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पत्रकार संगठनों का संसद पर प्रदर्शन का कार्यक्रम आपसी झगड़े के कारण पड़ा खटाई में, रास बिहारी का इस्तीफा

मीडिया संगठनों की हालत बहुत खराब है. कहने को तो ये मीडिया संगठन हैं, पत्रकारों के संगठन हैं, लेकिन इनकी औकात इतनी भी नहीं कि मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़कर उसे मीडियाकर्मियों को दिलवा सकें. प्रबंधन और सिस्टम के टुकड़े पर पलने बढ़ने वाले ये नेता किसी एक जेनुइन कार्यक्रम के दौरान भी एकजुट नहीं रह पाते. मीडियाकर्मियों के मुद्दों को लेकर संसद पर प्रदर्शन का एक कार्यक्रम बना लेकिन रास बिहारी नामक पत्रकार न सिर्फ अचानक इस्तीफा दे देता है बल्कि इकतरफा तौर पर संसद पर प्रदर्शन का घोषित कार्यक्रम रद्द करने का ऐलान कर देता है.

<p>मीडिया संगठनों की हालत बहुत खराब है. कहने को तो ये मीडिया संगठन हैं, पत्रकारों के संगठन हैं, लेकिन इनकी औकात इतनी भी नहीं कि मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़कर उसे मीडियाकर्मियों को दिलवा सकें. प्रबंधन और सिस्टम के टुकड़े पर पलने बढ़ने वाले ये नेता किसी एक जेनुइन कार्यक्रम के दौरान भी एकजुट नहीं रह पाते. मीडियाकर्मियों के मुद्दों को लेकर संसद पर प्रदर्शन का एक कार्यक्रम बना लेकिन रास बिहारी नामक पत्रकार न सिर्फ अचानक इस्तीफा दे देता है बल्कि इकतरफा तौर पर संसद पर प्रदर्शन का घोषित कार्यक्रम रद्द करने का ऐलान कर देता है.</p>

मीडिया संगठनों की हालत बहुत खराब है. कहने को तो ये मीडिया संगठन हैं, पत्रकारों के संगठन हैं, लेकिन इनकी औकात इतनी भी नहीं कि मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़कर उसे मीडियाकर्मियों को दिलवा सकें. प्रबंधन और सिस्टम के टुकड़े पर पलने बढ़ने वाले ये नेता किसी एक जेनुइन कार्यक्रम के दौरान भी एकजुट नहीं रह पाते. मीडियाकर्मियों के मुद्दों को लेकर संसद पर प्रदर्शन का एक कार्यक्रम बना लेकिन रास बिहारी नामक पत्रकार न सिर्फ अचानक इस्तीफा दे देता है बल्कि इकतरफा तौर पर संसद पर प्रदर्शन का घोषित कार्यक्रम रद्द करने का ऐलान कर देता है.

रास बिहारी से पूछा जाना चाहिए कि आखिर यह अचानक ‘हृदय’ परिवर्तन क्यों हो गया? कहीं इसके पीछे कोई लंबी तगड़ी राजनीति तो नहीं? जो भी हो, मीडिया संगठनों को एकजुट होकर संसद पर प्रदर्शन के कार्यक्रम को अंजाम तक पहुंचाना चाहिए क्योंकि इसी बहाने मीडियाकर्मियों के ढेर सारे मसले व सुख-दुख हमारे नीति निर्माताओँ तक पहुंचेंग और दबाव बन सकेगा. नीचे पत्रकार संगठनों के बीच हुए आपसी पत्राचार और इस्तीफे की घोषणा संबंधी मेल प्रकाशित किया जा रहा है. 

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-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया


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एनयूजे-डीजेए के संसद पर होने वाले प्रदर्शन के संबंध में…

मुझे लग रहा है कुछ लोगों की काम में कम और राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी है।

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मैं अपना इस्तीफ़ा भेज रहा हूँ और कल सभी घोषित कार्यक्रम रद्द करने के बारे में घोषणा कर दी जायेगी।

अब संसद पर भी प्रदर्शन नहीं होगा।

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रास बिहारी

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Dear Ras Bihari ji,

Do not ever entertain a silly idea like resigning, whatever may be reason. An NUJ(I) president is not expected to act impulsively. Go ahead with the December 07, demonstration. But, consider the views of all without outrightly rejecting any.

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As an elder it is humble advice: Always listen to views of everyone patiently, discuss it with others and take decisions on the basis of consensus as far possible. Don’t get upset if an opinion is not agreeable to you. Any doubts or differences in views or approach in a matter can always be sorted out coolly and amicably. As I had tried to counsel with you yesterday, and earlier, it is not necessary for one to react to every thing immediately, as the Greek, as well as our own, elders used to do in the past.

With best wishes.

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Dr. N.K.Trikha  

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मेरा इस्तीफ़ा मंजूर करें।

कल सार्वजनिक तौर पर घोषणा कर दूँगा। संसद पर होने वाला प्रदर्शन भी रद्द किया जाता है।

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रास बिहारी

[email protected]

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आदरणीय रास बिहारी जी और रतन दीक्षित जी

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सादर नमस्कार

दिल्ली के कुछ वरिष्ठ साथियों से आज सुबह मेरी बात हुई है। डीजेए अध्यक्ष के नाते उन सब की भावनाओं और सुझावों से मैं एनयूजे नेतृत्व को अवगत कराना चाह रहा हूं। हम लोग जोर शोर से 7 दिसंबर के धरने की तैयारी में जुटे हैं। इसे सफल बनाना है। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना है कि कोई राजनीतिक दल हमारे नेक इरादों का अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल न कर पाए। इसलिए हमें अपने धरना प्रदर्शन कार्यक्रम से राजनातिक दलों और नेताओं को दूर रखना चाहिए। इसलिए हमें किसी राजनेता को प्रदर्शन में नहीं बुलाना चाहिए। हां, मजदूर, किसान और अन्य गैर राजनीतिक संगठनों को इससे जरूर जोड़ा जा सकता है।

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यहां मैं यह भी याद दिलाना चाहूंगा कि पिछली केंद्र सरकार ने सारे काम मीडिया घरानों के हित में ही किए और हमारी मांगों पर कभी ध्यान नहीं दिया। तब के सूचना प्रसारण मंत्री हमें मिलने का समय तक नहीं दे रहे थे। इसके अलावा हमारा यह प्रदर्शन ऐसे समय पर हो रहा है जब देश में असहिष्णुता के नाम पर पुरस्कार वापसी की राजनीति हो रही है। हमें यह भी ध्यान रखना है कि हमारे पत्रकारों की हत्या और शोषण के खिलाफ इस प्रदर्शन को उस चश्में से न देखा जाए। नहीं तो हमारे प्रदर्शन को सरकार गंभीरता से नहीं लेगी और हमारा मकसद पूरा नहीं हो पाएगा। जबकि हमारा मकसद पत्रकारों के हितों में अपनी मांग मनवाने की है, न कि राजनीति करने की।

इसलिए कोई भी कदम सोच समझ कर और संगठन पर पड़ने वाले दूरगामी परिणाम को देखते हुए उठाना चाहिए। मेरी यह भी सलाह है कि कोई भी फैसला अगर सामूहिक रूप से लिया जाए, तो वह ज्यादा संगठन के हित में होता है।

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आपका
अनिल पांडेय
अध्यक्ष
दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन

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आदरणीय रास बिहारी जी एवं रतन दीक्षित जी
अध्यक्ष एवं महासचिव एनयूजे आई

नई दिल्ली

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आप दोनों को सर्वप्रथम मेरा प्रणाम। सकारात्मक सोच और उत्साह के साथ
हमारा संगठन पत्रकारों और पत्रकारिता से जुडे हितों और मुदृों को नए जोश
के साथ उठा रहा है और उन मुदृों पर खुले मन से चर्चा भी हो रही है। हमने
एकजुटता के साथ तय किया कि हम प़त्रकारों की समस्याओं और उनके हितों के
संरक्षण के लिए संघर्ष करेंगे। पिछले सप्ताह हम सभी ने आंदोलन और धरने के
संबंध में एक सामूहिक तौर पर पोस्टर जारी किया था। सोशल मीडिया और अन्य
संचार माध्यमों के जरिए धरने को सफल बनाने का काम भी शुरू कर दिया । यानी
पत्रकारों के हितों को लेकर संघर्ष किया जाए, धरना दिया या कोई अन्य
आंदोलन का तरीका अपनाया जाए इस मुद्दे पर कोई वैचारिक या अन्य किसी प्रकार
का कहीं कोई मतभेद न था और न है।

मैं पत्र नहीं लिखता लेकिन जिस प्रकार की परिस्थितियां उत्पन्न हो रही है
और जैसा संवाद हो रहा है उसने मुझे भी पत्र लिखने के लिए मजबूर कर दिया।
कई वरिष्ठ सदस्यों के फोन आए, संदेश आए और उन्होंने अपनी भावनाओं का
प्रकटीकरण किया। अध्यक्ष जी आप ने भी पत्र लिख कर आपनी भावनाएं रखी। इस
बीच डा एन के त्रिखा जी, श्री प्रभु जी, डीजेए अध्यक्ष अनिल पांडे जी,
महासचिव श्री आंनद राणा जी, एनयूजे की राष्टीय कार्यकारिणी सदस्य सीमा
किरण जी, श्री मनोहर जी, मनोज मिश्रा, श्री प्रमोद मजूमदार जी और धरने के
संबंध में समवंय के लिए बनाई गई समिति के सदस्य श्री राकेश आर्य जी से
अलग अलग स्तर पर बात हुई। बातचीत के लिए रास जी आज आपको भी प्रेस क्लब बुलाया
था लेकिन आप व्यस्ता के चलते नहीं आए पाए। मैं आपको बताना चाहता हूं कि कोई भी
सदस्य इस बात के खिलाफ नहीं है कि पत्रकारों के हितों को लेकर संघर्ष या धरना न किया जाए।

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मेरा और श्री प्रमोद मजूमदार जी का व्यक्तिगत तौर पर यह मानना था कि इस
धरने को अभी करने के बजाए आगामी बजट सत्र में रखा जाता था तो और अच्छा
रहता क्योंकि कुछ कारणों से यह समय उपयुक्तत नहीं लग रहा था। मौजूदा
परिस्थितियों और कुछ घटनाक्रम को देखते हुए  निवेदन है कि धरना यदि बजट
सत्र के लिए टल सकता हो या कोई और रास्ता निकल सकता हो तो अच्छा रहेगा ।
लेकिन यदि हर हाल में धरना करना ही है तो मेरा मत है कि धरने को शुद्व
रूप से पत्रकारों का रखा जाए। किसी भी दल के नेता को आम़ंत्रित नहीं किया
जाए। हमारे लिए पत्रकारों का मुदृा महत्वपूर्ण है किसी नेता को बुलाना या
न बुलाना महत्वपूर्ण नहीं। यह ऐसा विषय नहीं जिसे हम प्रतिष्ठा का सवाल
बना ले और पत्रकारों के लिए होने वाली लडाई को कमजोर कर ले।

इसलिए मेरा अनुरोध है कि संगठन के हित में हम नेताओं को धरने पर बुलाने
की अपनी इच्छा को िफलहाल कुछ समय के लिए किनारे रख् दें। केवल पत्रकारों
का ही धरना रखे और केंद्र सरकार से भी बातचीत का रास्ता भी खुला रखे
अन्यथा कहीं ऐसा न हो राजनीति और राजनेताओं को बुलाने के चक्कर में हमारा
मूल उददेश्य पीछे छूट जाए और कोई नया विवाद संगठन के लिए और सदस्यों के
लिए मुसीबत बन जाए। आशा करता हूं कि आप पत्र को अन्यथा नहीं लेंगे और सभी
साथियों से अपील है कि पत्र के जरिए नहीं बैठकर बातचीत करें। बातचीत के
लिए सभी वरिष्ठ साथियों की एक बैठक जल्द बुलाई जा सकती है चाय पर चर्चा
के बहाने ही सही।

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धन्यवाद
मनोज वर्मा
राष्टीय सचिव
nuj i

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0 Comments

  1. sanjib

    November 16, 2015 at 12:49 pm

    Ras Bihari ji se yah zaroor poochha jaye ki “Akhir kis wajah se we Achanak Istifa de rahe hain aur Samoochey Aandolan ko wey akele Sthagit kerne ka Decision kaise Le sakte hain!!!” Yah Sthiti Utpann kerney ke liye Unhen Kaun se Rajneta ya Malikon ne Dabaw Banaya hai, taki Poora Karyakram hi Cancel ho jaye, Patrakar Bandhu Aapas me Ladte Nazar aayen aur Tuchchey Malik Majey Katen… Inse Poochha Jaye…

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