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सुख-दुख

वरिष्ठ उदघोषक और पत्रकार राजुरकर राज का निधन

जावेद ख़ान-

एक और आवाज़ खामोश हुई… आकाशवाणी के वरिष्ठ उदघोषक और दुष्यंत कुमार् संग्रहालय के संस्थापक राजुरकर राज अब नहीं रहे…

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लम्बी ज़िंदगी की जद्दोजहद के बाद वह ये फानी दुनिया को छोड़ सदा के लिए हम सब से दूर हो गए…सदा मुस्कुरा कर मिलने वाले राजुरकर राज सर सभी को अपने जाने का दुःख देकर सदा के लिए बिछुड़ गए… ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे….

प्रेम जनमेजय-

‘दुष्यंत संग्रहालय’ को अपने पसीने के एक -एक बूंद से सींचने वाले निस्वार्थ साहित्य सेवी #राजुरकर_राज को अंतिम सलाम। आज आंसुओं से भीगा होगा संग्रहालय का हर कण। अंततः थककर वीरगति को प्राप्त हुआ साहित्य का अथक सिपाही।
संघर्ष के नए मानदण्ड रचने वाले अभिन्न राजुरकर राज के यूं चले जाने ने मुझे तोड़ दिया है।

नवम्बर 2022 में विश्वरंग’ आयोजन में भोपाल जाना हुआ था तो साहित्यिक परिवार के अनेक सदस्यों से मिलना हुआ। राजुरकर राज मेरे साहित्यिक परिवार का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनसे उनकी आत्मीयता और वर्षों पुरानी दोस्ती मेरी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जब भी मिलते है बरसो से बिछुड़े से मिलते । मित्रो को लगा था कि सम्भवतः बीमारी के कारण उनका 60 वां जन्मदिन न मना पाएं।60 वें जन्मदिन से पूर्व उनका जन्मदिन मनाया गया। मुझे भी उसका हिस्सा बनाया गया।

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भोपाल जाऊं और न मिलूं, असम्भव-सा है। मिलने की यह आग दोनों तरफ बराबर है। उस दिन राजुरकर का सुबह सुबह फोन आया–भाई साहब, नमस्कार (आत्मीय हँसी)भोपाल में स्वागत है। कहाँ रुके हैं?
— सार्थक में
—आ रहा हूँ।

राजुरकर आये और चाय पर हम दोनों ने केवल एक दूसरे से अपना हाल का अतीत साझा किया अपितु बतरसी आनंद में समय को उड़ने दिया।

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मुर्दा से हो चुके, गठरी जैसे शरीर का लगभग मौत के मुहं में चले जाना और नागपुर के डॉक्टर विजेता के इलाज से लौटने के राजुरकर के अतीत को उसके मुंह से जाना तो सिहर गया।

राजुरकर की दृढ़ इच्छाशक्ति और उस डॉक्टर को सलाम जिसने यह चमत्कार किया। वातावरण को सहज करते हुए राजुरकर ने कहा, ‘अच्छा भाई साहब अभी चलता हूँ। दोपहर को आता हूँ, दुष्यंत संग्रहालय ले चलूंगा।

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संग्रहालय के नए पते पर मुझे जाना ही था। कभी संग्रहालय जाएं तो पाएंगे कि उसका हर दीवार राजुरकर के श्रम, लगन, समर्पण आदि के किस्से सुनाती है। दुष्यंत संग्रहालय उसका मिशन है। कोई साथ न दे तो एकला चलो। वह खुद आरी ,कील, हथौड़ा आदि पकड़ बढई का काम कर सकता है।

पूरा संग्रहालय राजुरकर ने इस उत्साह से दिखाया जैसे कोई बच्चा अपने प्रिय खिलोने का खज़ाना दिखलाता है। फिर उसी उत्साह से चित्रों के एक कोलाज के सामने खड़े हो बोले,”आइए भाई साहब यहां चित्र लेते हैं। ‘ दुष्यंत अलंकरण से सम्मानित अनेक महत्वपूर्ण रचनाधर्मियों के संग मैं भी था।

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आज सब केवल अविस्मरणीय स्मृति बनकर रह गया है।


पंकज सुबीर-

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भोपाल जाना अब कुछ ज़्यादा उदास करेगा… राजुरकर राज जी नहीं होंगे अब भोपाल में… दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय के सामने से गुज़रते हुए मन थरथराएगा…

यह संग्रहालय जिस एक व्यक्ति की ज़िद का परिणाम था, वह चला गया… मृत्यु से संघर्ष पिछले कई वर्षों से जारी था, पर लड़ने का जुनून कभी कम नहीं देखा चेहरे पर…

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राजुरकर राज…. एक जिजीविषा से भरा हुआ अध्याय समाप्त हुआ… विदा…. नमन…. श्रद्धांजलि…

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