Gunjan Sinha : रामोजी राव साहब को पद्म पुरस्कार दो दशक पहले मिलता तो ज्यादा ख़ुशी होती. अब वे इनसे काफी ऊपर हैं और इस बीच पद्म अपनी काफी चमक विवादों में खो चुके. उधर निष्पक्ष और उच्च पत्रकारिता के जो प्रतिमान उन्होंने स्थापित किये थे, वे उसी ईटीवी में उनके हमारे देखते देखते रोज ध्वस्त हो रहे हैं. मुझे लगता है वे अब कभी ईटीवी (हिंदी चैनल्स) नही देखते होंगे. मेहनत से बनाए ये चैनल उन्हें बेचने पड़े. जब वे झंडे गाड़ चुके तब कोई पद्म नहीं मिला, अब जब वे झंडे उखड चुके तो पुरस्कारों का क्या मतलब? फिर भी बधाई! अंधों को दिखा तो सही!
आठ साल मैंने रामोजी साहब के साथ ईटीवी बिहार के प्रमुख के तौर पर काम किया. लेकिन बहुत लोगों को यकीन नही होगा कि सिर्फ एक दफा उन्होंने किसी खबर को रोकने के लिए मुझे फोन किया. खबर थी कि भाजपा उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाने जा रही है. रामोजी साहब ने इस खबर के चलते ही मुझे फोन कर के उसे तुरंत रोकने को कहा. कारण बताए, पहला ये कि-
“मेरी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं; उन लोगों ने पूछे बिना नाम दे दिया. मैं उन्हें मना कर रहा हूँ. वजह है कि राज्यसभा की मेम्बरी की जवाबदेहियां महान हैं. मेरे पास पहले से ही इतना काम है, मैं नहीं कर पाता. मेम्बरी से न्याय नही कर पाऊंगा, समय नही दे सकूँगा. लेकिन मैं नहीं चाहता कि ये भी खबर चले कि रामोजी ने एमपी बनने से मना कर दिया. वह बहुत सम्मानित पद है. मना करने की खबर से उसका सम्मान आहत होगा. हाँ और दूसरी बात, गुंजन, आप सभी चैनल्स के लिए एक निर्देश पत्र जारी कर दीजिये कि मेरे और मेरे परिवार के कोई सदस्य किसी कार्यक्रम में शामिल हों, कहीं उन्हें पुरस्कृत सम्मानित किया जाए, यानी उनसे जुडी कोई फोटो/खबर, हमारे किसी भी चैनल पर नहीं चलाई जाएगी. ये आदेश सभी चैनल्स को जारी कीजिये और इसे इम्प्लीमेंट करिए.”
आजकल कई सम्पादक, चैनल हेड्स और उद्योगपति जिस मेम्बरी के लिए अपना ईमान मार दे रहे हैं, वह रामोजी को प्लेट में दी गई थी, बिना मांगे. और जहाँ वे अपने बारे में बड़े से बड़े सम्मान की खबर अपने चैनल पर कभी नही चलने देते थे, आज उनके ही बिके हुए चैनल और देश के दूसरे कई चैनलों में उनके मालिक और सम्पादक अपनी मार्केटिंग के लिए अपने चैनल और अख़बार का निर्लज्ज इस्तेमाल कर रहे हैं – खबर जाए भाड़ में. अपना स्टाफ माला पहनाता है और फोटो देश पर थोप दी जाती है. चेहरा भी कालाधन के घी से भोथराये कटहल जैसा.
इसीलिए मैंने सुझाव दिया था कि सनी और राखी को चैनल हेड बनाइये. कुछ तो देखने लायक हो जाएगा. ओह, रामोजी साहब से सम्बंधित पोस्ट में ये सब लिखना! लेकिन चलिए लिख गया तो लिख गया, अब रामोजी साहब भी तो जाने कि उन्होंने अपने ऊंचे प्रकाश स्तंभों को कैसे हाथों में दे दिया. उनकी जीवन गाथा एक अद्भुत उपन्यास का विषय है. काश कोई लिखे. या कम से कम उन पर एक किताब ही लिखे. वह किताब निश्चित रूप से अरविन्द अडिगा के “व्हाइट टाइगर” को एक हिन्दुस्तानी का बेहद जरुरी जवाब होगी.
वरिष्ठ पत्रकार गुंजन सिन्हा के फेसबुक वॉल से.
Baba Gade
January 27, 2016 at 9:23 am
Dear गुंजन Bahot sahi likha aapane.
Lekin problem ye hai ki achha likhane par koi comment nahi deta.. Very nice !!
Shailesh Banasha
January 29, 2016 at 11:45 am
Respected Gunjan Sir,
Yeh hamara saubhagya hi raha ki Ramoji Rao jaise vilakshan vyaktitva aur aap jaise senior ke sath kaam karne ka mauka mila. Ramoji Rao ke liye kuch likhna Suraj ko Deeya dikhane jaisa hi hai…
रजनीश कांत
January 28, 2016 at 12:43 am
जैसा कि गुंजन सर ने कहा, रामोजी राव गारू की महानता बारे में मुझे भी एक बात कहनी है। बात उस समय की है जब मैं ईटीवी एमपी डेस्क पर सुबह सात बजे का समाचार बुलेटिन निकाल रहा था। रामोजी को महाराष्ट्र सरकार बाल गंगाधर तिलक सम्मान से नवाजा गया था। जहां तक मुझे याद है शायद 6 बजे सुबह के पहले बुलेटिन में ईटीवी के कई चैनलों ने इस खबर को प्रमुखता से एयर किया था। लेकिन, सात बजे से पहले ही सारे डेस्क के लोगों के पास संदेश भेजा गया कि रामोजी को बाल गंगाधर तिलक सम्मान से नवाजने की खबर बिल्कुल ना चलाई जाए।…