत्रिका” के मालिक गुलाब कोठारी और उनके बेटे निहार कोठारी को गरियाने से है। वजह पत्रकारों से जुड़े मजीठिया वेज बोर्ड है, जिसकी एक मीटिंग के बाद सोशल और मीडिया बेवसाइट में पिता-पुत्र को छद्म नामों से मां-बहन करने की बाढ़ सी आ गई है। ये वही पत्रकार हैं, जो बाहर निकले तो सौ रुपए दिहाड़ी पर कोई ना पूछे।

<p>हाल ही अपने मित्र की मीडिया संबंधित बेवसाइट पर जारी घमासान देख रहा था। मसला जयपुर से निकलने वाले "राजस्थान पत्रिका" के मालिक गुलाब कोठारी और उनके बेटे निहार कोठारी को गरियाने से है। वजह पत्रकारों से जुड़े मजीठिया वेज बोर्ड है, जिसकी एक मीटिंग के बाद सोशल और मीडिया बेवसाइट में पिता-पुत्र को छद्म नामों से मां-बहन करने की बाढ़ सी आ गई है। ये वही पत्रकार हैं, जो बाहर निकले तो सौ रुपए दिहाड़ी पर कोई ना पूछे।</p>

हाल ही अपने मित्र की मीडिया संबंधित बेवसाइट पर जारी घमासान देख रहा था। मसला जयपुर से निकलने वाले “राजस्थान पत्रिका” के मालिक गुलाब कोठारी और उनके बेटे निहार कोठारी को गरियाने से है। वजह पत्रकारों से जुड़े मजीठिया वेज बोर्ड है, जिसकी एक मीटिंग के बाद सोशल और मीडिया बेवसाइट में पिता-पुत्र को छद्म नामों से मां-बहन करने की बाढ़ सी आ गई है। ये वही पत्रकार हैं, जो बाहर निकले तो सौ रुपए दिहाड़ी पर कोई ना पूछे।

मेरा कोई दो साल का संबंध रहा है कि राजस्थान पत्रिका से। जब युवा निहार कोठारी ने जयपुर से “न्यूज़ टुडे” निकालने की सोची और मुझे खबर भेजी। मैंने साफ कहा, “पत्रिका के दफ्तर में ना आउंगा,,मुलाकात बाहर ही होगी।” जनसत्ता के बाद इंडियन एक्सप्रेस छोड़ने के बाद मेरा क्षेत्रीय पत्रकारिता का यह पहला और अब तक का आखिरी अनुभव रहा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मुझे उम्मीद ना थी कि निहार आएंगे.लेकिन एक वो आए और एक क्लब में हमारी मीटिंग हुई। कोई आधे घंटे की मीटिंग में निहार ने मेरी जरूरत समझनी चाही, सो सवाल मैंने ही किए। अखबार का जेसटेंशन पीरियड पूछा..यानि अखबार को मुनाफे में आने के लिए कब तक का समय रहेगा.? बतौर संपादक मेरे पास। फिर मैंने जानना चाहा कि क्या मुझे “ऑफ हैंड” काम करने दिया जाएगा..? या हस्तक्षेप रहेगा? इस पर निहार ने कहा, “झांकूंगा भी नहीं।”

बहरहाल अखबार शुरू हुआ और जिस तेजी के साथ उस अखबार ने अपनी जगह बनाई, वो उस दौर के पत्रकार बता सकते हैं या फिर वो शहर।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दो महीने के बाद यह हाल था कि मैंने कहा, “इसे मॉर्निंग कर दीजिए, मैं भास्कर और पत्रिका दोनों को पीट दूंगा।” निहार चौंके थे तो मैंने कहा, “मेरी लॉयल्टी मालिक के साथ नहीं, अपने पेशे के साथ है।” निहार का पाला शायद किसी “”उज्जड संपादक से पहली बार पढ़ा था..पर अपन प्रभाष जी की टीम से निकले “निहंग” थे सो जो कह दिया उसी पर अड़े रहे।

मुझे हैरानी हो रही है गालियों को देखकर। जाहिर है सारे पत्रकार फर्जी नामों से गरिया रहे हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि बतौर मालिक मेरा शायद ही किसी से वास्ता पड़ा हो जो संपादक को स्वतंत्रता नहीं देता। आखिर पूंजी को फंसाने वाला तो मालिक ही होता है ना..?

Advertisement. Scroll to continue reading.

दिक्कत यह है कि आज जो तमाम संपादक बैठे हुए हैं, खासतौर पर राजस्थान पत्रिका या भास्कर जैसे अखबारों में, उनकी समझ और चरित्र दोनों ही औसत से भी बहुत नीचे हैं। ये ऐसे संपादक हैं, जो खाते भी मालिक की हैं और छेद भी मालिक और अखबार में करते हैं। ऐसे संपादक रोज हत्याएं करते हैं. अपनी टीम के सदस्यों का, उनके हौसलों का..उनकी रोजी का। आखिर एक पस्त, असुरक्षित टीम से कैसे कोई संपादक बड़ी जीत हासिल कर सकता है…? वाकई बहुत बुरी स्थिति में जीते हैं, हिंदी चैनल और अखबारों में काम करने वाले युवा पत्रकार। जो अभिशप्त हैं, ऐसे संपादकों के साथ काम करने के लिए, जिससे ना तो बौदि्धक नेतृत्व मिलता है और ना ही भावनात्मक आश्रय ही। आखिर इन युवाओं का कसूर क्या है…?

यह सच है कि हर उद्योग समूह के अपने हित भी होते हैं, और हर समूह उनको पूरा भी करता है..अखबार और चैनल के मालिक भी करते हैं, लेकिन ऐसे सौदे यदा कदा होते हैं। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

सतह के नीचे की हकीकत यह है कि मालिक यदि एक रुपए कमाता है तो ये संपादक पत्रकारिता की साख बेचकर सौ कमाने की सोचते हैं, और ऐसा करते भी हैं।

राजस्थान पत्रिका के संपादक समूह भुवनेश जैन को ही ले लीजिए, यदि कक्षा सात के बच्चे के साथ गाय पर निबंध लिखने बैठा दीजिए तो आधे घंटे में, तीन बार छोटी अंगुली उठाकर कक्षा से बाहर जाने की इजाजत मांगेगा। ताकि बाहर निकल किसी से कुछ पूछताछ कर ले। कॉपी कोरी ना चली जाए कहीं..।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मुझे कहते हुए कोई हिचक नहीं है कि ऐसे संपादक ना तो बौदि्धक नेतृत्व करने की क्षमता रखते हैं ना ही टीम के लिए प्रेरणा बनते हैं।

शायद मेरे दौर में ही इस छोटे से अखबार ने सौ दिन में ढाई से इंपैक्ट छोड़े। आईपीएल चेयरमैन ललित मोदी के खिलाफ वारंट जारी करवाया। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर ली गई जमीन वापस कराई, मुख्यमंत्री पर मुकदमा कराया। पुलिस महानिदेशक एके जैन को जेल भिजवाया। और मैं बेहद विनम्रता से स्वीकार करूंगा कि हूकमत के खिलाफ रोज ब रोज सैंकड़ों लाठिया फटरकारने के बावजूद निहार ने कभी मुझसे कैफियत नहीं मांगी। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐसा नहीं है कि राजस्थान में भ्रष्टाचार नहीं है. आज भी हैं और कल गहलोत के वक्त भी हुए। पर राजस्थान क्या करे..? मालिक तो हैं, पर संपादक नहीं है। और संपादक ऐसे हैं कि मालिक कहे थोड़ा झुक कर चलो तो ये “लंबलेट” कर पस्त हो जाते हैं। बेहद दोयम दर्जे के संपादकों की गिरफ्त में है मीडिया फिलवक्त। 

वो दौर था जब दोपहर के इस अखबार की मांग गुवाहाटी से लेकर गुजरात के अलंग और दिल्ली के जामा मसजिद से आ रही थी। अखबार के सर्कुलेशन को लेकर मैं सड़को पर जनरल मैनेजर को फटकार रहा था और सेल्ज प्रेसीडेंट की खबर ले रहा था। मैं ही अखबार चला रहा था और मैं ही मालिक था। निहार ने बतौर मालिक मर्यादा रखी और मैंने बतौर संपादक अखबार को वो पहचान दे दी, जिसके लिए केलॉक्स यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता पढ़े इस युवा मालिक की चाहत थी। मेरे दो साल के दौर में निहार एक बार आए वो भी जॉगिंग के बाद लौटते हुए और दो चार मिनट बतिया कर लौट गए। और अपन को भी कभी केसरगढ़ हाजिरी के लिए नहीं बुलाया। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

तो यह कहना कि हर मालिक बेहूदा और दलाल है..मैं अपने अनुभव संसार से गलत मानता हूं। ऐसा नहीं कि बेहूदे और दलाल मालिक नहीं होंगे, जरूर और ज्यादातर ऐसे ही होंगे। पर जिन्हें मैं जानता हूं. जिनके साथ मेरा वक्त गुजरा है..उनसे मेरा अनुभव ऐसा नहीं है। आज मेरा ना निहार कोठारी से कोई ताल्लुक हैं और ना ही गुलाब कोठारी मुझे पहचान पाएंगे। फिर जब एक तरफा प्रहार होते देखा तो लगा, वो सच भी सामने आना चाहिए..जिसका प्रत्यक्षदर्शी मैं खुद हूं..और मैं यदि चुप रहा तो यकीनन यह अनैतिक होगा..कम से कम मैं अपनी दृष्टि में तो अनैतिक हो ही जाऊंगा। लिखना मेरा काम है, सो लिख दिया। बाकि फैसला आप विवेकशील मित्रों को करना है।

सुमंत भट्टाचार्य के एफबी वॉल से

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. jyjhhtyht

    May 3, 2015 at 5:57 pm

    बंगाली बाबू जमकर तेल लगाया। खानदानी तेलू मालूम पड़ते हो। अंग्रेजी में कहा जाता है कि सेल्फ रिकमंडेशन हैज नो वैल्यू।
    तुम आदरणीय जैन साहब की …. के बाल के बराबर भी नहीं हो। सबसे ज्यादा खून पिया है पत्रिका ने अपना बनाकर इसीलिए इतनी गालियां भड़ास के रूप में आयीं।

  2. Journalist pinkcity

    May 3, 2015 at 7:20 pm

    उस समय की सुमंत भट्टाचार्य की ‘रासलीलाओं’ को जयपुर का हर पत्रकार जानता होगा। ऐसे संपादक का होना पत्रिका के लिए कलंक था.… और आज यह सबको भाषण दे रहे हैं ! सच तो यह है कि उस समय शाम के अखबारों में ‘महानगर टाइम्स’ का मुकाबला कोई नहीं कर पाता था। रही बात भुवनेश जैन के लेखन की, तो जरा सुमंत जी पहले ‘बेवसाइट’ को ‘वेबसाइट’ और ‘पढ़ा’ को ‘पड़ा’ लिखना सीख लें, फिर किसी के बारे में बात करें। आपके एक हजार शब्द के सामने उनके सौ शब्द ही काफी होते थे।

  3. sanjib

    May 3, 2015 at 9:28 pm

    Aap dono ne ekdam se sahi kaha bhaiyon… Main inhein behad kareeb se jaanta hoon. Jansatta chhode isliye ki Biwi ka transfer Delhi FE me ho gaya thha.. Inhoney bhi apna transfer delhi kerwaya, kyonki us waqt ye Jansatta kolkata ke RE ke sabsey bade CHAMCHEY thhey. Chamchai ka past-participle roop hota hai “Belchai”, to ye yahi thhe. Delhi me I.E. me inhein join kerna pada, kyon, pata nahi. Ab inhein English Utni to aati nahin thhee. Atah, Apni Biwi ka sahara lete.
    Inhoney jo likha hai, shayad ye Fir se “Belchai” kerke Kothari-Bandhu ke galey lagna yani wahan Naukri karna chah rahey hain…
    Sumant ji, Thoda apni Gireban mein pahley jhaank lein, phir kisi ke khilaf koi comment karein…
    Waisey aapney Kothari Bandhu ki Itni Tareef ker hi dali hai, to Ummeed rakhiye, wey aapsey “Abhibhoot” jaroor hongey aur apko Naukri de-denge…

  4. rsaksena

    May 4, 2015 at 4:22 am

    ek teer se kai nishane.sare akhbar malikon ko tel lagaya aur khud ki eeth thonk li.par sumant ke gyan aur copy ke bare men tamam duiya janti hai.baton se lubhane wale is shakhs ka lekhan men mamla goal hai.NBT men isilie inhen kaam par nahn liya gaya tha ki chand line me sau galtiya hoti thee. aur jarurat se jayada bak bak karte the.

  5. rsaksena

    May 4, 2015 at 4:26 am

    Sanjib g ekdam sahi.bhole bhale shyamsundar Acharya g ko fans rakha tha inhnone.aur har jagah expose hue.aur kothari ke bare men kaun nahi janta.shayad is bar bhi inka tukka lag jae.

  6. rajesh

    May 4, 2015 at 9:21 am

    reporters se samose bikwane wale bhattu Gt ke pass do bar pite the beacuse car main raslila kar rahe the

  7. sumant

    May 13, 2015 at 4:12 am

    मित्रों की ढेर सारे एतराज को पढ़ा और समझने की कोशिश की। मेरा सिर्फ इतना अनुरोध है, आपके विचारों को तभी स्वीकृति मिलेगी, जबकि आप वास्तविक परिचय के साथ सामने आते हैं। रही बात मेरी नौकरी की तो निश्चिंत रहिए, अपन अब कभी चिलगोजी नौकरी नहीं करेंगे,क्योंकि यदि किया तो सिर्फ योग्य बचेंगे। और हां, ये जो संपादकों की कीर्ति पताका लहरा रहे हों ना। इनसे कहो कि कभी इलहाबाद, पटना, लखनऊ या फिर अलीगढ़, बनारस यूनिवर्सिटी में बोलने आएं, छात्रों के बीच। कद नपते देर ना लगेगी। अपन तो हर जगह जाते हैं..कल भी जाते थे और आज भी जाते हैं। अरे मूखों, जिंदगी में कुछ करना है तो काबिल संपादक तलाशो., इन मूर्खों की शिष्यत्व में रहोगे तो सूबे से कभी बाहर ना निकल पाओगे। खुश रहो

  8. sumant

    July 4, 2015 at 3:11 pm

    वाकई कितने शेर दिल हैं ये पत्रकार जो फेक आईडी से अपने कमेंट लिखते हैं। नैतिक साहस का वाकई आकाल पड़ चुका है। काश कोई खुल कर सामने आता। पर ना आएंगे..क्योंकि ये चाकर हैं…पत्रकार नहीं।

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement