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भारतीय संस्कृति को राम की सबसे बड़ी देन ‘एकपत्नीव्रत’ होना!

पंकज चतुर्वेदी-

आज संस्कृत के यशस्वी आलोचक एवं रचनाकार प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने कानपुर में एक यादगार व्याख्यान दिया। वाल्मीकि रामायण के आधार पर उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति को राम की सबसे बड़ी देन अगर कोई है, तो वह उनका ‘एकपत्नीव्रत’ होना है। उनके पहले किसी धर्मग्रन्थ, शास्त्र, पुराण, यहाँ तक कि किसी भी ‘स्मृति’ में यह विधान नहीं था कि पुरुष केवल एक विवाह करेगा। स्वयं कृष्ण के बारे में मिथक है कि उनकी सोलह हज़ार एक सौ आठ रानियाँ थीं। राजाओं में विलासिता के अलावा राजनीतिक कारणों से भी बहुविवाह प्रथा बेहद प्रचलित थी।

तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ के प्रभाव में हम जानते हैं कि दशरथ की तीन ही रानियाँ थीं, लेकिन वाल्मीकि के अनुसार उनकी तीन सौ रानियाँ थीं। इस वजह से अन्तःपुर में बहुत कलह थी। राम उस दारुण यथार्थ से वाक़िफ़ थे। कौशल्या वृद्ध हो गई थीं, इसलिए वनवास को जाते समय उन्हें अपनी माँ की सबसे ज़्यादा चिन्ता होती है और वह पिता से कहते हैं : ‘मेरी माँ का ध्यान रखिएगा, कहीं इनके साथ कोई अनिष्ट न घटने पाए!’

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सबसे युवा रानी कैकेयी बेहद तेजस्वी एवं वीरांगना थीं। यह काल्पनिक बात है कि देवासुर संग्राम में दशरथ के रथ का पहिया धुरी से निकला जा रहा था, इसलिए वहाँ उन्होंने अपनी उँगली लगाकर पहिए को निकलने नहीं दिया। सच यह है कि दशरथ बुरी तरह क्षत-विक्षत हो गए और युद्धभूमि में अचेत पड़े थे। कैकेयी विस्मयजनक पराक्रम और साहस का परिचय देती हुई उन्हें उसी हालत में वहाँ से उठा लाईं। जब दशरथ को होश आया, तो अपनी प्राण-रक्षा से अभिभूत होकर वह जीवन में कभी भी कैकेयी से दो वर माँग लेने को कहते हैं।

उसके पहले कैकेयी के पिता उनसे विवाह के लिए दशरथ के प्रस्ताव पर इस शर्त पर तैयार हुए थे कि राजा कैकेयी के बेटे का राज्याभिषेक करेंगे। इसे तत्कालीन शब्दावली में ‘राज्य-शुल्क’ देकर विवाह करना कहा जाता था। बाद में अयोध्या की प्रजा में राम की अपार लोकप्रियता के कारण लोकहित की दृष्टि से दशरथ उन्हें युवराज बनाने का फ़ैसला करते हैं। पूरी अयोध्या कैकेयी को खलनायिका मानती और उनके लिए अपशब्द कहती है, क्योंकि वह राज्य-शुल्क वाली बात नहीं जानती, मगर राम जानते थे कि मेरे पिता ने राज्य-शुल्क देकर यह विवाह किया है। इसलिए वह जीवन में कैकेयी की कभी निन्दा नहीं करते। उन्हें लगता है कि पिता की इच्छा को ध्यान में रखकर अगर वह राजा बन गए, तो यह धर्मसम्मत नहीं होगा। वह केवल अपना समय नहीं, बल्कि भविष्य देख रहे थे और उनके मन में यह सवाल था कि इतिहास क्या कहेगा?

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बाद में जनमत के दबाव को वह सह नहीं पाते और सीता को वनवास देते हैं, लेकिन एकनिष्ठ प्रेम के कारण उनकी सोने की प्रतिमा बनवाकर अपने साथ रखते हैं। अश्वमेध यज्ञ का यह धार्मिक विधान था कि राजा की चार रानियाँ होनी चाहिए, इसलिए पुरोहित उनसे ऐसा अनुरोध करते हैं। धार्मिक विधि-विधान से जो राजा अश्वमेध यज्ञ कर लेता था, उसे इन्द्र के समकक्ष माना जाता था। इसके बावजूद राम कहते हैं कि मैंने जीवन में केवल सीता से प्रेम किया है, चार तो क्या, मैं कोई दूसरा विवाह भी नहीं कर सकता। धार्मिक विधान टूट जाने दीजिए, आप सीता की स्वर्ण-प्रतिमा को साक्षी रखकर अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न कीजिए!

समुद्र पार कर लेने के बाद राम जब त्रिकूट पर्वत पर स्थित लंका के भव्य भवन और अट्टालिकाएँ देखते हैं, तो सोचते हैं कि मेरी सीता भी इन्हीं राजभवनों में कहीं होगी। हनुमान उन्हें बता चुके हैं कि सीता वहाँ हैं और सकुशल हैं। इसी बिना पर राम कहते हैं कि उधर से आने वाली हवाएँ जब मुझे स्पर्श करती हैं, तो मेरे जीवन के लिए इतना काफ़ी है, क्योंकि मुझे एहसास होता है कि ये हवाएँ सीता को छूकर आ रही हैं।

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नरेश सक्सेना- निश्चय ही राधावल्लभ त्रिपाठी जी का व्याख्यान सुनने और गुनने लायक होगा। एक बात पूछनी थी- कहते हैं कि इतने प्रेम के बावजूद, लंका का युद्ध जीत लेने के बाद,वाल्मीकि के राम, सीता से कहते हैं कि ये युद्ध मैंने तुम्हारे लिये नहीं अपने कुल की मर्यादा के लिये लड़़ा था। अब तुम जहां जाना चाहो जा सकती हो। ये विरोधाभास कैसा? वाल्मीकि रामायण मैंने पढ़ी नहीं है। क्या ये सच है?

पंकज चतुर्वेदी- यह मैंने उनसे पूछा था। बोले कि यह सच है। कई बार विश्वास नहीं होता कि ये वही राम हैं, जो अभी सीता के बारे में इतना प्रेममय आख्यान कर रहे थे और उन्हें वनवास देने के बाद भी करते रहे। इसकी अनेक व्याख्याएँ सम्भव हैं। एक यह कि राम के भीतर अन्तर्द्वन्द्व हैं। दूसरी यह कि उनके भीतर से और उनके माध्यम से उनके समय का समाज बोलने लगता है, यह केवल राम की वाणी नहीं है। तीसरी यह कि रामायण के कई अंश प्रक्षिप्त माने गए हैं, यानी वे बाद में दूसरे रचनाकारों द्वारा गढ़े और मूल पाठ में जोड़े और मिलाए गए हैं। ख़ास तौर पर वाल्मीकि रामायण के ‘उत्तरकांड’ के कई अंश प्रक्षिप्त और विवादास्पद हैं। मसलन अहल्या जैसी अभिशप्त स्त्री से मिलने और शबरी को गले लगाने वाले, अपनी प्रजा से अगाध प्रेम करने वाले राम शम्बूक वध नहीं कर सकते। इसका कारण यह है कि वाल्मीकि रामायण रची जाने के बाद लगभग एक हज़ार साल तक वाचिक एवं श्रुति परम्परा द्वारा रक्षित रही और आगामी पीढ़ियाँ अपनी स्मृतियों में उसे धारण करती रहीं। कई सदियों बाद उसे लिपिबद्ध किया जा सका। इस विराट् समयान्तराल में उसमें बहुत-से प्रक्षिप्त अंश जोड़ और मिला दिए गए। इतने प्रक्षेपण या मिलावट के बावजूद राम कोई दूसरा विवाह नहीं करते, न अपने जीवन में किसी और स्त्री से प्रेम ही करते हैं।

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