राणा यशवंत-
क़तार और हाहाकार का मारा देश… कल रात के 8 बज रहे थे। मेरे पास मेरे पुराने सहयोगी और छोटे भाई जैसे विवेक भटनागर का फोन आया। आवाज में बेचैनी थी। हां विवेक- मैने फोन उठाते ही कहा। सर, बहुत तनाव में हूं। बड़ी बहन कोटा में हैं, एमडीएस अस्पताल के बाहर हैं, उनका ऑक्सीजन लेवल 70 आ गया है। उनको तुरंत आईसीयू चाहिए सर।
मैंने कहा डिटेल्स भेजो। परेशान मत हो, ऊपरवाला है। थोड़ी देर में डिटेल्स आ गई। मैंने पोस्ट किया, ट्वीट किया और उसके बाद अपने मित्र आशीष मोदी को फोन लगाया। आशीष जैसलमेर के कलेक्टर हैं। मैंने कहा आशीष भाई- ऐसे-ऐसे है, विवेक छोटे भाई जैसा है और बहन की जान मुश्किल में है। आपकी मदद चाहिए। उन्होंने कोटा के कलेक्टर से बात की, सीएम ऑफिस का हेल्पडेस्क सक्रिया हुआ, उसने मेरे ट्वीट पर जवाब दिया और विवेक की बहन के पास फोन चला गया। आप सुधा अस्पताल में चलिए, वहां आपका एडमिशन हो जाएगा।
पांच मिनट बाद जब आशीष भाई का फोन आया तो उन्होंने यह बात बताई। कहा कोटा का सबसे अच्छा अस्पताल है। एडमिशन हो रहा है, आईसीयू मिल जाएगा और बाकी कोई जरुरत होगी तब भी आपको चिंता करने की जरुरत नहीं है। मैंने धन्यवाद कहकर फोन रखा। विवेक की बहन की स्थिति ठीक होने लगी लेकिन आज सुबह रेमडेसिविर की जरुरत पड़ गई। विवेक ने मुझे फोन किया।
मैंने फिर आशीष भाई का नंबर डायल किया। उन्होंने अस्पताल के मालिक से बात की और इंजेक्शन दे दिया गया। अभी यह पोस्ट लिखते लिखते आशीष भाई का मैसेज ड्रॉप हुआ जिसे उनको अस्पताल ने शायद भेजा है। लिखा है मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट पर है। 90 का सेचुरेशन लेवल मेंटेन हो रहा है। बीमारी ने बहुत नुकसान किया है लेकिन सुधार हो जाना चाहिए। यानी वे पूछ-परख में लगे हुए हैं।
आशीष मोदी ने जो काम किया वो मेरी मित्रता में भले किया लेकिन वे ऐसे अधिकारी हैं जो अपनी जिम्मेदारी में इंसानियत का उसूल डालकर चलते हैं। मैंने बहुत सारे जरुरतमंद लोगों की ठीक-ठाक मदद करते हुए उन्हें देखा है। बच्चों की पढाई-लिखाई मे सहयोग करते पाया है। उनकी सजगता और सक्रियता से एक जान नहीं बची बल्कि एक परिवार बिखरने से बचा। यह खुद में जीवन की बड़ी उपलब्धि है। उनके ऊपर कभी सही समय पर अलग से लिखूंगा।
मेरे साथ इस देश के वे तमाम लोग आ गए हैं जो इस भीषण समय में लोगों की मदद करना चाहते हैं। वे कुछ नहीं कर पाने की स्थिति में खुद को नहीं रहने देना चाहते। ऐसे ही हैं कानपुर के कुमार प्रियांक। 60 साल की एक महिला रेणु तुली शहर के नारायणा मेडिकल कॉलेज में कोविडग्रस्त होकर भर्ती थीं. कल जब दोबारा टेस्ट रिपोर्ट आई तो निगेटिव हो चुकी थीं। मगर शरीर की हालत ऐसी थी कि तमाम मेडिकल सपोर्ट लगे हुए थे। अस्पताल कह रहा था- अब आप इनको ले जाइए। कौन ले जाए? बुजुर्ग पति जिनकी खुद की हालत ठीक नहीं। घर में और कोई है नहीं। कहीं भी ले जाएंगे तो अस्पताल में ही ले जाना होगा क्योंकि सपोर्ट सिस्टम तो चाहिए ही।
मेरे पास सूचना आई। मैंने मुश्किल बताई। पोस्ट पढते ही कुमार प्रियांक मिशन पर लग गए। थोड़ी देर में उनका जवाब मेरी पोस्ट पर आ गया। हू-ब-हू रख रहा हूं। “भाई साहब, मैंने बोलवा दिया है स्वर्ण सिंह जी से जो कानपुर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के डिप्टी कमिश्नर हैं, उनसे। हॉस्पिटल रेणु तुली जी को अभी 2-3 दिनों तक वहीं रहने देगा। बाद में मुझे रेणु जी के यहां से सूचना आ गई। सर, अभी दो तीन दिन यहीं रह लेंगे।
सुबह में मेरी मित्र और कुलीग मीनाक्षी जी का फोन आया। बोलीं मैंने आपको व्हाट्सैप किया है। पटना में मदद की जरुरत है। एक जानकार हैं, हालत नाजुक है, ऑक्सीजन तुरंत चाहिए। मैंने मैसेज के आधार पर पोस्ट डाली, ट्वीट किया। “पटना के मित्रों से मदद चाहिए। आप लोगों ने बहुत सहयोग दिया है। फिर चाहिए। इमरान का oxygen लेवल गिर रहा है। ज़रूरी ये है कि उन्हें किसी अस्पताल में भर्ती करवाया जाए।“ इसके नीचे डिटेल्स डाल दिए।
इस पोस्ट पर पत्रकार रॉय तपन भारती ने एक पन्ना श्रीमाली जी से आग्रह किया। पन्ना जी ने फोन लगाया, नहीं लगा। भारती जी ने कहा- आप अपना बेस्ट कर दो। श्रीमाली जी लगे रहे औऱ इमरान के पास ऑक्सीजन चली गई। इस देश में ऑक्सीजन जिसको मिल गई वह किस्मतवाला है। दिल्ली एनसीआऐर में तो हाहाकार है। लोग तड़प रहे हैं लेकिन अस्पताल एडमिशन इसलिए नहीं ले रहे क्योंकि अब ऑक्सीजन नहीं है।
बनारस में 70 साल की सविता सिंह साँस-साँस के लिए तड़प रही थीं। उनको वेंटिलेटर की सख्त जरुरत थी। मैंने डिटेल्स डालने के साथ लिखा- समय कम है,प्लीज़ मदद करें। एक सज्जन ने संदेश पढा और सविता सिंह का अस्पताल में दाखिला करा दिया । पता चला है उनको वेंटिलेटर मिल गया है। जो इंसान सविता सिंह का जीवनदाता बना, वो कौन है नहीं जानता। लेकिन वो अपना काम कर गया। शायद सविता सिंह ठीक हो जाएं तो उनके ढूंढने पर भी ना मिले, मगर वो आदमी इंसानियत का एक अध्याय लिख गया।
देश सचमुच एक खूंखार तूफान में फंसा है। लोगों की जान पर ऐसी कभी बनी ही नहीं और ईश्वर ना करे फिर कभी ऐसी बने। सड़क पर तड़प-तड़प कर लोग मर जा रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में हालत भयावह है। दूर-दराज़ के सदर अस्पतालो में तो मौत का और भयावह तांडव चल रहा है। इसका एक उदाहरण रख रहा हूं। सुनिए, रुह कांप जाएगी। मेरे बड़े से खानदान में एक चाचा गांव में कोविड पॉजिटिव हो गए। सारे गांव में हड़कंप मच गया।
चाचा को गांव से ले जाकर जिले के सदर अस्पताल में भर्ती करवाया गया। छपरा में सदर के अलावा कोविड की कोई और अस्पताल नहीं है। ऑक्सीनज आपको सिर्फ सदर अस्पताल में ही मिलेगी। मैंने कलेक्टर साहेब को फोन किया। नेक आदमी है। मेरे फोन करते ही उन्होंने सीएमओ को कहा और सीएमओ साहेब चाचा को देखने गए। कल चाचा अस्पताल से भागने को तैयार। भाई का फोन आया कि आप इनसे एक बार बात कर लीजिए। समझा दीजिए, डिप्रेशन में जा रहे हैं।
मैंने कहा क्यों, क्या हुआ? उसने कहा रात में इनके आसपास के मरीज छपपटा छटपटा कर मर गए। मरीज वॉर्ड में हैं, ऑक्सीजन दी जा रही है लेकिन ना नर्स है ना डॉक्टर। अब जो छटपटा रहा है, ये पता ही नहीं है कि उसको क्या हुआ। ऑक्सीजन लेवल कितना है, है भी कि नहीं है या उसको कुछ और चाहिए- यह देखनेवाला कोई है ही नहीं। इनके वॉर्ड में दिन में दो पहले ही निपट गए थे और रात में वो सब सीन देखकर ये बहुत डर गए हैं। मैंने चाचा से बात की। कहा- आपको कुछ नहीं होगा, आपका ऑक्सीजन लेवल तो अब बिना सोपोर्ट के 93 आ गया है। आप ठीक हो रहे हैं। बोले- हमको ऑक्सीजन के साथ घर भेज दो। मैं घर पर ही ठीक हो जाऊंगा।
मैंने भाई को बोला कि ऑक्सीजन का इंतजाम करो और इनको घर ले चलो। उसका फोन रखने के बाद राकेश जो भाई जैसे ही हैं, पत्रकार है, उनको फोन किया। मैंने कहा- सुनो, किसी भी कीमत पर चाचा के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम करो, उनको घर भेजना है। राकेश ने कहा – भैया चिंता मत कीजिए, अभी करवाता हूं। वो इंतजाम अब जाकर हुआ है। कल चाचा को अस्पताल से निकालकर घर पर ही इलाज के लिए भिजवा दूंगा। लेकिन वो इतने डरे हुए हैं कि छपरा सदर अस्पताल मे आज की रात उनके भीतर कल का भय औऱ भारी कर देगी, इसका अंदाजा मुझे है।
सुप्रीम कोर्ट केंद्र से पूछ रहा है कि बताओ कोविड से निपटने का नेशलन प्लान क्या है? बताओ ऑक्सीजन और कोविड बेड की स्थिति क्या है? वैक्सीन का क्या प्लान है, वगैरह, वगैरह। सरकार भी कुछ ना कुछ कह ही देगी। लेकिन सच ये है कि ना तो कोई प्लान है और ना लोगों का मरना थम रहा है। लोग बेतहाशा परेशान हैं। पूरा देश कतार में है। टेस्ट के लिए लाइन, अस्पताल में एडमिशन के लिए लाइन है और मरने के बाद श्मशान में जलाने के लिए लाइन।
कल दोपहर 12 बजे मेरे मित्र मोहित ने एक मैसेज किया। सर, हिंडन घाट पर एक जाननेवाला परिवार अंतिम संस्कार के लिए लाइन में है। वे लोग कह रहे हैं आपका नंबर दो बजे रात में आएगा। अब अंदाजा लगाइए कि हिंडन घाट जहां सात-आठ शव एक साथ जलाने का इंतजाम है, वहां सुबह कहा जा रहा है कि रात दो बजे नंबर आएगा, तो कितने लोग मर रहे हैं। मेरे मित्र का आग्रह ये था कि मैं अगर पोस्ट कर दूं और किसी सही आदमी को कह दूं तो उनलोगों को इतना इंतजार नहीं करना पड़ेगा। मैंने पोस्ट किया और फिर फोन भी। उनको शाम 6 बजे तक फारिग कर दिया गया।
झांसी में श्रवण कुमार का ऑक्सीजन लेवल 70 चला गया था। ओ निगेटिव ग्रुप के ब्लड प्लज्मा की जरुरत थी। मैंने झांसी के लोगों से निवेदन किया। उस पोस्ट पर एक धर्मेंद्र राजपूत ने पूजा यादव से मदद की अपील की। पूजा जी से फिर मैंने गुजारिश की। उन्होंने दो नंबर दिए। एक बंद था लेकिन दूसरा लग गया। बात हो गई है। कह रहे हैं कल तक प्लाज्मा मिल जाएगा। कहने का मतलब ये है कि कोई किसी को नहीं जानता। बस एक ही रिश्ता एक दूसरे को जोड़ रहा है- अपने लोग, अपना देश, अपनों की खातिर करने का जज्बा।
दिन भर मैसेज आते रहते हैं। फोन बजता रहता है। मैं सारे फोन उठाता हूं, मैसेजेज पढता हूं- जो जरुरी लगता है उसको पोस्ट-ट्वीट करता हूं। अब ऐसा हो गया है कि लोगों को लगता है इनके जरिए गुहार लगा दी तो कोई ना कोई, कहीं ना कहीं से मदद कर देगा। हर मामले में तो नहीं लेकिन ज्यादातर में ऐसा हो भी रहा है। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैं इतने लोगों के काम आ रहा हूं। मैं दफ्तर के काम के साथ साथ इस जिम्मेदारी को निभा सकूं, इसकी खातिर अपने सोने और दिनचर्या के कुछ और काम से समय निकाला है।
इंडिया न्यूज़ चैनल के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत की एफबी वॉल से।
सैकड़ों कमेंट्स में से एक नीचे दिया जा रहा है-
Satya Prakash- लोग कहते हैं कि राम मंदिर के बदले अस्पताल बन जाता तो आज इलाज ठीक से होता । पटेल की मूर्ति के बदले हॉस्पिटल होता तो लोग नहीं मरते । भाई..मैंने भी अपनों को खोया है । अभी भी हमारे परिवार के कुछ लोग ICU में सांस की जद्दोजहद कर रहे । लेकिन अभी 15 दिन पहले मैं अपने ही गांव में था । मास्क लगाने पर लोगों को बोलने पर हमें दिल्ली से गांव आया AC वाला जाहिल समझते थे । मोदी कोरोना फैला रहा है..ऐसा कहने वाले 10 में से 5 थे..जो खैनी लटिया कर हमें C समझते थे । आज वो लोग दो मास्क के ऊपर गमछा लपेटे हुए हैं । चावल दाल चोखा खा रहे हैं लेकिन पेठिया ( लोकल हाट) से हरी सब्जी खरीदने भी नहीं निकल रहे ( ये अच्छा है) । और हां..जरा दिल पर हाथ रखकर पूछिएगा..आपने अपने यहां सत्यनारायण पूजा, बेटी-भतीजी,बेटे की शादी रोककर सरकार को कोरोना रिलीफ फंड में पैसे क्यों नहीं भेज दिए ? भेज देते तो शायद सरकार पब्लिक फंड के दबाव में ही वैक्सीन या ऑक्सीजन के और इंतजाम कर लेती । दिल पर हाथ रखकर पूछेंगे तो पाएंगे..गलती हम सबने की है । भुगत भी सामूहिक तौर पर रहे हैं । लेकिन ये जरूर है कि साल भर का समय मिलने पर भी सरकारों ने ध्यान नहीं दिया । बीजेपी को सबक इसलिए सिखाया जाना चाहिए कि ये पूरी पार्टी चुनाव जीतने की मशीन बनी हुई है । इनके मुंह में जीत का खून लग गया है । लोकसभा के बाद विधानसभा..विधानसभा के बाद नगर पंचायत..नगर पंचायत के बाद ग्राम पंचायत । हद कर दिया इन दोनों ने । नजीजा तो ये भुगतेंगे..कितना ये अगले 15 दिन में तय हो जाएगा । लेकिन ये बात 110% सही है कि दुनिया की कोई सरकार..भले उसके पीएम खुद ब्रह्मा ही क्यों न होते होते..100 की क्षमता वाले सिस्टम पर 10 हजार का बोझ देख त्राहिमाम..त्राहिमाम ही करते । और सिस्टम सिर्फ साल भर पुराना नहीं । सिस्टम हम सबने मिलकर ऐसा ही सड़ा गला..लिजलिजा सा बनाया है । इसलिए सिस्टम को बदलने का जिम्मा हम सबका है । उसे बदल भी देंगे..सरकार भी बदल देंगे । अभी फिलहाल जिससे जितना बन पाता है..वो हालात को बदले । उसके लिए कुछ करना चाहिए । ऑक्सीजन नहीं दे सकते..तो नेबुलाइज़र ही खरीदकर दान करें । अस्पताल नहीं ले जा सकते किसी को..तो घर में ही जो कोरोना पेशेंट हैं उन तक खाना कैसे पहुंचे इसकी हरसंभव कोशिश करें । ऐसी हालत में हमारे एक्स ऑफिसियो जैसे बॉस Rana Yashwant आदर्श हैं। खुद दिल के मरीज हैं लेकिन दफ्तर आ रहे हैं । खुद को लोगों के लिए होम किए हुए हैं ये जानते हुए भी कि ये मौत से सीधे खेलने जैसा है.. बाकी बहुत बड़े-बड़े नाम पलंग, चौकी, सोफा, कुर्सी, दरवाजे के नीचे-पीछे छिपे हैं । आमने-सामने छोड़िए वर्चुअल भी नहीं प्रकट हो रहे । कुछ सामने आ रहे हैं तो ऐसी हालत में भी सरकार के पक्ष में..कुछ विपक्ष में उल्टी किए जा रहे हैं । लेकिन इन सबसे कुछ नहीं होने वाला । मैं खुद कुछ लोगों के जरिए छोटी ही सही परेशान-त्राहिमाम लोगों की मदद में लगा हूं..आपसे भी यही अपील कर रहा । इसी से हालात बदलेंगे ऐसी सोच के साथ ।
Rana Yashwant- सत्या! मैं तुम्हारे लगाव-जुड़ाव और चिंता को बखूबी समझता हूं। कई बार कह चुके हो- दफ्तर मत जाइए, घर से काम कीजिए। न्यूजरुम में क्यों रहते हैं, अगर ऑफिस गए भी तो अपने कमरे में रहिए। दरअसल मेरे लिए जीवन में परिस्थितियां कभी सामान्य नहीं रहीं। शायद इसीलिए मैं अपने पूरे बर्ताव और चरित्र में असामान्य होता चला गया। जरुरत से ज्यादा सहना, समझना, करना, लड़ना और इंसानियत के करीब रहना आ गया। मेरे अंदर- बेवजह का शोर, गैरजरुरी शांति, लाइमलाइट का प्रपंच, आधे ज्ञान की समझ- इन सबके विरुद्ध एक अनवरत युद्ध चलता रहा है। मैं उनलोगों की नजरों में कमजोर या पलायनवादी नहीं हो सकता जिनके साथ काम करता रहा हूं। अपनों के बीच से विरोेध किसी औऱ कारण से उठ सकता है, लेकिन इसके चलते नहीं जिसका मैने जिक्र किया। इस समय दुनिया और देश अतिभीषण परिस्थिति में घिरे हैं। ऐसे में सिर्फ अपनी भूमिका में नहीं रहा जा सकता। असाधारण हालात में साधारण काम ही करते रहना अपने साथ भी नाइंसाफी है। जीवन से मूल्यवान कुछ हो नहीं सकता और जब वही खतरे में है तो खुद को छिपाकर कितनी लंबी उम्र बना लेंगे अपनी? दफ्तर की जिम्मेदारियों के साथ मदद के लिए चारों ओर हाथ पैर मारते लाचार लोगों के भी थोड़ा काम आ सकूं, इसके लिए अपने शेड्यूल में कतरब्योंत की है। मैं नहीं जानता था कि ये क्या रुप लेगा। अपने संस्कार औऱ व्यवहार के कारण ही लोगों की जान बचाने के काम में लग गया। लेकिन धीरे धीरे लोग जुड़ते चले गए, देश भर से फोन आने लगे, मेरे एक ट्वीट-पोस्ट पर लोग दूसरों के काम आने लगे और अब मैं एक मंच बन गया हूं। मौजूदा संकट चला जाएगा औऱ देश अपने ढर्रे पर फिर आएगा। हां, मुझे आनेवाले समय में इस बात का सुकून रहेगा कि जब समाज को मदद की सबसे अधिक जरुरत थी, मैं चुप नहीं था। घर में जान की खैर मनाता बैठा नहीं था। एहतियात सारे रख रहा हूं, उपाय सारे कर रहा हूं। बाकी ईश्वर है। तुम मुझे लेकर ज्जबाती हो और पिछली बार की तुम्हारी डपट भी उसी वजह से थी। मैं समझता हूं लेकिन खुद से मजबूर हूं।
Saurabh
April 28, 2021 at 7:24 pm
इस संपादक से पूछो। इसके ऑफिस में कितने लोग बीमार है । कोई कोरोना से कोई वायरल से।। और 4महीने से तनख्वाह नही मिली।क्या किया इसने उन लोगों के लिए।।।। ये बड़ा संपादक अपनी सोर्स से लोगों की मद्दत कर रहा है। वहीं अपने ऑफिस के कर्मचारियों की खैर तक नही लेता।। ये मोटी तनख्वाह वाला संपादक।। केवल अपनी वाही वाही लुटाता है। शर्म है तो इंडिया न्यूज के कर्मचारियों की तनख्वाह दिलाये जो ज़िंदगी की जंग एक तरफ बीमारी से लड़ रहे है वहीं अपने बच्चे के लिए दूध दवाई के पैसे कर्जे पर कर्जा लेकर दब चुकें है।।।।।
anshu
April 30, 2021 at 3:13 pm
इनको ये नहीं दिखता इनके संस्थान के कर्मचारि कितने परेशान है …पांच महीने से सैलरी नहीं इस हालातऔर इंडिया न्यूज फाउंडेशन चलाता हैं …सिर्फ दिखावे की सब …कर्मचारियों की हालात खराब है लेकिन सैलेरी नहीं दे रहे …एचआर को फोन करो तो उठाता नहीं, कोई अधिकारी बताने को तैयार नहीं कब सैलेरी मिलेंगी…कुछ चापलूस लगे हुए है