Sanjaya Kumar Singh : आज के अखबारों में सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण खबर है, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया जाना। हिन्दी अखबारों की खबरें पढ़ने से लगता है कि वह नियुक्ति कैसे जायज है और उसके पक्ष में रंगनाथ मिश्र को कांग्रेस के जमाने में राज्यसभा के लिए नामांकित किए जाने का उल्लेख भी है। द टेलीग्राफ ने अपनी खबर में बताया है कि कैसे यह नियुक्ति पहले वालों से अलग है। टेलीग्राफ में और भी विवरण है जो हिन्दी अखबारों में नहीं है। यह अंतर इतना ज्यादा है कि हिन्दी अखबारों ने अगर इस खबर को सिंगल कॉलम में निपटा दिया है तो टेलीग्राफ ने इसका शीर्षक सात कॉलम में लगाया है।
आप इस मुख्य शीर्षक से असहमत हो सकते हैं उसपर विवाद भी कर सकते हैं। पर द टेलीग्राफ ने अगर यह बताने की कोशिश की है कि यह नियुक्ति गलत या अनैतिक है तो हिन्दी अखबारों में ऐसा कोई भाव लगभग नहीं है। इसके उलट रंजन गोगई को उपयुक्त उम्मीदवार बताने की कोशिश ज्यादा लगती है। मुख्य खबर का टेलीग्राफ का शीर्षक है, राफेल अयोध्या जज गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया पर हिन्दी अखबारों में न्यायमूर्ति गोगोई का परिचय देखिए। सबसे पहले द टेलीग्राफ की खबर पढ़िए।
मुख्य शीर्षक है, कोविड ने नहीं, कोविन्द ने किया। मुख्य खबर का शीर्षक, राफेल-अयोध्या जज गोगोई राज्य सभा के लिए मनोनीत। दूसरी खबर कोरोना वायरस या कोविड से संबंधित है। खबर इस प्रकार है : राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने सोमवार को न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद से रिटायर होने के चार महीने बाद राज्यसभा के लिए मनोनित किया। न्यायमूर्ति गोगोई सुप्रीम कोर्ट की उन पीठ के प्रमुख थे जिसने विवादास्पद अयोध्या में हिन्दुओं को मंदिर बनाने के लिए जगह दी और रफाल लड़ाकू विमान के सौदे की जांच करने की अपील को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति गोगोई ने असम में नागरिकों के लिए नेशनल रजिस्टर के काम का सार्वजनिक रूप से बचाव किया था।
भारत के इतिहास में पहले कभी किसी मुख्य न्यायाधीश को रिटायर होने के कुछ ही महीने बाद राज्यसभा के उच्च सदन के लिए नामांकित नहीं किया गया है। अयोध्या मामले में फैसला देने के कुछ ही दिन बाद गए साल नवंबर में गोगोई रिटायर हुए थे। कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं और राजनीतिकों ने संकेत दिए हैं कि सर्वोच्च जज को उनके उस फैसले के लिए ईनाम दिया गया है जो सत्तारूढ़ दल की प्रमुख वैचारिक प्रतिबद्धता के क्रम में है। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता गौतम भाटिया ने ट्वीट किया है, जो अंतर्निहित था उसे स्पष्ट होने में थोड़ा समय लगा पर स्वतंत्र न्यायपालिका अब आधिकारिक तौर पर खत्म है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा, “वे अपने न्यायिक रिकॉर्ड के प्रति भी उचित नहीं रहे हैं। अब उन्होंने अपने साथ बैठने वाले साथी जजों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को भी खतरे में डाल दिया है।” सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट दुष्यंत दवे ने शीर्ष अदालत की एक कर्मचारी द्वारा न्यायमूर्ति गोगोई के खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप की चर्चा की। न्यायमूर्ति गोगोई को इस मामले में हाउस पैनल से क्लीन चिट मिल गया था जबकि महिला ने यह शिकायत की थी कि कोई बाहरी सदस्य नहीं था और उसे कथित रूप से वकील की सुविधा नहीं दी गई।
दवे ने इस अखबार से कहा, “यह (राज्य सभा के लिए मनोनयन) स्पष्ट रूप से राजनीतिक है। इससे पता चलता है कि कैसे न्यायपालिका को कमजोर किया जा हा है। यह न्यायिक स्वतंत्रता न होने का स्पष्ट सबूत है।” केंद्रीय गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है, “भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 के खंड (3) के साथ पठित खंड (1) के उपखंड (क) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति एक नामित सदस्य की सेवानिवृत्ति के कारण हुई रिक्ति को भरने के लिए राज्यसभा में श्री रंजन गोगोई को नामित करते हैं।” ऐसी नियुक्तियों के लिए चुनाव सरकार करती है जिसे राष्ट्रपति को अग्रसारित किया जाता है।
वैसे, नियुक्ति की इस बेशर्मी ने कइयों को चौंका दिया है। पर नरेन्द्र मोदी सरकार ने पहले भी ऐसा किया है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम को सितंबर 2014 में उसी साल अप्रैल में रिटायरमेंट के बाद केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। निजी तौर पर भाजपा नेताओं ने दावा किया कि कांग्रेस ने भी ऐसी कार्रवाई की थी और दिल्ली के सिख विरोधी दंगे की जांच करने वाले मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्र को भी राज्य सभा का सदस्य बनाया था। हालांकि, न्यायमूर्ति मिश्र जुलाई 1998 में राज्यसभा के सदस्य बने जबकि 1991 के आखिर के महीने में रिटायर हुए थे। इस बीच उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन के रूप में काम किया था और फिर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। वे राज्यसभा के लिए निर्विाचित हुए थे न कि नामांकित किए गए थे।
भारत में एक और पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति एम हिदायतुल्ला को भारत का उपराष्ट्रपति बनाया जा चुका है। पर यह नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट से 1970 में रिटायर होने के लगभग नौ साल बाद हुई थी। शीर्ष अदालत की पहली महिला जज न्यायमूर्ति फातिमा बीवी 1992 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद 1997 में तमिलनाडु की राज्यपाल बनी थीं। 8 अक्तूबर 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अदालत या हाईकोर्ट के रिटायर जजों को रिटायर होने के बाद कोई पद स्वीकार करने से रोकने या न्यायमूर्ति सदाशिवम को केरल का राज्यपाल बनाने की विवादास्पद नियुक्ति को रद्द करने से मना कर दिया था।
उस समय के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू, न्यायमूर्ति एसए बोडबे (मौजूदा मुख्य न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति एएम सप्रे ने एक जनहित याचिका खारिज कर दी थी जिसके जरिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बहाल करने की मांग की गई थी।
इसके मुकाबले हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर छपी इस खबर को देखिए। आज यह खबर दैनिक जागरण में पहले पन्ने पर सबसे बड़ी (या लंबी छपी है)। पहले जागरण और फिर कुछ अन्य अखबारों की खबरें देखिए :
पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई राज्यसभा के लिए नामित (दैनिक जागरण)
हिन्दी अखबारों में सिर्फ दैनिक जागरण ने इस खबर दो कॉलम में छापा है। उपरोक्त मुख्य शीर्षक के अलावा उपशीर्षक है, संसद के उच्च सदन के लिए नामित होने वाले पहले पूर्व सीजेआई होंगे । अखबार ने प्रेस ट्रस्ट की खबर छापी है जो इस प्रकार है : अयोध्या समेत कई प्रमुख मामलों में फैसला सुनाने वाले पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) रंजन गोगोई को केंद्र सरकार ने राज्यसभा के लिए नामित किया है। संसद के उच्च सदन के लिए नामित होने वाले वह पहले पूर्व प्रधान न्यायाधीश होंगे। हालांकि पूर्व सीजेआइ रंगनाथ मिश्र भी राज्यसभा सदस्य बने थे, पर वह कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे। रंजन गोगोई 13 माह से ज्यादा के कार्यकाल के बाद नवंबर 2019 में सीजेआइ के पद से रिटायर हुए थे। गोगोई को अयोध्या मामले पर उनके फैसले के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने उन पीठों की भी अध्यक्षता की थी जिन्होंने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश व राफेल विमान सौदे जैसे मसलों पर फैसले सुनाए थे। जज और प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान कुछ विवाद भी हुए। उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे हालांकि वे आरोपों से बरी हो गए थे। वह उन चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों में थे जिन्होंने जनवरी 2018 में प्रेस कांफ्रेंस कर तत्कालीन सीजेआइ की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे।
हिन्दुस्तान (एजेंसी)
सरकार ने सोमवार को पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। इस संबंध में गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर दी है। अधिसूचना के मुताबिक, राष्ट्रपति ने जस्टिस गोगोई को राज्यसभा में *एक सदस्य का कार्यकाल समाप्त होने से खाली हुई सीट पर मनोनीत किया। यह सीट केटीएस तुलसी का राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होने से खाली हुई थी। राज्यसभा में 12 सदस्य राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत किए जाते हैं। *ये सदस्य अलग-अलग क्षेत्रों की हस्तियां होती हैं।
नवभारत टाइम्स (पीटीआई)
पहले पन्ने पर चार लाइन की इस खबर को दो कॉलम में छापा गया है। देश के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राष्ट्रपति ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। पूर्व चीफ जस्टिस ने अयोध्या विवाद का लगातार सुनवाई करके निपटारा किया था। राफेल खरीद और सबरीमला मामले से जुड़ी बेंचों के भी वह प्रमुख थे। यह खबर अंदर के पन्ने पर जारी है वहां इसका शीर्षक है, अयोध्या पर फैसला देने वाले पूर्व चीफ जस्टिस गोगोई राज्यसभा जाएंगे। गोगोई चीफ जस्टिस के अपने साढ़े 13 महीनों के कार्यकाल के दौरान कई विवादों में भी रहे। उन पर यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप भी लगे लेकिन उन्होंने इसे कभी भी अपने काम पर हावी नहीं होने दिया। वह बाद में आरोपों से मुक्त भी हुए। वह जजों के उस समूह के सबसे वरिष्ठ जज थे जिन्होंने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के काम के तरीके पर सवाल उठाया था और प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इससे पहले पूर्व चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा और एम. हिदायतुल्लाह भी राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.
इसे भी पढ़ें-
ज्ञानेंद्र कुमार
March 21, 2020 at 12:20 am
ना मैं गोगोई का समर्थक हूँ ना ही विरोधी, बस इतना पूछना चाहता हूँ कि गोगोई जब प्रेस कांफ्रेंस करके, न्यायाधीश के रूप में ली गयी शपथ की अवहेलना कर रहे थे उस समय उनका समर्थन कर रहे लोग आज कौन से पर उनका विरोध कर रहे हैं ? नैतिकता पर उनके प्रवचन तो उसी दिन भोथरे हो गये थे जब चार न्यायाधीश संवैधानिक व्यवस्था की खिल्ली उड़ा रहे थे और यह लोग उनका समर्थन कर रहे थे ।