नई दिल्ली। शायद सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय से लंबित चले आ रहे राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को खत्म करने के लिहाज से विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दी होगी। मामले की बेंच के जज ये भी यह भली भांति जानते होंगे कि उनके इस फैसले से उन पर पर उंगली जरूर उठेगी फिर भी देश और समाज हित देखते हुए उन्होंने यह फैसला लिया। क्योंकि फैसला बेहद ईमानदारी छवि वाले तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगई की अगुआई में दिया गया तो कुछ अपराध को छोड़ दें तो पूरे देश ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को माना।
इसकी बड़ी वजह यह थी कि अब हर कोई इस विवाद का निपटारा देखना चाहता था। तो क्या यह विवाद खत्म हो गया है ? परिस्थितियों को देखने से नहीं लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब यह विवाद खत्म हो चुका है। दरअसल राम मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन करने वाले लोग ही नहीं चाहते कि यह विवाद खत्म हो। पहले मंदिर निर्माण के लिए गठित होने वाली ट्रस्ट में शामिल होने के लिए विवाद हो रहा था तो अब राम मंदिर मंदिर का पुजारी बनने को लेकर एक नया बखेड़ा खड़ा हो गया है।
रामलला की पूजा पाठ कौन करेगा? भोग राग कौन करेगा? इसको लेकर पुजारी बनने की एक नई लड़ाई ने जन्म ले लिया है। रामलला विराजमान पक्षकार और राम जन्मभूमि न्यास में सदस्य त्रिलोकी नाथ पांडे ने तो पुजारी बनने के लिए अपना दावा भी ठोक दिया है। राम मंदिर में पक्षकार महंत धर्मदास ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मादी, मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और राम मंदिर के रिसीवर को पत्र भेजे हैं, जिसमें उन्होंने 1949 में अपने गुरु बाबा अभिराम दास के राम मंदिर का पुजारी होने का जिक्र किया है। साथ ही उनके खिलाफ पुजारी होते हुए दर्ज मुकदमे की भी बात बताई है।
पत्र में इस बात की भी चर्चा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में उनके गुरु बाबा अभिराम दास को ही तत्कालीन पुजारी माना है। इसको आधार बताकर उन्होंने उसी परंपरा और कानून का हवाला देकर गठित होने वाले ट्रस्ट में खुद को ट्रस्टी और पुजारी बनाने की मांग की है। राम मंदिर की तरफ से पक्षकार महंत धर्मदास की ओर से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजे गये पत्र में कहा गया है कि राम जन्मभूमि में 1949 से बाबा अभिराम दास पुजारी थे, उनके नाम से एफआईआर दर्ज हुई। एफआईआर के बाद जितने मुस्लिम पक्ष थे, उन सभी ने बाबा अभिराम दास को पार्टी बनाया, हमने कोई मुकदमा नहीं किया था।
उधर निर्मोही अखाड़े के भास्कर दास ने कहा है कि देवकीनंदन अग्रवाल ने अपने मुकदमे में कहा कि बाबा अभिराम दास मुख्य पुजारी थे तो सारी व्यवस्था हमारे पक्ष में रहीं। महंत ने कहा कि कोर्ट ने माना इसीलिए मैंने पत्र देकर कहा कि ट्रस्ट में और राम जन्मभूमि में पुजारी की व्यवस्था हो। भारतीय संस्कृति और साधु समाज की सुरक्षा करने के लिए और राम की सेवा करने के लिए दायित्व उन्हें दिया जाए।
यह भी अपने आप में दिलचस्प है कि अब राम मंदिर के पुजारी जो आचार्य सत्येंद्र दास हैं वह महंत धर्मदास के बड़े गुरु भाई हैं। यानी आचार्य सत्येंद्र दास और महंत धर्मदास एक ही गुरु बाबा अभिराम दास के शिष्य हैं। अब ऐसे में सत्येंद्र दास अपने गुरु भाई द्वारा पुजारी बनने का दावा ठोकने को लेकर अचंभित हैं। वह कह रहे हैं कि वह तो 27 साल से उन रामलला की पूजा कर रहे हैं, जिसकी सबसे पहले पूजा-अर्चना उनके अपने गुरु बाबा अभिराम दास ने शुरू की थी। लिहाजा वह तो अपने गुरु की परंपरा को ही आगे बढ़ा रहे हैं और इसी आधार पर उनका चयन हुआ था।
यह भी जमीनी हकीकत है कि कोर्ट के आदेश के बाद के मंदिर के रिसीवर ने सत्येन्द्र दास को पुजारी के तौर पर नियुक्त किया है। इस नए विवाद में दोनों गुरु भाइयों के बीच पुजारी बनने की वर्चस्व की होड़ के बीच रामलला विराजमान के पक्षकार और राम जन्मभूमि न्यास के सदस्य त्रिलोकी नाथ पांडे ने भी आपत्ति दर्ज की है। उन्होंने सीधे तौर पर वर्तमान पुजारी सत्येंद्र दास को कमिश्नर का कर्मचारी करार दे दिया और कहा वह तो सिर्फ कर्मचारी हैं जिन्हें वेतन मिलता है, पुजारी के बारे में फैसला तो नया ट्रस्ट करेगा।
उधर विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता शरद शर्मा ने भी मौजूदा पुजारी तो कमिश्नर के द्वारा नियुक्त किया गया वैतनिक कर्मचारी बताया। उनका कहना है कि राम मंदिर का पुजारी तो सर्वगुण संपन्न, वैदिक रीति रिवाज को मानने वाला ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला निपुण रामानंद संप्रदाय का व्यक्ति होना चाहिए।
उधर पुजारी बनने की दौड़ में निर्मोही अखाड़ा भी है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े को भी राम मंदिर के प्रबंध तंत्र में हिस्सेदार यानी गठित होने वाले ट्रस्ट में भागीदारी देने का आदेश दिया है। वैसे भी निर्मोही अखाड़े ने पंचों की बैठक कर प्रधानमंत्री को अपना दायित्व निश्चित करने के लिए मिलने का समय मांगा है। दरअसल राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद अब हिंदू-मुस्लिम का विवाद कम हो गया है अब इस विवाद ने नया रूप ले लिया है। जो राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन करने वाले लोगों के बीच चल रहा है।
दरअसल राम मंदिर निर्माण के नाम से देश-विदेश से मोटा चंदा आता है। राम मंदिर के नाम पर देश में बड़ी-बड़ी दुकानें चल रही हैं। अब मंदिर बनने और बनने के बाद जो कमाई होनी है उसको लेकर लड़ाई शुरू हो चुकी है। यह जगजाहिर है कि मंदिर का पुजारी ही मुख्य व्यक्ति माना जाता है। इतने बड़े आंदोलन के बाद जब अब राम मंदिर का निर्माण हो रहा है तो इसके पुजारी का भी रुतबा भी विश्व स्तर का होगा। मस्जिद पक्ष की ओर से पुनर्विचार याचिका डाले जाने के पीछे भी देश और विदेश से आने वाला चंदा मुख्य कारण बताया जा रहा है।
सर्वविदित है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनेगा तो इसकी आड़ में बड़ी-बड़ी दुकानें भी चलेंगी। मंदिर बनाने वाला बिल्डर, सीमेंट, ईंट, लोहा, मूर्तियां, घंटे, पुजारी, स्टाफ सब चाहिए। इन सबमें पुजारी की बड़ी भूमिका होगी। क्योंकि यह माना जाता है कि पुजारी की देखरेख में यह सब काम हो।
भले ही राम मंदिर का निर्माण ट्रस्ट कराएगी पर मंदिर निर्माण के नाम पर आने वाला चंदे, मंदिर निर्माण, देखरेख और मंदिर के पास बनने वाली दुकानों की आड़ में जो कमाई होने वाली है उस कमाई पर कई संगठनों की गिद्ध दृष्टि है। क्योंकि केंद्र के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी राम मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन करने वाली भाजपा की सरकार है तो इन लोगों से सख्ती से भी नहीं निपटा जा सकता है। ऐसे में भले ही राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का विवाद ज्यादा आगे न बढ़े पर राम मंदिर निर्माण के नाम पर मंदिर के पक्ष में आंदोलन करने वाले संगठनों और लोगों में विवाद और बढ़ने की आशंका है। आने वाले समय में यह विवाद और गहराने वाला है।
वैस भी राम मंदिर निर्माण का लेकर होने वाले आंदोलनों में भी इन संगठनों में जमकर राजनीति हुई। किसी समय मेंं राम मंदिर निर्माण को लेकर होने वाला आंदालन विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के हाथ में था। लालकृष्ण आडवाणी के रथयात्रा निकालने के बाद आंदोलन आरएसएस और भाजपा के हाथ में आ गया था।
आज जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण होने जा रहा है तो विश्व हिंदू परिषद और बजरंग अलग-थलग है। किसी समय हिन्दूओं के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले विहिप के महामंत्री प्रवीण तोगड़िया हाशिये पर डाल दिये गये हैं। उन्होंने तो खुद को प्रधनामंत्री से खतरा भी बताया है। दूसरी ओर राम मंदिर निर्माण के नायक माने जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, उभा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा कहीं नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। सब कुछ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह हैं।
देखने की बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने से पहले मंदिर निर्माण के नाम पर विहिप और निर्मोही अखाड़े के बीच भी विवाद हो चुका है। जो लोग अयोध्या विवाद को खत्म होने की ओर देख रहे हैं वे अभी जल्दबाजी कर रहे हैं। अयोध्या विवाद खत्म नहीं हु आ है। हां यह विवाद अब हिंदू-मुस्लिम भले ही न रहा हो पर राम मंदिर निर्माण, पुजारी, स्टाफ और श्रेय लेने का लेकर शुरू हो चुका है।
चरण सिंह राजपूत की रिपोर्ट.